Whispers of the Jinn.
हैल्लो दोस्तों मेरे नाम krish शर्मा मैं हैं और एक लेखक हूँ... उम्मीद कर्ता हूँ की आप सभी स्वस्थ होगे.... आह मैं आपके सामने एक ऐसी हॉरर नॉवल प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसे पढ़ कर आपको मज़ा आजाएगा...
ये कहानी एक मुस्लिम परिवार की जो एक भूतिया घर मे रहने लगते हैं जिसमें जिन्नात, तंत्र-मंत्र (जादू टोना), वशीकरण और इस्लामी रहस्यमयी डर सब शामिल हैं।
Chapter 1 – The Cursed House (Part 1)
रात ढल चुकी थी। लखनऊ के पुराने मोहल्ले "हुसैनाबाद" की तंग गलियाँ नींद में डूबी थीं। चाँद आधा था और बादलों की परतें कभी-कभी उसे पूरी तरह ढक लेतीं। कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें दूर तक फैली खामोशी को और डरावना बना रही थीं।
मोहल्ले के किनारे, पीपल और नीम के पेड़ों के झुरमुट के पीछे, एक हवेली खड़ी थी। हवेली-ए-जिन्न।
इसे लोग उसी नाम से जानते थे।
लोग कहते थे कि इस हवेली के भीतर एक ऐसी चीज़ कैद है, जिसे न कोई इंसान समझ पाया, न कोई मौलवी काबू कर पाया। “वो जिन्न है… और वो हवेली की दीवारों में सांस लेता है।”
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अयान नाम का एक युवक, लगभग 28 साल का, पत्रकार और लेखक, उसी हवेली की तलाश में आया था। दिल्ली से चला आया था सिर्फ़ इस कहानी के पीछे।
अयान की रुचि हमेशा से पैरानॉर्मल किस्सों, तंत्र-मंत्र और अंधविश्वासों में रही थी।
उसका मानना था — “हर अफवाह में कुछ सच्चाई छुपी होती है।”
गाँव पहुँचकर उसने सबसे पहले लोगों से पूछताछ शुरू की।
लेकिन हर बार उसे वही जवाब मिला —
“भाई साहब, हवेली का नाम मत लो। रात को तो भूल कर भी मत जाना।”
एक बुज़ुर्ग ने उसे कहा:
“बेटा, उस हवेली की दीवारें जिंदा हैं। अंदर जाओगे तो वो तुमसे बातें करेंगी। और जो बातें सुन लोगे, फिर कभी चैन की नींद नहीं सो पाओगे।”
अयान हल्की मुस्कान के साथ अपनी नोटबुक में लिखता गया।
लेकिन अंदर से उसके शरीर में सिहरन दौड़ रही थी।
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शाम के वक़्त, वह हवेली के पास पहुँचा।
बड़ा लकड़ी का दरवाज़ा, जो आधा टूटा हुआ था, अपने आप हवा के झोंके से हिल रहा था। दरवाज़े पर जंग खाए ताले लटक रहे थे, लेकिन खुली दरारों से हवेली का अंधेरा अंदर झाँक रहा था।
हवेली की ऊँची दीवारें काई और सीलन से भरी थीं। जगह-जगह पर अरबी और उर्दू में लिखे तांत्रिक नक़्श (तावीज़ और आयतें) दिखाई दे रही थीं।
कुछ जगहों पर लाल रंग से त्रिकोण और गोले बने थे, मानो किसी ने काला जादू किया हो।
अयान ने गहरी साँस ली।
वह जानता था कि आज रात वह इसी हवेली के अंदर जाएगा।
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जैसे ही उसने दरवाज़े को धक्का दिया, पुरानी लकड़ी की आवाज़ गूँज उठी।
हवेली के भीतर घुप्प अंधेरा था।
उसने टॉर्च ऑन की और नोटबुक निकाल ली।
भीतर का हाल और भी भयावह था —
टूटी हुई सीढ़ियाँ, दीवारों से लटकते जाले, और हवा में सड़न व धूप-राख की मिली-जुली गंध।
कहीं-कहीं दीवार पर हाथों के काले निशान थे, जैसे किसी ने ज़ोर से दबाया हो।
अयान ने लिखा:
“यहाँ किसी ने तंत्र-मंत्र किए हैं। हवेली अब भी उन ऊर्जाओं से भरी हुई है। हर कोना किसी की निगरानी जैसा महसूस करा रहा है।”
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अचानक उसकी टॉर्च अपने आप बंद हो गई।
अंधेरा।
और उसी अंधेरे में…
उसे लगा जैसे कोई उसकी गर्दन के पीछे खड़ा हो।
सांसें तेज़ हो गईं।
कानों में किसी ने बहुत धीमी आवाज़ में फुसफुसाया:
“वापस जा… वरना तू कभी लौटेगा नहीं।”
अयान का खून जम गया।
लेकिन उसकी कलम अब भी कागज़ पर चल रही थी।
वह डर को कैद करना चाहता था।
अयान ने गहरी साँस ली और टॉर्च को दोबारा ऑन किया।
पीली रोशनी टूटी दीवारों पर पड़ी तो ऐसा लगा मानो परछाइयाँ हिल रही हों।
हवेली के भीतर की हवा बहुत भारी थी, सीलन और लोबान की गंध उसकी नाक में घुस रही थी।
वह धीरे-धीरे सीढ़ियों की ओर बढ़ा।
सीढ़ियाँ इतनी जर्जर थीं कि हर कदम पर चर्र-चर्र की आवाज़ आती।
ऊपर की मंज़िल पर जाते ही उसने देखा — दीवारों पर पुराने इस्लामी कलमा लिखे हुए थे, लेकिन उनके ऊपर किसी ने काले कोयले से अजीब आकृतियाँ बना दी थीं।
मानो कोई बुरी ताक़त ने अच्छे शब्दों को दबा दिया हो।
अयान की रूह काँप उठी।
उसने डायरी में लिखा:
“यहाँ कोई ऐसा था जिसने कुरान की आयतों को मिटाकर अपने तंत्र-मंत्र से जिन्न को बाँधने की कोशिश की है।”
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अचानक पीछे से खटखटाहट की आवाज़ आई।
वह मुड़ा — कोई नहीं था।
फिर सीढ़ियों के नीचे से सिसकियों जैसी आवाज़ें सुनाई दीं।
“कौन है वहाँ?” अयान ने टॉर्च नीचे डाली।
खाली सीढ़ियाँ।
लेकिन तभी उसकी आँखों के सामने दीवार पर एक औरत का साया उभर आया।
लंबी चोटी, सफ़ेद दुपट्टा… लेकिन चेहरा नहीं।
वह साया धीरे-धीरे हिल रहा था, जैसे कुछ कह रहा हो।
अयान ने डरते-डरते कान लगाए।
फुसफुसाहट आई:
“निकाह… निकाह… मैं ज़ारा को नहीं छोड़ूँगा।”
अयान के हाथ से नोटबुक गिर गई।
उसके होश उड़ गए —
ज़ारा? कौन ज़ारा?
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वह तेज़ कदमों से हवेली के और अंदर गया।
एक बड़ा हॉल सामने आया।
उस हॉल की छत से झाड़-फानूस टूटा हुआ लटका था, और फर्श पर पुराने बर्तन, शीशे और ताबीज़ बिखरे पड़े थे।
वहीं एक कोने में एक लकड़ी की अलमारी पड़ी थी।
अयान ने जिज्ञासा से उसे खोला।
अंदर पुराने कागज़, तावीज़ और हड्डियों के ढांचे रखे थे।
कुछ तावीज़ पर लिखा था:
“बिस्मिल्लाह…”
लेकिन उनके ऊपर लाल स्याही से काट-पीट की गई थी।
अयान को पक्का यक़ीन हो गया — यहाँ किसी ने जिन्न को बुलाने का हराम तरीका अपनाया था।
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अचानक उसे महसूस हुआ कि उसकी गर्दन पर ठंडी साँसें चल रही हैं।
उसका दिल धक-धक करने लगा।
टॉर्च घुमाई तो सामने कोई नहीं था।
लेकिन तभी, कमरे के बीचों-बीच, धुएँ का एक काला गुबार उठा।
धीरे-धीरे वह गुबार इंसानी शक्ल लेने लगा।
लंबा कद, अंगारों जैसी आँखें, और हाथ बहुत लंबे।
चेहरे पर सिर्फ़ अंधेरा — कोई नाक, कोई होंठ नहीं।
वह जिन्न की पहली झलक थी।
उसने धीरे से कहा, मानो फुसफुसा रहा हो लेकिन उसकी आवाज़ पूरे कमरे में गूँज गई:
“किसने इजाज़त दी तुझे मेरी हदों में दाख़िल होने की?”
