(सुबह का समय है। खिड़की पर बूँदें टपक रही हैं। बाहर पेड़ों की पत्तियों पर बारिश चमक रही है। अंदर डाइनिंग टेबल पर नाश्ता रखा है – पराठे, अचार और चाय। राजीव अखबार पढ़ रहे हैं, नेहा अपने फोन पर कुछ देख रही है और रोहन दूध में कॉर्नफ्लेक्स डाल रहा है।)
रोहन (उत्साह से खिड़की की ओर देखते हुए):
"वाह पापा! देखो कितनी जोर से बारिश हो रही है! आज तो स्कूल ही बंक मार देता हूँ।"
राजीव (अखबार से नजर उठाकर):
"ऐसा नहीं होता जनाब! बारिश पढ़ाई रोकने का बहाना नहीं होती।"
नेहा (हँसते हुए):
"हाँ, लेकिन सच कहूँ तो... बारिश में आलस बहुत आता है। बस रजाई हो और गरम चाय।"
रोहन:
"दीदी सही कह रही हैं! चलो ना पापा, आज हम सब छुट्टी कर लेते हैं। आप ऑफिस मत जाओ, मैं स्कूल नहीं जाऊँगा, और दीदी भी क्लास स्किप कर लें।"
राजीव (मुस्कुराते हुए):
"क्या बात है! एक दिन का नेशनल हॉलीडे घोषित कर दूँ?"
(तीनों हँसते हैं। बाहर गरजते बादल की आवाज़ आती है। नेहा खिड़की खोल देती है। हल्की-हल्की हवा और बारिश की ठंडी बूँदें अंदर आ जाती हैं।)
नेहा (गहरी साँस लेकर):
"बारिश की खुशबू... कितनी प्यारी होती है ना पापा?"
राजीव (चाय का घूँट लेते हुए):
"हाँ बेटा, ये मिट्टी की खुशबू हमें याद दिलाती है कि जड़ से जुड़े रहना कितना ज़रूरी है।"
रोहन (मुँह फुलाते हुए):
"पापा फिर से फिलॉसफी शुरू हो गई! मैं तो बस सोच रहा हूँ... अगर अब बिजली चली जाए तो हम सब कैंडल लाइट में नाश्ता करेंगे। मज़ा आएगा!"
नेहा (हँसकर):
"तुम्हें तो बस एडवेंचर चाहिए, छोटे सुपरहीरो!"
(तीनों खिड़की से बाहर बारिश देखते हुए नाश्ता करते हैं। माहौल में हँसी, ताज़गी और परिवार का सुकून घुला हुआ है।)
--- (डाइनिंग टेबल पर सबने नाश्ता खत्म कर लिया है। खिड़की के बाहर अब भी बारिश हो रही है। रोहन अपना बैग लेकर तैयार खड़ा है। राजीव टाई बाँध रहे हैं और नेहा अपने कॉलेज बैग में किताबें रख रही है। कविता सबको देखते हुए मुस्कुरा रही है।)
कविता (प्यार से):
"अरे सुनो सब लोग, बाहर बारिश ज़ोरों से हो रही है... संभल कर जाना।"
(वह अलमारी से एक हरा रेनकोट निकालकर रोहन की ओर बढ़ाती है।)
कविता:
"रोहन, ये लो तुम्हारा हरा रेनकोट... रास्ते में भीगना मत।"
रोहन (मुँह बनाकर):
"मम्मी, ये वाला हरा रेनकोट मुझे छोटा बच्चा दिखाता है। सब दोस्त हँसेंगे।"
राजीव (हँसते हुए):
"अरे सुपरहीरो, दोस्तों की परवाह मत कर... अगर बीमार हो गए तो मम्मी ही तुम्हें दवा खिलाएगी।"
(सब हँस पड़ते हैं। रोहन नाक सिकोड़ते हुए रेनकोट पहन लेता है।)
कविता (अब नेहा की ओर छाता बढ़ाते हुए):
"और नेहा, ये तुम्हारी अम्ब्रेला... कॉलेज जाते वक्त ध्यान रखना।"
नेहा (छाता लेते हुए मुस्कुराती है):
"थैंक यू मम्मी! आप तो हमेशा मेरा मौसम विभाग बन जाती हो।"
राजीव (अपना बैग उठाते हुए):
"चलो, अब सब अपने-अपने रास्ते। शाम को फिर मिलते हैं... और हाँ, शाम को गरम गरम पकौड़े चाहिए।"
कविता (हँसते हुए):
"ठीक है जी, आपकी फरमाइश नोट हो गई।"
(रोहन स्कूल की ओर निकलता है, नेहा कॉलेज के लिए और राजीव ऑफिस की ओर। कविता दरवाज़े पर खड़ी होकर सबको जाते हुए देखती है। बाहर बारिश की बूँदें अब भी टपक रही हैं और हवा में ताज़गी फैली हुई है।)
(शहर में अचानक तेज़ तूफानी बारिश शुरू हो गई है। सड़कें जलमग्न हो गई हैं। लोग जल्दी-जल्दी अपने घर लौटने की कोशिश कर रहे हैं। राजीव ऑफिस से बाहर निकलते हैं और तेज़ बारिश में कार की तरफ भागते हैं।)
राजीव (फोन पर):
"कविता, बारिश बहुत तेज़ है। तुम सब घर पर सुरक्षित रहना, रोहन स्कूल में ना रहे और नेहा कॉलेज लौटती है तो छाता साथ रहे।"
कविता (फोन पर):
"पता है जी, हम सब घर पर हैं। चाय तैयार है। आप जल्दी घर आ जाइए।"
(नेहा अपने कॉलेज बैग और छाते के साथ खिड़की से बाहर देख रही है। रोहन घर के पास बालकनी में खड़ा है। बारिश की तेज़ बूँदें गिर रही हैं।)
नेहा:
"वाह! ये तूफानी बारिश भी कुछ कम रोमांचक नहीं है। पापा अगर देख पाते तो कहते – ‘नेहा, संभल कर निकलना।’"
रोहन (हँसते हुए):
"दीदी, ये बारिश सुपरहीरो के लिए भी चुनौती है। देखते हैं कौन सबसे पहले घर पहुंचता है!"
