महाल कीटा
कहानी / शरोवन
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फिलिपीनो की भाषा में 'महाल कीटा' का वास्तविक अर्थ होता है- 'आई लव यू'. एक भारतीय युवक प्रवेश को जब किसी फिलिपीनी लड़की ने इस शब्द का गलत अर्थ व्यंग में 'हेलो' बता दिया तो उसने नासमझी में एक अन्य फिलीपीनी सुंदर और बे-हद प्यारी बाला को 'महाल कीटा' बोल तो दिया, मगर जब इसका वास्तविक अंजाम उसके सामने आया तो वह इसे देखकर खुद को मॉफ क्यों नहीं कर सका? विदेश में रहते हुए किसी अन्य देश के वासियों को अपनी भाषा का गलत अर्थ बताकर उन्हें गलत बात सिखाना किसकदर घातक हो सकता है; यही इस कहानी की वास्तविक भूमिका है. मज़ाक या व्यंग करना कोई भी अपराध नहीं होता है, बशर्त इसको जब सामाजिक और मानवीय सीमा के अंदर ही किया जाए.
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नील गगन को चूमते हुए, पाइन के वृक्षों की महीन पत्तियों के पीछे से, जब डूबते हुए सूर्य की अंतिम कमज़ोर होती हुई रश्मियों ने भी अपनी आख़िरी सांस तोड़ दी तो इसके साथ ही सारे वातावरण में हल्की धुंध की संध्या को भूरे रंग की चादर ने अपने बाहुपाश में ले लिया. क्रमश: पल-पल अपना दम तोड़ती हुई शाम आनेवाली रात्रि का संकेत देने लगी थी. पास ही में जाती हुई हाइवे 92 की सड़क पर यातायात का भरपूर आवागमन था. अमरीका के मशहूर राज्य जॉर्जिया के इस छोटे से शहर के हाइवे 92 पर कारें और अन्य वाहनों की भागम-भाग थी. ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे हर किसी को सबसे पहले अपने ठिकाने पर पहुंचने की शीघ्रता थी. शाम गहराती जा रही थी और एकवर्थ शहर के इस हाइवे पर विद्दुत बत्तियां अब मुस्कराने लगी थी.
लेकिन इन सारी बातों से बे-खबर, एकवर्थ सीमेट्री के प्राचीर में, एक कब्र के पास बैठे हुए बे-हद उदास और गम्भीर, प्रवेश को इस दम तोड़ चुकी शाम का कोई भी अंदाजा नहीं था. यूँ भी जब मनुष्य अपने ही विचारों और सोचों में गुम होता है तो उसे किसी भी बात का तनिक भी होश नहीं रहता है. प्रवेश की भी यही दशा थी. वह अक्सर ही अपने काम से फुर्सत मिलते ही इस सीमेट्री के प्रांगण में आ जाता था और जब तक संध्या डूबकर रात में नहीं परिणित हो जाती थी, तब तक इसी विशेष कब्र के पास बैठ कर एक प्रायश्चित की अग्नि में तपता रहता था. इस विशेष कब्र से उसका क्या वास्ता था? कौन इस कब्र के अंदर चिरनिद्रा में बेहोश सुख की अनन्त नींद ले रहा है? प्रवेश का इस कब्र में दबे इंसान से क्या सम्बन्ध हो सकता है? इन सारे सवालों के जबाब भी केवल प्रवेश के ही दिल में सुरक्षित थे.
उस कब्र के ऊपर, हमेशा की नींद में सोनेवाले का समस्त विवरण तो लिखा ही हुआ था, परन्तु इसके साथ ही उसके ऊपर लगे पत्थर पर बड़े-बड़े अंग्रेजी के अक्षरों में लिखा हुआ था कि, 'महाल कीटा'. सही मायनों में यही वे दो शब्द थे कि, जिन्हें पढ़कर प्रवेश बार-बार परेशान होता था. पछताता था और जैसे बहुत विवश होकर अपना सिर भी फोढ़ता था. अपने अतीत के बीते हुए दिनों के बारे में सोचते हुए प्रवेश को सहसा ही वह घटना याद हो आई जबकि, वह मेरियेटा शहर के एक अस्पताल में मेडिकल टेक्नोलॉजिस्ट की नौकरी कर रहा था . . .'
'. . .रात्रि की शिफ्ट में काम करने के दौरान जब प्रवेश ने एक छोटी से, लम्बे बालों के साथ किसी चायनीज़ सी दिखने वाली लड़की को उसके पीठ की तरफ से देखा तो अपने साथ काम करनेवाली मीना से उसने ऐसे ही पूछ लिया. वह बोला कि,
'यह नई लड़की कौन है? क्या नई आई है?'
