वक्त
बर्फ का घना बादल जल्द ही बिखर जाएगा l
सूर्य यहां नहीं आया तो वो किधर जाएगा ll
वक्त कभी भी कहीं भी ठहरता नहीं है तो l
सोचा ना कर ये लम्हा भी गुजर जाएगा ll
डाली कभी नहीं अफसोस करती के कैसे l
सुखा हुआ पत्ता अपनेआप उतर जाएगा ll
जानेवाले कभी पीछे मुड़कर देखा नहीं करते l
उम्मीद ना कर के मुसाफ़िर ठहर जाएगा ll
आधुनिकता की दौड़ में शामिल होने के लिए l
गाँव से भागा भागा सा इन्सां शहर जाएगा ll
१६-८-२०२५
महफिल
महफिल में दिवाने आने लगे हैं ll
नशीले प्यारे बादल छाने लगे हैं ll
रिश्ता खामोशी से बन रहा कि l
निगाहों से इशारे पाने लगे हैं ll
परवानो को झुमाने के वास्ते l
साथ अपने हुस्न लाने लगे हैं ll
सरे आम इज़हार ए प्यार के l
रंगीन से मंजर भाने लगे हैं ll
खूबसूरती के सजदे में सभी l
गीत ओ ग़ज़लें गाने लगे हैं ll
१८-८-२०२५
पत्नि
शादी के बाद इशारों पे नाचना सीख ही गया ll
बात पत्नि की मुकम्मल मानना लीख ही गया ll
झाडू, पोछा, बर्तन, कपड़ा, घर की सफ़ाई में l
पत्नि के ज़ुल्म इतने बढ़े की चीख ही गया ll
पत्नि के अपार गुस्से को शांत रह सहा l
पति का दिवानो सा प्यार दीख ही गया ll
बेचारा बिना दूध, बिना शक्कर की चाय पी l
जो मिला खामोश रहकर वो पीख ही गया ll
रोज रोज टिक टिक इस लिए सहता रहा कि l
कहीं रूठकर चली ना जाए झीख ही गया ll
१८-८-२०२५
सावन भादो
दिल में यादों का बादल गरज़ रहा हैं l
निगाहों से सावन भादो बरस रहा हैं ll
तन मन शीतलता से पुलकित हो उठा l
बूँदों की बौछार आने से छलक रहा हैं ll
मिट्टी की भीनी मीठी खुशबु लुभाती कि l
प्रकृति की आगोश में जा सरक रहा हैं ll
मन पिछली साल की यादों में चला गया l
रास रचाने को हर लम्हा मचल रहा हैं ll
आओ आकर अपनी बाहों में समेट लो l
प्रीतम के आने की बात से महक रहा हैं ll
१९-८-२०२५
वतन
वतन के साथ उल्फ़त हो गई l
मुकम्मल सुध बुध ही खो गई ll
मिट्टी से खुशबु ए वफ़ा आई तो l
वो मर मिटने का ज़ज्बा बो गई ll
इश्क़ ए वतन में जागा रातभर l
शाम तो मारे थकान सो गई ll
हौंसला देख वतन वीरों का आज l
खुशी के मारे हिम्मत भी रो गई ll
देख तन की मिट्टी बड़ी शान से l
मिट्टी की थी मिट्टी में समो गई ll
२०-८-२०२५
शिक्षा
जीवन में सही राह दिखाती है शिक्षा l
ग्यान का अमृत भी पिलाती है शिक्षा ll
ग्यान की हथौड़ी से टीप टीप कर वो l
सहीगलत का फर्क सिखाती है शिक्षा ll
अंधेरों से उजालों की और ले जाके l
अज्ञानता को भी मिटाती है शिक्षा ll
जीवन ग्यान की ज्योत से रोशन कर l
आत्मविश्वास को जगाती है शिक्षा ll
आदि मानव से मानव बना तब से l
मुकम्मल इन्सान बनाती है शिक्षा ll
२१-८-२०२५
संविधान
शिक्षा का अधिकार संविधान में दिया गया हैं l
जीवन का आधार संविधान में दिया गया हैं ll
देश की पहचान, मान ओ अभिमान है ये l