अयान के पैर जम गए।
उसका पूरा शरीर पसीने से तर हो गया।
लेकिन उसने खुद को संभालते हुए धीमे स्वर में कहा:
“मैं… मैं सिर्फ़ हक़ीक़त जानने आया हूँ।”
जिन्न की आवाज़ और गहरी हो गई:
“हक़ीक़त? तू हक़ीक़त बर्दाश्त नहीं कर पाएगा।”
और फिर पूरे हॉल में सैकड़ों आवाज़ें गूँजने लगीं —
औरतों की चीखें, बच्चों की रोने की आवाज़, और अज़ान जैसी धुन जिसमें अचानक से चीख मिल गई।
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अयान ने काँपते हाथों से कैमरा उठाया और तस्वीर लेने की कोशिश की।
लेकिन कैमरे की स्क्रीन पर सिर्फ़ धुँध और खून जैसा लाल रंग दिखाई दिया।
फिर अचानक स्क्रीन पर एक चेहरा उभरा —
एक औरत का, जिसकी आँखें खाली थीं और मुँह सीला हुआ था।
वह अचानक कैमरे से बाहर कूद पड़ी।
अयान ने चीख मार दी और कैमरा गिरा दिया।
अब पूरा हॉल अंधेरे में डूब गया।
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वह भागते हुए बाहर निकलने लगा, लेकिन दरवाज़े अपने आप बंद हो गए।
चारों तरफ़ अंधेरा और आवाज़ें:
“ज़ारा मेरी है… निकाह… निकाह…”
अयान ने आँखें बंद कीं और पूरी ताक़त से दरवाज़े पर धक्का मारा।
दरवाज़ा खुला और वह हवेली से बाहर गिर पड़ा।
चाँदनी उसकी आँखों पर पड़ी और उसने राहत की साँस ली।
लेकिन…
जैसे ही उसने अपने हाथ की तरफ़ देखा, उसकी कलाई पर एक अजीब-सा निशान उभर आया था — जलते हुए अरबी अक्षरों जैसा।
अयान समझ गया…
वह अब इस हवेली का हिस्सा बन चुका है।
अयान हवेली से बाहर आकर ज़मीन पर बैठ गया।
उसका दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था कि उसे लगा, अभी छाती फट जाएगी।
पसीना माथे से टपक रहा था और हाथ काँप रहे थे।
उसकी कलाई पर जला हुआ निशान अब और गहरा हो चुका था — मानो किसी ने गर्म लोहे से दाग दिया हो।
वह बार-बार उस निशान को पानी से रगड़कर मिटाने की कोशिश करता, लेकिन जितना रगड़ता उतना ही दर्द बढ़ जाता।
आखिरकार उसने हाथ छोड़ दिया और नोटबुक उठाई।
उसने काँपते अक्षरों में लिखा:
“हवेली मुझे अपने अंदर खींच रही है। ये जिन्न मुझसे बात करता है। और उसने एक नाम लिया… ज़ारा।”
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रात गहरी हो चुकी थी।
मोहल्ला पूरी तरह सो गया था, लेकिन हवेली के आस-पास अब भी अजीब सन्नाटा था।
अयान ने सोचा, उसे सुबह तक इंतजार करना चाहिए।
लेकिन तभी उसे लगा जैसे कोई अदृश्य ताक़त उसके कान के पास झुककर फुसफुसा रही हो।
“नींद मत करना… मैं तुझसे मिलना चाहता हूँ।”
अयान ने डरते हुए इधर-उधर देखा।
कोई नहीं था।
लेकिन अचानक उसे लगा कि हवेली की टूटी खिड़की से किसी औरत की आँखें उसे घूर रही हैं।
वह तेजी से खिड़की के पास गया।
अंदर अंधेरा था।
लेकिन खिड़की पर खून जैसा लाल निशान उभर आया — उसी लफ़्ज़ के साथ: “ज़ारा”।
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सुबह होते ही वह पास के गाँव के इमाम के घर पहुँचा।
बुज़ुर्ग इमाम ने उसे देखते ही कहा:
“बेटा, तू उस हवेली में गया था?”
