From you only in Hindi Short Stories by p batrae books and stories PDF | तुमसे ही

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तुमसे ही

उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला ... अपनी कैप उतार कर टेबल पर रखी...और बिस्तर पर लेट गई.... उसने देखा तो सुबह के पांच बजे थे....थकान उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी... लगातार तीन दिन चली प्रेक्टिस ने उसे थका दिया था...नींद भी अच्छे से पूरी नहीं हो पाई थी उसकी... इसके बावजूद चेहरे पर शिकायत नहीं थी...शायद अपना काम बहुत खास था उसके लिए....इस तरह लेटे हुए वो नींद की आगोश में चली गई.... यूनिफॉर्म तक न उतरने पाई थी उसे.. सुबह के साढ़े ग्यारह  ही बजे होंगे की वो हड़बड़ा कर उठी.... इमरजेंसी अलार्म बजा था...और इसके साथ ही उसका दिल फिर उसी डर से भर गया...

वो फटाफट से उठी और बाथरुम की और बढ़ गई... उसने फटाफट से हाथ मुंह धोया ....और अपनी यूनिट की तरफ तेजी से भागी.....

वहीं हुआ जिसका उसे डर था ....

" आज दस बजे सियाचिन ग्लेशियर में आर्मी बेस पर एवलांच अटैक हुआ है.... हमारे दस जवान लापता हैं...फिल्हाल पांच लोगों की एक टीम यहां से उड़ान भरेगी और बाकी यूनिट स्टेंड बाय पर रहेगी....इन द केस ऑफ ऐनी मेडिकल इमरजेंसी...बीटा टीम अभी ग्लेशियर की तरफ उड़ान भरेगी...बाकी सब अलर्ट रहेंगे...और बीटा टीम...आप अगले बीस मिनट पर साइट पर पहुंचेंगे...कार्डीनेटस आप सब को वहीं मिल जायेंगे...इज दैट क्लीयर टू यू "
उसके यूनिट के सीओ ने कहा 

" यैस सर '
एक तेज और बुलंद आवाज आई 

" नाओ डिस्मिस "
सीओ ने कहा तो टीम बीटा वहां से तेजी से निकल गई क्योंकि उन्हें बीस मिनट में ग्लेशियर के लिए निकलना था...और वो भी उसी टीम में थी

वहां से जाने के तकरीबन पंद्रहवे मिनट में वो साइट पर थी... जहां वो अपने सीनियर ऑफिसर से उस हादसे के बारे में बात कर रही थी.... उसकी चेहरे पर पूरी गंभीरता थी इस वक्त....

उनसे पूरे मामले की जानकारी लेने और बात करने के बाद वो अपने हैलीकॉप्टर की और बढ़ गई.... जहां पहले से उसका एक जूनियर बैठा हुआ था.... दोनों ने औपचारिक सैल्यूट किया और वो जाकर अंदर बैठ गई.... उसने अपना आक्सीजन मास्क पहना और दरवाजा बंद करके टेक ऑफ कर दिया....

स्क्वाड्रन लीडर समर्पिता सिंह राणा ...लेह एयरफोर्स स्टेशन की 114 हैलीकॉप्टर यूनिट में रिक्रूट थी...जिसका एक और नाम सियाचिन पायनियर्स भी था...नाम से जाहिर इस यूनिट का मेन काम ग्लेशियर पर मौजूद आर्मी के रोजमर्रा के कामों में मदत और इमरजेंसी इवैक्यूएशन का था...ये यूनिट भारतीय वायुसेना की लगातार और लंबे आपरेशन करने वाली यूनिट भी थी...आसान नहीं था प्रतिकूल मौसम में ग्लेशियर पर उड़ान भरना... जहां ना हवाएं आपका साथ देती है ना मौसम...पायलट की काबिलियत बहुत अहम भूमिका निभाती है ऐसे हालत में...और वो अपने इस काम में आज तक फेल नहीं हुई थी... अपने काम से बहुत लगाव‌ था उसे... इसलिए कैसे भी हालात हो... उसने अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया ही था ....आज एक मुश्किल ऑपरेशन उसके सामने आ खड़ा हुआ था...इस अवलांच के रूप में ...

आज सुबह ही ग्लेशियर की 20500 फीट की ऊंचाई पर एवलांच ने आर्मी की पोस्ट को हिट किया और ठीक उसी वक्त आर्मी की दस लोगों की टुकड़ी गश्त पर थी जो अब लापता थी.... उसके अलावा वहां मैडिकल इमरजैंसी के कुछ केसेज थे...और वहां का तापमान फिलहाल माइनस पचास था.... इतनी ऊंचाई पर तो सांस लेना ही मुश्किल हो जाता है ...ऊपर से इतने कम तापमान पर रेस्क्यू ऑपरेशन आसान तो नहीं होने वाला था .... वो सब जटिलताएं समझती थी... इसलिए तो आज उसकी काबिलियत से कहीं ज्यादा उसकी परीक्षा भावनात्मक मजबूती की थी....

बेस पोस्ट पर हैलीकॉप्टर उतारने के बाद वो नीचे उतरी... हड्डियां गला देने वाला ठंडी हवा को झोंका उसे छूकर गुजरा तो उसकी आंखें कुछ पल के लिए बंद हो गई.... कुछ पल बाद उसने आंखे‌ खोली तो आंखों में ठंडापन उतर आया था... उसने खुद को संभाला और वहां खड़े जवानों की और बढ़ गई 

"'जय हिन्द मैडम "
उन जवानों ने सैल्यूट करते हुए कहा 

" जय हिन्द "
उसने भी जवाबी सैल्यूट करते हुए कहा 

" क्या स्टेटस है..."
उसने पूछा 

" अभी तक कुछ हाथ नहीं लगा है ..गश्त पर निकली टुकड़ी की आखिरी लोकेशन जिस जगह पर थी..उस जगह पर सर्च टीम निकली हुई हैं...."
एक जवान ने कहा 

" बाकी जो लोग बीमार रिपोर्ट किए थे... उनकी क्या हालत है "
समर्पिता ने पूछा 

" उनको सांस लेने में कुछ ज्यादा ही दिक्कत हो रही थी...आइए मैडम मो आपको ले चलता हूं"
एक जवान ने कहा और उसे एक टेंपररी से बने कमरे मे ले आया....उन चारों को ऑक्सीजन मास्क लगा था और प्राथमिक उपचार दिया जा रहा था ...

समर्पिता ने वहां डाक्टर से बात की....और फिर उन्हें हैलिकॉप्टर में शिफ्ट करवा दिया... कुछ हैलीकॉप्टर उन्हें लेकर वापस लेह की ओर बढ़ गए... जबकि समर्पिता वहां रुकी रही...

वो बाहर खड़ी आस पास देख ही रही थी...कि एक जवान ने चाय लाकर दी उसे 

" थैंक्यू "
उसने चाय का कप लाते हुए कहा 

" मैडम आप अंदर बैठ जाएं...आप बहुत देर से यहां बाहर खड़ी है...बेवजह बीमार पड़ जाएगी "
उस जवान ने कहा तो समर्पिता ने उसकी और एक नजर डाली...और फिर उसकी यूनिफॉर्म पर... जहां लिखा था नायक राजेंद्र यादव 

""यादव जी.... आराम से कैसे बैठ जाऊं....जब तक कुछ खबर ना मिले... आखिरकार हम सबका फर्ज तो एक ही है ना "
समर्पिता ने कहा 

" समझता हूं मैडम....सब ठीक होगा... इससे ज्यादा फिल्हाल मैं आपसे कुछ नहीं कह सकता "
नायक राजेंद्र यादव ने कहा 

" प्रार्थना करिए..कि सब कुशल मंगल हो...और हम कुछ कर भी नहीं सकते "
समर्पिता ने कहा तो उसने हां में सर हिला दिया और एक साइड‌ होकर खड़ा हो गया 

धीरे-धीरे मिनट बीते...और फिर घंटे भी.... समर्पिता वहीं खड़ी रही...उन खुश्क और बर्फीली हवाओं की बीच...ना जाने क्या महसूस करना चाह रही थी वो...या फिर पता नहीं कैसा महसूस कर रही थी ....


