✨ मेरे इश्क में शामिल रूहानियत
एपिसोड 1: दो दुनियाओं का पहला टकराव
मुंबई… यह शहर कभी नहीं सोता। अनगिनत सपनों को अपनी पनाह में लिए, और लाखों जिंदगियों की भाग-दौड़ का गवाह। इसी शहर की हलचल से दूर, एक शांत और पुरानी गली में, मेहरा परिवार का आशियाना था। घर भले ही बहुत बड़ा न हो, लेकिन हर ईंट में अपनत्व और हर कोने में मोहब्बत की गर्माहट महसूस होती थी।
मेहरा परिवार का आशियाना
प्रमोद मेहरा, अपनी चालीस से कुछ ज़्यादा उम्र के साथ, एक जिम्मेदार और मेहनती इंसान थे। वे 'राजवंश कॉर्पोरेशन' में एक मिड-लेवल मैनेजर थे। उनकी नौकरी स्थिर थी, लेकिन काम का दबाव और परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ उन्हें अक्सर थका देता था। फिर भी, वे अपने चेहरे पर हमेशा मुस्कान रखते थे।
उनकी पत्नी, सुजाता मेहरा, शांत और सहनशील स्वभाव की थीं। अपनी पूरी ज़िंदगी उन्होंने अपने परिवार के नाम कर दी थी। चार बच्चों की माँ होने के बावजूद, उनके चेहरे पर वही मिठास और धैर्य था, जिससे घर हमेशा महकता रहता था। उनके बच्चे— अनाया (23), काव्या (22), रूहानी (21), और आदित्य (25)— उनकी दुनिया थे।
अनाया, सबसे बड़ी बेटी, गंभीर, समझदार और शांत स्वभाव की थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी गहराई थी, जैसे वो हर चीज़ को सिर्फ़ ऊपरी तौर पर नहीं, बल्कि उसके पीछे छिपी भावना को भी देख सकती हो। काव्या, सपनों की दुनिया में जीने वाली, कविताएँ लिखती और किताबों में खोई रहती थी। रूहानी, घर की सबसे शरारती और नटखट, जिसकी हंसी पूरे घर को रोशन कर देती थी। उसे पार्टियाँ, संगीत और नई-नई चीज़ें आज़माना बेहद पसंद था। आदित्य, सबसे बड़ा बेटा, अपने पिता की तरह सुलझा हुआ और जिम्मेदार था।
यह परिवार साधारण था, लेकिन इनके रिश्ते असाधारण थे, जो एक-दूसरे के प्रति सम्मान और अटूट प्रेम की नींव पर टिके थे।
दूसरी दुनिया – राजवंश परिवार
शहर के बीचों-बीच खड़ा ‘राजवंश टावर’, शीशे और स्टील से बनी एक गगनचुंबी इमारत थी, जो ताकत और रुतबे की निशानी थी। इसी टावर में रहते थे आर्यन राजवंश – 27 साल के, एक बिज़नेस टायकून। उनकी पहचान थी – खतरनाक, रहस्यमयी और बेहद सख्त। उनकी आँखों में ऐसी ठंडक थी, जिसे देखकर सामने वाला कांप जाए। वे अक्सर काली टी-शर्ट और जींस में होते थे, जो उनकी अनूठी और सत्तावादी शख्सियत को दर्शाती थी।
