Khamosh Parchhaiya - 4-5 in Hindi Horror Stories by Kabir books and stories PDF | खामोश परछाइयाँ - 4-5

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खामोश परछाइयाँ - 4-5


रिया ने डायरी का आख़िरी पन्ना पढ़ने के बाद तय कर लिया कि उसे उस पुरानी हवेली तक जाना ही होगा। हवेली शहर के बाहरी इलाक़े में थी, जंगल के बीच, जहाँ लोग जाते हुए डरते थे।
शाम का समय था जब रिया वहाँ पहुँची। टूटा हुआ गेट, झाड़ियों से घिरी राह और हवेली की दीवारों पर चढ़ी काई… सब देखकर उसकी रूह काँप गई।
जैसे ही उसने भीतर क़दम रखा, दरवाज़ा अपने आप पीछे से बंद हो गया। अंदर घुप अंधेरा और सन्नाटा था। हवा में नमी और सड़ांध का अहसास।
अचानक, हवेली की दीवारों से अजीब-सी फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं—
"रिया… वापस जाओ… यहाँ सिर्फ़ मौत है…"
रिया काँप गई लेकिन हिम्मत करके आगे बढ़ी। हर कमरे में टूटी चीज़ें, फटी तस्वीरें और खून जैसे दाग़ दीवारों पर।
सीढ़ियों पर चढ़ते हुए उसे अचानक लगा कि कोई उसके पीछे चल रहा है। उसने मुड़कर देखा—वहाँ कोई नहीं था। लेकिन फ़र्श पर गीले पैरों के निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे।
दूसरी मंज़िल पर पहुँचते ही उसके सामने एक पुराना कमरा था। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, दीवार पर बड़े-बड़े अक्षरों में खून से लिखा था—
“यहीं उसका ख़ून हुआ था।”
रिया का दिल धड़क उठा। तभी अचानक अर्जुन की परछाई उसके सामने आ खड़ी हुई।
"रिया…" उसकी आवाज़ टूटी हुई थी।
"यही वो जगह है जहाँ मुझे धोखा मिला… जहाँ मेरी मोहब्बत ने मुझे मौत के हवाले कर दिया।"
रिया की आँखों में आँसू आ गए।
"कौन था वो? किसने तुम्हें मारा?"
अर्जुन की रूह काँप गई। उसकी आँखों में दर्द और ग़ुस्सा दोनों थे।
"वो जिसे मैंने सबसे ज़्यादा चाहा था… उसने ही मुझे बेच दिया।"
रिया के लिए अब ये सिर्फ़ डरावनी कहानी नहीं थी—ये इंसाफ़ की लड़ाई बन गई थी।

रिया के हाथ काँप रहे थे जब उसने हवेली के पुराने बक्से से चिट्ठी निकाली।
उस पर खून के धब्बे थे और अक्षर ऐसे लिखे थे जैसे किसी ने आख़िरी साँसों में लिखे हों।
"अर्जुन… मुझे माफ़ करना। मैंने चाहकर भी तुम्हें बचा नहीं पाई। वो लोग बहुत ताक़तवर थे। उन्होंने धमकाया… और मैंने वो किया जो कभी सोचा भी नहीं था। मुझे मौत से भी ज़्यादा शर्म आती है उस धोखे पर…"
रिया की आँखें भर आईं। उसने बक्से से दुपट्टा उठाया—वो लाल रंग में सना हुआ था। शायद उसी रात अर्जुन की जान ली गई थी।
अचानक कमरे में ठंडी हवा दौड़ गई। दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। दीवार पर परछाइयाँ बनने लगीं। उनमें से एक परछाई साफ़ इंसानी शक्ल ले चुकी थी—वो अर्जुन था।
अर्जुन की आँखों में आग थी।
"रिया… तुमने वो सब पढ़ लिया है। अब तुम पीछे नहीं हट सकती।"
रिया काँपते हुए बोली—
"अर्जुन… ये चिट्ठी किसकी है? जिसने तुमसे धोखा किया… वो कौन थी?"
अर्जुन की रूह काँपी। उसकी आवाज़ में ग़ुस्से और दर्द का अजीब मिश्रण था।
"वो… मेरी जान थी। मेरा सबकुछ। मैंने उसके लिए सब छोड़ा, सब झेला। मगर उसी ने मेरे दुश्मनों का साथ दिया।"
रिया की आँखों से आँसू बह निकले।
"मगर क्यों? किसी इंसान की जान लेने की हिम्मत कोई अपनी मोहब्बत से कैसे कर सकता है?"
अर्जुन की परछाई अचानक दीवारों में बिखर गई और पूरे कमरे में चीखें गूँजने लगीं।
"क्योंकि इंसान… डर और लालच में किसी भी हद तक गिर सकता है!"
रिया ने अपने कान बंद कर लिए। आवाज़ इतनी तेज़ थी कि उसकी रूह काँपने लगी।
कुछ पल बाद सन्नाटा छा गया। अर्जुन फिर सामने आया, इस बार उसकी आँखों में आँसू थे।
"रिया… मेरा गुनाह सिर्फ़ इतना था कि मैंने सच्ची मोहब्बत की। लेकिन उन्हें डर था कि अगर मैं ज़िंदा रहा, तो सच सबके सामने आ जाएगा।"
रिया ने गहरी साँस ली और दृढ़ स्वर में कहा—
"तो अब मैं वो सच सामने लाऊँगी। चाहे उसके लिए मुझे किसी से भी लड़ना पड़े।"
अर्जुन की रूह कांपी, और उसने पहली बार हल्की-सी मुस्कान दी।
"अगर तुमने सच सामने लाया… तो मेरी आत्मा को शांति मिलेगी।"
अचानक हवेली की दीवार से खून रिसने लगा। रिया पीछे हट गई। दीवार पर धीरे-धीरे एक नाम उभर आया—
“संध्या”
रिया की रूह काँप गई।
"तो वही थी… तुम्हारी मोहब्बत? वही जिसने तुम्हें धोखा दिया?"
अर्जुन ने धीमी आवाज़ में कहा—
"हाँ… वो मेरी ज़िंदगी थी… और मेरी मौत भी।"
रिया के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। अब कहानी और उलझ गई थी—क्योंकि संध्या सिर्फ़ अर्जुन की प्रेमिका ही नहीं, बल्कि रिया की माँ का नाम भी था।
उसकी साँसें थम गईं।
क्या ये वही संध्या थी?
क्या अर्जुन का क़त्ल उसकी ही माँ से जुड़ा हुआ था?
रिया की आँखों में आँसू छलक आए। उसके लिए ये रहस्य अब और भी व्यक्तिगत हो चुका था।