Breathing in today's time 'strings of breath' in Hindi Book Reviews by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | आज के समय में सांस लेते ‘साँसों के तार’

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आज के समय में सांस लेते ‘साँसों के तार’

नीलम कुलश्रेष्ठ

हिंदी साहित्य में साहित्य का स्तर जब ही उच्च माना जाता है जब उसमें गरीबों की, वंचितों की बात होती है। मेरी राय इससे बहुत अलग है। जो रचनाकार जहां बैठा है, वहीं से दुनियां में मिले अपने हिस्से तक‌ नज़र दौड़ा सकता है। जो रचनाकार इस दुनियां की तस्वीर जितनी ईमानदारी से‌ रच सकता है, वही साहित्य है।

ये बात मैंने लिखी है विनीता शुक्ला के नवीनतम कहानी संग्रह `साँसों के तार`के सन्दर्भ में। विनीता शुक्ला एक विदुषी गृहणी हैं लेकिन वे यूक्रेन युद्ध से आहत हैं। आहत हैं वहां के 'युद्ध' में बच्चों के अनाथ होते जाने से, भारतीय मेडीकल छात्रों के यूक्रेन में फंस जाने से। अपने परिवेश मैं वह ' सांसों का तार ' में पर्यावरण को सहेजते पीपल की बात नये अर्थ में करतीं हैं। अपने बड़े भाई को खोने के दुःख को पीपल के पेड़ को राखी बांधकर दूर करना चाहतीं हैं क्योंकि ये भी चौबीस घंटे ऑक्सीजन देकर दुनियां के जीवों को सरंक्षण देता है। अच्छा लगता है जब दो बहिनें भाई की मृत्यु के बाद एक दूसरे को राखी बांधने का निर्णय लेतीं हैं।।

इसमें पहली कहानी'एप में‌ फंसी स्त्री' नि: संदेह ध्यान आकृष्ट करती है। बाज़ार में नये नये विषयों पर बने एप पर विनीता व्यंग्य करतीं हैं-'एक दिन ऐसा आयेगा कि खांसने, छींकने, रोने धोने और हंसी मज़ाक के एप बन जांयेंगे।

ये कहानी एप को ओढ़ते बिछाते लोगों के लिये ये हाई अलर्ट है। एप में ग्रुप बनाकर गीत गाने से बेहतर है कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम करके लोगों से जुड़े रहने का जीवंत अहसास जीया जाए। विनीता प्रेरणा देती है कि इंसानों के मेल मिलाप से बढ़कर कुछ नहीं है।

लेखिका का 'सिगिंग एप्स' पर बहुत बड़ा कटाक्ष इसकी नायिका मंजु द्वारा है-"यह बालीवुड वालों और विदेशी साहूकारों के हाथों बिकी हुई दुकानें हैं -- विज्ञापन एजेंसियों के दलाल हैं सब।``

विनीता जी! एक आंशिक सच और भी है कि ये एप्स लाखों लोगों को ख़ुशी भी दे रहे हैं। ख़ासकर मध्य वयस की गृहणियों को जिन्हें अपनी गायन प्रतिभा को दिखाने किसी ग्रुप में होने का ख़ुशनुमा अहसास दे रहे हैं। जो गृहणियां घर पर फ़ालतु होने के अहसास से कुंठित थीं,वे ये ख़ुशी हासिल कर सकतीं हैं कि हमारे इतने ढेर से फ़ॉलोअर्स हैं। ये लाईक्स कितने हास्यास्पद होते हैं ये अलग बात है। हमारे पोतु  उपांशु ने चार वर्ष की उम्र में सिंगिंग एप पर `एक था टाईगर `फ़िल्म का गीत `कच्ची डोरियों डोरियों से ----`बेसुरा गाकर रिकॉर्ड कर दिया था। उसके लिए लाइक्स के ढेर लग गए। हम तो उन पर वारी हो गए थे असलियत जानते हुए भी। हमारे ख़ुश होने का बहुत बड़ा कारण था कि हमारे ये नन्हे ऐसे बढ़िया टेक्नोक्रेट हैं कि  एप का उपयोग जानते हैं। मुझसे भी पीछे  लगकर गाना रिकॉर्ड करवा लिया था। ऐसे में जबकि समाजिक मेल मिलाप अति व्यस्तताओं के कारण लगभग बंद हो गया है या `सोशल गेदरिंग `तक सिमट गया है, ये एप अकेलेपन को दूर करने के लिए वरदान  हैं। ख़ैर--अति तो सभी की बुरी होती है,चहे वह एप जाल क्यों न हो।

ये संग्रह शिक्षित स्त्रियों की दुनिया दिखाता चलता है कि किस तरह पुरुष उनकी ख़ूबसूरती‌,मेकअप को स्टेटस सिंबल की तरह उपयोग करना चाहता है।थउनकी विद्वता पर अपने अहंकार को ऊपर रख उन्हें कमतर होने का अहसास दिलाता चलता है‌।मज़ा तो जब आता है जब उनकी पत्नियां उन्हीं की तरह ' थोपा हुआ संग्राम ' में खेल खेलकर उनकी अक्ल ठीक करतीं हैं।

इस संग्रह की ख़ूबी यही है कि ये आज के डिजिटल, एप, गैज़ेट्स, सोशल साइट्स के युग, सामाजिक  वातावरण को चित्रित करने में सक्षम है। इसके विचार आक्रांत नहीं करते बल्कि दिमाग़ को रिलेक्स करते हुये सोचने पर मजबूर करते हैं।

'टीस' मर्मस्पर्शी कहानी एक गृहणी की है। कुछ और कहानियां गृहणियों की भी पति से प्यार तकरार  की, छछूंदर जैसे जीव से जूझती हुई या छोटे जीवों को पालती हुईं हैं। दोस्ती की सिर्फ नौटंकी करने वाली सहेलियों की दास्ताँ भी है। उधर' 'दो चोर' जैसी मनोरंजक व दिलचस्प कहानी भी हैं।कुल मिलाकर ये संग्रह अपनी सहजता व प्रमाणिकता के कारण साहित्य में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाना में सक्षम है।

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नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail-kneeli@rediffmail.com