आर्यन का बचपन आसान नहीं था। पिता की अचानक मौत के बाद, उनकी सौतेली माँ संध्या राजवंश और सौतेले भाई विवान राजवंश ने उन्हें कभी अपना नहीं समझा। विवान (26), स्मार्ट और चालाक था, लेकिन उसकी महत्वाकांक्षाएँ इतनी बड़ी थीं कि वह आर्यन को हर हाल में गिरते हुए देखना चाहता था। संध्या, दिखावे में मीठी, लेकिन भीतर से ज़हरीली थी। वह हमेशा घर में आर्यन के खिलाफ़ माहौल बनाने में लगी रहती थी। इन सब के बीच, आर्यन ने खुद को अकेला कर लिया था। उनकी दुनिया सिर्फ़ काम और सफलता थी। लेकिन उनके भीतर एक खालीपन था, जिसे उन्होंने कभी किसी को दिखने नहीं दिया।
कहानी की शुरुआत और पार्टी का माहौल
एक सोमवार की सुबह। प्रमोद मेहरा नाश्ता कर रहे थे कि उनका फ़ोन बजा। ‘राजवंश कॉर्पोरेशन’ से कॉल था। उन्हें उसी दिन दोपहर में आर्यन राजवंश के ऑफ़िस में बुलाया गया था। यह अचानक बुलावा सुनकर प्रमोद का चेहरा पीला पड़ गया। सुजाता ने उनकी बेचैनी भाँप ली। अनाया ने उन्हें हिम्मत दी, “पापा, आप इतना टेंशन क्यों ले रहे हैं? आप हमेशा ईमानदारी से काम करते हैं, कुछ गलत होगा ही नहीं।” प्रमोद ने मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन मन में डर बैठा था।
उसी शाम, राजवंश हाउस में एक भव्य पार्टी थी। जगमगाती रोशनी, महँगी शराब की खुशबू और लाउड म्यूजिक से पूरा माहौल रोशन था। यह पार्टी दरअसल विवान ने रखी थी, जिसका मकसद आर्यन को नीचा दिखाना था। विवान ने पत्रकारों से बात की, “हमारी कंपनी जल्द ही कुछ बड़े फ़ैसले लेने वाली है, जिनमें मेरी राय सबसे ज़्यादा मायने रखती है।” वह यह जताने की कोशिश कर रहा था कि कंपनी का असली चेहरा वही है।
तभी, एक पत्रकार ने सीधे आर्यन से पूछा, “क्या आप और आपके भाई के बीच कंपनी के भविष्य को लेकर मतभेद हैं?”
आर्यन की आँखों में एक पल के लिए बर्फ़ीली ठंडक तैर गई। उन्होंने अपनी गहरी आवाज़ में कहा, "राजवंश कॉर्पोरेशन का हर फ़ैसला सिर्फ़ और सिर्फ़ कंपनी की भलाई के लिए होता है। और वो फ़ैसले सिर्फ़ मैं लेता हूँ।"
विवान अंदर ही अंदर गुस्से से जल रहा था। वह आर्यन की बेपरवाह शख्सीयत के सामने हमेशा छोटा महसूस करता था।
इसी पार्टी में, रूहानी मेहरा अपनी दोस्त के साथ पहुँची। उसने एक गहरे नीले रंग की ड्रेस पहनी थी, जो उसकी चुलबुली और खिलंदड़ी पर्सनैलिटी को और बढ़ा रही थी। पार्टी का संगीत सुनते ही वह झूमने लगी, उसकी हंसी पूरे माहौल में गूँज रही थी। विवान की नज़र उस पर पड़ी।
“आप इस पार्टी में?” विवान ने मुस्कुराकर पूछा।
रूहानी ने शरारती अंदाज़ में पलटकर जवाब दिया, “क्यों? सिर्फ़ बड़े लोग ही आते हैं यहाँ? या जिनकी शक्ल थोड़ी गंभीर हो?”
“नहीं… लेकिन आपके जैसे लोग शायद कम ही आते हैं। आप कुछ ज़्यादा ही खुश लग रही हैं।”
“हाँ, क्योंकि मैं ज़िंदगी को खुलकर जीना जानती हूँ, आपकी तरह दिखावे में नहीं।”
विवान को उसकी बेबाकी अच्छी लगी। "और आप सिर्फ़ दिखावे के लिए यहाँ हैं?"
