Chapter 3
कॉलेज का प्लेग्राउंड उस शाम कुछ और ही लग रहा था।
हवा में नमी थी, और ज़मीन पर हल्की धूप और पेड़ों की लंबी-लंबी परछाइयाँ फैली थीं। आस-पास क्रिकेट खेलते लड़कों की चिल्लाहट, बेंच पर बैठे स्टूडेंट्स की हँसी… और बीच में मैं।
यश मेरे बिल्कुल पास खड़ा था। इतना पास कि उसकी गर्म साँसें मेरी त्वचा से टकराकर अजीब-सा कंपन पैदा कर रही थीं।
मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी—पर इससे पहले कि मैं कुछ कह पाती, अचानक मेरे कानों के पास एक गहरी, जानी-पहचानी आवाज़ गूँजी—
“ये सब क्या हो रहा है?”
मैंने पलटकर देखा।
वो… मेरा बड़ा भाई, रवि था।
यश तुरंत पीछे हट गया।
रवि की नज़रें हम दोनों पर ठहर गईं। उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान थी, लेकिन आँखों में गंभीरता छिपी हुई थी।
रवि (धीरे, हल्की मुस्कान के साथ):
“तो, यहाँ क्या चल रहा है?”
मैं (हड़बड़ाकर):
“आप यहाँ?”
यश की आँखें सिकुड़ गईं। शक से भरी आवाज़ में उसने पूछा—
यश:
“ये कौन है?”
रवि (सीधे स्वर में):
“मैं… जाचु का—”
मैं (बीच में ही, तेज़ी से):
“रुको रवि! यश, तुम्हें तुम्हारा जवाब मिल गया ना? अब मैं जा रही हूँ।”
मैंने रवि का हाथ कसकर पकड़ा और वहाँ से चल दी। जाते-जाते रवि ने यश की तरफ़ हल्की मुस्कान फेंकी—
रवि:
“बाय।”
यश वहीं खड़ा रह गया। उसकी आँखें हमें जाते हुए देख रही थीं।
उसके भीतर एक ठंडी आवाज़ गूँजी—
(भीतर की फुसफुसाहट):
“वो तुमसे डरती है। वो इंसान है… और कोई इंसान कभी वैम्पायर से प्यार नहीं करेगा। उसे भूल क्यों नहीं जाते?”
यश ने दाँत भींचते हुए धीरे से कहा—
यश (ठंडी साँस लेकर):
“नहीं। मैं यहाँ उसे ढूँढने आया हूँ। उसे अपने साथ ले जाने… और उसे फिर से बनाने के लिए।”
इतना कहते ही उसके बैग से एक छोटा-सा चमगादड़ फड़फड़ाता हुआ निकला और उसके कंधे पर बैठ गया।
चमगादड़ (कर्कश हँसी के साथ):
“वो रवि से बहुत प्यार करती है। यही उसका बॉयफ्रेंड है। उसने कहा था न, वो किसी और से प्यार करती है? वही है वो।”
यश की आँखों में एक अजीब-सी चमक उभरी।
यश:
“क्या सचमुच उसका बॉयफ्रेंड है? नहीं… मुझे नहीं लगता। उसने बस ये कहा ताकि मैं दूर रहूँ।”
चमगादड़ ने खिसियानी हँसी हँसी—
चमगादड़:
“अगर तुम चाहो तो रवि को ख़त्म कर सकते हो। फिर देखना, जाचु तुम्हारे पास कैसे आती है।”
यश ने सख़्त आवाज़ में कहा—
यश:
“नहीं। हम किसी इंसान को मार नहीं सकते।”
चमगादड़ (धीरे, खतरनाक फुसफुसाहट में):
“ठीक है… पर पीछा करके डराया तो जा सकता है। थोड़ी-सी धमकी, और हमारा काम आसान हो जाएगा।”
यश की आँखें गहरी होती चली गईं। भीतर अँधेरा और घना हो रहा था।
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सीन: कैफ़े
शहर की एक पुरानी सड़क के कोने पर छोटा-सा कॉफ़ी कैफ़े था। बाहर हल्की बारिश की बूंदें गिर रही थीं और शीशे पर पानी की रेखाएँ बन रही थीं।
अंदर पीली रोशनी और कॉफ़ी की खुशबू फैली थी।
मैं और रवि खिड़की के पास वाली टेबल पर बैठे थे। मेरे हाथ में कॉफ़ी का मग था, जिससे भाप धीरे-धीरे उठ रही थी।
रवि ने सीधे सवाल किया—
रवि:
“वो लड़का कौन था? क्या वो तुम्हारा बॉयफ्रेंड है?”
