24 नवंबर 1971 का दिन था। अमेरिका में थैंक्सगिविंग का मौसम था और लोग छुट्टियों के मूड में थे। ओरेगॉन के पोर्टलैंड शहर के हवाई अड्डे पर एक आदमी पहुँचा। उसकी शक्ल-सूरत बेहद सामान्य थी, जैसे कोई आम बिज़नेसमैन। उसने गहरे रंग का सूट पहन रखा था, काली टाई बाँधी हुई थी और धूप का चश्मा लगाए हुए था। उसने डैन कूपर नाम से नॉर्थवेस्ट ओरिएंट एयरलाइंस की फ्लाइट 305 का टिकट खरीदा। उस समय किसी को अंदाज़ा भी नहीं था कि यह शख्स आने वाले समय में इतिहास का सबसे बड़ा रहस्य बन जाएगा।
यह फ्लाइट पोर्टलैंड से सिएटल की ओर जाने वाली एक छोटी घरेलू उड़ान थी। विमान में 36 यात्री और कुछ क्रू मेंबर सवार थे। विमान ने सामान्य रूप से उड़ान भरी, सबकुछ सामान्य लग रहा था। लेकिन थोड़ी ही देर बाद उस आदमी ने एयर होस्टेस फ्लोरेंस शेफ़नर को एक नोट थमाया। शुरू में उसने इसे मज़ाक समझकर बैग में डाल लिया, लेकिन तभी उस आदमी ने धीमी आवाज़ में कहा—“मैडम, बेहतर होगा आप इसे पढ़ लें। मेरे पास बम है।”
नोट में साफ लिखा था कि उसके पास ब्रीफ़केस में बम है और अगर एयरलाइन अपने यात्रियों की जान बचाना चाहती है तो उसे तुरंत 200,000 डॉलर नकद और चार पैराशूट चाहिए। एयर होस्टेस घबरा गई लेकिन उसके चेहरे पर डर दिखने नहीं दिया। उसने कप्तान को सूचना दी और देखते ही देखते पूरा विमान तनाव से भर गया।
जब विमान सिएटल पहुँचा तो FBI और एयरलाइन पहले से तैयार थे। कूपर ने साफ कह दिया था कि यात्रियों को तभी छोड़ूँगा जब उसकी माँग पूरी हो जाएगी। एयरलाइन ने उसकी बात मान ली। पैसे और पैराशूट विमान में पहुँचा दिए गए और यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। विमान में अब सिर्फ कूपर, पायलट और कुछ क्रू मेंबर रह गए।
कूपर ने फिर नया आदेश दिया। उसने कहा कि विमान को मेक्सिको सिटी की ओर उड़ाया जाए। लेकिन उसने कई अजीब शर्तें भी रखीं—विमान की ऊँचाई सिर्फ 10,000 फीट रखी जाए, स्पीड बहुत धीमी हो, और लैंडिंग गियर आधा खुला रहे। पायलट ने उसकी बात मानी और विमान रात के अंधेरे में उड़ चला।
कुछ ही देर बाद कूपर ने विमान का पिछला दरवाज़ा खोला। बाहर तूफ़ान था, तेज़ बारिश और हवा चल रही थी। लेकिन वह बिना डरे खड़ा रहा। उसने नकदी से भरा बैग अपने साथ बाँधा और पैराशूट पहन लिया। फिर अचानक एक छलांग लगाई और रात के अंधेरे में गायब हो गया। यह आखिरी बार था जब किसी ने डी.बी. कूपर को देखा।
विमान खाली होकर लैंड कर गया लेकिन कूपर का कोई अता-पता नहीं था। FBI ने तुरंत व्यापक खोज शुरू कर दी। जंगलों, पहाड़ों, नदियों—हर जगह तलाश की गई। सेना तक को लगाया गया। लेकिन न तो कूपर मिला, न उसका पैराशूट, न पैसे।
साल दर साल यह रहस्य और गहराता गया। 1980 में पहली बार थोड़ी रोशनी पड़ी। वाशिंगटन राज्य की कोलंबिया नदी के किनारे एक लड़के को रेत में दबे हुए 20 डॉलर के कुछ नोट मिले। जाँच करने पर पता चला कि ये वही नोट थे जो कूपर को दिए गए थे। लेकिन पैसे मिलने के बावजूद यह सुराग भी किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुँचा।
लोगों ने तरह-तरह की थ्योरियाँ बनाईं। कुछ का मानना है कि कूपर ने छलांग लगाते ही जान गँवा दी होगी। मौसम बहुत खराब था और इलाके में घना जंगल था। ऐसे हालात में उसके लिए जिंदा बचना लगभग नामुमकिन था। लेकिन अगर वह मर गया था तो उसका शव कभी क्यों नहीं मिला? उसका पैराशूट कहाँ गया? यह सवाल आज भी अनसुलझा है।
कुछ लोग यह भी मानते हैं कि वह बेहद चालाक था और उसने छलांग लगाने के बाद किसी साथी की मदद से भागकर नई पहचान बना ली। कई संदिग्धों की जाँच हुई—कुछ पूर्व सैनिकों पर शक किया गया, कुछ अपराधियों पर, यहाँ तक कि कुछ परिवारों ने दावा किया कि उनका कोई सदस्य ही असली कूपर था। मगर FBI के पास कभी कोई ठोस सबूत नहीं आया।
यह मामला धीरे-धीरे एक किंवदंती बन गया। डी.बी. कूपर मीडिया की सुर्खियों में छा गया। लोग उसे अपराधी नहीं बल्कि एक तरह का “रॉबिन हुड” मानने लगे—एक ऐसा आदमी जिसने सरकार को चकमा दिया और गायब हो गया। उसकी पहचान, उसकी योजना और उसका अंजाम—सब रहस्य ही रह गया।
आख़िरकार 2016 में, 45 साल बाद FBI ने इस केस की आधिकारिक जाँच बंद कर दी। उन्होंने माना कि उनके पास अब कोई नया सुराग नहीं है और यह रहस्य शायद कभी सुलझ नहीं पाएगा। लेकिन लोगों की जिज्ञासा आज भी खत्म नहीं हुई।
डी.बी. कूपर की दास्तान हमें यह याद दिलाती है कि कभी-कभी इंसानी दिमाग इतनी साहसी और अजीब योजना बना सकता है जो असंभव लगती है। उसने एक पूरे देश की सुरक्षा एजेंसियों को चकमा दिया और चाहे वह जिंदा बचा हो या नहीं, उसका नाम हमेशा रहस्य बनकर जीवित रहेगा।
आज भी जब अमेरिका में अनसुलझे मामलों की चर्चा होती है तो डी.बी. कूपर का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। एक आदमी, जिसने बम की धमकी देकर विमान रोका, लाखों डॉलर लूटे, पैराशूट से कूदा और फिर हमेशा के लिए हवा में घुल गया।