'वह लड़की नहीं बल्कि अम्मा है?' मीना ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा तो प्रवेश अचानक ही चौंक गया. तभी वह छोटी से दिखनेवाली लड़की अचानक ही पलटी तो प्रवेश सचमुच ही उसे देखकर दंग रह गया. वह लड़की अपनी पीठ की तरफ जितनी अधिक युवा दिख रही थी, उससे कहीं अधिक उसकी उम्र उसकी हकीकत का बयाँ कर रही थी. बाद में लैब की सुपरवायजर ने उस लड़की का परिचय सबसे कराया तो प्रवेश को पता चला कि, वह महिला चीन देश की न होकर फिलीपींस की रहनेवाली थी और उसका नाम सूसन था, साथ ही वह अपने भरे-पूरे परिवार के साथ अमरीका में पिछले तीस वर्षों से रह रही थी और अमरीका की नागरिक भी हो चुकी थी.
बाद में दिन बीते. समय का पहिया अपनी ही गति से चलता रहा. प्रवेश अपनी नौकरी और काम करता रहा. वह सोमवार से लेकर शुक्रवार तक, समय से अपने काम पर आता, अपना काम करता और ड्यूटी समाप्त होने पर अपने निवास स्थान पर चला जाता. तब एक दिन उसकी ड्यूटी सूसन के साथ रसायन विभाग में लगी. अभी तक दोनों ही एक-दुसरे के लिए अनजान तो नहीं थे, फिर भी काफी कुछ हद तक घुलमिल भी नहीं पाए थे. तब अपने काम के दौरान ही दोनों ने ही आपस में एक-दूसरे से अनौपचारिक जानकारियाँ ली. एक-दुसरे के देश के रहन-सहन, भोजन, संस्कृति तथा भाषा-ज्ञान के बारे में बातें कीं. इसी बीच प्रवेश ने सूसन को यह भी बताया कि वह एक हिन्दी लेखक है और उपन्यास व् कहानियाँ आदि लिखा करता है. यह सुनकर सूसन बहुत खुश भी हुई.
बातों के दौरान ही प्रवेश ने सूसन से पूछा कि,
'फिलीपींस देश की भाषा में गुड मोर्निंग कैसे कहते हैं?'
'मागनडांग उमागा (Magandang umaga).' सूसन बोली.
'बॉय- बॉय?' प्रवेश का दूसरा प्रश्न था.
'पालम (Paalam)?'
सूसन ने बताया, लेकिन उसने प्रवेश से तुरंत ही पूछा भी. वह बोली,
'यह सब क्यों पूछ रहे हो तुम?'
'मैंने बताया था कि, मैं एक 'आथर' भी हूँ. हो सकता है कि, कभी भी मुझे इन शब्दों की जरूरत पड़ जाए.'
'?'- तब सूसन चुप हो गई तो थोड़े ही पलों के बाद प्रवेश उससे बोला कि,
एक अंतिम बात?'
वह क्या?'
तुम्हारी भाषा में किसी को 'हेलो' कैसे बोलते हैं?'
'?'-
'बताया न, मैं एक लेखक हूँ. हो सकता है कि, कभी जरूरत ही पड़ जाए.'
'महाल कीटा.' कहते हुए सूसन बड़ी देर तक हंसती रही, तो प्रवेश ने उससे एक संशय से देखते हुए कहा कि,
'इसमें हंसने की क्या बात है? लगता है कि, तुमने इस बार सही नहीं बताया है?'
'नो, नो, नो. ऐसी कोई बात नहीं है. मैंने तुम्हें बिलकुल ही सच बोला है. चाहो तो मैं तुम्हें कल अपनी डिक्शनरी से भी कन्फर्म करा दूंगी.' सूसन गम्भीरता से बोली तो प्रवेश को उस पर विशवास करना ही पड़ा.
इसके बाद कुछ और दिन इसी तरह से गुज़र गये. प्रवेश की लैब में काम करने के लिए नये लोग आते गये और पुराने अपने ही स्थानों पर टिके रहे, मगर नये लोगों में अधिकतर कुछ महीने काम करने के बाद, शायद काम और माहोल पसंद ना आने के कारण अपनी नौकरी छोडकर चले भी गये. एक दिन प्रवेश को पता चला कि, सूसन भी अपना स्थान रिक्त करके जा चुकी है.
