हवेली की आख़िरी रात - एपिसोड 1
कहानी की शुरुआत:
बरसात का मौसम था और दरभंगा के एक पुराने गाँव के तालाब के किनारे खड़ी हवेली पर घने बादल छाए हुए थे। गाँव में हर कोई इस हवेली से दूर रहता था और इसे 'पानी वाली हवेली' कहते थे। ऐसा माना जाता था कि आधी रात को हवेली की टूटी खिड़कियों से पानी टपकने की आवाज़ आती है, लेकिन वहाँ दूर-दूर तक पानी का नामोनिशान नहीं था। बच्चों को डराने के लिए अक्सर औरतें कहती थीं—"सो जाओ नहीं तो हवेली की औरत आ जाएगी।"
इसी गाँव से गुज़रते हुए शहर से आए छह दोस्तों ने इस हवेली में एक रात बिताने का फ़ैसला किया। उन्हें लगता था कि भूत-प्रेत सिर्फ़ कहानियों में होते हैं। वे सब रोमांच चाहते थे।
किरदार:
काव्या (22) - हिम्मती और जिज्ञासु।
अर्जुन (25) - काव्या का कज़िन, ज़िम्मेदार।
सुमित (24) - मज़ाकिया और निडर।
रिया (21) - थोड़ी डरपोक।
करण (23) - वीडियो रिकॉर्डिंग का शौक़ीन।
नेहा (22) - काव्या की सबसे क़रीबी दोस्त।
हवेली का रास्ता:
शाम के छह बजे थे। हवा में मिट्टी की सौंधी गंध थी। सभी दोस्त धीरे-धीरे हवेली की ओर बढ़ रहे थे। रास्ते में तालाब पड़ा। उसका पानी स्थिर था और उस पर धुंध की एक मोटी परत तैर रही थी। तभी, रिया की नज़र पानी में गई। "तुम लोगों ने देखा?" उसकी आवाज़ में घबराहट थी। उसे लगा जैसे किसी ने पानी के भीतर से हाथ हिलाया हो। सुमित ने हँसकर मज़ाक किया, "अरे, तुम डरपोक हो। यह बस तुम्हारा वहम है।"
लेकिन काव्या के पैरों में अजीब-सी ठंडक दौड़ गई। उसने पलटकर देखा। धुंध के बीच, सचमुच एक काली परछाईं हिली थी... पर उसने चुप रहना ही बेहतर समझा।
हवेली का पहला दृश्य:
जैसे ही वे हवेली के दरवाज़े पर पहुँचे, सब हैरान रह गए। दरवाज़ा आधा टूटा हुआ था, मानो किसी ने उसे अंदर से ज़ोर से धकेला हो। चारों ओर लटकती सूखी बेलें और अंदर की सीलन और सड़ी हुई गंध ने उनका दम घोंट दिया।
"भाई, यहाँ तो लगता है सालों से कोई नहीं आया," करण ने अपना कैमरा ऑन किया और रिकॉर्डिंग शुरू कर दी।
नेहा ने डरकर काव्या का हाथ पकड़ लिया, "काव्या, मुझे बहुत डर लग रहा है।"
"डरने की ज़रूरत नहीं, हम सब साथ हैं।" काव्या ने उसे दिलासा दिया।
हवेली के अंदर का डर:
वे जैसे-जैसे अंदर जा रहे थे, उनके कदमों की आवाज़ गूँज रही थी। अचानक, ऊपर की मंज़िल की एक खिड़की ज़ोर से बंद हो गई। सब एक पल के लिए ठिठक गए।
अर्जुन ने कहा, "हवा है," लेकिन उसकी आवाज़ भी काँप रही थी।
सुमित ने मज़ाक किया, "हवा नहीं, लगता है हवेली की मैडम आई होंगी!"
जैसे ही उसने ये कहा, छत से अचानक एक पानी की बूंद टपककर उसकी गर्दन पर गिरी। सबने ऊपर देखा। छत बिल्कुल सूखी थी।
पहली रात का डर:
उन्होंने हवेली के बीच वाले हॉल में मोमबत्तियाँ और टॉर्च जलाईं। बाहर तूफ़ान तेज़ हो गया था। खिड़कियाँ ज़ोर-ज़ोर से हिल रही थीं। करण ने हँसते हुए कहा, "चलो, भूत-प्रेत की बातें करते हैं।"
तभी उसने कैमरे की रिकॉर्डिंग देखी। "ये देखो! हम छह हैं, पर वीडियो में एक सातवाँ भी है!"
मोमबत्ती की रोशनी में उनके पीछे एक लंबी, गीले बालों वाली परछाईं खड़ी थी। सबने तुरंत पलटकर देखा, पर वहाँ कोई नहीं था। नेहा ज़ोर से चीख़ पड़ी, "मैंने कहा था यहाँ कुछ है!"
