पंचमी व्रत कथा:
परिचय
भाद्रपद मास की शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी व्रत कहा जाता है। यह व्रत मुख्यतः महिलाएँ करती हैं। इसका महत्व पाप-निवारण और जीवन में शुद्धि प्राप्त करने हेतु माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि यदि स्त्री मासिक धर्म के समय भूलवश अज्ञानतावश कोई अशुद्ध कार्य कर बैठती है तो पंचमी व्रत करने से उन पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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व्रत कथा
प्राचीन समय में विदर्भ देश में एक ब्राह्मण रहते थे। उनकी पत्नी बड़ी धर्मपरायण और पतिव्रता थीं। उनके एक पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्र का विवाह कर दिया गया और पुत्री भी युवावस्था में पहुँची।
जब पुत्री का विवाह हुआ, तो कुछ समय बाद वह विधवा हो गई। वह सदा अपने माता-पिता के साथ ही रहने लगी। एक दिन उसकी माता ने देखा कि पुत्री की देह पर कई चकत्ते निकल आए हैं। शरीर पर फोड़े-फुंसी हो गए और वह अत्यधिक पीड़ा में रहने लगी।
ब्राह्मण दंपत्ति बहुत चिंतित हुए और किसी ज्ञानी महर्षि से जाकर कारण पूछा। तब ऋषि ने ध्यान लगाकर कहा—
“यह कन्या अपने पूर्व जन्म में ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुई थी। वह स्त्री मासिक धर्म के दिनों में शुद्धाचार का पालन नहीं करती थी। अशुद्ध अवस्था में रसोई बनाना, घर का काम करना और देवपूजन करना—इन सब कारणों से इसे यह रोग मिला है।”
यह सुनकर ब्राह्मण और उसकी पत्नी दुखी हुए और प्रायश्चित का उपाय पूछा। ऋषि बोले—
“भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन ऋषि पंचमी व्रत श्रद्धा-भाव से करो। सप्तर्षियों का पूजन कर, व्रत-नियमों का पालन करो। इस व्रत से पापों का शमन होगा और पुनर्जन्म में यह दुःख नहीं मिलेगा।”
ब्राह्मण दंपत्ति और उसकी पुत्री ने श्रद्धा-पूर्वक पंचमी व्रत किया। परिणामस्वरूप कन्या रोगमुक्त हो गई और अगले जन्म में उसे मोक्ष प्राप्त हुआ।
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व्रत विधि संक्षेप
1. प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
2. आचमन कर, पंचगव्य (दूध, दही, घी, गोबर, गौमूत्र) से शुद्धि करें।
3. सप्तर्षियों (कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ) का पूजन करें।
4. फल, फूल, दीप, धूप, अक्षत, जल अर्पित करें।
5. कथा सुनें और ब्राह्मण को भोजन कराएं।
6. व्रत का फल मोक्ष और समस्त पापों से मुक्ति माना गया है।
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📚 राजु कुमार चौधरी
✍️ लेखक | कवि | कहानीकार
📍 प्रसौनी, पर्सा, नेपाल
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