तुम्हारा ही इंतजार है
उस दिन किसी को उम्मीद नहीं थी कि मुंबई में इतनी तेज बारिश होगी . अभी तो मई का अंतिम सप्ताह था . पिछली रात मूसलाधार बारिश हुई थी . सुबह से बारिश कम हो गयी थी फिर भी रिमझिम बारिश लगातार होती रही थी . मुंबई की लाइफ लाइन कही जाने वाली सभी लोकल ट्रेन देर से चल रहीं थीं . जगह जगह ट्रैक पर पानी जमा होने से उनकी गति भी नार्मल से कम थी .
रजत किंग सर्किल स्टेशन की बेंच पर बैठ अपनी ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहा था . उसके पास एक बैकपैक था . उसकी ट्रेन आधा घंटा लेट चल रही थी . जब ट्रेन आयी तब वह फर्स्ट क्लास के डिब्बे में चढ़ कर एक सीट पर बैठ गया . उसे मुंबई सेंट्रल टर्मिनस जाना था . सामने की सीट पर एक महिला बैठी न्यूज़ पेपर पढ़ रही थी इसलिए उसका चेहरा वह नहीं देख सका था . महिला स्काई ब्लू रंग की साड़ी पहनी थी जिस पर हल्का हल्का प्रिंट और छोटा बॉर्डर था और उसके गले में एक सोने की चेन थी जिसमें एक विशेष आकार का लॉकेट था . सुधा ने उसे बताया था कि इस लॉकेट में एक ताबीज है . बचपन में जब वह गंभीर रूप से बीमार पड़ी थी किसी ने ये ताबीज उसकी माँ को देकर कहा था कि उसे बेटी को आजीवन पहनना होगा . उसे देख कर वह अपने अतीत के पन्ने पलटने लगा .
कोई छः या सात साल पहले जब वह पटना के साइंस कॉलेज में पढ़ता था उसके साथ एक लड़की सुधा भी थी . सुधा के गले में इसी प्रकार का लॉकेट रहता था और ब्लू उसका फेवरेट कलर था . दोनों फिजिक्स में ऑनर्स कर रहे थे . सुधा एक अपर मिडिल क्लास परिवार की एकमात्र संतान थी . देखने में वह बहुत सुंदर थी . वह सेंट जेवियर्स स्कूल में पढ़ी थी . साथ ही वह अपने पापा के साथ इलीट बांकीपुर क्लब जाया करती थी . वह शुरू से ही एक अच्छी लॉन टेनिस प्लेयर थी . वह बहुत चंचल और ओवर्ट बड़बोली थी ,उसे मौज मस्ती पसंद थी . कभी कभी लाइब्रेरी में उस का आमना सामना रजत से होता तब रजत उसे कुछ पल देखते रहता . जब सुधा को ध्यान होता कि कोई उसे देखे जा रहा है तब वह नजरें फेर लेती थी . संयोग से एक दिन प्रैक्टिकल लैब में दोनों एक ही ग्रुप में थे . करीब दो घंटे दोनों साथ रहे थे . सुधा को महसूस हो रहा था कि रजत बार बार उसकी तरफ देख रहा है पर वह नजरें चुरा लेती थी . दोनों के बीच प्रैक्टिकल को ले कर बात हुई थी . कभी रजत का हाथ उसके हाथ को जाने या अनजाने में छू जाता था जिसे सुधा इग्नोर कर देती थी . बाकी बातें बस हाँ या ना तक सीमित रहीं थीं . सच तो यह था कि वह सुधा को पसंद करने लगा था पर उसमें सच बोलने का साहस नहीं था . यह एक तरफा मूक प्यार बन के रह गया .
वैसे तो सुधा इंटर यूनिवर्सिटी सिंगल्स टेनिस चैंपियन थी पर मिक्स्ड डबल टेनिस में भी इंटर यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप में भाग ले चुकी थी .उन दिनों वह अपने ही कॉलेज के एक सीनियर उमेश के साथ मिक्स्ड डबल टूर्नामेंट के लिए श्रीनगर गयी थी . उमेश केमिस्ट्री पोस्ट ग्रेजुएट फाइनल ईयर में था .वह एक धनी बिजनेसमैन का इकलौता बेटा था . उसे भी सुधा की तरह फ्री स्टाइल मौज मस्ती पसंद थी . कश्मीर में टीम को करीब दो सप्ताह रहना पड़ा था . सुधा और उमेश की केमिस्ट्री मैच कर गयी . दोनों में नजदीकियां बढ़ीं और जल्द ही यह नजदीकी प्यार में बदल गयी . चैंपियनशिप के फाइनल में सुधा और उमेश की जोड़ी को हार का सामना करना पड़ा था . उमेश ने इस हार का ठीकड़ा सुधा पर फोड़ा हालांकि इसके चलते उनके प्यार में कोई फर्क नहीं पड़ा था . दोनों कुछ दिन साथ लिव इन में रह कर एक दूसरे को जज करने के बाद शादी करने पर राजी थे . यह खबर कॉलेज में काफी लोगों को पता थी , रजत को भी . कनवोकेशन के दिन जब रजत और सुधा दोनों का आमना सामना हुआ तब रजत ने मुस्कुरा कर हाय कहा . प्रत्युत्तर में सुधा ने भी हाय कहा . रजत ने उस से पूछा “ सुना है तुम उमेश के साथ मुंबई जा रही हो , माय बेस्ट विशेज . “
“ थैंक्स , मुंबई नहीं पुणे जा रही हूँ . “ बोल कर एक हल्की मुस्कान के साथ वह आगे बढ़ गयी .