इसी बीच एक जवान आया और नायक राजेंद्र यादव के कान में कुछ कहा 

राजेन्द्र यादव ने सर हिलाया और समर्पिता की और बढ़ गई 

" मैडम जी....बुरी खबर है...चार जवान हमें मिलें हैं...और चारों ही शहीद हो चुके हैं "
नायक राजेन्द्र प्रसाद ने कहा और अपना सर झुका लिया... उसकी आवाज रुंध गई थी 

तो उधर समर्पिता की पकड़ उस कप पर बिल्कुल कस गई...एक पल को वो बिल्कुल चेतना शून्य हो गई...एक साथ ज़हन में कितना कुछ कौंध गया...उन जवानों का अपनी मौत से संघर्ष....उनके परिवारों का दर्द..उनकी बेबसी... कुछ पलों में कितना कुछ जी गई थी वो....

" उनको नजदीकी पोस्ट  पर ला रहे है मैडम...वो लोग 22300 फीट पर थे...." 
नायक राजेंद्र यादव ने कहा 

किसी भी पल टूट जाने की स्तिथि से खुद को उबारते हुए उसने कहा 

" मुझे कोर्डिनेट्स दिजिए यादव जी....
वो इतना ही कह पाई और चाय का कप उसे पकड़ा कर वो हैलीकॉप्टर की और बढ़ गई....

उसके चेहरे की गंभीरता को देखकर वहां मौजूद उसके जूनियर फ्लाइट लेफ्टिनेंट गौरव कुमार को स्तिथि का अंदाजा हो गया था....इतना वक्त उसके साथ काम करते हुए वो समझ गया था कि समर्पिता इन सबके लिए जितनी संवेदनशील थी.... उतनी ही मजबूत भी...लिहाजा उसने कुछ नहीं पूछा 

कोर्डिनेट्स मिलते ही वो उस जगह की और बढ़ गए.....और समर्पिता उन शहीद जवानों को लेकर बेस लौट आई...शाम होने तक उन दस में से सात लोगों को रेस्क्यू किया गया था... जिनमें से छह शहीद हो चुके थे और एक को दिल्ली के मिल्ट्री हास्पिटल भेजा गया था जहां उसकी स्थिति गंभीर बनी हुई थी.....और बाकी तीन अभी भी लापता थे....

***********
रात का वक्त था ...बर्फ एक बार फिर गिरनी शुरू हो चुकी थी....और वो मैस के बाहर बने गार्डन में पिल्रर से टेक लगाए एकटक शून्य में देख रही थीं...चेहरे पर दुख ज्यादा था...या खालीपन या अफसोस कहना मुश्किल था.... इससे पहले भी वो ऐसे हालात और अहसासों से दो चार हो चुकी थी... लेकिन हर बार ऐसे ही टूट जाता करती थी....

वो अपने ख्यालों में गुम थी जब उसे कुछ गर्माहट का अहसास हुआ... उसने नज़रें घुमा कर देखा तो हमेशा की तरह वही था... उसके सर्द हो चुके मन को अपनी गर्माहट से पिघलाने वाला...जो हमेशा उसके साथ एक मजबूत स्तंभ की तरह रहा था....ना जाने कैसे उसके मन की बात जाना जाता था हर बार..

" नचिकेत "
समर्पिता ने हौले से कहा 

" जानता था यही मिलोगी "
उसने मुस्कुराते हुए कहा और उसका हाथ पकड़ कर अंदर वाले बैंच पर बैठा दिया...

समर्पिता ने कुछ नहीं कहा और उसके कंधे पर अपना सर रख दिया 

" आई एम फिलिंग एंपटी नचिकेत...आय एम फिलिंग जस्ट वर्थलैस...
समर्पिता ने कहा 

" यू कैन क्राई देन...अच्छा महसूस होगा "
नचिकेत ने कहा 

" क्या हम किसी को वापस‌ नहीं ला सकते "
समर्पिता ने कहा 

" जो नैचुरल हो उसे चैलैंज नहीं किया जा सकता सैमी .....इट्स‌ सैड बट ट्रू "
नचिकेत ने कहा 

" बट इट्स हर्ट्स....जो पीछे रह जाते है उनकी क्या गल्ती "
समर्पिता ने कहा 

" कुछ सवालों के जवाब नहीं होते....और लाइफ ऐसी ही होती है....ज़ख्म मिलते हैं...तो भरते भी हैं.... कभी थोड़ा जल्दी और कभी देरी से "
नचिकेत ने कहा 

" और कभी कभी पूरी उम्र लग जाती है "
समर्पिता ने कहा तो नचिकेत ने उसे देखा ....जानता था बहुत कुछ दबाए बैठी है वो अपने अंदर.... कुछ गहरा और हर पल रिसने वाला... लेकिन उसने कभी पूछा नहीं....ना ही पूछेगा...उसका काम है पुल बनाना दोनों के बीच...जिसमें भरोसा और सहजता हो....और जिस दिन ये पूरी तरह से होगा उस दिन सब पर्दे गिर जाएंगे... दोनों के दरमियान....तब तक वो अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ेगा ...उस सुरक्षित महसूस कराने का

" आई वांटेड टू क्राई "
समर्पिता ने कहा 

" यू कैन सैमी...आय एम हेयर... आफ्टरऑल हमारे पास भी फिलिंग्स होती है "
नचिकेत ने कहा तो समर्पिता ने अपनी आंखें बंद कर दी और उसकी आंखों से आंसू बह गए...जिसे रोकने की उसने ज़रा भी कोशिश नहीं की

***************
अगली सुबह 

" जय हिन्द सर "
समर्पिता ने अपने सीओ के केबिन में आते हुए कहा 

" जय हिन्द ऑफिसर कहिए "
उन्होंने कहा 

" सर क्या आज हम रेस्क्यू ऑपरेशन पर जा सकते हैं "
उसने कहा 

" इट्स नॉट पासिबल... मैंने पहले ही कहा था "
उन्होंने कहा 

" सर वो जो तीन सेनिक लापता हैं वो....
कहते हुए रुक गई वो‌

" आई एप्रीशिएट...योर कंसर्न समर्पिता ..बट वेदर कंडीशंस के चलते फ्लाइंग पॉसिबल नहीं है... रात से बर्फबारी थमी नहीं है और अब भी बर्फबारी बढ़ने का अनुमान है...वी कांट टेक रिस्क...बाकी वहां एक टीम कोशिश में लगी है... कुछ इंफोर्मेशन मिलेगी तो आप तक आर्डर्स पहुंचा दिए जाएंगे "
उन्होंने कहा 

समर्पिता ने अपना सर हिला दिया 

" जय हिन्द सर "
कहकर वो लौट आई

**************

छ महीने बीत चुके था इस हादसे को...और मौसम का रूख भी बदला था.... बहुत अफसोसजनक था कि उन तीन सैनिकों तक जब तक टीम पहुंची तब तक उनकी सांसें रुक चुकी थी.... और जिस एक को रेस्क्यू किया गया था ...वो स्टेबल था और खतरे से बाहर था 

" अंकल का फोन आया था सैमी "
नचिकेत ने कहा.... दोनों खाना खाने के बाद सैर पर निकले थे 

" हां वो हमारी सगाई की डेट फिक्स करना चाह रहे थे.... मुझे कोई दिक्कत नहीं...जो डेट भी उन्हें ठीक लगे "
समर्पिता ने कहा 

" तुम क्या चाहती हो ....ये ज्यादा जरूरी है "
नचिकेत ने कहा 

" मैं भी यही चाहती हूं....और डोंट वरी मैंने तुमसे प्रॉमिस किया था ....मैं बिना कोई दबाव लिए फैसला करूंगी...और ये फैसला मैंने अपने लिए लिया है....मैं जिंदगी में तुम्हारे साथ आगे बढ़ना चाहती हूं..."
समर्पिता ने कहा 

नचिकेत मुस्करा दिया... उसने चलते चलते उसके सर को चूम लिया...

" पहले छुट्टी की बात करते हैं... फिर देखते हैं "
नचिकेत ने कहा तो उसने सर हिला दिया...

********

एक महीने बाद 

" सैमी....आर यू रैडी "
अड़तीस साल की औरत ने अंदर आते हुए कहा ...

दोनों को ही छुट्टी मिल गई थी तो सगाई की रस्म समर्पिता के होम टाउन जयपुर में रखी गई थी....

