Dard se Jeet tak - 1 in Hindi Love Stories by Renu Chaurasiya books and stories PDF | दर्द से जीत तक - भाग 1

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दर्द से जीत तक - भाग 1

नवंबर का महीना था।

आसमान से हल्की-हल्की बारिश गिर रही थी। बूंदों की नमी में ठंड और भी तेज़ लग रही थी।

चारों ओर हरियाली छाई हुई थी, जैसे धरती ने हरे रंग की चादर ओढ़ ली हो।

फूल खिले थे और पेड़ों की पत्तियों से पानी की बूँदें ऐसे झर रही थीं जैसे शबनम के मोती बरस रहे हों।

सर्दियों की छुट्टियों के कारण स्कूल भी बंद थे।

ठंडी हवाएँ चेहरे को छूते ही मन को अजीब-सी शांति और उदासी दोनों का एहसास करातीं।

यही वो मौसम था जब मेरी ज़िंदगी बदल चुकी थी।
क्योंकि मेरे माँ-बाप अब इस दुनिया में नहीं थे।

उस हादसे के बाद सबकुछ जैसे थम-सा गया। दिल का दर्द अक्सर बाहर नहीं निकलता था, लेकिन भीतर ही भीतर आत्मा को तोड़ता रहता।

उस वक़्त सिर्फ़ मेरा भाई ही था, जिसने मेरी आँखों से आँसू पोछे और मेरी ज़िंदगी की डोर थामी।

वो खुद भी अंदर से बुरी तरह टूटा हुआ था, पर उसने कभी मुझे एहसास नहीं होने दिया।

वो मेरे लिए माँ बना, बाप बना… और एक दोस्त भी।

वो मेहनत करता, काम करता और दिन-रात मेरे लिए भविष्य बनाने में लगा रहता।

मुझे पढ़ाई में कोई कमी न रहे, इसके लिए उसने अपनी हज़ारों ख्वाहिशें दबा दीं।

लेकिन मेरे लिए ये सब आसान नहीं था।

कभी-कभी लगता जैसे मैं सोने के पिंजरे में बंद पंछी हूँ।

बाहर से सबकुछ चमकदार, लेकिन अंदर से उदासी और खालीपन।

मैं अक्सर खिड़की पर बैठकर बारिश देखती और सोचती कि क्या मेरी ज़िंदगी में कभी फिर से खुशी लौट पाएगी?
क्या मेरा दिल फिर से हँस पाएगा?
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उस दिन बारिश कुछ और ही गहराई से बरस रही थी।
खिड़की पर बैठकर मैंने अपनी डायरी खोली और अनजाने ही होंठों से एक गीत निकल पड़ा।

मेरी आवाज़ में दर्द था… एक अधूरी चाहत, एक दबा हुआ दर्द…
गीत कुछ ऐसा था:

"क्यों रोके तूने,
क्यों तोड़े सपने…
दिल के अरमान अधूरे से लगते हैं।
बरसती बूंदों में ढूँढती हूँ तुझको,
लेकिन तन्हाई ही संग लगती है…" 🎶

जैसे ही ये गीत खत्म हुआ, पीछे से किसी की धीमी सी ताली सुनाई दी।
मुड़कर देखा तो दरवाज़े पर वो खड़ा था।

उसकी आँखों में अजीब-सी चमक थी, जैसे वो मेरे भीतर का दर्द पढ़ चुका हो।

वो मुस्कुराया और बोला –
“तुम्हारी आवाज़… सच में फरिश्तों जैसी है। तुम सच में पारी हो।”

मैं चौंक गई।
पहली बार किसी ने मुझे इतने स्नेह से पुकारा था।

उसकी नज़रें इतनी सच्ची थीं कि चाहकर भी मैं पल भर को उन आँखों में खो गई।

लेकिन फिर मैंने खुद को संभाला।
टूटे दिल को संभाल कर 
सोना… जिसने अपने माँ-बाप खो दिए, पर उम्मीद की डोर कभी नहीं छोड़ी।
आँसुओं और तन्हाइयों के बीच, उसका भाई बना उसका सहारा, उसका हमसफ़र।
लेकिन सवाल वही है… क्या वो फिर से मुस्कुरा पाएगी?
क्या उसकी कहानी में दर्द के बाद खुशियों की नई सुबह आएग
टूटे सपनों की खामोशियों में, ज़िंदगी का सफ़र आसान नहीं होता।
सोना… जिसने अपने माँ-बाप खो दिए, पर उम्मीद की डोर कभी नहीं छोड़ी।
आँसुओं और तन्हाइयों के बीच, उसका भाई बना उसका सहारा, उसका हमसफ़र।
लेकिन सवाल वही है… क्या वो फिर से मुस्कुरा पाएगी?
क्या उसकी कहानी में दर्द के बाद खुशियों की नई सुबह आए


है दोस्तो कृपया मेरी कहानी को वोट ओर कमेंट करे। 

और मुझे मेरी गलतियां बताएं 

धन्यवाद