शातिर राज़ in Hindi Thriller by Abhijeet Tomar books and stories PDF | शातिर राज़

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शातिर राज़

राहुल कुछ दर पहले हि एक क़त्ल करने के बाद् किसी के इंतजार मे बस फ्रेश होके बैठा ही था की.....
......दरवाजे पर दस्तक हुई....।।।
राहुल ने अपनी गहरी, खतरनाक आँखें उठाईं। ये दस्तक उस सौदे की थी, जिसे वो हमेशा बेरहम दिल से निभाता आया था। लेकिन जैसे ही दरवाज़ा खुला और उसने सामने खड़ी औरत को देखा—उसकी साँस आधे पल के लिए रुक गई।

वो… यही सोसाइटी की औरत थी। एक शादीशुदा चेहरा, जिसे अक्सर उसने बच्चों के साथ पार्क में या किराने की दुकान पर जाते देखा था। बाहर सबकी नज़रों में एक सभ्य, शांत और सुसंस्कारी पत्नी। लेकिन आज वो उसकी दहलीज़ पर खड़ी थी—काँपते होंठों, झुकी नज़रों और थरथराते हाथों के साथ।

काले रंग की ड्रेस उसके बदन से चिपकी थी। हल्की रोशनी में उसका चेहरा साफ़ दिख रहा था—बेहद खूबसूरत, मगर डर और मजबूरी से भरा हुआ। उसके खुले बाल कंधों पर बिखरे थे, आँखें नीचे झुकी हुईं और होठों पर अनकही सिसकी अटकी हुई।

राहुल की चौड़ी छाती पर पीली रोशनी पड़ रही थी। सफेद शर्ट से उभरती उसकी मसल्स, गले से झाँकती नसें और वो पैना जबड़ा, जैसे किसी पत्थर से تراशा गया हो। उसकी आँखों की धार किसी चाकू से भी तेज़ थी। उसकी पसीने से हल्की चमकती त्वचा, मजबूत हाथों की उभरी हुई नसें और उसके कदमों की भारी आवाज़—सब मिलकर कमरे की हवा को बोझिल कर रहे थे।

राहुल ने धीमे, मगर आदेशात्मक स्वर में कहा—
“अंदर आओ।”

उसकी आवाज़ में ऐसा वजन था कि औरत काँपते कदमों से भीतर चली आई। दरवाज़ा बंद हुआ और कमरा जैसे अचानक और छोटा हो गया। बाहर की हल्की स्ट्रीटलाइट की परछाई खिड़की से भीतर आ रही थी, लेकिन माहौल में डर और खामोशी का राज़ था।

राहुल ने एक नज़र उसके चेहरे पर डाली और फिर ठंडी मुस्कान के साथ बोला—
“जानती हो न, यहाँ क्यों लाई गई हो?”

उसने काँपते होंठों से कहा—
“मुझे… पैसों की ज़रूरत थी।”

राहुल की मुस्कान चौड़ी हुई।
“पैसे…” वो उसकी ओर बढ़ा, “हाँ, लेकिन कीमत बहुत बड़ी चुकानी पड़ेगी। और याद रखो, इस कमरे में अब सिर्फ़ मेरी मर्ज़ी चलेगी।”

इतना कहते ही उसने अचानक उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी उँगलियाँ स्टील जैसी सख़्त थीं। औरत का नाज़ुक शरीर सीधा उसके चौड़े सीने से जा टकराया। टक्कर इतनी तेज़ थी कि उसके होंठों से हल्की-सी सिसकी निकल गई।

उसने छूटने की कोशिश की, लेकिन राहुल की पकड़ में लोहा था। उसकी धड़कनें इतनी तेज़ हो गईं कि कानों तक गूँजने लगीं।

राहुल झुककर उसकी आँखों में झाँकने लगा।
“डर लग रहा है?”