" हां दी...रेडी हूं "
सैमी ने जवाब दिया...तो उस औरत ने उसे एक नजर ऊपर से नीचे देखा... हल्के गुलाबी रंग का लहंगा और ऊपर सादा सा श्रृंगार...वो खूबसूरत लग रही थी...

"'लंहगा... पर्फेक्ट है... मेकअप पर्फेक्ट है... लेकिन दुल्हन की आंखों में चमक की कमी क्यों है "
उस औरत ने कहा 

"वेदिका दी... आपकी तरह लव मैरिज नहीं है ना मेरी "
सैमी ने मुस्कुराते हुए कहा 

" लेकिन तुम नचिकेत को पांच सालों से जानती हो सैमी....क्या तुम उसके लिए कुछ फील नहीं करती "
वेदिका  ने कहा 

" हम दोस्त हैं दी... बहुत अच्छे दोस्त .... फिलिंग्स क्यों नहीं है..."
सैमी ने  कहा 

" दोस्ती और प्यार में बहुत फर्क होता है ..."
वेदिका ने कहा ii

" लेकिन किसी रिश्ते की बुनियाद अगर दोस्ती हो...तो इससे अच्छा कुछ हो सकता है भला "
सैमी ने कहा 

" और अगर कल को तुम्हें उससे प्यार नहीं हुआ तो "
वेदिका ने कहा 

" प्यार की कोई एक डाइमेंशन तो नहीं होती...ना दी... दोस्ती...रिस्पैक्ट ... कंसर्न और कंफर्ट ये सब भी प्यार का ही हिस्सा होते हैं...और कल...
कहकर वो मुस्कुरा दी...

" हम आज मैं जीने वाले लोग हैं दी...कल के बारे में इतना नहीं सोचते "
सैमी ने मुस्कुराते हुए कहा तो वेदिका भी मुस्कुरा दी... उसके जवाब के आगे हमेशा वो हार जाती थी... लेकिन इस बार बात उसकी बहन की जिंदगी की थी...

" सैमी एक बार फिर सोच ले...अगर तू चाहे तो पीछे हट सकती है...सबको मैं संभाल लूंगी "
वेदिका ने आखिरी कोशिश करते हुए कहा 

" आप भूल रही है दी मेरी उम्र बत्तीस साल है...मैं कोई टीनेजर नहीं...जिसे हमेशा अपने प्रिस चार्मिंग का इंतजार रहता है......मैं वास्तविकता में जिंदगी जीती हूं.....मैं जानती हूं दी नचिकेत और मेरा रिश्ता शादी के बाद बहुत मायनों में बिल्कुल बदल जाएगा ... लेकिन हम दोनों मिलकर इसे संभाल लेंगे क्योंकि मैं नचिकेत के साथ कंफर्टेबल हूं और वो बहुत समझदार है "

" ठीक है जैसे तेरी मर्जी ...चल बाहर बुला रहे हैं सब "
वेदिका ने कहा 

समर्पिता ने एक नजर खुद को आईने में देखा और मुस्कुरा दी...और वेदिका के साथ बाहर चली गई 

बाहर नचिकेत समर्पिता के पिता जो कभी उसके कमांडिंग ऑफिसर भी रहे हैं.... उनके साथ बात कर रहा था...उसकी नजर जब समर्पिता पर पड़ी तो उसके चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान आ गई 

नचिकेत और समर्पिता दोनों एक ही रैंक पर थे...एक सोशल फंक्शन में दोनों मिले थे...और फिर इत्तेफाक से दोनों को पोस्टिंग भी एक ही जगह मिली...और धीरे धीरे दोनो अच्छे दोस्त बन गए... नचिकेत की तरफ से सिर्फ दोस्ती कभी नहीं रही....ये बात समर्पिता ने हमेशा महसूस की थी... लेकिन नचिकेत ना कभी कुछ जताया और ना कभी उसे किसी अजीब सिचुएशन में डाला...उसकी यही समझदारी आज उसके इस फैसले की बुनियाद थी... नचिकेत अच्छे से समझता था उसे... दोनों ने इस रिश्ते पर खुल कर बात की थी....और तभी वो इस सफर में आज एक कदम आगे बढ़ रहे थे...आज दोनों दोस्त से हमसफ़र बनने की तरफ पहला कदम उठा रहे थे 

नचिकेत ने आगे बढ़ कर उसका हाथ पकड़ लिया...

" तुम ठीक हो... कुछ अनकंफर्टेबल तो नहीं लग रहा "
नचिकेत ने पूछा 

" मैं बिल्कुल ठीक हूं....और खुश भी "
समर्पिता ने मुस्कुराते हुए कहा तो उसके दिल को तसल्ली हुई 

दोनों को एक जगह बिठाया गया ...और फिर थोड़ी रस्मों के बाद... दोनों ने एक दूसरे को अंगूठी पहनाई...और बिल्कुल सादगी से ये सारा फंक्शन खत्म हो गया 

रात का वक्त था ...

खाना ख़त्म करने के बाद... नचिकेत और समर्पिता बाहर ही निकले थे...बाहर ठंडी हवा चल रही थी....

" नचिकेत "
समर्पिता ने कहा 

" एक कहानी सुनाऊं... सुनोगे "
समर्पिता ने कहा तो नचिकेत ने उसे दो पल ठहर कर देखा 

" तुम जो भी कहना चाहो .....मैं हमेशा हूं"
नचिकेत ने कहा जिसे शायद अंदाजा था कि वो क्या कहने वाली है उससे 

" तो सुनो....ये तकरीबन तेरह चौदह साल पहले की बात है...
समर्पिता ने कहा और कहीं पुरानी यादों में खो गई 


************

दिल्ली...आर एम कॉलेज 

" मे आई कम इन सर "
उसने एक कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए कहा 

"कम इन "
अंदर से आवाज आई तो वो दरवाजा खोल अंदर आ गई 

" बैठो समर्पिता "
सामने बैठे शख्स ने कहा तो‌ वो उनके सामने बैठ गई 

" तुमने अपने एक्जाम के रिजल्ट देखे हैं "
उस शख्स ने कहा तो समर्पिता ने हौले से सर हिला दिया 

" और तुम अपनी डिग्री ऐसे क्लीयर करोगी "
उस शख्स ने कहा 

" आय एम सॉरी प्रोफेसर ....बट आप जानते हैं..मेरा पैशन टेबल टेनिस है ...मैं चाह कर भी..."
कहते कहते रुक गई वो 

सामने बेठे उसके प्रोफेसर मुस्कुरा दिए 

" आई नो तुम एक स्टार प्लेयर हो.... लेकिन डिग्री की वैल्यू फिर भी होती है....इट्स नॉट अबाउट पर्टीकुलर सब्जेक्ट....इट्स अबाउट योर आलराउंड डेवलेपमेंट...और इस बार हिंदी में तुम बिल्कुल बार्डर पर हो...."
प्रोफेसर ने कहा तो‌वो थोड़ा झेंप गई 

" मैं नेक्स्ट टाइम ट्राइ करुंगी सर..." 
समर्पिता ने कहा 

" मै‌ं जानता हूं...तुम स्पोर्ट्स कोटा से‌ हो... तुम्हें वहां भी अपनी परफॉर्मेंस मैंटेन करनी है .... इसलिए तुम चाहो तो मै तुम्हारी मदद कर सकता हूं "
प्रोफेसर ने कहा 

" केसे सर "
उसने कहा 

" एक मिनट ....
उन्होंने कहा....और कहीं फोन मिला दिया....

दस मिनट बाद किसी ने दरवाजा खटखटाया....और दरवाजा खुलते ही उसकी नजर सीधे उन‌ नजरों से जा मिली.... गेहुंआ रंग...चेहरे पर गोल्डन रिम वाला चश्मा...ब्लैक शर्ट के साथ ब्लू जींस... बिल्कुल सादगी सा व्यक्तित्व....