(कविता अपने हाथ में गर्म चाय का मग लिए खिड़की पर खड़ी है। तेज़ हवा के साथ छत पर पानी गिर रहा है।)
कविता (धीरे से, खुद से):
"बारिश चाहे कैसी भी हो, घर का सुकून सबसे बड़ा है। ये सब साथ हैं, यही सबसे बड़ी खुशी है।"
(राजीव गाड़ी लेकर घर लौटते हैं। नेहा और रोहन बालकनी से उन्हें देखकर हाथ हिलाते हैं। घर के भीतर गर्म चाय, पकौड़े और परिवार की हँसी के बीच बाहर की तूफानी बारिश का डर कम लगने लगता है।)
(राजीव घर पहुँचते हैं। बाहर अब हल्की बारिश है। घर में गर्मी और चाय की खुशबू है। सब लिविंग रूम में सोफ़े पर बैठे हैं।)
राजीव (सूटकेस रखते हुए, मुस्कुराते हुए):
"चलो, आज का अनुभव शेयर करते हैं। सब ने बारिश में क्या देखा और महसूस किया?"
रोहन (उत्साहित होकर):
"मैं तो स्कूल से लौटते वक्त पानी में कूद-कूद कर आया! पैर तो भीग गए, लेकिन मज़ा आया। पापा, मैंने सोच भी नहीं था कि सड़क पर इतना पानी जमा होगा!"
नेहा (हँसते हुए):
"मेरे लिए तो कॉलेज से लौटते वक्त सबसे बड़ा चैलेंज था छाता संभालना। हवा इतनी तेज थी कि छाता उल्टा हो गया और मुझे गिलास की तरह भीगना पड़ा।"
कविता (हँसते हुए):
"और मैं तो खिड़की पर खड़ी चाय पीती रही, तुम्हारे अनुभव सुनती रही। सोच रही थी कि ये बारिश हमें कितना जोड़ देती है, सब अपने घर में सुरक्षित हैं और साथ हैं।"
राजीव (सोचते हुए, चाय का घूँट लेते हुए):
"सच में, बारिश चाहे कितनी भी तेज़ हो, ये दिन हमें याद रहेगा। बाहर तूफान था, लेकिन घर के अंदर हमारे साथ होने का अहसास सबसे बड़ा सुख है।"
रोहन (दीदी की तरफ देखते हुए):
"दीदी, अगली बार बारिश में मैं तुम्हें भीगने से रोकूंगा!"
नेहा (मुस्कुराते हुए):
"ठीक है रोहन! पर मुझे भी मज़ा आता है बारिश में भीगने में।"
(सब हँसते हैं। कैमरा धीरे-धीरे खिड़की की ओर ज़ूम करता है। बाहर बारिश अभी भी टपक रही है, और अंदर घर की गर्मी, चाय और परिवार का प्यार सभी के चेहरे पर चमक रहा है।)
---(सभी डिनर टेबल पर खाना खा रहे हैं। बारिश की हल्की आवाज़ अभी भी सुनाई दे रही है। अचानक घर की लाइट चली जाती है और अंधेरा छा जाता है।)
रोहन (सस्पेंस में):
"अरे! लाइट चली गई! अब क्या होगा?"
नेहा (हँसते हुए):
"ये तो रोमांचक हो गया! जैसे कोई फिल्म का सीन हो।"
कविता (मुस्कुराते हुए):
"चिंता मत करो, मैंने पहले से कैंडल रखी हैं। देखो सबको थोड़ा रोशनी मिल जाएगी।"
(कविता टेबल पर कैंडल जला देती हैं। धीरे-धीरे कमरे में हल्की रोशनी फैल जाती है।)
राजीव (कैंडल की रोशनी में मुस्कुराते हुए):
"देखो, अंधेरा चाहे कितना भी हो, हमारे साथ होने से घर हमेशा रोशन रहेगा।"
रोहन (उत्साहित होकर):
"पापा, अब तो मैं कहूँगा कि कैंडल लाइट में खाना सबसे मज़ेदार होता है!"