सूची का भंडार संविधान में दिया गया हैं ll
जीवन में नई ज्योति जला सफ़लता देती ओ l
मानवता का सार संविधान में दिया गया हैं ll
जीवन सहज और सरल बनाने के लिए कई l
अधिकार अपार संविधान में दिया गया हैं ll
निरपेक्षता ओ एकता का सच्चा पथ बतलाके l
कानून का स्वीकार संविधान में दिया गया हैं ll
२२-८-२०२५
पिता
पिता जैसा प्यार कोई नहीं कर सकता हैं l
पिता की जगह कोई नहीं भर सकता हैं ll
ईश्वर का आशीर्वाद है पिता की हाजरी l
बिना उनके कोई जग नहीं तर सकता हैं ll
उनके होने से ऊपर आकाश नीचे जमीन l
उम्मीद और ख्वाईश नहीं सर सकता हैं ll
मकान से खूबसूरत घर उन्हीसे बनता है l
मुकम्मल दुनिया कोई नहीं कर सकता हैं ll
बात गाँठ बाँध लो पिता की मौजूदगी में l
बच्चों की खुशी कोई नहीं हर सकता हैं ll
२३-८-२०२५
शौक
शौक है मुझे फ़ोन पर बातें करने का l
रोज मसर्रत से बसर रातें करने का ll
रूठने मनाने के सिलसिले चालु रहते l
और आदत है शब्दों से घातें करने का ll
प्रकृति बन गई उसकी हसी मज़ाक में l
छिड़ने चिढ़ाने को खुराफातें करने का ll
डर है कहीं बातचीत ही बंध न हो जाए l
खामोशी पहन ली एहतियातें करने का ll
बहुत कुछ कहना सुनना हो गया है अब तो l
सोचा माफ करने की इल्तिफातें करने का ll
२४-८-२०२५
मसर्रत-खुशी
खुराफातें- तूफान
एहतियातें - सावधानियां
इल्तिफातें- बिनती
नये नये
तहखाने से खत पुराने निकले l
तुझसे मिलने के बहाने निकले ll
हुस्न ने पर्दा जो उठाया तो l
आज नये नये तराने निकले ll
जिगर में तिश्नगी को जलाए l
ख्वाबों को सजाने निकले ll
चाँद की मार्निद दिवाना है कि l
प्यार से गले लगाने निकले ll
नजर ओ नजरिया बदलके l
क़ायनात को बताने निकले ll
२५-८-२५
जताना छोड़ दिया l
बताना छोड़ दिया ll
कौन करता है
निगाहें पड़ते ही नशीले जाम हो जाए l
यूहीं आँखों ही आँखों में शाम हो जाए ll
कौन करता है फ़िक्र कभी महंगाई की l
कोई नहीं कहता आधे दाम हो जाए ll
महफिल में यू प्यार से देखा करेगे तो l
बैठे बिठाए यूहीं हम नीलाम हो जाए ll
ईश जो हमेशा साथ है यकीन करके l
ईश्वर का नाम लेते ही काम हो जाए ll
खुद के लिए नहीं औरों के लिए जीकर l
काम ऐसे करके जाओ नाम हो जाए ll
२६-८-२०२५
बुलाया
महफिल में जानबूझ के बुलाया नहीं गया l
ओ बिन बुलाए गये तो बिठाया नहीं गया ll
वो गैरों की खातिरदारी इतने मशगूल थे कि l
हम से जबरदस्ती हक़ जताया नहीं गया ll
जानकर भी अनजान बने फ़िर रहे थे कि l
मुस्कुराके हाथ आगे बढ़ाया नहीं गया ll
मिलने से पहले बिछड़ गये थे, शिद्दत से l
दौनों तरफ से राबता निभाया नहीं गया ll
चाहते तो थे कि भुला दे सारे वाकिए पर l
यादों को पूरी पार्टी तरह भुलाया नहीं गया ll
बिना नाम के रिश्ते में बंधे हुए हैं आज l
सर ए महफिल में बुलाया नहीं गया ll
ज़माने को क्यूँ बताए मोहब्बत की बात l