उसे याद आया ये तो उसी की क्लास में था...जिसे इसने हमेशा किताबों में ही डूबे देखा 

" आओ रचित "
प्रोफेसर ने कहा 

" आपने बुलाया प्रोफेसर "
रचित ने कहा 

" रचित ये तुम्हारी क्लासमेट है.... समर्पिता...ये स्पोर्ट्स कोटा मैं है...तो क्या तुम पढ़ाई में इसकी मदद कर सकते हो???
प्रोफेसर ने पूछा 

" जी सर मैं कर दूंगा "
रचित ने बिना उसकी और देखते हुए कहा 

" समर्पिता...ही इज वैरी ब्राइट इन स्टडीज...ही केन हैल्प यू...बाकी चीजें तुम आपस में डिसकस कर लो '"
प्रोफेसर ने कहा 

"ओके सर "
समर्पिता ने कहा और वो दोनों वहां से बाहर आ गए

" आप कब तक फ्री हो जाती है "
बाहर आते ही रचित ने उससे पूछा 

" क्लासिस खत्म होने के बाद क्या आप रुक पाएंगे "
समर्पिता ने पूछा 

" हां...मैं मैनेज कर लूंगा.... कोई बात नहीं "
रचित ने कहा 

" मैं आपका ज्यादा वक्त नहीं लूंगी "
समर्पिता ने धीमी सी आवाज में कहा 

" कोई बात नहीं मेरी भी रिवीजन हो जाएगी "
रचित ने कहा 

" क्लास के बाद लाइब्रेरी में मिले "
समर्पिता ने पूछा 

" ओके "
रचित ने कहा तो समर्पिता फुटबॉल ग्राउंड की और बढ़ गई...और वो क्लास की तरफ

आखिरी क्लास खत्म होते होते..दोपहर के ढाई बज गए..और  
दोनों इस वक्त लाइब्रेरी में बैठे हुए थे... जहां रचित उसे कुछ समझा रहा था ...और वो बिल्कुल शांति से सब सुन रही थी....

वो दोनों रोज क्लास के बाद लाइब्रेरी में पढ़ाई करते...इस सिलसिले को अब बीस दिन हो गए थे.... दोनों आपस में सहज हो गए थे...

" कल मैं नहीं आ पाउंगी "
समर्पिता ने अपना बैग कंधे पर टांगते हुए पूछा 

" कोई खास वजह "
उसने हमेशा की तरह मुस्कराते हुए पूछा 

" कल एक इंपोर्टैट मैच...है मेरा "
समर्पिता ने कहा 

"ओके "
रचित ने कहा और समर्पिता बाहर निकल गई 

' वैसे तुम चाहो तो आ सकते हो "
उसने दरवाजे पर दो पल रुकते हुए कहा...और फिर उसका जवाब सुने बिना वहां से चली गई 

" हमेशा जल्दी में रहती हैं..
रचित ने अपना सर झटकते हुए कहा और दोबारा से अपने काम में डूब गया 

थोड़ी देर बाद जब वो बाहर निकला तो प्रोफेसर से टकरा गया 

" गुड आफ्टरनून प्रोफेसर "
रचित ने कहा तो वो मुस्कुरा दिए...

"तो कैसी चल रही है स्टडीज रचित "
उन्होंने पूछा

" बहुत बढ़िया सर "
रचित ने कहा 

" और व्हाट अबाउट समर्पिता "
उन्होंने पूछा 

"'वो भी सही चल रहा है... समर्पिता काफी फोकस्ड है...चीजों को बहुत तेजी से कैच करती है "
रचित ने कहा 

" दैट्स वाय शी इज है ब्रिलियंट इन स्पोर्ट्स...और आजकल तो काफी मेहनत करनी पड़ रही होगी उसे...एक तो‌ टूर्नामेंट्स नजदीक आ रहे हैं...ऊपर से तुम्हारे साथ स्टडी सैशंस...अगर कर्नल राणा को वादा नहीं किया होता तो समर्पिता पर इतना प्रेशर नहीं डालता "
प्रोफेसर ने कहा 

" यू मीन हर फादर "
रचित ने पूछा 

" हां...मदर फादर दोनों मिल्ट्री ऑफिसर है...और बहन डॉक्टर... लेकिन समर्पिता का इंटरेस्ट स्पोर्ट्स में है ....पर उसके फादर चाहते हैं एटलीस्ट वो फिफ्टी पर्सेंट के साथ अपनी डिग्री पूरी करे "
प्रोफेसर ने कहा 

" मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करुंगा सर "
रचित ने कहा 

" मुझे तुमसे यही उम्मीद भी है रचित "
प्रोफेसर ने कहा और वहां से चले गए 

..........

आज समर्पिता का क्वालिफायर मैच था ..

रचित चुपचाप कोने की एक सीट पर बैठा था...उसका बैग उसकी गोद में था...आज क्लास के बाद सीधे यहीं आ गया था...उसे स्पोर्ट्स में कभी इंट्रस्ट रहा नहीं... लेकिन समर्पिता ने उसे बुलाया तो वो रह नहीं सका..
उसके ठीक सामने मैच चला हुआ था...

वो कोर्ट के बीच में थी...और चेहरे पर हमेशा की तरह रहने वाली शरारत आज गायब थी...वो पूरी तश्रह फोकस्ड थी ... अपनी गेम में पूरी तरह डूबी हुई।


वो तेज़ी से मूव कर रही थी... एक-एक शॉट पूरे कॉन्फिडेंस से मार रही थी...आज वो अपनी पूरी एनर्जी से बस बस खेल रही थी 

" यकीन नहीं होता...ये वही लड़की है जो क्लास में 'हैं' और 'था' में कन्फ्यूज़ हो जाती है "
रचित मन ही मन कहा


वो जिस तरह से खेल रही थ ... उसने साबित कर दिया कि वो सिर्फ़ एक प्लेयर नहीं...बल्कि सोच-समझकर खेलने वाली एक स्मार्ट फाइटर हैं...मुकाबला आखिरी गेम तक पहुंच चुका था...स्कोर 9-9।

उसने ने एक तेज़ और सटीक सर्विस की..उसकी अपोनेंट रिया शर्मा ने शॉट वापस भेजा... लेकिन सेमी ने झट से फ़ोरहैंड टॉपस्पिन मारते हुए बॉल को कोने में प्लेस कर दिया.. स्टेडियम तालियों से गूंज उठा

अगली सर्विस में रिया ने अच्छा डिफेंस किया..लेकिन सेमी बिल्कुल फोकस्ड थी... उसने परफेक्ट फुटवर्क और टाइमिंग के साथ आखिरी स्मैश मारा—और मैच खत्म!

फाइनल स्कोर: 11-9।

इस शानदार जीत के साथ उसने ने फाइनल में जगह बना ली.. उसके गेम में स्ट्रेंथ..बेलेंस और कॉन्फिडेंस साफ नजर आया.. उसने सिर्फ़ मैच नहीं..बल्कि सबका दिल भी जीत लिया 

टॉवेल से पसीना पोंछते हुए उसकी नजर  भीड़ में  खड़े रचित  पर पड़ी...जो उसके लिए तालियां बजा रहा था...उसके‌ चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई 

*****************

अगले दिन वो और समर्पिता लाइब्रेरी में बैठे हुए थे...उसके सामने ढेर सारे नोट्स फैलाए हुए थे..

"रचना और लेखक का फ़र्क समझाओ फिर से "

"रचना में सोच होती है, लेखक में इरादा..."
रचित ने कहा 

"'अच्छा ऐसा होता है क्या "
समर्पिता ने कहा तो रचित हस दिया 

समर्पिता ने उसे घूर कर देखा 

"हिंदी इतनी मुश्किल क्यो होती है...और ऊपर से तुम इतनी गहरी बातें क्यो करते हो यार "
समर्पिता ने अटना सर पकड लिया 


"मैं तो बस समझाने की कोशिश करता हूँ... गहराई तुम सोच लेती हो।"
रचित ने कहा 

" वैसे परसो तुम्हारा फाइनल है....ना "
रचित ने पूछा तो उसने हां में सर हिला दिया 

" नर्वस हो ???
रचित ने पूछा 

" बिल्कुल नहीं...इट्स होम फॉर मी..तुम आओगे ना "
समर्पिता ने पूछा तो रचित ने उसकी और दो पल रूक कर देखा

"'जरुर आऊंगा "
रचित ने कहा...मना कर भी कैसे सकता था...इतने हक से जो पूछा था


*********

फाइनल मैच खत्म हो गया था जिसे समर्पिति ने 8-12 से जीता था...और ये पूरे कॉलेज के लिए गर्व की बात थी...इस वक्त वो स्पोर्ट्स ग्राउंड में अपने दोस्तों के साथ थी..हर जगह .. उसके ट्रॉफी लेते हुए की बडे पोस्टर लगे हुए थे 

"सैमी...तुम तो छा गई यार..फाइनल में क्या कमाल का खेल था.."