नेहा (मुस्कुराते हुए):
"सच में! और बारिश की आवाज़ के साथ ये पल बहुत रोमांटिक और सुकून भरा लग रहा है।"
कविता:
"ये छोटे-छोटे पल ही तो यादें बनाते हैं। आज की बारिश, लाइट जाना, सब कुछ हमारे लिए खास है।"
(लाइट अब तक नहीं आई है। बारिश रुक चुकी है लेकिन बाहर हल्की हवा और पानी टपकने की आवाज़ है। घर में सिर्फ कैंडल और टॉर्च की रोशनी है। सब सोने की तैयारी कर रहे हैं।)
रोहन (कंबल ओढ़ते हुए):
"मम्मी, इतनी अंधेरी रात में नींद कैसे आएगी? मुझे तो लग रहा है भूत आ जाएगा।"
नेहा (मजाक उड़ाते हुए):
"अरे छोटे सुपरहीरो! तू तो कह रहा था तूफान से लड़ सकता है, और अब अंधेरे से डर गया?"
रोहन (नाक सिकोड़ते हुए):
"अरे वो दिन का तूफान था, ये तो रात का अंधेरा है!"
(सब हँस पड़ते हैं।)
कविता (प्यार से):
"चलो, डरने की कोई बात नहीं। हम सब साथ हैं। और वैसे भी, ये अंधेरा हमें कहानी सुनने का मौका देता है।"
राजीव (बच्चों की तरफ देखते हुए):
"सही कहा। आओ, मैं तुम्हें अपने बचपन की बारिश की कहानी सुनाता हूँ। उस वक्त तो ना मोबाइल था, ना टीवी… बस हम सब भाई-बहन बरामदे में बैठकर गाना गाते और कहानियाँ सुनते।"
नेहा (उत्साहित होकर):
"वाह पापा, आप भी गाना गाते थे?"
राजीव (हँसते हुए):
"हाँ, पर तुम्हारी मम्मी जितना अच्छा नहीं।"
कविता (मुस्कुराकर):
"बस-बस, अब गाना गाने मत लग जाना। बच्चों को सोना है।"
(रोहन धीरे-धीरे कंबल में आराम से लेट जाता है। नेहा भी मुस्कुराते हुए बिस्तर में जाती है। राजीव और कविता एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं।)
राजीव (धीरे से):
"लाइट आए या ना आए… जब परिवार साथ हो तो हर रात रोशन लगती है।"
(कैमरा खिड़की की ओर जाता है, बाहर चाँद बादलों के बीच झलकता है। घर के अंदर सब नींद में डूब जाते हैं, कैंडल की लौ धीरे-धीरे बुझ रही है।)
एपिसोड 9: "नया सवेरा"
स्थान: घर का आँगन और किचन, सुबह।
पात्र: राजीव, कविता, नेहा, रोहन।
---
(सुबह की हल्की धूप खिड़की से अंदर आ रही है। बाहर पेड़-पौधे बारिश के बाद और हरे-भरे दिख रहे हैं। पंछियों की चहचहाहट गूंज रही है। राजीव खिड़की खोलकर ताज़ी हवा में गहरी साँस लेते हैं।)
राजीव (मुस्कुराते हुए):
"क्या ताज़गी है! सच कहूँ तो, ये रात अगर लाइट के बिना भी थी… तो भी यादगार बन गई।"
(कविता किचन से चाय लेकर आती हैं। नेहा भीगी हुई धूप में बालकनी में खड़ी होकर आसमान देख रही है। रोहन अभी-अभी नींद से उठकर आलसी अंदाज़ में मम्मी के पास आता है।)
रोहन (जंभाई लेते हुए):
"मम्मी, आज स्कूल मत भेजो ना… रात में तो डर लग रहा था, अब सुबह भी नींद आ रही है।"
कविता (मुस्कुराते हुए):
"नींद तो हमेशा ही आती है तुम्हें! लेकिन नहीं, आज स्कूल जाना ही पड़ेगा।"
नेहा (हँसते हुए):
"भाई, कल तक तू सुपरहीरो था… अब सोने का हीरो बन गया है?"
(सब हँसते हैं।)
राजीव (चाय की चुस्की लेते हुए):
"ये नई सुबह हमें याद दिला रही है कि हर मुश्किल रात के बाद एक आसान सवेरा आता है। बस हमें धैर्य रखना चाहिए।"
कविता (गंभीरता से):
"हाँ, और सबसे ज़रूरी बात ये कि साथ रहना… यही हमारी असली ताक़त है।"
(सब मिलकर नाश्ता करने बैठते हैं। खिड़की से आती धूप और घर की हँसी, दोनों मिलकर एक खूबसूरत नया दिन बना रहे हैं।)