अयान चौंक गया:
“आपको कैसे पता?”
इमाम की आँखें गहरी थीं। उन्होंने धीमे स्वर में कहा:
“तेरी कलाई पर जो निशान है, वही बता रहा है। वो हवेली जिन्न का घर है। और जिसने भी उसके भीतर कदम रखा, वो जिन्न उसे अपना हिस्सा बना लेता है।”
अयान ने हिम्मत करके पूछा:
“लेकिन उसने एक नाम लिया… ‘ज़ारा’। वो कौन है?”
इमाम कुछ देर चुप रहे। फिर बोले:
“ज़ारा इस मोहल्ले की ही लड़की थी। सालों पहले वो हवेली में गई थी… और फिर कभी वापस नहीं आई। लोग कहते हैं कि जिन्न ने उसे अपना बना लिया।”
अयान के रोंगटे खड़े हो गए।
मतलब जो आवाज़ उसने सुनी थी, वो उसी ज़ारा की थी?
लेकिन अगर वो मर चुकी थी तो जिन्न क्यों अब भी उसका नाम ले रहा था?
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उस रात अयान ने फिर हवेली जाने का फैसला किया।
इस बार वह कैमरा, टॉर्च और नोटबुक के साथ गया।
दरवाज़े पर पहुँचते ही उसे लगा जैसे हवेली उसका इंतजार कर रही हो।
दरवाज़ा अपने आप चर्र-चर्र की आवाज़ के साथ खुल गया।
भीतर घुप्प अंधेरा था।
जैसे ही उसने टॉर्च ऑन की, उसे दीवार पर किसी ने जल्दी-जल्दी से लिखा हुआ दिखाई दिया:
“निकाह या मौत।”
अयान का गला सूख गया।
वह धीरे-धीरे हवेली के पीछे के हिस्से में गया।
वहाँ एक कमरा था जिसकी दीवारें पूरी तरह आईनों से ढकी हुई थीं।
कमरे में घुसते ही हर आईने में उसका चेहरा अलग-अलग रूप में दिखने लगा —
कहीं वह बूढ़ा लग रहा था, कहीं उसका चेहरा जल चुका था, और कहीं उसके पीछे एक औरत खड़ी थी।
अचानक सारे आईनों से एक साथ आवाज़ आई:
“मैं ज़ारा हूँ… मुझे बचाओ।”
अयान के हाथ से टॉर्च गिर गई।
पूरा कमरा अंधेरे और उन फुसफुसाहटों से गूँज उठा।
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उसने भागने की कोशिश की लेकिन दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।
और तभी आईनों में से एक आईना टूट गया।
टूटे काँच से खून बहने लगा — लेकिन खून काँच से नहीं, बल्कि ज़मीन पर फैलने लगा।
और उस खून में एक परछाई बनी।
वही लंबा काला साया, जिसकी आँखें अंगारों की तरह चमक रही थीं।
वह धीरे-धीरे अयान के पास आया और फुसफुसाया:
“ज़ारा मेरी है। लेकिन अब तू भी…”
उसकी आवाज़ हवा में गूँज गई।
“…मेरा है।”