सन्नाटा और चीख:
रात के 12 बज चुके थे। अचानक सीढ़ियों पर किसी के गीले पैरों के चलने की आवाज़ आई—छप-छप-छप... अर्जुन ने हिम्मत करके टॉर्च मारी। कोई नहीं था, लेकिन गीले पैरों के निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे जो उन्हीं की तरफ़ बढ़ रहे थे।
रिया रोते हुए बोली, "मुझे यहाँ से जाना है।"
वह दरवाज़ा खोलने भागी, लेकिन दरवाज़ा बाहर से बंद था। तभी दूसरी मंज़िल से एक भयानक चीख़ सुनाई दी।
🔪 हवेली की आख़िरी रात - एपिसोड 2
करण की मौत:
डर के मारे सभी हॉल से बाहर भागे। करण सबसे आगे था। उसने जैसे ही सीढ़ी पर पैर रखा, वह लकड़ी टूट गई और वह नीचे तहख़ाने में गिर गया।
"करण!" सब चिल्लाए।
उन्होंने नीचे टॉर्च फेंकी। करण ज़मीन पर पड़ा था, लेकिन उसके गले पर गहरे नील के निशान थे। उसकी आँखें खुली थीं, उनमें सिर्फ़ डर और मौत की ख़ामोशी थी। रिया सिसकते हुए बोली, "हवेली... हवेली किसी को नहीं छोड़ती।"
खून और चेतावनी:
करण की मौत से सब सदमे में थे। हवेली की हवा में अब सीलन के साथ सड़न की गंध भी थी। काव्या ने काँपती हुई आवाज़ में कहा, "हमें यहाँ से निकलना होगा।"
लेकिन अब हर खिड़की पर लोहे की जाली अपने आप कस चुकी थी। दरवाज़े पर एक मोटा ताला लटक रहा था, जो पहले नहीं था। तभी, दीवार पर बनी पुरानी पेंटिंग से खून टपकने लगा और उस पर लिखा दिखाई दिया: "जो आया है, वापस नहीं जाएगा।"
सबकी रूह काँप गई। नेहा ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी, "मुझे घर जाना है... मैं मरना नहीं चाहती!"
सुमित की मौत:
सुमित ने हिम्मत दिखाने की कोशिश की। "यह सब धोखा है।"
उसने पेंटिंग को छुआ। जैसे ही उसकी उँगली खून से भीगी, पीछे से एक लोहे की छड़ हवा में उठी और उसकी छाती में आर-पार हो गई। सुमित की चीख़ हवेली में गूँज उठी। उसका शरीर वहीं गिर पड़ा।
रिया डर के मारे चीख़ पड़ी, "ये हवेली हमें ज़िंदा नहीं छोड़ेगी!"
हवेली की औरत:
रात और गहरी हो गई। सीढ़ियों पर फिर से गीले पैरों की आवाज़ आई। इस बार सिर्फ़ आवाज़ नहीं थी—एक औरत धीरे-धीरे नीचे उतर रही थी। उसके लंबे, गीले बाल ज़मीन पर घिसट रहे थे। उसका चेहरा काला था और आँखों की जगह गहरी खाइयाँ थीं। उसके हाथों से लगातार पानी टपक रहा था।
नेहा डर के मारे बेहोश होकर वहीं गिर गई। अर्जुन ने टॉर्च मारी, और रोशनी पड़ते ही वह औरत अचानक गायब हो गई।
नेहा की मौत:
जब काव्या ने नेहा को उठाने की कोशिश की, तो उसकी आँखें अचानक खुलीं और उसका शरीर हवा में उठ गया। उसने एक भयानक आवाज़ में कहा, "ये हवेली मेरी है... अब तुम सब भी मेरे हो..."
उसकी गर्दन अचानक पीछे मुड़ी और वह वहीं गिर गई। उसकी मौत इतनी डरावनी थी कि बाक़ी सब काँप गए।
रिया की मौत:
अब सिर्फ़ काव्या, अर्जुन और रिया बचे थे। रिया पागल-सी होकर दरवाज़े पर सिर पटकने लगी। अचानक, दरवाज़ा अपने आप खुल गया। रिया ज़ोर से चीख़ते हुए बाहर भागी। उसके पीछे हवेली का दरवाज़ा ज़ोर से बंद हो गया। बाहर रिया की चीख़ें सुनाई दीं और फिर सब शांत हो गया। जब काव्या ने खिड़की से देखा, तो तालाब में सिर्फ़ रिया का दुपट्टा तैर रहा था।
🌅 हवेली की आख़िरी रात - एपिसोड 3 (अंतिम भाग)
हवेली का सच:
अब हवेली में सिर्फ़ काव्या और अर्जुन बचे थे। अचानक हवेली की दीवारें काँपने लगीं और वही औरत उनके सामने प्रकट हुई। उसकी आँखों से खून बह रहा था।
उसने धीमी, भयानक आवाज़ में कहा, "मुझे मेरे ही घर में ज़िंदा जला दिया गया था... अब कोई यहाँ चैन से नहीं रह सकता।"
उसके हाथ उठे और उसने अर्जुन की गर्दन पकड़ ली। काव्या चीख़ पड़ी, "नहीं!"
अगले ही पल, अर्जुन का शरीर ज़मीन पर गिर पड़ा। उसकी साँसें थम चुकी थीं।
सुबह का सन्नाटा:
अगली सुबह, गाँव वाले जब हवेली के पास से गुज़रे, तो दरवाज़ा खुला था। अंदर सिर्फ़ काव्या ज़िंदा पड़ी थी। उसकी आँखें लाल, होंठ सूखे और शरीर काँप रहा था। जब गाँव वालों ने उससे पूछा, "क्या हुआ वहाँ?" तो उसने काँपती हुई आवाज़ में कहा, "हवेली... उन्हें सबको निगल गई।"
उसके बाद काव्या ने कभी किसी से बात नहीं की। वह ज़िंदा तो थी, लेकिन उसकी आँखों में हर वक़्त वही खौफ़नाक रात तैरती थी।
कहानी का अंत:
गाँव वालों का मानना है कि हवेली की रूह ने काव्या को इसलिए छोड़ा ताकि वह उसकी कहानी ज़िंदा गवाह बनकर सबको बताए। पर कुछ लोग कहते हैं कि अब काव्या में वही रूह बस चुकी है, क्योंकि जब भी कोई उससे मिलता, उसे लगता कि उसके पैरों
के नीचे हमेशा गीलापन रहता है... जैसे वह तालाब से होकर आई हो।