गरीब बच्चे का सपना
एक छोटे से गाँव में एक बच्चा रहता था। उसका नाम था आरव। आरव का परिवार बहुत गरीब था। उसके पिता खेतों में मजदूरी करते और माँ दूसरों के घरों में काम करके परिवार का पेट पालती। गरीबी इतनी थी कि कई बार पेट भर खाना भी नसीब नहीं होता था। लेकिन आरव के दिल में एक सपना था – वह पढ़-लिखकर एक दिन बड़ा आदमी बनना चाहता था।
आरव के पास न अच्छे कपड़े थे, न जूते, न ही ढंग की किताबें। गाँव के सरकारी स्कूल में वह पढ़ता था, लेकिन वहां भी अक्सर किताबें खरीदने के पैसे नहीं होते। तब वह अपने दोस्तों से पुरानी किताबें लेकर पढ़ाई करता। कई बार तो किताबों के पन्ने फटे होते, लेकिन आरव कभी शिकायत नहीं करता। वह कहता, “ज्ञान तो अक्षरों में होता है, कागज़ में नहीं।”
आरव पढ़ाई में तेज़ था। स्कूल के अध्यापक भी उसकी मेहनत देखकर हैरान रहते। रात को जब पूरा गाँव सो जाता, तब वह मिट्टी के दीये की हल्की-सी रोशनी में पढ़ता। उसका सपना था कि एक दिन वह गाँव के बच्चों के लिए एक बड़ा स्कूल बनाएगा, जहाँ किसी गरीब को पढ़ाई के लिए रोका न जाए।
लेकिन सपना पूरा करना आसान नहीं था। अक्सर लोग आरव से कहते –
“बेटा, ये सब बड़े घर के बच्चों के सपने होते हैं। गरीबों के लिए तो बस मजदूरी ही लिखी है।”
आरव मुस्कुरा कर जवाब देता –
“गरीबी हमारी मजबूरी है, लेकिन सपना हमारी ताकत।”
समय बीतता गया। दसवीं कक्षा के इम्तिहान आए। गाँव के बहुत से बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया क्योंकि उनके घर वालों को लगता था कि पढ़ाई में कुछ नहीं रखा। लेकिन आरव ने हार नहीं मानी। उसने दिन-रात मेहनत की और पूरे जिले में अव्वल आया। जब परिणाम आया तो पूरा गाँव हैरान रह गया।
आरव की मेहनत देखकर गाँव के सरपंच और अध्यापक आगे आए। उन्होंने शहर के एक बड़े स्कूल में उसका दाखिला करवाया और छात्रवृत्ति दिलवाई। अब आरव के पास और भी बड़ा मौका था, लेकिन चुनौतियाँ भी बड़ी थीं। शहर में पढ़ना आसान नहीं था। वहाँ के बच्चे अमीर थे, महंगे कपड़े पहनते, किताबों से भरे बैग लेकर आते। आरव के पास सिर्फ दो जोड़ी कपड़े थे और एक पुराना बैग।
शुरुआत में सब उसका मज़ाक उड़ाते। लेकिन आरव ने कभी हार नहीं मानी। उसने अपनी मेहनत से सबको साबित कर दिया कि असली पहचान कपड़ों या पैसों से नहीं, बल्कि मेहनत और लगन से होती है।
कुछ सालों बाद आरव ने उच्च शिक्षा पूरी की और एक बड़ा अफसर बन गया। अब वही लोग, जो कभी उसकी गरीबी का मज़ाक उड़ाते थे, गर्व से कहते –
“वो देखो, वही गरीब आरव… आज पूरे गाँव का नाम रोशन कर रहा है।”
आरव ने अपने गाँव में पहला बड़ा स्कूल बनवाया। उसने बच्चों से कहा –
“मैं भी कभी तुम जैसा था। याद रखना, सपने कभी गरीब नहीं होते। अगर दिल से चाहो और मेहनत करो तो हर सपना सच हो सकता है।”
उस दिन गाँव के हर बच्चे की आँखों में चमक थी। अब उन्हें भी यकीन हो गया था कि उनके सपने भी पूरे हो सकते हैं।
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सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि गरीबी इंसान को रोक नहीं सकती। असली ताकत उसके सपनों और मेहनत में होती है। सपने छोटे-बड़े नहीं होते, और अगर कोई सच्चे मन से मेहनत करे तो उसे मंज़िल जरूर मिलती है।