दर्दे दिल का तराना सुनाया नहीं गया ll
२७-८-२०२५
सेवा
सेवा के पीछे निःस्वार्थ भावना छिपी होती हैं l
कर्मो की जमा पूँजी, अच्छे भावी को बोती हैं ll
संस्कार की अमृत धारा है सेवा के विचार वो l
मन से अहंकार और अभिमान को धोती हैं ll
किसीके के लिए करुणा और दया की दृष्टि से l
सदा इन्सान और इंसानियत को संजोती हैं ll
जन सेवा ही ईश्वर की सेवा है यहीं सोचकर l
देने वाले और लेनेवाले दिलों को भिगोती हैं ll
स्वार्थ रहित कर्म करके आगे बढ़ते जाए ओ l
इंसान में कृपा के संकल्प को को पिरोती हैं ll
२७-८-२०२५
फूल
फूल सी नाजुक कली को समजाना जरूरी हैं l
सम्भलकर हँसना खिलना बतलाना जरूरी हैं ll
यू सजधजकर सरे ए आम ना निकला करो l
कमसिन हो तो नादान कहलाना जरूरी हैं ll
सिख लो थोड़ी सी शर्मो हया जानेजाँ तुम भी l
थोड़ी अक्कल थोड़ा ठहराव लाना जरूरी हैं ll
आज कई दिल फेंक मजनू आ बैठे होगे तो l
भरी महफ़िल में पर्दा करके आना जरूरी हैं ll
बड़ी तेज नजर होती है ज़माने वालों की तो l
जहां भी जाओ सलीके से जाना जरूरी हैं ll
२८-८-२०२५
मेला
हुस्न की टोली को मेले में देख मन्त्रमुग्ध हो गये हैं ll
इश्क़ वाले देखते ही देखते खूबसूरती में खो गये हैं ll
जहाँ में अपनी मरज़ी के मालिक होते है दिल
फ़ेंक l
वैसे भी इश्क़ में पागल थे और दिवाने मजनूँ हो
गये हैं ll
दिल की ख्वाइशों पर कोई लगाम नहीं होती
है l
अच्छे दिनों की उम्मीद और विश्वास को बो
गये हैं ll
ज़माने से चुराके इशारों इशारों में बातें कर
ली ओ l
निगाहों में प्यारी सी मुस्कराहट को संजो
गये हैं ll
कभी जो ख्वाबों में देखा था आज वो रूबरू
पाकर l
मोहब्बत के बहते झरने में पूरी तरह भिगो
गये हैं ll
२९-८-२०२५
वृक्ष
ईश्वर की अद्भुत देन वृक्ष को संभालना सीखो l
काटने से पहले एक बार सुनो उसकी चीखो ll
कई पंखीओ का आशरा, इंसान की साँस भी l
वो घर अनगिनत जिवो का उसे मत पीखो ll
वृक्ष ना होगे तो सर्व नाश हो जाएगा तो l
रक्षा और जतन करे गली गली ये लीखो ll
वो डाली, पत्तों और फलों का आधार है तो l
कुदरत कारीगरी को अहोभावना से दीखो ll
निजी स्वार्थ को छोड़कर जिओ ओ जीने दो l
ईश की खामोशी को कभी भी ना परखो ll
३०-८-२०२५
मुस्कुराने के अलावा कोई गुज़ारा नहीं l
अब रो रोकर दिन बिताना गवारा नहीं ll
एक ऐसा दिन नहीं गुज़रा जब की l
याद किये बिना लम्हा बिताया नहीं ll
बिना बताये रूठ के चले जा रहे हो ये l
ग़लती को अब दोहराना दुबारा नहीं ll
एक अकेला चल तो पड़ा है मुसाफ़िर l
दिशा विहीन कश्ती को किनारा नहीं ll
यहीं सोच चल पड़े थे कोई रोक लेगा l
पर पीठ पीछे किसीने भी पुकारा नहीं ll
सभी सितारें हमारी झोली में चमके है l
आसमान की तकदीर में सितारा नहीं ll
इश्क़ जिसे कहते हैं उस जज्बे से अब l
सखी दुबारा किसीसे भी लगाना नहीं ll
३१-८-२०२५