ऐसी बातों से किसी को किसी के आने-जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता था. अमरीकी वातावरण में ऐसा होना बहुत ही साधारण सी बात थी. पढ़े-लिखे, डिग्री-शुदा और तकनीकी प्रमाणपत्रों के साथ नौकरियां बहुत ही आसानी से मिल जाया करती हैं. विशेषकर मेडिकल साइंस में, अस्पतालों और डाक्टरों की क्लीनिक में ऐसी नौकरियों की भरमार रहती है. साथ ही कोई भी संस्थान किसी को भी नौकरी देते समय किसी भी प्रकार का नौकरी देने का 'जॉब लैटर' नहीं दिया करता है. कोई भी अनुबंध भी नहीं होता है. किसी की भी नौकरी स्थायी नहीं होती है. नौकरी देनेवाला आपको कभी भी निकाल सकता है तो नौकरी करनेवाला भी केवल दो सप्ताह का नोटिस देकर अपनी नौकरी छोड़कर जा भी सकता है. इस बारे में कोई भी सिफारिश, दया और सहानुभूति नहीं चलती है. एक प्रकार से कोई भी किसी पर एहसान भी नहीं करता है. आपको नौकरी मिलती है तो आप उसकी एवज में काम करते हैं. काम करने का आपको भुगतान मिलता है. अर्थात आप काम करेंगे तो आपको उसकी मेहनत का पैसा मिलेगा और यदि आप काम नहीं करेंगे तो आपको कोई पैसा नहीं दिया जाएगा. छुट्टियां चाहे राष्ट्रीय हों अथवा आपने ली हों; किसी भी छुट्टी का कोई पैसा नहीं दिया जाता है. कहने का आशय है कि, काम नहीं तो दाम भी नहीं. इसके अतिरिक्त, काम के समय कुर्सी आदि की कोई सहूलियत भी नहीं दी जाती है. अधिकाँश कार्य खड़े होकर ही पूरे आठ घंटे तक किये जाते हैं. बीच में आपको आधे घंटे का लंच दिया जाता है और इस लंच के समय का भी कोई पैसा नहीं दिया जाता है. भले ही आप सुपरवायजर, मैनेजर और किसी भी बड़े पद, जैसे बैंक के अधिकारी ही क्यों न हों; आपको अपना स्थान, मेज आदि स्वयं ही साफ़ करना होगा. यहाँ चपरासी नाम का कोई भी पद नहीं होता है. आपको चाय या कॉफ़ी भी अगर पीनी है तो खुद जाइए, खुद ही बनाइए और पियें. काम के समय कोई कॉफ़ी, चाय या भोजन आदि भी नहीं खा-पी सकते हैं.
प्रवेश के दिन इसी तरह से व्यतीत हो रहे थे. अमरीका जैसे सुव्यवस्तित और धनाड्य जैसे देश में सदा के लिए रहने का कार्यक्रम बनाकर वह चाहे बहुत खुश नहीं था तो दुखी भी नहीं था. एक बार को वह जब भी अपने देश और वतन से दूर रहने की बात सोचता था तो कहीं उसके दिल में एक हूक सी तो उठती थी, मगर जब वहां की परेशानियों और कठिनाइयों के बारे में सोचता था तो फिर यही सोचकर तसल्ली कर लेता था कि, 'फिर भी यहाँ बहुत अच्छा है.' यह और बात है कि, यहाँ विदेश में कड़ी मेहनत है, समय की बहुत कमी है और शरीर की सारी ऊर्जा समाप्त होने के बाद ही एक डॉलर बड़ी कठिनाई से बचाया जा पाता है.
जीवन के इन्हीं कठिन परिश्रम और मशीन जैसे हालातों के मध्य, एक दिन उसकी लैब में, एक बड़ी प्यारी, छोटी सी, फिलीपीनी लड़की सूसन के स्थान पर रखी गई. उसका नाम भी जैसी उसकी सुंदरता थी, 'डौल' था. किसी गुड़िया के समान, सफेद हिम-बाला सी, बहुत ही साफ़ रंग की, बे-हद गोरी, छोटे से सपाट चेहरे पर खिचीं-खिचीं आँखों की दो पतली लकीरें; ऐसे चेहरों को ईश्वर ने भी एक विशेष सुंदरता से संवारा था. वह जब भी हंसती थी तो लगता था कि, जैसे कहीं सफेद मोतियों की माला टूटकर बिखर गई हो. उसे देखकर न जाने प्रवेश को एक आंतरिक खुशी भी हुई. शायद इसका कारण, सूसन के चले जाने की कमी ही थी. भले ही वह सूसन के बहुत करीब नहीं आ सका था, फिर भी उसके साथ किसी सीमा तक बहुत कुछ हिल-मिल गया था. विशेष तौर पर, उससे, उसके देश और संस्कृति के बारे में बातें करने के कारण. उसे लगा था कि, डौल ने आकर उसकी यह कमी भी दूर कर दी है.
रात्रि की शिफ्ट का काम आरम्भ करने से पहले, सुपरवायजर ने उसका परिचय कराया और उसके बाद सब अपने-अपने विभाग में काम करने चले गये. फिर कुछेक दिनों के बाद जब सब कुछ सामान्य सा हो गया तो प्रवेश भी डौल के साथ-साथ सामान्य हो गया. एक-दूसरे को ना जानने वाली बात, संकोच-निसंकोच और अजनबियत जैसी बातें दो-एक दिनों में ही हवा हो गईं. इसका एक कारण यह भी था कि, डौल भी एक बहुत ही हंसमुख लड़की थी. उसका स्वभाव भी ऐसा था कि, एक-दो सप्ताह के अंतर में ही उसने हर किसी के दिल में अपनी एक विशेष जगह बना ली थी.
