सर्दियों की काली रात थी। घड़ी की सुइयाँ बारह बजने का इशारा कर चुकी थीं। पूरा घर नींद में डूबा था, बस बाहर से आती ठंडी हवा खिड़कियों को हिला रही थी। कमरे की दीवार पर बल्ब की हल्की टिमटिमाती रोशनी अजीब-सी छाया बना रही थी।
मैंने करवट बदली, लेकिन नींद जैसे रूठ गई थी। तभी अचानक वॉशरूम जाने की ज़रूरत महसूस हुई। मन में एक अजीब झिझक थी, लेकिन हिम्मत करके दरवाज़ा खोला और बाहर निकली।
जैसे ही मेरी नज़र आँगन पर पड़ी… मैं जम गई।
पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर कोई बैठा था। सफेद कपड़े, सफेद लंबी दाढ़ी… और चेहरे पर इतना तेज़ कि मेरी आँखें चौंधिया गईं। उसकी नज़रें सीधी मेरी तरफ थीं—ठंडी, पैनी और भयावह।
वह एक बूढ़ा आदमी था। सिर और दाढ़ी पूरी तरह सफेद, और कपड़े भी बिल्कुल उजले। लेकिन सबसे अजीब बात यह थी कि उसके चेहरे पर एक अनोखा तेज़ था। आँखें चमक रही थीं, मानो अंधेरे को चीरकर सीधा मेरे भीतर झाँक रही हों।
मेरा दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था जैसे अभी बाहर निकल जाएगा। गले से चीख निकली और सब लोग दौड़े चले आए। लेकिन जब सबने देखा—वहाँ कुर्सी खाली थी, बस हल्की-सी कुर्र-कुर्र की आवाज़, जैसे किसी ने अभी-अभी उसे छोड़ा हो।
परिवार के बाकी लोग दौड़े चले आए। मैंने काँपते हुए उस कुर्सी की ओर इशारा किया… लेकिन वहाँ कुछ नहीं था। खाली कुर्सी मंद रोशनी में हिल रही थी, जैसे कोई अभी-अभी उठा हो।
सभी ने मुझे समझाया कि मैंने सपना देखा होगा। लेकिन यह पहला मौका नहीं था। उस घर में रहकर हमें अक्सर चोट लग जाती, सामान अपने आप गिर जाता, और कभी-कभी रात को अजीब सी फुसफुसाहटें सुनाई देतीं।
“तुम्हें वहम हुआ होगा,” सबने कहा।
पर मुझे पता था… वह सिर्फ वहम नहीं था।
उसके बाद घर का माहौल और अजीब होने लगा।
कभी सीढ़ियों से अचानक फिसल जाना,
कभी किसी के न होने पर भी कानों में धीमी फुसफुसाहट सुनाई देना,
रात को खिड़की पर परछाइयों का अजीब खेल,
सब कुछ असामान्य था।
हर बार लगता कोई हमें देख रहा है। और हर बार मेरी रूह काँप जाती।
लेकिन सबसे डरावनी रात तब आई…
पड़ोस में आग लग गई थी। तेज़ लपटें और धुआँ हमारे घर की ओर बढ़ रहा था। चीख-पुकार मच गई। हम सब घबराकर दरवाज़े की ओर भागे, लेकिन रास्ता धुएँ से घिर चुका था।
और तभी… वह फिर आया।
आँगन के बीच खड़ा—वही सफेद कपड़े, वही चमकती दाढ़ी, लेकिन इस बार उसका चेहरा और भी भयानक लग रहा था। उसकी आँखों से तेज़ रोशनी निकल रही थी, जैसे आग को रोक रही हो। उसने उँगली से इशारा किया—घर के पिछले हिस्से की ओर।
हम सब बिना कुछ सोचे उसी दिशा में भागे… और चमत्कार!
पीछे मुड़कर देखा तो लपटें वहीं थम गईं, जहाँ वह खड़ा था।
हम बाहर सुरक्षित थे, लेकिन जब आँगन की ओर देखा—वह वहाँ नहीं था। बस कुर्सी जल रही थी, और धुएँ में उसकी सफेद दाढ़ी की परछाई आख़िरी बार दिखाई दी।
आज भी जब उस घर को याद करती हूँ, मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
वह कौन था?
रक्षक… या चेतावनी देने वाली कोई आत्मा?
सच क्या था, कोई नहीं जानता।
पर उसकी ठंडी निगाहें और सफेद दाढ़ी की परछाई अब भी मेरे ज़हन में जिंदा हैं।
“वह कौन था… रक्षक? या किसी अनकही चेतावनी की परछाई? सच जो भी हो… उसकी नज़रें आज तक उस घर की दीवारों में क़ैद हैं।”
Lalita sharma