"थैंक यू... थैंक यू वैरी मच "
उसने कहा 
वह हँसते हुए दोस्तों के बीच से निकलने लगी..लेकिन उसकी नज़र अचानक दूर से आते रचित पर पड़ी 

वो रचित हाथ में नोट्स लिए चल रहा था ...सीधा उसकी तरफ़...चेहरे पर वही शांत मुस्कुराहट ...लेकिन नज़रें समर्पिता को ढूँढ रही थी

अरे नहीं यार... ये तो अब पढ़ने की बात करेगा...बस अब वही बोलेगा...मैच हो गया... अब रिवीजन कब शुरू करोगी?' Not now, please!"
समर्पिता धीरे से.. बड़बड़ाते हुए कहा


वह तेजी से अपने दोस्तों की भीड़ में घुसी, जैकेट का हुड पहना और एक मोड़ से निकल गई 

रचित पास आया  और उसने इधर-उधर देखा... फिर वहां खड़ी लड़की से पूछा

"समर्पिता कहां गई? अभी तो यहीं थी ना??


" तुम्हारी टॉपर वाली वाइब से वो थोड़ा दूर भाग रही है.. लगता है...शायद लाइब्रेरी नहीं...केन्टीन में मिल जाए "
उसने हंसते हुए जवाब दिया 


"मैच जीत गई... अब पढ़ने से भाग रही है...चलो..थोड़ी देर बाद फिर ट्राय करता हूँ "
रचित ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा 

कुछ दिन ऐसे ही बीत गए पर वो उसके सामने नहीं आई.. अपना फोन भी उसने बंद कर दिया था
*****
अगली सुबह 

समर्पिता बेंच पर बैठी म्यूज़िक सुन रही थी लेकिन तभी एक दोस्त दौड़ता हुआ आया


"सैमी! रचित गार्डन की तरफ ही आ रहा है.. उसके हाथ में वही तुम्हारे लिए बनाए गए नोट्स हैं!"
उसने कहा 

"नहीं यार... आज नहीं...मैं आज सिर्फ़ विनर वाली फीलिंग में रहना चाहती हूँ...रिवीजन वाली नहीं।"
समर्पिता ने कहा 

उसने झट से अपना बैग उठाया और बेंच के पीछे लगे बड़े पेड़ की ओट में छिप गई

रचित ने आसपास देखा...उसे वो नजर नहीं आई..
" रीना तो कह रही थी...वो यही है...ये लड़की फाइनल जीतने के बाद गायब क्यों हो गई? इतनी भी क्या डर है किताबों से?"
उसने कहा 

वह उसी बेंच पर बैठ जाता है...जहां समर्पिता बैठी हुई थी... एक सेकंड को रुक कर वो मुस्कुराता है।।। फिर ज़ोर से बोलता है:
"समर्पिता, मुझे पता है तुम आसपास ही हो।।। और  तुम्हारा बैग अभी-अभी यहां से गायब हुआ है।"


"इतना सिंसियर क्यों है ये इंसान? थोड़ा चिल करना भी सीखो मिस्टर रचित!"
समर्पिता ने बडबडाते हुए कहा

रचित  बेंच से थोड़ी दूरी पर आकर इधर-उधर झांकने लगा...तभी पीछे से कुछ पत्ते गिरे...  वो पलटा  लेकिन उसे कोई नहीं दिखा... और फिर कुछ सोच कर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई... वो दबे पांव पेड़ के पीछे गया और समर्पिता को पकड़ लिया


" सत्यानाश"
उसके मुंह से निकला तो रचित के चेहरे की मुस्कराहट और गहरी हो गई 

" ऐसा नहीं बोलते.... बेवकूफ लड़की "
रचित ने कहा 

" अरे यार...तुम क्यूं ओल्ड स्कूल डैडी बने हुए हो...दो दिन नहीं पढूंगी तो आफत तो नहीं आ जाएगी "
समर्पिता ने कहा 

" लैट मी करेक्ट यू ... तुम्हें आराम फरमाते...आज पूरे आठ दिन हो गए हैं "
रचित ने कहा 

" मैं इतना बडा टूर्नामेंट जीतकर आई...क्या ये बड़ी बात नहीं...क्या मैं कुछ दिन आराम नहीं कर सकती "
समर्पिता ने बच्चों जैसे मुंह बनाते हुए कहा 

" बिल्कुल बहुत बड़ी बात है ... टूर्नामेंट जीतना...वी ऑल आर प्राउड ऑफ यू .... लेकिन सफलता तभी अच्छी लगती है जब वो लगातार हो.... यहां तुमने जितना अच्छा परफॉर्म किया है... तुम्हें नहीं लगता...कि स्टडीज के लिए भी तुम्हारी कोशिश उतनी ही होनी चाहिए "
रचित ने कहा तो उसने ठंडी आह भरी 

" ओके...पर क्या हम कल से शुरू कर सकते हैं... प्लीज़ "
समर्पिता ने कहा तो रचित के चेहरे पर फिर से मुस्कराहट आ गई 

"'ओके ... ठीक है....चाय पीने चलोगी "
रचित ने पूछा 

" अरे यार...चाय और पूछ पूछ... बिल्कुल चलूंगी... तुमने ना दिल खुश कर दिया ये कहकर "
समर्पिता ने कहा और उसके कंधा थपाथपा दिया 

" फॉलो मी "
उसने कहा और पार्किंग की और बढ़ गई... रचित ने अपना सर झटका दिया 

वहां समर्पिता की गाड़ी से थोडा दूर... रचित की पुरानी सी बाइक खड़ी हुई थी...

समर्पिता उस तरफ बढ गई...पर रचित चलते चलते रुक गया 

" चलें "
उसने पलट कर देखा तो रचित वहीं खडा हुआ था 

" तुम इस पर जाओगी "
उसने बाइक की और इशारा करते हुए झिझकते हुए पूछा 

" हां... क्यूं तुम्हें कोई दिक्कत हैं..."
समर्पिता ने पूछा 

" नहीं... चलो "
रचित ने कहा और बाइक स्टार्ट कर दी...वो लोग शहर से बाहर की तलफ निकले तो समर्पिता को चाय की एक दुकान दिखी...

" अरे रोको रोको... यहीं चाय पीते है "
समर्पिता ने उसके कंधे को थपथपाते हुए कहा तो रचित ने उस दुकान के टास बाइक रोक दी...समर्पिता उतरी और उस  जगह को गौर से देखा...

"आह कितनी अच्छा जगह हैं कुछ फैंसी नहीं..लेकिन असली सुकून टाइप।"
समर्पिता ने आस पास देखते हुए कहा 

"'तुम आज इस वक्त यहां कैसे"
उस दुकान के मालिक ने रचित कै देखते हुए कहा 

वो...

" तुम यहां पहले भी आ चुके हो क्या "
रचित कुछ कहता ... इससे पहले समर्पिता बोली 

" एक्चुअली ये मेरे बाबा हैं "
रचित ने कहा 

" ओह... नमस्ते अंकल"
समर्पिता ने हाथ जोड़कर कहा 

" बाबा ये समर्पिता है..."
रचित ने कहा 

" जिसे तुम आजकल पढ़ा रहे हो "
उसके बाबा ने मुस्कुराते हुए पूछा तो रचित ने सर हिला दिया 

" तुम बैठो में चार लाता हूं "
रचित ने कहा तो समर्पिता ने सर हिलाया और जाकर कुर्सूपर बैठ गई 

थोड़ी देर बाद रचित दो कप चाय ले आया ..एक कप उसकी और बढ़ा कर .. उसके साथ दूसरी कुर्सी पर बैठ गया ...