फिर एक दिन जब, क्रमानुसार डौल का भी समय आया तो उसे भी प्रवेश के साथ एक ही विभाग में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ. और जब वह जैसे ही समय पर अपने स्थान पर काम करने आई तो उसे देखते ही, सहसा प्रवेश के मुख से निकल गया,
'महाल कीटा डौल.'
'??'- डौल को काटो तो जैसे वहां खून ही नहीं. वह बड़े ही आश्चर्य से, अपना मुंह फाड़कर प्रवेश को ताकने लगी. फिर कुछेक क्षणों के बाद वह जैसे बहुत ही गम्भीरता से पूछ बैठी. बोली,
'क्या कहा आपने?'
'यही कि, 'महाल कीटा'. प्रवेश बोला.
'मतलब?' डौल ने फिर से सवाल किया तो प्रवेश बोला,
'मतलब कि, हेलो.'
'ओह !' कहकर डौल अपनी मशीन की तरफ बढ़ गई.
प्रवेश ने इसी मध्य महसूस किया कि, डौल काफी कुछ गम्भीर भी हो चुकी थी. वह प्रवेश से अधिक बात भी नहीं कर रही थी. उधर, प्रवेश भी इसी सशोपंज में था कि, ऐसा उसने क्या कह दिया है कि, जिसके कारण डौल अत्यधिक खामोश और चुप हो चुकी है. बाद में दोनों चुपचाप अपना-अपना काम करते रहे. सुबह के सात बजे. शिफ्ट समाप्त हुई और जाते समय प्रवेश ने डौल की ही भाषा में उससे बॉय बोला कि,
'पालम.'
जबाब में डौल ने भी 'पालम' कहा और अपनी मुस्कान बिखेरते हुए चली गई. उसको मुस्कराकर जाते देख प्रवेश को न जाने क्यों बहुत तसल्ली भी हुई. शायद यही सोचकर कि, सारी रात काम करते हुए वह न जाने किस बात पर खिन्न रही थी, उसका सारा मैल सुबह होते-होते धुल चुका था और अब डौल के मन में उसके प्रति किसी भी प्रकार की शिकायत बाकी नहीं बची है.
पता नहीं प्रवेश का इस प्रकार से ऐसा सोचना कहाँ तक सच था? दूसरे दिन की शिफ्ट में डौल को फिर से प्रवेश के साथ ही काम करना था. फिर जब वह अपने काम पर आई तो प्रवेश ने उसे देखते ही फिर से कहा. वह बोला कि,
'महाल कीटा.'
'?'- लेकिन इस बार डौल प्रवेश की तरफ से कोई आश्चर्य नहीं कर सकी और ना ही उसने कोई भी अपनी तरफ से नाराजगी ही दिखाई. उसने एक क्षण के लिए प्रवेश को गौर से निहारा और फिर मुस्कराती हुई अपने कम्प्यूटर के सामने जाकर बैठ गई. बाद में भी वह छुपी-छुपी नज़रों से प्रवेश को देखती थी और मन ही मन मुस्कराकर रह जाती थी. इसी मध्य जब प्रवेश ने उसको पकड़ लिया तो वह उससे बोला कि,
'ऐसे क्या देखती हो मेरी तरफ बार-बार?'
'देखती नहीं, बल्कि सोचती हूँ.'
'क्या?'
'कितने लम्बे हो आप पाइन के पेड़ की तरह?'
'हां. मेरे परिवार में सभी लम्बे हैं.' प्रवेश ने कहा तो वह आगे बोली,
'कितनी हाईट है आपकी?'
'फाइव फीट और नौ इंच.'
'ओह ! लार्ड.?'
'और आपकी लम्बाई?' प्रवेश ने पूछा.
'?'- मैं फिलीपीनो की हूँ. हमारे देश में सामान्य लम्बाई साढ़े पांच फीट से अधिक किसी की भी नहीं होती है.' डौल बोली.
'लेकिन, मुझे तो छोटी हाईट की लडकियाँ बहुत अच्छी लगती हैं.' प्रवेश बोला तो डौल ने तुरंत ही कहा,
'मैं जानती हूँ.'
'अच्छा कैसे?'
'लम्बे लड़कों को तो सदैव ही छोटी लड़कियां अच्छी लगती ही हैं.'
'और छोटी लड़कियों को. . .?'
'लम्बे लड़के. यह भी कोई पूछनेवाली बात है?'
इस बीच किसी नर्स का फोन आ गया तो डौल उसमें व्यस्त हो गई और प्रवेश भी अपने काम में लग गया. फिर लगभग बीस मिनटों तक दोनों ही व्यस्त बने रहे. थोड़ी देर के बाद लंच ब्रेक हुआ तो प्रवेश अपने लंच में चला गया और डौल सारा विभाग सम्भाले रही. आधे घंटे के पश्चात प्रवेश वापस हुआ तो डौल ने यूँ ही पूछ लिया. वह बोली,
'कैसा रहा लंच?'
'नॉट बैड.'
'क्या खाकर आये हो?'