उसने काँपते हुए सिर हिलाया—“हाँ…”

राहुल की आँखों में खतरनाक चमक उभरी।
“डर ही तो असली मज़ा है।”

उसने अचानक उसका चेहरा ऊपर उठाया और होंठों पर दावा कर लिया। औरत की आँखें चौड़ी हो गईं। पहले तो उसने धक्का देने की कोशिश की, लेकिन राहुल की मसल्स, उसका दबदबा, उसकी ताक़त—सब उसके नाजुक विरोध पर भारी पड़ गए।

उसके आँसू उसके गालों से बह निकले। मगर उसी के साथ उसके भीतर कहीं कोई अजीब-सी हलचल भी उठी। जैसे उसके डर के पीछे छिपा कोई अनजाना आकर्षण धीरे-धीरे सिर उठा रहा हो। उसका आकर्षित रूप राहुल को और बहशी बनाता जा रहा था। उसने बिना देरी किये लड़की को उठा कर अपने बेड पे लिटाया और बस एक ऐसे भूखे दरिंदे की तरह टूट पड़ा जिसने महीनों से कुछ न खाया हो।

राहुल का हर किस, हर स्पर्श दरिंदगी से भरा था—जैसे वो अपनी ताक़त और हक़ जता रहा हो। उसकी साँसें गरम, बेसब्र और गहरी थीं। उसकी पकड़ औरत की कलाईयों को जकड़े हुए थी, जैसे वो ये जताना चाहता हो कि अब उसका शरीर पूरी तरह उसी के क़ाबू में है।

कमरे की हवा भारी होने लगी। औरत का दिल डर से काँप रहा था, लेकिन उसके सीने पर दबे राहुल की मसल्स की गर्माहट उसे एक अजीब-सा एहसास दिला रही थी।

वो जानती थी कि ये गलत है। ये मजबूरी थी। लेकिन राहुल की ताक़त, उसका खतरनाक आत्मविश्वास और उसकी मर्दानगी—सब मिलकर उसके दिल पर असर कर रहे थे। आचानक राहुल का एक हाथ उसकी कमर पर और दूसरा हाथ उसके दोनो हाथो को कसे हुए था। वो कहना चिल्लाना चाहती थी पर राहुल के होंठ उसके होठो से कैद थे। आज पहली बार उसको ऐसा एहसास हुआ की एक असली मर्द से उसका सामना हो रहा है। 
वो धीरे धीरे उसे कसता जा रहा था और वो उसकी बाहो मे अपने आप को खोता महसूस कर रही थी

उसकी झिझक धीरे-धीरे ढहने लगी। उसके आँसुओं की जगह अब हल्की कराहटें आने लगीं।

राहुल ने उसे ज़रा ढीला छोड़ा और उसके चेहरे को अपनी हथेली में कैद कर लिया। उसकी उँगलियों की पकड़ सख़्त थी, लेकिन उसकी आँखों में कुछ ऐसा था जो औरत को भीतर से हिला रहा था।

वो एक शिकारी था। और वो खुद को उसके शिकारी स्पर्श में खोती जा रही थी।

उसने हल्की आवाज़ में कहा—
“मुझे जाना चाहिए… ये ग़लत है।”

राहुल ने उसकी ठोड़ी उठाई और आँखों में देखते हुए बोला—
“ग़लत और सही का फैसला वो लोग करते हैं जो कायर हों। मैं सिर्फ़ वही करता हूँ जो मुझे चाहिए।”

उसकी आँखों की गहराई ने औरत को और भी बाँध लिया। उसका दिल कह रहा था भागो, लेकिन उसके कदम जैसे ज़मीन में गड़ गए थे।

धीरे-धीरे उसके प्रतिरोध की जगह अजीब-सी दीवानगी ने ले ली। राहुल की पकड़, उसका दबदबा, उसकी दरिंदगी—सबकुछ उसे डराते भी थे और खींचते भी।

उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं, दिल बेकाबू। और उसी अँधेरे, भारी कमरे में, उसकी मजबूरी धीरे-धीरे जुनून में बदलती जा रही थी। राहुल जैसे जैसे उसके करीब होता गया वो औरत भी अपनी प्यास भुजाने की सोचने लगी राहुल उस रात उसकी तड़प बन गया। उसकी छोड़ी पीठ पर हाथ फेरते हुए वो भी सभी दर्द, गम, डर, भूल गयी और बस उसकी चाहत बढ़ती गयी। 



🌑 उस रात की शुरुआत डर और मजबूरी से हुई थी।
लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, राहुल की दरिंदगी, उसकी मर्दानगी और उसका अजीब-सा नशा उस औरत के दिलो-दिमाग पर छा गया।

उसके लिए ये सिर्फ़ एक सौदा था। एक रात। एक औरत।
लेकिन उस औरत के लिए ये उसकी ज़िंदगी का ऐसा मोड़ बन गया, जहाँ से लौटना अब नामुमकिन था।

वो अब उस दरिंदे के लिए धड़कने लगी थी।