समर्पिता ने चाय का पहला घूंट भरा...अदरक और इलायची की मिलती जुलती महक ने उसे एकदम रिलैक्स कर दिया 

" इतनी बढ़िया चाय तो हमारे कैंपस कैफ़े में भी नहीं मिलती... ये सीरियसली अनफेयर है!"
उसने कहा 

"कुछ चीज़ें भीड़ से दूर ही अच्छी लगती हैं "
रचित ने कहा 

" अच्छा एक बात बताओ..तुम हमेशा इतना ठहर कर कैसे सोच लेते हो... मतलब… मैं तो हर बात पर रिएक्ट कर देती हूँ...और तुम बस… समझते हो"
समर्पिता ने पूछा 

"हर किसी का तरीका अलग होता है... तुम चीज़ों को महसूस करके कहती हो... मैं पहले सोचता हूँ...फिर बोलता हूँ "
रचित ने कहा 

"मतलब मैं बिना सोचे बोलती हूँ?"
समर्पिता ने मुस्कुराते हुए पूछा 

" नहीं तुम फ़िल्टर के बिना बोलती हो... और वो भी एक तरह की ईमानदारी है।"
रचित ने कहा 

वैसे थैंक यू... ये ब्रेक बहुत ज़रूरी था।"
समर्पिता ने चाय का घूंट भरते हुए कहा 

"हर ब्रेक बोरियत की वजह से नहीं होना चाहिए। कभी-कभी बस… रुकना भी अच्छा होता है।"
रचित ने कहा 

"तुम हर बात को इतना कोटेबल क्यों बना देते हो? 
समर्पिता ने आंखें सिकोड़ते हुए पूछा 

"सीधा जवाब देने में बात वहीं खत्म हो जाती है...थोड़ा घूम के बोलो... तो सामने वाला थोड़ा और सुनता है।"
रचित ने मुस्कुराते हुए कहा 

"तुम्हारा ये घूम के बोलन' अच्छा है… थोड़ा इरिटेटिंग भी..पर सुनने लायक होता है "
समर्पिता ने कहा 

" तुम क्लास में भी हमेशा सबसे शांत रहते हो..कभी तुम्हें बोर नहीं होता सबमें से अलग रहकर?"
उसने पूछा 

"शांत रहना बोर होना नहीं होता...मैं आब्जर्व करना ज़्यादा पसंद करता हूँ... सबकी एनर्जीस देखकर समझ आता है कि क्या नहीं करना है।"
उसने कहा तो वो‌ हंस दी


"तुम्हारे जवाब बड़ी सोच-समझ के होते हैं पर कभी-कभी बहुत इरिटेट भी करते है "
समर्पिता ने कहा 

"अच्छा इरिटेट करना रेयल टेलेंट है... उस पर काम कर रहा हूँ।"
रचित ने मुस्कुराते हुए कहा 

"कभी सोचा था, मैं यहाँ तुम्हारे साथ चाय पी रही होऊँगी?"
उसने पूछा 


"नहीं ...लेकिन ठीक लग रहा है।"
रचित ने कहा 

"फिर वही स्टीडी सा जवाब...जैसे… तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता "
समर्पिता ने कहा 

"फर्क तो पड़ता है...पर हर reaction ज़रूरी नहीं होता.. कुछ बातों को जवाब से ज़्यादा ख़ामोशी में क्लेरिटि मिलती है।"
रचित ने कहा 

समर्पिता ने उसकी और देखा...शायद कुछ छू गया था उसे

"तुम्हारे साथ वक्त बिताना कभी लाउड नहीं होता… लेकिन हर बार कुछ ना कुछ रुक जाता है दिमाग में।"
समर्पिता ने कहा 

"अच्छा है...बात अगर दिमाग में रुक जाए..तो शायद दिल में भी पहुँच जाए..देर-सबेर।"
रचित ने बिना उसकी और देखे कहा 


"कभी सोचा है तुम टेड टॉक दोगे? टाइटल होगा..हाओ टू स्टे काम इवन वेन ग्रुप असाइनमेंट इज फालिंग अपार्ट "
समर्पिता ने कहा 

"नहीं… मैं शायद लास्ट स्लाइड पर बस इतना लिखूं...‘सब ठीक है अगर तुम ठीक हो।’"
रचित ने कहा 

वो मुस्कुराई और कहा 
"तुमसे बात करके लगता है... जैसे कुछ चीज़ें उतनी कॉम्पलेक्स नहीं हैं जितना मैं सोचती हूँ।"

"शायद क्योंकि तुम चीज़ों को दिल से समझती हो,और वो हमेशा आसान नहीं होता।"
रचित ने कहा 

समर्पिता मुस्कुरा दी... पर कुछ कहा नहीं...रचित की शायद ये पहली छाप थी उसके मन पर ...जो उसके मन से कभी जुदा नहीं हुई 


उस दिन वहां बहुत सारा अच्छा टाइम बिता कर वो लोग लौट आए...

********
एक्जाम्स करीब थे... समर्पिता के साथ रचित तैयारी में लगा हुआ था .. 

" थोड़ी देर ब्रेक ले लो "
रचित ने उसे चाय का कप पकड़ाते हुए कहा 

"पढ़ना कितना बोरिंग है....यार आई एम मिसिंग माय ग्राउंड..ऐसा लगता है जिंदगी सीधे ही चली जा रही है ... बिना किसी मोड़ के।"
समर्पिता ने कहा 

"पर मोड़ आते हैं… जब तुम्हारा ध्यान रास्ते से हटकर अपने आप पर चला जाए।"
रचित ने कहा 


"मतलब?
समर्पिता ने थोड़ा चौंकते हुए पूछा 


"मतलब जब तुम ये सोचना छोड़ दो कि 'क्या करना है', और ये देखो कि 'तुम हो कहाँ'…तब तुम्हें मोड़ दिखते हैं.. ज़्यादा नहीं..बस थोड़ा पास जाकर।"
रचित ने कहा 

"तुम ऐसे बातें करते हो जैसे… बहुत कुछ झेला हो तुमने।"
उसने कहा 

"झेला नहीं… देखा और देखा भी तब जब सबको जल्दी थी... और मैं रुका था।"
रचित ने कहा 

"और रुकना सिखाया किसने?"
समर्पिता ने पूछा 

"एक लड़की से सीखा था… जो हमेशा भागती थी..उसे देखकर सोचा..कोई तो होना चाहिए जो वहीं खड़ा रहे...
ताकि जब वो थके..तो उसे लगे कि कहीं जाना ज़रूरी नहीं… कोई पहले से वहाँ है।"
रचित ने कहा 

समर्पिता की उँगलियाँ कप के हैंडल पर सख्त हो गई .. उसने कुछ कहा नहीं... पर उसने जो कहा ..वो उसके अंदर ठहर गया 

"और अगर वो लड़की कभी पीछे मुड़कर न देखे… तब? समर्पिता ने कहा 

"तो कम से कम उसे ये भरोसा रहेगा कि कोई था… जो दौड़ में शामिल नहीं था...बस उसकी थकान समझता था।"
रचित ने कहा 
इसके बाद समर्पिता ने कुछ नहीं कहा... हां लेकिन रचित के लिए बदलती अपनी फिलिंग्स वो अच्छे से समझ चुकी थी 

**********

कॉलेज का दूसरा साल शुरू हो गया था... समर्पिता का रिजल्ट अच्छा रहा था....और अब वो‌ दोनों एक दूसरे के साथ बहुत कंफर्टेबल हो चुके थे....

दोपहर का वक़्त था ... कैंटीन में हल्की चहल-पहल थी...रचित और समर्पिता कोने वाले टेबल पर बैठे हुए थे 

"आज थोड़े चुप लग रहे हो,...ठीक हो?"
समर्पिता ने पूछा 

"मैं तो हमेशा चुप ही होता हूँ।"
रचित ने थकी हुई मुस्कुराहट के साथ कहा...और हल्के सा सिर झुकाकर चाय का घूंट लिया...समर्पिता ने अपनी आंखें सिकोड़ कर उसे देखा 

"नहीं, आज वाली चुप्पी अलग है।"
समर्पिता ने कहा..तो उसने थोड़ा चौंकते हुए उसे देखा...वो उसकी खामोशी को इतना कब समझने लगी???