'अपना वही भारतीय फ़ूड- सब्जी, चावल, रोटी और अचार.'
'मुझे भी भारतीय भोजन बहुत पसंद है.'
'अच्छा ! कौन सा भारतीय भोजन?'
'चिकेन कढ़ी, बासमती राईस, एग कढ़ी और राईस की खीर.'
'ठीक है. एक दिन मैं लेकर आउंगा, तब खाना.'
'आपको खाना बनाना आता है?'
हां. सदियों से बना रहा हूँ.'
'क्यों?'
'शायद यही अभी मेरी किस्मत है?'
'किस्मत? 'कसल का बा' (Kasal ka ba) क्या तुम विवाहित हो)?' डौल ने अपनी फिलीपींस की भाषा में प्रवेश से कहा तो वह चौंक कर बोला,
'मैं समझा नहीं?'
'नगसासालिटा का बा फिलीपीनो (Nagsasalita ka ba Philipino) आपको फिलीपीनो आती है?'
'?'- प्रवेश डौल का मुख देखने लगा तो उसने अंग्रेजी में कहा कि,
'फिलिपीनो आती है?'
'नहीं.'
'तो किसने आपको सिखाया था, 'महाल कीटा'? और इसका अर्थ मालुम है?'
'तब प्रवेश ने सूसन का नाम लिया और कहा कि, 'महाल कीटा' का अर्थ, 'हेलो' होता है.'
'?'- प्रवेश की इस बात पर डौल ज़ोर से हंसी तो प्रवेश ने पूछा कि,
'क्यों हंसती है आप?'
'बस ऐसे ही.'
तभी डौल अपने स्थान से उठी और बोली,
'अब मैं अपने लंच पर जाती हूँ.' यह कहकर वह चली गई तो प्रवेश अपने काम में लग गया.
अमरीका एक बे-हद व्यस्त देश है. यहाँ लोग मशीन से भी अधिक सतर्क होकर काम किया करते हैं. जन सामान्य के लिए कब सूरज निकला, दिन कब समाप्त हो गया और सप्ताहांत भी कितना शीघ्र ही जीवन की तमाम आवश्यकताओं को पूरा करने में खत्म हो जाता है; किसी को पता ही नहीं चलता है. नया वर्ष पहली जनवरी से आरम्भ होता है और कितना शीघ्र ही दिसम्बर का अंतिम दिन आ जाता है? पलक झपकते ही मौसम बदल जाया करते हैं. डौल और प्रवेश को एक साथ काम करते हुए सात महीने यूँ ही बीत गये. इस बीच डौल मन ही मन प्रवेश के कितना अधिक करीब आ चुकी थी, वह महसूस तो करता था पर उसने कभी भी अपनी तरफ से ज़ाहिर तक नहीं किया. कारण था कि, प्रवेश ने इस तरह से कभी भी डौल के लिए सोचा तक नहीं था. वह तो उसको केवल अपने साथ काम करनेवाली एक मित्र और सहकर्मी ही समझता था. मगर डौल के मन में तो कोई दूसरे सपने ही सजने लगे थे. अब तक उसको यह भी मालुम हो चुका था कि, प्रवेश भी अभी तक अविवाहित ही है. यही कारण था कि, डौल के लिए पहले ही से रास्ता साफ़ था और प्रवेश की भी ना तो कोई अन्य लड़की मित्र थी और ना ही कोई गर्ल-फ्रेंड- जैसा कि, अमरीकी विदेशी जमीं पर हर किसी का कोई-न-कोई बॉय-फ्रेंड और गर्ल-फ्रेंड होना जहां बहुत सामान्य बात होती है, वहीं एक प्रकार से काफी आवश्यक भी माना जाता है. सो डौल के लिए यही कारण था कि, वह प्रवेश को अक्सर ही अवसर देती- एक-साथ बैठकर बातें करने का, साथ-साथ खाने और कॉफ़ी की चुस्कियां लेने का. अक्सर ही वह अपना फिलीपींस का मशहूर भोजन बनाकर लाती और फिर कोशिश करती कि दोनों एक-साथ ही बैठ कर खाएं. इसके साथ ही प्रवेश भी कभी-कभी, डौल के आग्रह पर अपना भारतीय भोजन बनाकर लाता तो डौल उसे बड़े ही चाव से बैठ कर खाती थी.
सो डौल की तरफ से उसके मन में एक-तरफा प्यार के हर दिन, हरेक पल प्यार के बढ़ते हुए इन तूफानी हवाओं के मध्य, साथ में काम करते हुए, एक दिन प्रवेश ने डौल को सूचित किया कि, वह अगले महीने अपने देश भारत जा रहा है. यह सुनकर डौल जैसे अचानक ही चहक गई. वह अपने स्थान से उठते हुए एक दम से पूछ बैठी,
'अच्छा ! कब?'
' नेक्स्ट मंथ. अभी मैंने टिकट बुक नहीं कराई है.'