इन्हीं अतीत की बातों में रजत खोया था कि कब मुंबई सेंट्रल आ गया जब तक उसे ख्याल आया तब तक सामने वाली सीट की महिला उतर चुकी थी . रजत को अहमदाबाद की ट्रेन पकड़नी थी , अभी ट्रेन छूटने में दो घंटे बाकी थे . वह वेटिंग रूम में गया . जब वह अपने बैग से टॉवल निकाल कर बाथ रूम की तरफ बढ़ा उसी समय दरवाजे पर उसकी नजर लोकल ट्रेन वाली महिला पर पड़ी . दोनों कुछ देर तक एक दूसरे को देखते रहे , “ सुधा , तुम यहाँ ? “
“ हाँ , तुम भी तो यहीं हो . अच्छा रास्ता छोड़ो , लोग बाथरूम जाने के लिए खड़े हैं . “
“ तुम सेंट्रल पर कब तक हो ? “ एक तरफ होते हुए रजत ने कहा
“ मेरी ट्रेन में अभी दो घंटे बाकी हैं . “
“ ठीक है तब तक तुम बैठो , मैं 10 मिनट के अंदर फ्रेश होकर आता हूँ . “
दस मिनट के बाद रजत सुधा के पास एक खाली कुर्सी पर बैठते हुए बोला “ हम छह साल बाद मिल रहे हैं .कैसी हो ?
सुधा ने नजरें नीचे किये कहा “ ठीक हूँ . “
“ बुरा न मानो तो एक बात कहूँ ? “ सुधा के खामोश रहने पर वह आगे बोला “ मैं तुम्हारे चेहरे पर वो पहले सी रौनक मिस कर रहा हूँ . होप सब ठीक है . “
“ ठीक भी है और नहीं भी . “ पहली बार रजत से नजरें मिला कर सुधा बोली
“ मैं समझा नहीं , पहेली नहीं बुझाओ . अगर कह सकती हो तो साफ़ साफ़ कहो . “
“ अब जिंदगी में पहले वाली बात नहीं रही है . दुबारा सही करने की कोशिश कर रही हूँ . “
“ इतने दिनों में क्या हुआ ? मैं भी जानना चाहता हूँ , आखिर मेरा भी कुछ अधिकार बनता है एक दोस्त के नाते ही सही . “
“ काश ये अधिकार तुमने पहले जताया होता . “ सुधा ने बेबाकी से कहा
रजत भी उसे देखता रहा .
सुधा ने आगे कहा “ रजत मैं जब कॉलेज में पढ़ती थी तुम्हारी नजरों को देख कर जानती थी कि तुम मुझमें कुछ ढूंढ रहे हो या फिर कुछ कहना चाहते हो . पर तुमसे यह हो न सका था . “
“ तब तुमने कुछ क्यों नहीं कहा ? “
“ मैं लड़की तुमसे क्या कहती कि सिर्फ नजरें छुपा कर देखो नहीं , आओ मुझसे प्यार करो ? मुझे प्रपोज करो . “
कुछ देर दोनों खामोश रहे फिर सुधा ने ही अपनी कहानी विस्तार से शुरू किया “ जैसा कि तुम जानते हो कश्मीर ट्रिप के दौरान ही उमेश ने मुझे प्रपोज कर दिया था जिसे मैंने स्वीकार किया .पी जी के बाद उमेश को पुणे स्थित एक प्राइवेट कंपनी में साइंटिस्ट की नौकरी मिल गयी थी . उमेश ने मुझसे कहा ‘ मैं तो पुणे जा रहा हूँ . तुम्हारा भी ऑनर्स पूरा हो गया है . क्या मेरे साथ चलने के लिए तैयार हो ? चाहो तो वहां पी जी कर सकती हो या फिर तुम्हें भी मेरी कंपनी के स्कूल में टीचर की नौकरी आसानी से मिल सकती है . “
हम दोनों करीब तीन साल तक लिवइन में ठीक से रहे थे . मैं भी कंपनी के स्कूल में टीचर थी .इस बीच उमेश टेनिस में बहुत आगे निकल गया था . बीच बीच में उसने काफी टूर्नामेंट में भाग लिया था और कुछ ट्रॉफी जीते भी थे . इस बीच मैं प्रेग्नेंट हो गयी . उमेश बच्चा नहीं चाहता था . नेशनल चैंपियनशिप के लिए कंपनी ने उसे तीन महीने की ट्रेनिंग के लिए ऑस्ट्रेलिया भेजा . मुझे खुद एहसास नहीं हुआ कि मैं कब प्रेग्नेंट हो गयी थी . ट्रेनिंग से वापस आने पर मैंने जब उमेश को बताया तब उसे यह जानकर आश्चर्य और दुःख हुआ . मैंने उसे जल्द ही शादी करने के लिए कहा तब उसने नकार दिया . उसके दबाव में मुझे अबॉर्शन कराना पड़ा . इसके बाद से मेरी तबीयत ख़राब रहने लगी और मुझे डिप्रेशन हुआ . एक दिन अचानक उसने कहा “ सुधा , अब नो मोर लिवइन या शादी . आई एम ब्रेकिंग दिस रिलेशन . यू आर फ्री टू मूव . मुझे टेनिस में अपना करियर बनाना है जो साथ रह कर सम्भव नहीं है . मैं जा रहा हूँ , कंपनी यह क्वार्टर तुम्हारे नाम अलॉट कर देगी .”
