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गाँव के पार का प्रेम – Part 1
गाँव के किनारे, पक्की सड़क से थोड़ी दूर एक नीम का पेड़ खड़ा था। उसी पेड़ के नीचे अक्सर आरव को किताब लिए बैठे देखा जा सकता था। पढ़ाई में तेज़, सोच में गहरे और दिल से बेहद साफ़ लड़का था आरव।
दूसरी ओर, मीरा गाँव के मुखिया की बेटी थी। उसकी आँखों में मासूमियत और चेहरे पर अजब सी चमक थी। जब वो अपनी सखियों के साथ खेतों से होकर गुजरती, तो हवा तक जैसे उसके पीछे चल पड़ती।
मीरा और आरव की पहली मुलाक़ात किसी फिल्मी किस्से जैसी नहीं थी। वो बस संयोग था। उस दिन मीरा नदी के किनारे पानी भरने आई थी और उसका घड़ा फिसलकर गिर गया। घड़ा टूट गया और वो घबराकर बैठ गई। तभी पास ही बैठा आरव आगे बढ़ा और बोला –
आरव (हल्की मुस्कान के साथ):
“घबराओ मत मीरा, ये घड़ा तो मैं कल ही तुम्हारे लिए नया ले आऊँगा।”
मीरा ने चौंक कर उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में हैरानी थी, लेकिन साथ ही दिल में हल्की सी मिठास भी उतर गई।
उस दिन से दोनों की नज़रें अक्सर मिलने लगीं। कभी खेतों के रास्ते पर, कभी कुएँ के पास, कभी स्कूल जाते वक्त। मीरा को धीरे-धीरे महसूस होने लगा कि आरव में कुछ अलग बात है—उसकी नज़रें बहुत सच्ची हैं।
शाम को जब सूरज गाँव के पीछे डूब रहा होता, तो आरव उस नीम के पेड़ के नीचे बैठकर मीरा का इंतज़ार करता। मीरा भी बहाने बनाकर वहाँ पहुँच जाती—कभी पानी भरने, कभी सखियों के साथ टहलने।
धीरे-धीरे उनके बीच एक अनकहा रिश्ता बनने लगा। दोनों बोलते कम थे, लेकिन आँखों की भाषा बहुत कुछ कह जाती थी।
समय के साथ मीरा और आरव का रिश्ता गहराने लगा। वो दोनों अब बातें भी करने लगे थे। अक्सर शाम को खेतों की पगडंडी पर मीरा धीरे-धीरे चलती और आरव उसके साथ-साथ चलता।
मीरा (धीरे से):
“अगर किसी ने हमें देख लिया तो?”
आरव (मुस्कुराते हुए):
“देख लें… प्यार छुपाने की चीज़ नहीं होती मीरा।”
मीरा ने शर्म से नज़रें झुका लीं। उसके गाल गुलाब की पंखुड़ी की तरह लाल हो गए। आरव का दिल धड़क उठा।
एक दिन, जब सावन की बारिश ने पूरा गाँव भिगो दिया था, मीरा अपने भीगे कपड़ों में घर लौट रही थी। रास्ते में अचानक उसका पैर फिसल गया। आरव, जो उसी रास्ते से आ रहा था, ने उसे अपनी बाँहों में थाम लिया।
दोनों एक-दूसरे के बिल्कुल करीब थे। बारिश की बूँदें उनके चेहरों से टपक रही थीं। मीरा की साँसें तेज़ थीं और आरव के दिल की धड़कन भी।
उस पल ने जैसे दोनों को बाँध लिया।
मीरा (फुसफुसाते हुए):
“आरव… हमें सावधान रहना होगा…”
आरव (धीरे से उसके कानों में):
“मैं वादा करता हूँ, तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा।”
उस दिन से उनका रिश्ता और भी गहरा हो गया। अब मीरा हर रोज़ किसी न किसी बहाने से आरव से मिलने आने लगी। कभी खेतों के बीच, कभी नदी किनारे, कभी पुराने बाग के पास।
धीरे-धीरे उनके दिलों में प्यार के साथ चाहत भी पनपने लगी।
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गाँव के लोग अब दोनों की नज़दीकियों पर ध्यान देने लगे थे। लेकिन मीरा और आरव को इन सबकी परवाह कहाँ थी।
एक रात, अमावस्या का अँधेरा चारों ओर छाया हुआ था। पूरा गाँव सो चुका था। मीरा अपने आँगन में खड़ी आसमान देख रही थी। तभी पीछे से एक आहट हुई। वो आरव था।
मीरा (हड़बड़ाकर):
“आरव! तुम यहाँ? अगर किसी ने देख लिया तो?”
आरव (धीरे से उसका हाथ पकड़ते हुए):
“डर मत मीरा… बस तुझसे मिलने की तड़प रोक नहीं पाया।”
चाँदनी में दोनों के चेहरे चमक रहे थे। आरव ने पहली बार मीरा का हाथ कसकर थाम लिया। मीरा काँप गई, लेकिन उसके दिल ने उस स्पर्श को स्वीकार कर लिया।
उस रात दोनों आँगन के कोने में नीम की छाया तले बैठ गए। बहुत देर तक बातें करते रहे—सपनों की, उम्मीदों की, अपने आने वाले कल की।
धीरे-धीरे मीरा का सिर आरव के कंधे पर आ टिक गया। आरव ने पहली बार उसके माथे पर हल्की सी चुम्बन दी। मीरा की आँखें बंद हो गईं। उसके भीतर एक अजीब सी गर्माहट दौड़ गई।
उस रात दोनों ने एक-दूसरे को महसूस किया, बिना किसी डर के… बस दिल की धड़कनों की गवाही थी।