'मेरा भी बहुत मन है, इंडिया विजिट करने का.' डौल बोली तो प्रवेश ने पूछा कि,
'क्यों, भारत विजिट करना चाहती हो?'
'मैंने पढ़ा है कि, इंडिया एक हिस्टोरिकल प्लेस है. साथ ही वह एक प्राकृतिक सुंदरता का बहुत ही अच्छा देश है.'
'मेरे साथ चलना चाहोगी? वहां मेरा बहुत बड़ा घर है, खेत हैं, मेरे साथ चलोगी तो तुमको वहां पर रहने-खाने, ठहरने और आने-जाने का कोई भी खर्च नहीं आयेगा. वहां पर मेरे लिए अपने घर में ट्रान्सपोरटेशन की भी सुविधा है. अपनी गाडी है.' '?'- खामोशी.
प्रवेश ने कहा तो डौल बड़ी देर तक के लिए गम्भीर हो गई. साथ ही चुप भी. तब कुछेक पलों के बाद प्रवेश ने बात आगे बढ़ाई. वह बोला कि,
'तुमने कुछ बताया नहीं?'
'तुम्हारे परिवार के मम्मी-डैडी तथा अन्य भाई-बहन और रिश्तेदार अगर मेरे बारे में पूछेंगे तो तो उन्हें तुम क्या बताओगे?' डौल ने कहा तो प्रवेश तुरंत बोला कि,
'अरे, इसमें क्या सोचने की बात है? कह दूंगा कि, तुम मेरी बहुत अच्छी दोस्त हो और मेरे साथ ही एक ही जगह पर काम करती हो.'
'मैं, इस तरह से तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगी.'
'क्यों?'
'?'- तब डौल ने अपने मुख से कहा तो कुछ नही, मगर वह प्रवेश को बहुत ही गम्भीर होकर, एक प्रश्नसूचक दृष्टि से, हसरतभरी निगाहों से देखकर, नीचे फर्श पर देखने लगी.
'अब क्या सोचने लगी हो? अपने घर पर मैं तुम्हारा परिचय एक मित्र के तौर पर नहीं कराऊंगा तो फिर किस तरह कराऊंगा?' यह कहकर प्रवेश भी सोच में पड़ गया.
'मुझे नहीं मालुम. तुम अकेले ही चले जाओ. फिर कभी देखा जाएगा.'
यह कहती हुई डौल, किसी अन्य काम के बहाने उसके सामने से हटकर लैब में अन्य स्थान पर चली गई तो प्रवेश मूक बना उसको देखता ही रह गया.
डौल का सीधा इशारा था कि, प्रवेश पहले उससे शादी करे या फिर मंगनी करे; तभी वह उसके देश और परिवार वालों के यहाँ जाना अपना सम्मान समझेगी. केवल एक लड़की मित्र बनकर अगर वह उसके साथ जायेगी तो पता नहीं उसके देश में लोग ना मालुम किन नज़रों से देखकर उसका क्या और कैसा मूल्य लगायें? अब पता नहीं कि, प्रवेश उसकी मन में छिपी इन सारी भावनाओं को समझ भी सका था अथवा नहीं? वैसे, इस बात की सम्भावना अधिक थी कि, प्रवेश अभी तक यह नहीं समझ सका था कि, डौल उसको मन ही मन बे-हद चाहने भी लगी है.
एक दिन आया कि, प्रवेश एक माह की छुट्टियां लेकर अपने भारत देश, अपने घर-परिवार वालों से मिलने-जुलने के लिए चला गया. डौल एक बार को जैसे अकेली रह गई. हांलाकि, प्रवेश का इस प्रकार से अपने देश चले जाने पर डौल को अच्छा तो नहीं लगा था, पर वह कर भी क्या सकती थी? सब कुछ उसके हाथ में तो नहीं था. वह भी प्रवेश के साथ भारत-भ्रमण के लिए जाना चाहती, लेकिन एक महिला मित्र के नाते नहीं. जिस तरह से वह उसके साथ जाना चाहती थी, उस तरीके को या तो प्रवेश समझ नहीं सका था अथवा अपनाना नहीं चाहता था. फिर यह कोई जरूरी भी नहीं था कि, प्रवेश अपने देश की लड़की के स्थान पर किसी दूसरे देश की लड़की को पसंद करे और विवाह करे. किसकी पसंद क्या है, इस बात को भी कोई नहीं जानता है. वह मन मसोसकर, अपने हाथ मलते हुए, धीरता के साथ प्रवेश के वापस आने की राह देखने लगी.