वो थोड़ी देर खामोश रहा 

" पता नहीं क्यो कभी-कभी सब ठीक होते हुए भी...अंदर कुछ रुक जाता है "

समर्पिता ने कोई जवाब नहीं दिया ...बस फोन को साइलेंट कर उससके थोड़ा और करीब ह़ो गई।

रचित की दिल धड़कने बढ गई....और सांस धीमी पड़ गई 

" तुम्हें देख के कभी-कभी लगता है...जैसे तुम्हें जल्दी नहीं होती किसी जवाब कि ये अच्छा है।"
रचित ने कहा 

समर्पिता उसकी बात पर हल्का सा मुस्कराई और कहा  

"हर चीज़ का जवाब तुरंत चाहिए भी तो नहीं होता...
कभी-कभी बस किसी का पास बैठना… काफ़ी होता है।"

रचित उसकी बात सुनी , और पहली बार कुछ नहीं सोचा — उसने बस सुना 

उसकी नज़र समर्पिता के चेहरे पर टिक गई 
वो फोन के स्क्रीन को देख रही थी... पर उसकी उंगलियाँ  रुकी हुई थी..शायद वो भी इस चुप्पी को सुन रही थी

उन दोनों के बीच खामोशी छा गई 

रचित की नजर फिर से समर्पिता की उंगलियों पर गई
वो बार-बार फोन अनलॉक कर रही थी..और फिर बिना कुछ किए स्क्रीन ऑफ कर रही थी


किसी का मेसेज का इंतज़ार है?"
उसने धीरे से पूछा 

समर्पिता सिर हिला देती है:

"नहीं… बस आदत सी हो गई है फोन बार-बार देखने की।
कभी-कभी तो खुद भी नहीं समझ आता क्यों।"
उसने कहा तो रचित हस दिया... पहली बार पूरे दिल‌ से खुलकर

" और मुझे लगा था ...तुम समझदार हो‌ रही हो "
रचित ने कहा तो वो भी मुस्कुरा दी 

वो उठी और बाहर की और चल दी...रचित पीछे से देखता रहा और उसके चेहरे पर वही शांति लौट आई...जिसे वो मिस कर रहा था...और उस दिन उसे पहली बार समर्पिता बहुत जरूरी सी लगी....वो अहसास जिसके बिना जिंदगी बेजान हो जाती है .... लेकिन पता नहीं क्यों....वो अपने कदम पीछे खींच लेना चाहता था....

***********

वक्त बीतता गया....और समर्पिता के मन में उसके लिए अहसास बढता गया....इन अहसासो से अछूता तो वो भी नहीं था....पर अपने कदम आगे बढ़ा नहीं पाता था.... इसलिए समर्पिता ने एक दिन हिम्मत करके अपने मन की सारी बातें एक कार्ड पर लिखकर उसकी बुक में डाल दी....एक हफ्ता बीत गया ... लेकिन ना ही उसका कोई जवाब आया और ना वो खुद कॉलेज आया ...समर्पिता बहुत परेशान हो गई...वो उसका कॉल भी नहीं उठा रहा था 

एक रात

बहुत तेज बारिश हो रही थी....समर्पिता उदास सी बिस्तर पर करवटें बदल रही थी...कि रचित का मैसेज आया

"'कम आउटसाइड "
समर्पिता ने देखा और वो खुशी से झूम उठी... उसने फट से चप्पलें पहनी और बाहर चली गई 


सामने रचित खड़ा हुआ था .... बारिश में पूरा भीगा हुआ... लेकिन चेहरा बिल्कुल ठंडा था उसका


वो कुछ पूछ पाती ... उससे पहले ही रचित ने अपने पीछे से उसका दिया कार्ड निकलाते हुए पूछा 

" ये क्या है समर्पिता "

समर्पिता ठिठक गई...और कहा 

" तुमने पढा नहीं इसे "
उसने पूछा 

वो आगे बढ़ा और उसके पास आकर खड़ा हो गया

" हम सिर्फ दोस्त हैं ...और यही हमारे रिश्ते का फ्यूचर भी है "
समर्पिता का दिल धक्क से रह गया...ऐसा तो नहीं सोचा था उसने....

वो कुछ पल उसे देखती रही... जैसे उसके कहीं पर विश्वास ही ना हो

" मुझे लगा कि तुम....
कहते कहते वो चुप हो गई और अपना सर झुका लिया।।।
आंखें भर आईं थी उसकी 


" मै....सिर्फ तुम्हारा दोस्त हो सकता हूं... उससे बढ़कर मेरे मन में कुछ नहीं है "
रचित ने कहा तो समर्पिता मुठ्ठियां अपने कपड़ों पर कस गई


" क्या मेरी फिलिंग्स की कोई वैल्यू नहीं है...तुम्हारे लिए "
समर्पिता ने रुंधी आवाज में कहा 

" काश‌ इसके सहारे जिंदगी भी कट सकती समर्पिता .....देखो मुझे...क्या हूं मैं....और तुम...बचपन से लग्जरी में जीती आई हो....और मेरे पास खाने के लिए सिर्फ दो वक्त की रोटी है...वो भी पापा की वजह से.... ग्रेजुएशन मैंने अपनी स्कालरशिप से पूरी की है...और इसके अलावा मेरे पास कुछ नहीं है... जिसके दम पर मैं तुम्हें कमिटमेंट कर सकूं "
उसने कहा 

" क्या हम मिल कर अपनी जरूरते पूरी नहीं कर पाएंगे... क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं या खुद पर... यकीन मानो में एडजस्ट कर सकती हूं सिचुएशन के हिसाब से ‌"
समर्पिता ने कहा 

" वहीं तो नहीं चाहता मैं....जब तुम बेहतर डिजर्व करती हो...तो मेरे साथ सारी उम्र एडजस्टमेंट क्यों करना चाहती हो "
रचित ने कहा 

" क्योंकि आई लव यू डेम इट...इतनी सी ही तो‌ बात है..क्या इसे समझना बहुत मुश्किल है"
समर्पिता ने बेबसी से कहा 

" समझना मुश्किल नहीं है...निभाना मुश्किल है समर्पिता...सिर्फ प्यार के सहारे जिंदगी नहीं कटती...ये बात कड़वी है पर सच है....और जरा अपने पेरेंट्स के बारे में तो सोचो "
उसने कहा 

" मैं उन्हें कन्विंस कर लूंगी...जस्ट ट्रस्ट मी "
समर्पिता ने कहा 

" क्या कहोगी उनसे....कि तुम ऐसे लड़के से प्यार करती हो... जिसके पास ना घर है...और ना जॉब है और ना ही  कोई सिक्योरिटी...क्या कहोगी उनसे तुम एक ऐसे लड़के से प्यार करती हो जिसके पापा.. चाय की दुकान चलाते हैं....और ये जानकर उन्हें... कैसा लगेगा कभी सोचा है"
उसने कहा 

" प्लीज़ "
उसने कहा 

" लगा ना बुरा समर्पिता...तो सोचो उन्हें कैसा लगेगा .. जिन्होंने बीस साल तक शायद ही अपनी बेटी को कोई कमी कभी आने दी हो.....कैसे देख पाएंगे वो अपनी बेटी को सारी उम्र एडजस्टमेंट करते देख...हम नहीं समझ सकते पर पेरेंट्स के लिए बच्चों का दुख उनके  खुद की तकलीफ़ से कहीं ज्यादा सालता है.....और अगर वो मान भी  गए...तो क्या मैं कभी उनसे नज़रें मिला सकूंगा.....किस बुनियाद पर उनसे सर उठा कर  कह पाऊंगा कि मैं आपकी बेटी को कभी कोई तकलीफ़ नहीं आने दूंगा.... जबकि मुझे फिल्हाल खुद भी नहीं पता मैं अपनी जिंदगी के साथ क्या करुंगा..और मैं शायद ही कभी उस रिश्ते को खूबसूरत बना पाऊं... जिसमें मैं कभी सर ना उठा पाऊं...यही जिंदगी की हकीकत है समर्पिता...सिर्फ प्यार से जिंदगी नहीं गुजारी जा सकती.."
उसने कहा 

" क्या तुम मेरे लिए कुछ भी महसूस नहीं करते....जरा‌ सा भी नहीं"
समर्पिता ने कहा 
" खूबसूरत सपने जीने का मन सबका करता है... समर्पिता...पर अफ़सोस मेरी हकीकत इसकी इजाजत मुझे नहीं देती...."
उसने गहरी सांस‌ ली और फिर कहा 

" अभी जिंदगी बस शुरू ही हुई है .... खुशी से आगे बढ़ो... अभी बहुत कुछ करना है तुम्हें... उसकी शुरुआत करो... खुद को मजबूत करने से....आगे‌ पढ़ो... इंडिपेंडेंट बनो.... ताकि जिंदगी में कभी भी समर्पिता सिंह राणा को कोई भी इस तरह कमजोर ना कर पाए "
उसने समर्पिता के सर पर हाथ रखते हुए कहा...और फिर पलटकर दूसरी और चला गया ....और इस तरह गया कि उसने पलटकर एक बार भी समर्पिता की और नही देखा ...और उसके बाद ना ही अपनी कोई खबर उस तक पहुंचने दी....