मैं झिझकी, नज़रें झुकाईं—
मैं:
“नहीं भैया… ऐसा कुछ नहीं है। वो बस मेरा कॉलेजमेट है।”
रवि ने हल्की हँसी छोड़ी और सिर हिलाया—
रवि:
“देखने से तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगा। चलो छोड़ो… मुझे सब पता है। तुम उसे पसंद करती हो।”
मैं (हड़बड़ाकर):
“क्या…?”
रवि (धीरे, मुस्कुराकर):
“हाँ। मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ। मुझे सब पता रहता है कि तुम कहाँ हो, किससे मिल रही हो।”
मैंने गहरी साँस ली और सवाल किया—
मैं:
“ठीक है… पर आप आज कॉलेज आए ही क्यों थे?”
रवि का चेहरा अचानक गंभीर हो गया। उसकी आँखों में मुस्कान की जगह चिंता उतर आई।
रवि (गंभीर स्वर में):
“जाचु, तुम्हें याद है आज कौन-सा दिन है?”
मैंने मासूमियत से जवाब दिया—
मैं:
“क्या? आज… मेरा बर्थडे?”
रवि (आँखें ठंडी करते हुए):
“नहीं। आज अमावस की रात है। और आज तुम्हें घर के बाहर बिल्कुल नहीं निकलना चाहिए था।”
मैं (धीरे):
“पर भैया… वो सब तो रात 8 बजे के बाद होता है न?”
रवि (सख़्ती से):
“नहीं जाचु। समय का कोई भरोसा नहीं। तुम्हें पता है, हमारी बस्ती से कितने लोग अमावस पर गायब हो चुके हैं। पुलिस भी उन्हें कभी नहीं ढूँढ पाई। मैंने तुम्हें रोका था, फिर भी तुम कॉलेज चली गई।”
मैंने सिर झुका लिया। गिल्ट से भरकर कहा—
मैं:
“माफ़ करना भैया… मुझे सचमुच ज़रूरी काम था।”
रवि ने मेरा हाथ कसकर थाम लिया। उसकी आँखों में भाई का डर और मोह साफ़ झलक रहा था—
रवि (धीरे, काँपती आवाज़ में):
“तुम ही मेरी सब कुछ हो, जाचु। अगर माँ-बाप ज़िंदा होते तो शायद मुझे इतनी चिंता नहीं करनी पड़ती। पर अब… तुम ही मेरा परिवार हो। तुम्हें मैं कुछ नहीं होने दूँगा।”
मेरी आँखें भीग गईं। मैंने सिर झुका लिया।
और तभी… कैफ़े के बाहर, बारिश से धुँधले काँच के पीछे…
यश खड़ा था।
वो हमें देख रहा था—पर हमारी बातें नहीं सुन पा रहा था।
उसके कंधे पर चमगादड़ दुबककर बैठा था। उसने फुसफुसाया—
चमगादड़ (धीमे ज़हर भरे स्वर में):
“देखा? कैसे दोनों हाथ पकड़कर बैठे हैं
? ये प्यार नहीं तो और क्या है?”
यश की आँखें लाल हो उठीं। उसने दबी आवाज़ में कहा—
यश:
“नहीं। मैं उसे नहीं छोड़ूँगा।”
Countinue.....
BY POOJA KUMARI