फिर बाद में, पूरे एक माह की बगैर वेतन की ली हुई छुट्टियों के पश्चात प्रवेश वापस आया तो उसको अपने अपार्टमेन्ट के मेल बॉक्स में एक नोट्स पोस्ट-ऑफिस की तरह से इस बात की सूचना के साथ मिला कि, उसकी हर दिन की आनेवाली डाक अपार्टमेन्ट के मेल बॉक्स में नहीं रखी जा सकती है, अत: अपनी सारी डाक स्थानीय पोस्ट-ऑफिस से जाकर प्राप्त करें. प्रवेश पोस्ट-ऑफिस गया और अपनी समस्त डाक लेकर आया. उसी डाक में अमरीका की सबसे बड़ी क्लीनिकल लैब से उसके लिए साक्षात्कार के लिए पत्र आया था. प्रवेश को ध्यान आया तो उसे पता चला कि, कभी उसने इस स्थान पर अपना प्रार्थना पत्र भी भेजा था. मगर जब उसने साक्षात्कार की तारीख देखी तो वह तारीख एक सप्ताह पूर्व ही निकल चुकी थी. फिर भी उसने वहां की मैनेजर को फोन किया और अपनी समस्त परिस्थिति से परिचित कराते हुए क्षमा भी माँगी तो मैनेजर ने उसको दूसरी तारीख दे दी. और जब उसका साक्षात्कार हुआ तो उसे वह नौकरी भी मिल गई. तब उसने अपनी पिछले स्थान पर दो सप्ताह की पूर्व सूचना देने के बाद इस नई नौकरी पर जाने की बात की तो उसकी सुपरवायजर ने कहा कि, 'तुम पहले ही से एक महीने की 'लीव ऑफ़ एब्सेंस' पर हो. अपनी यह नौकरी ज्वाइन करो या नहीं, इस लैब पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. अब चाहे दो सप्ताह का नोटिस देकर जाओ या फिर अभी.' तब प्रवेश अपनी पहली नौकरी छोडकर दूसरी नई नौकरी पर चला गया. चूँकि, वह रात्रि की पारी में काम करता था और दिन में अपनी नौकरी छोड़ने के धेय्य से अपनी सुपरवाइजर/मैनेजर से मिलने आया तो रात्रि में काम करनेवाले उसके साथियों, मित्रों और डौल तक को कुछ भी पता नहीं चल सका. और जब पता चला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
अपनी नई नौकरी पर आठ महीने काम करने के बाद एक दिन अपने किसी मित्र को अस्पताल में जब प्रवेश देखने आया तो उसने सोचा कि, चलो अपनी वह लैब भी जाकर देख ले, जहां पर कभी उसने तीन सालों तक लगातार काम किया था. फिर जब वह वहां गया तो काफी-कुछ नये चेहरे उसे दिखाई दिए. साथ ही अपने कुछेक पुराने साथी भी नज़र आये. इन्हीं पुराने साथियों से जब उसने डौल के बारे में पूछा तो उनमें से एक ने उसे बताया कि, 'उस लड़की की दो अन्य बहनें प्रोसेसिंग विभाग में काम कर रही हैं; वे उसके बारे में बेहतर बता सकेंगी.'
तब प्रवेश ने डौल की बहनों से उसके बारे में बात की तो उनमें से उसकी एक बहन उससे सख्त नाराजगी के साथ, खिन्न होकर बोली,
'आप प्रवेश हो'
'हां, मैं ही प्रवेश हूँ.'
'तो अब यहाँ क्या लेने आये हो?'
'उसके बारे में जानना चाहता हूँ कि, वह कहाँ है? कैसी है ?'
'क्यों?'
'?'- सुनकर प्रवेश सहसा ही चुप हो गया.
'तुम्हारा प्यार कहा है? (anong nangyayari sa pagmamahal mo?) अनंग ननंगयायारी सा पग्मामहाल मो.'
'?'- डौल की बहन ने जब अपनी फिलीपीनी भाषा में प्रवेश से कहा तो वह बहुत आश्चर्य के साथ बोला कि,
'मैं कुछ समझा नही?'
'दिद यूं एवर से हर 'महाल कीटा.'
'हां.'
'डू यू नो, व्हाट इज़ दा मीनिंग ऑफ़ इट्स?'
'?'- प्रवेश पुन: डौल की बहन का मुख ताकने लगा.
'अनो अनग गुस्टो मो मैनलोलोको (ano ang gusto mo manloloko) 'तुम क्या किसी से प्यार करोगे? धोखेबाज़ ?'