“ तुम किस ट्रेन की प्रतीक्षा कर रही हो ? “ रजत ने पूछा
“ मुझे अहमदाबाद जाना है . मैं भी वहां नया जॉब ज्वाइन करने जा रही हूँ . “
“ किस कंपनी में ? “
“ कम्पनी में नहीं , इंटर कॉलेज में लेक्चरर के लिए . उमेश से ब्रेक अप के बाद मैंने अपना पी जी पूरा किया और अब मैं अहमदाबाद शिफ्ट कर रही हूँ .”
“ वाह , क्या संयोग है ? तुम जॉब चेंज कर मुंबई से शिफ्ट कर रही हो और मेरा भी मुंबई से ट्रांसफर हुआ है .”
“ खैर , यह तो मेरी कहानी हुई , अब तुम अपनी कुछ कहो . “
“ मैं क्या कहूँ ? मैंने सिविल सर्विसेज में कम्पीट किया पर अच्छा रैंक नहीं मिल सका था . मुझे अलाइड सर्विसेज मिली और मुंबई इनकम टैक्स में पोस्टिंग हुई . चार साल से यहीं था . अब मेरा ट्रांसफर बड़ौदा ( वडोदरा ) हो गया है . अभी वहां जॉइनिंग रिपोर्ट कर के वापस मुंबई आऊंगा . फिर सामान के साथ शिफ्ट हो जाऊंगा . “ रजत बोला
“ तुम्हारी फैमिली में और कौन कौन हैं ? “ सुधा ने पूछा
“ मैं और मेरी तन्हाई . “
रजत की बात पर सुधा पहली बार खुल कर हँस पड़ी .
“ क्यों , तुम्हें मेरी तन्हाई पर हँसी आ रही है ? “
“ नहीं , मुझे लगा सिविल सर्विसेज वाले लड़के को कोई एक्स्ट्रा आर्डिनरी लड़की का इन्तजार रहता है . इसलिए अभी तक अकेले हो . “
इसी बीच ट्रेन प्लेटफार्म पर लगने की सूचना हुई . दोनों अपना अपना सामान ले कर ट्रेन की ओर बढे . इत्तफ़ाक़ से दोनों के बर्थ एक ही कोच में आमने सामने थे . मुंबई से बड़ौदा तक का करीब पांच घंटे का सफर बातों में बातों में खत्म होने को था . बड़ौदा आने के कुछ मिनट पहले ही सुधा को नींद आ गयी थी . दोनों अपनी पुरानी बातों को याद कर कभी खुश होते तो कभी गंभीर हो जाते थे . दोनों की आंखों में एक नयी शुरुआत की आशा झिलमिला रही थी . बड़ौदा ( वड़ोदरा ) स्टेशन निकट आ रहा था .
पहले रजत ने ट्रेन से उतरने के पहले सुधा को उठाना चाहा था फिर उसने अपना इरादा बदल दिया . सुधा के सिरहाने पड़ी किताब में उसने एक मेसेज लिख कर छोड़ दिया - “ मुझे तुम्हारे ब्रेकअप की खबर मिली थी . सुनकर बहुत दुःख हुआ था . दिल तेरा दीवाना था सनम पर बदकिस्मती से सही वक़्त कुछ कह न सके हम . जल्द ही अच्छा वक़्त आने की उम्मीद लगाए बैठा हूँ . मुझे और किसी का इन्तजार नहीं था . अगर तुम्हें मंजूर हो तो मैं भी अपना ट्रांसफर जल्द ही बड़ौदा करा सकता हूँ . अच्छा , फ़िलहाल मेरा स्टेशन आ गया . टेक केयर . तुम्हारा इंतजार रहेगा “
रजत ने अपना बैग उठाया और ट्रेन से उतर गया . कुछ दिनों के बाद सुधा का मेसेज आया “ तुम्हारा सही वक़्त आ गया है , हमारे अच्छे दिन का इंतजार समाप्त हुआ समझो . बस तुम्हारा ही इंतजार है . “
समाप्त
नोट - यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है