*प्रस्तावना:*
यह कहानी एक छोटे से गाँव "कालीपुर" की है, जहाँ एक पुरानी हवेली वर्षों से वीरान पड़ी है। गाँव वाले कहते हैं कि वहाँ पर अजीब घटनाएँ होती हैं, और जो भी वहाँ गया, वह कभी वापस नहीं आया।
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*अध्याय 1: नए आगंतुक*
राज और उसकी पत्नी स्नेहा शहर की हलचल से दूर शांति की तलाश में कालीपुर गाँव में आते हैं। उन्हें गाँव के किनारे एक सुंदर सा घर मिलता है, जो उस पुरानी हवेली के पास ही स्थित है। गाँव वाले उन्हें चेतावनी देते हैं कि हवेली के पास न जाएँ, लेकिन राज को इन बातों पर विश्वास नहीं होता।
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*अध्याय 2: पहली रात*
पहली रात ही स्नेहा को अजीब आवाज़ें सुनाई देती हैं—जैसे कोई दरवाज़ा खटखटा रहा हो, या कोई धीमी आवाज़ में कुछ कह रहा हो। राज इसे स्नेहा का वहम कहकर टाल देता है। लेकिन अगली रात, राज खुद भी उन आवाज़ों को सुनता है।
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*अध्याय 3: हवेली की ओर*
राज और स्नेहा तय करते हैं कि वे हवेली जाकर देखेंगे कि वहाँ क्या है। दिन के उजाले में वे हवेली की ओर बढ़ते हैं। हवेली के दरवाज़े पर एक पुराना ताला लगा होता है, लेकिन जैसे ही वे पास जाते हैं, ताला अपने आप खुल जाता है। अंदर का दृश्य भयावह होता है—दीवारों पर खून के धब्बे, टूटी हुई तस्वीरें, और एक पुराना झूला जो अपने आप हिल रहा होता है।
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*अध्याय 4: आत्मा का प्रकोप*
हवेली से लौटने के बाद, राज और स्नेहा के साथ अजीब घटनाएँ होने लगती हैं। स्नेहा को सपनों में एक औरत दिखाई देती है, जो कहती है, "मुझे न्याय चाहिए।" राज के शरीर पर खरोंच के निशान उभर आते हैं। वे समझ जाते हैं कि उन्होंने कुछ गलत किया है।
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*अध्याय 5: गाँव का रहस्य*
राज गाँव के बुज़ुर्गों से मिलता है और हवेली के इतिहास के बारे में पूछता है। एक बुज़ुर्ग बताते हैं कि वर्षों पहले, उस हवेली में एक औरत "राधा" रहती थी, जिसे गाँव वालों ने डायन समझकर जला दिया था। उसकी आत्मा अब भी न्याय की तलाश में है।
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*अध्याय 6: मुक्ति का मार्ग*
राज और स्नेहा तय करते हैं कि वे राधा की आत्मा को मुक्ति दिलाएंगे। वे हवेली में जाकर एक पूजा का आयोजन करते हैं, और राधा से क्षमा माँगते हैं। पूजा के दौरान, हवेली में तेज़ हवाएँ चलने लगती हैं, दीवारें काँपने लगती हैं, और अचानक सब शांत हो जाता है।
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*अध्याय 7: नया आरंभ*
पूजा के बाद, राज और स्नेहा के जीवन में शांति लौट आती है। हवेली अब भी वहाँ है, लेकिन अब वहाँ कोई डरावनी घटना नहीं होती। गाँव वाले भी अब उस रास्ते से बिना डर के गुजरते हैं।
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> “मैंने किसी का बुरा नहीं किया। मैंने बस कुछ अनसुनी आवाज़ें सुनीं और उन्हें लिख लिया। मुझे लगा मैं देवी से जुड़ी हूँ। लेकिन सबने मुझे पागल कहा। ठाकुर ने मुझे बंद कर दिया और फिर… आग लगा दी।”
*8. न्याय की शुरुआत*
राज ने गाँव की पंचायत बुलाई। सबके सामने डायरी पढ़ी। पहले लोग हँसे, लेकिन जब पुजारी और माधव काका ने भी राधा की मासूमियत की पुष्टि की — तो पूरे गाँव में सन्नाटा छा गया।
*9. मुक्ति की रात*
पूरे गाँव ने हवेली के सामने दीप जलाए, और राधा की आत्मा की शांति के लिए हवन किया गया।
उस रात तेज़ आँधी चली, दीवारें कांपीं, और हवेली के ऊपर अचानक सफेद रोशनी फैल गई।
आईना जो टूटा था, खुद-ब-खुद जुड़ गया — लेकिन अब उसमें राधा नहीं थी।
*10. अंत… या नई शुरुआत?*
अब हवेली शांत है।
राज और स्नेहा शहर लौट आए। राज ने “*शापित हवेली*” नाम से किताब लिखी — जो देशभर में मशहूर हुई।
लेकिन...
आज भी कोई उस हवेली के पास रात को 2 बजे खड़ा होकर बोले —
*“राधा, क्या तुम अब भी यहाँ हो?”*
तो हवेली की खिड़की से हल्की रोशनी झांकती है।
क्योंकि कुछ आत्माएँ, जब तक उन्हें सच में समझा न जाए —
*वो कभी नहीं जातीं।