'?'- डौल की बहन ने जब फिर से अपनी भाषा में उस पर दोष लगाया तो प्रवेश फिर कुछ नहीं कह सका. तब कुछेक क्षणों के पश्चात उसकी बहन ने आगे कहा. वह बोली कि,
'वह अब यहाँ नहीं है. हेवन में है वह अब. जा सकोगे उससे मिलने वहां पर. बहुत इंतज़ार किया था उसने तुम्हारा. बहुत प्यार करने लगी थी तुमसे वह. हर वक्त रोती थी, वह तुमको याद कर-करके. तुमने उसे बहुत सताया है. बहुत दुःख दिया है, तुमने उसे.(एनो अनग ननंगयारी सा आकिंग इनोसेनतेंग कापातिड / Ano ang nangyari sa aking inosenteng kapatid) क्या बिगाड़ा था, मेरी भोली बहन ने तुम्हारा ?' जब उसे पता चला था कि, तुमने अपने देश में जाकर अपनी सगाई कर ली है तो वह बुरी तरह से टूट गई थी और फिर इसी सदमें ने उसकी जान भी ले ली. वह बीमार पड़ी तो फिर कभी भी स्वस्थ नहीं हो सकी थी.' कहते-कहते, डौल की बहन रोने लगी तो यह सब सुनकर प्रवेश जैसे खड़े से गिर पड़ा. अचानक ही उसकी आँखों के सामने अन्धेरा सा घिरने लगा. वह तब सोचने पर विवश हो गया. क्या से क्या हो चुका था? उसकी एक छोटी सी नादानी, किसी निर्दोष के जीवन की कातिल बन चुकी थी. सूसन ने क्यों और क्या सोचकर अपने देश की भाषा के इस महत्वपूर्ण शब्द (महाल कीटा - मैं तुमसे प्यार करता हूँ/करती हूँ.) का अर्थ गलत बताया था? और अगर गलत बताया भी था तो खुद उसने क्यों नहीं गूगल आदि में जाकर इसकी पुष्टि की? क्यों लोग इस प्रकार का व्यंग और मज़ाक विदेश में रहते हुए करते हैं? कोई जब किसी दुसरे देश की भाषा सीखना या जानना चाहता है तो क्यों लोग गलत तरीके से या फिर गलत शब्द सिखाते हैं? सोचते-सोचते प्रवेश, उपरोक्त सवालों में से किसी एक का भी समुचित उत्तर नहीं ढूंढ सका. अगर जान सका तो केवल इतना ही कि, डौल उससे मन ही मन, अपनी ज़िन्दगी से भी बढ़ कर प्यार करती रही और उसने महसूस तक नहीं किया? इसकदर कि, इसी सदमें में वह एक दिन इस झूठे संसार की इस प्यार की झूठी नगरी को सदा-सदा के लिए छोड़कर चल बसी थी. सोचते-सोचते, प्रवेश के मन-मस्तिष्क को अचानक ही एक झटका लगा. वह तुरंत ही बीते दिनों की स्मृतियों के तमाम सिवानों से हटकर वर्तमान में आ गया. अपनी आँखों से निकले हुए आंसुओं की बूंदों को पोंछा और फिर एक बार अपने आस-पास, फिर चारों तरफ निहारा- सूने, शांत और बहुत चुप इस अमरीकी कब्रिस्थान के प्राचीर में बनी हुई हरेक कब्रों को देखते ही प्रतीत होता था कि जैसे दिन भर के सोये हुए जन-सामान्य के लोग अब उठकर अपनी-अपनी कब्रों के ऊपर बैठे हुए, जैसे उस दुनिया को मूक बने देख रहे हों कि, जिसमें कभी वे भी एक दिन जीवित मनुष्य बनकर रहे थे. कब्रिस्थान के प्राचीर के सामने बने हुए हाईवे 92 पर अब यातायात काफी हद तक बहुत कम हो चुका था. इतना कम कि, कारों और अन्य वाहनों की गिनती बहुत आसानी से की जा सकती थी और किसी को भी अब सड़क पार करने में कोई कठिनाई नहीं आ सकती थी. प्रवेश ने एक बार फिर से डौल की कब्र को देखा- उसके द्वारा जलाई हुई मोमबत्तियां भी अब सिसक-सिसक कर जल रही थीं. उसने उन मोमबत्तियों को बुझाया, कब्र पर चिपके हुए मोम को साफ़ किया और फिर सबको उठाकर अपने साथ लाये हुए पौलीथीन के बैग में रखा और फिर चुपचाप चलता हुआ अपने फोर्ड के ट्रक 150 में आकर बैठ गया. यही सोच कर उसने ट्रक को चालू किया कि, कल या फिर किसी अन्य दिन उसको यहाँ फिर से आना होगा, क्योंकि एक छोटे से देश की एक प्यारी और छोटी सी हसीन बाला उसके सामने वह सिलसिला आरम्भ करके जा चुकी है जो शायद प्रवेश के सारे जीवन भर आसानी से कभी भी समाप्त नहीं हो सकेगा. इसका कारण है कि, आँखों से टपकी हुई प्यार की बूँदें कभी भी सैलाब तो नहीं बना करती हैं, मगर उसकी एक बूँद में दर्द का जो भारीपन होता है, वह सागर के सारे पानी में कभी भी नहीं हो सकता है. भौतिक दृष्टि से क्या अंतर होता है- आँख से निकले हुए पानी और सागर के पानी में? शायद कुछ भी तो नहीं? दोनों ही का स्वभाव खारा होता है. सागर की विशाल लहरों को बनते-बिगड़ते और उछलते हुए देख कर मनुष्य कभी भी इतना नहीं टूटता है जितना कि, किसी की आँख से निकले हुए आंसू की एक बूँद से वह तिलमिला जाता है.
समाप्त.