“मैं यहाँ संगीत और मस्ती के लिए हूँ। मुझे लगता है, आपको भी इसकी ज़रूरत है।”
दोनों की हल्की-फुल्की नोकझोंक शुरू हुई, और यहीं से उनकी कहानी की पहली ईंट रखी गई।
अगला दिन: अनाया और आर्यन का पहला टकराव
अगले दिन सुबह, प्रमोद मेहरा ऑफ़िस जाने ही वाले थे कि अचानक तेज सिरदर्द से उनका चेहरा सफेद पड़ गया। सुजाता चिंतित हो उठीं। “आज आप आराम कीजिए। मैं डॉक्टर को बुलाती हूँ।”
तभी अनाया आगे आई, “पापा, आज आप मत जाइए। फ़ाइल मुझे दीजिए, मैं आपके ऑफ़िस पहुँचा देती हूँ।”
प्रमोद संकोच में थे, लेकिन अनाया की समझदारी देखकर उन्होंने हाँ कह दी। यह पहली बार था जब अनाया इतनी बड़ी कॉर्पोरेट बिल्डिंग में क़दम रख रही थी। चारों ओर शीशे की दीवारें, ऊँची-ऊँची लिफ़्टें और औपचारिक कपड़ों में लोग। वह थोड़ी घबराई हुई थी।
रिसेप्शन पर पहुँचकर उसने कहा, “हेलो, मैं प्रमोद मेहरा की बेटी हूँ। मुझे आर्यन सर से मिलना है।”
रिसेप्शनिस्ट ने शिष्टता से जवाब दिया, “माफ़ कीजिए मैम, अभी सर बहुत बिज़ी हैं। बिना अपॉइंटमेंट के आप नहीं मिल सकतीं।”
अनाया हताश होकर वहीं खड़ी रही। तभी उसकी नज़र एक लड़के पर पड़ी। वह रिसेप्शनिस्ट से गुस्से में कह रहा था, “तुम समझती नहीं हो, मैं कोई आम आदमी नहीं हूँ। आर्यन को अभी मुझसे मिलना होगा।” यह सिद्धार्थ था, आर्यन का सबसे करीबी दोस्त।
इसी बहस के बीच, अनाया का हाथ काँपा और फ़ाइल उसके हाथ से गिर गई। पन्ने फर्श पर बिखर गए।
तभी वहाँ से गुज़रते हुए आर्यन राजवंश की नज़र उस पर पड़ी। उनकी आँखों में गुस्सा था।
“ये क्या है? ऑफ़िस को मज़ाक बना रखा है क्या?” उनकी गहरी, भारी आवाज़ सुनकर अनाया और भी ज़्यादा घबरा गई। उसने सिर झुकाकर पन्ने समेटने शुरू किए।
आर्यन उसे कुछ और डाँटने ही वाले थे कि अचानक उनकी नज़र उसकी सादगी और मासूमियत पर अटक गई। उसने नीले रंग की सलवार-कुर्ता पहन रखा था, और उसका चेहरा डर से लाल हो गया था।
अनाया ने एक पन्ने को उठाते हुए धीरे से कहा, "माफ़ कीजिए सर… मेरे हाथ से ग़लती से गिर गया।"
आर्यन के होंठ थम गए। उसके सख्त चेहरे पर एक पल के लिए हैरानी तैर गई। उसकी आँखों में गुस्सा पिघलने लगा, उसकी जगह एक अजीब सी जिज्ञासा ने ले ली। उसने झुककर खुद एक पन्ना उठाया और अनाया को देते हुए कहा, "आँखें बंद करके मत चलो, मिस…।"
अनाया ने पहली बार उनकी तरफ़ देखा। उसकी मासूम आँखों में आँसू चमक रहे थे।
आर्यन का दिल अचानक कहीं गहरे, बहुत गहरे में धड़का। उसने कभी किसी की आँखों में ऐसी मासूमियत नहीं देखी थी। उसने अपनी भारी आवाज़ में पूछा, “आप… आप प्रमोद मेहरा की बेटी हैं?”
“जी…” अनाया ने धीरे से कहा।
उनके बीच पहली बार नज़रें मिलीं। अनाया की आँखों में डर और ईमानदारी थी, जबकि आर्यन की आँखों में पहली बार कोई उलझन थी। जैसे एक अदृश्य धागा दोनों को बाँध गया।
एपिसोड का अंत
अनाया का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसने जल्दी से फ़ाइल उठाई और उसे आर्यन की टेबल पर रखकर पीछे हटी। वह बिना कुछ कहे तेज़ कदमों से बाहर चली गई।
आर्यन चुपचाप उसे देखता रहा। उसके चेहरे पर वह पहली बार उलझन थी – जैसे उसने किसी अनजान रहस्य को देख लिया हो। उसके दिमाग में बार-बार अनाया का मासूम चेहरा घूम रहा था।
उसे क्या हुआ था? क्यों एक साधारण लड़की की मासूमियत ने उसकी सख्त दुनिया में हलचल पैदा कर दी थी?
शायद यह शुरुआत थी… एक ऐसी मोहब्बत की, जिसमें शामिल थी रूहानियत। एक ऐसी कहानी जो दो अलग-अलग दुनियाओं को मिलाने वाली थी।