लेकिन वो...वहीं खड़ी रही गई...तब तक उस दिशा में देखती 
जब तक वो उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो गया...उस दिन बारिश ज्यादा बरसी थी या उसकी आंखों में आंसू....तय करना मुश्किल था... बहुत मुश्किल होती है उस‌ वक्त की शुरुआत...जब एक चंचल और अल्हड़ सी लड़की एक धीर गंभीर औरत में तब्दील होती है...और उसका पहला अहसास आज समर्पिता को हो चुका था 

अगर देखा जाए तो क्या ही टूटा था...वो रिश्ता जो कभी शुरू ही नहीं हुआ.... लेकिन क्या वाकई....

जो टूटा था वो सिर्फ वो ही जानती थी....उसका पहला प्यार.....पहला अहसास.... इतनी बुरी तरह से उससे दूर हो गया था .....पहला प्यार कितना खास होता है...ये वहीं जानता है जिसने उसके हर अहसास को अपने भीतर हर पल जीया हो..उस बारिश में उसने सिर्फ रचित को ही नहीं खोया था.... बल्कि अपनी अल्हड़ता भी खो दी थी....एक ऐसी चीज जो दुनिया की तमाम दौलत देकर भी नहीं खरीदी जा सकती.... उसके बाद जिंदगी में कितना कुछ भी हासिल हो जाए....उस अल्हड़पन का मुकाबला हो ही नहीं सकता ....उस बारिश के बाद वो जो लौटी थी....वो पहला बदलाव था .....आज की समर्पिता बनने के लिए.... दुनिया आज उसे सराहती है......उस पर गर्व करती है... लेकिन इसके लिए उसने क्या खोया है....उसकी तो शायद ही किसी को खबर हो...और कमाल है ना खुद से लड़ते हुए बाहर मुस्कुरा कर जिंदगी जीना ...और इस जंग के लिए कभी कुछ भी नहीं मिलता ...एक ही शरीर में दो शख्सियतों को जीना कब आसान हुआ है... एक हफ्ते बाद... उसने उस शहर....वो कॉलेज....और वहां बसी रचित की यादों को हमेशा की लिए अलविदा कह दिया....वो तय कर चुकी थी कि उसे आगे अब क्या करना है....जब घर पर उसने आर्मी में जाने के बारे में बताया तो सब चौंक गए... क्योंकि उसका इरादा टेबल टेनिस खेलने का ही था....पर उसके परिवार ने उसे पूरा सपोर्ट किया.... टेस्ट और ट्रेनिंग करने के बाद उसे पहली पोस्टिंग मिजोरम में मिली...उसकी जिंदगी थ्री सिक्सटी डिग्री चेंज हो चुकी थी... लेकिन कुछ नहीं बदला था ...तो वो था रचित के लिए उसका प्यार....

उसके बाद मैंने कभी तुम्हारे बारे में जानने की कोशिश नहीं की रचित.... जैसा तुमने कहा था..वो किस्सा मैंने वही खत्म कर दिया था...

" आज मैं इंडिपेंडेंट हूं...स्ट्रांग हूं.... तुम्हें याद करके मुस्कुराती हूं...
सोचते हुए उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई लेकिन आंखें नम होने से बच नहीं पाई... उसके अंदर के प्रेमिका  आज फिर उस दोस्ती वाले अहसास पर जरा सी भी सही...पर भारी पड़ गई

हम में.. तुम में.. जो था 
वो ख़तम हो गया..
मोड़ पे आख़िरी मैं रह गया...

मेरे लिए तू वोही है ..बदला कुछ नहीं 
खेल है ये वक़्त का सब ...बिगड़ा कुछ नहीं
है कसम तू आके ले चल मुझे फिर वहीँ 
ए मसीहा मेरे आ ज़ख़्म भर भी दे
दर्द में डूबी हुई गहराइयाँ

हम में.. तुम में.. जो था 
वो ख़तम हो गया..
मोड़ पे आख़िरी मैं रह गया...


सब कुछ सही चल रहा था...पर सबसे बड़ा इम्तिहान अभी बाकी था.....

छुट्टियों के दौरान वो घर आई हुई थी....सब लोग रात का खाना एंजाय कर रहे थे.... हंसी मजाक के बीच बहुत अच्छा माहौल बना हुआ था.....

कि तभी उसके कानों में एक आवाज पड़ी...

सियाचिन ग्लेशियर...मे एवलांच के दौरान अपनी टीम को बचाते हुए कैप्टन रचित श्रीवास्तव शहीद हो गए....
उसके हाथ से चम्मच छूट कर नीचे गिर गया.... उसने टीवी स्क्रीन की तरफ देखा तो रचित की फोटो टीवी स्क्रीन पर चल रही थी....उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया और वो वहीं कोलेप्स कर गई....

उसे झब होश आया तो वो एक हॉस्पिटल के कमरे में थी

" सैमी...
वेदिका ने कहा और उसका हाथ पकड़ लिया...

" मैं कुछ टाइम अकेले रहना चाहती हूं दी."
समर्पिता ने कहा 

" ठीक है...मै मॉम डैड...को घर भेजती हूं "
वेदिका ने कहा और बाहर चली गई... जहां उसके डैड सियाचिन की हालत का जायजा ले रहे थे...और उनकी मां परेशान सी खड़ी थी...

" वेदू....सैमी....
उसकी मां ने पूछा... उसके डैड ने भी फोन रख दिया था 

" वो ठीक है मॉम....जस्ट दैट वो उसके साथ पढ़ता था...तो‌ वो‌ शॉक हो गई थी....अब उसका बीपी स्टेबल है....आप घर जाइए ...मै ले आऊंगी उसे, "
वेदिका ने कहा 

" पर वेदू....

" मॉम ... वो ठीक है... और सो रही है ...आप यहां रुक कर करेंगी भी क्या...आप जाइए... मैं थोड़ी देर में उसे डिस्चार्ज करा कर ले आऊंगी "
वेदिका ने समझा बुझा कर अपने पेरेंट्स को घर भेज दिया


" वेदिका वापस अंदर गई और जाकर समर्पिता के पास बैठ गई मैं यही हूं ...सैमी...मैं बस एक कोने में चुपचाप बैठी रहूंगी ओके " 
वेदिका ने कहा

" वो मेरा पहला प्यार था दी....और मैंने आज उसे पूरी तरह से खो दिया "
समर्पित ने बेहद धीमी आवाज में कहा तो वेदिका की आंखों में आंसू आ गए .... कहने की जरूरत ही नहीं थी ...सब समझ चुकी थी वो... जब से समर्पित ने अपना कॉलेज बीच में छोड़ा था और आर्मी में जाने का फैसला लिया था..वो तभी समझ गई थी कि उसके अंदर बदलाव का कारण क्या था... उसकी बहन कैसे रातो रात बड़ी हो गई थी 

" सैमी "
वेदिका ने कहा और उसे गले से लगा लिया... समर्पिता ने भी खुद को नहीं रोका... कितने सालों से खुद को समझाती आई थी.... लेकिन आज वो वजह भी खत्म हो गई थी।।।।

उसके बाद वेदिका उसे अपने साथ नैनीताल ले गई... समर्पिता वहां डेढ़ महीना रही... खुद से जूझती... तन्हा रातों में रोती.... और इस दौरान वेदिका मजबूती से उसके साथ खड़ी रही....पर उसने कभी उसके कभी उसके पर्सनल स्पेस में दाखिल होने की कोशिश नहीं की... क्योंकि वह अच्छे से जानती थी कि इस जख्म का इलाज सिर्फ वक्त ही कर सकता है और फिलहाल उसका अंदर से खाली होना बहुत जरूरी है

" दी... मुझे आपकी हैल्प चाहिए....मै दिल्ली जाना चाहती हूं.... मैंने कुछ फैसला लिया है...
समर्पित ने कहा तो वेदिका ने उसकी बात को अच्छे से सुना और समझा

**********

और दो दिन बाद...वो दिल्ली में थी... रचित के घर के बाहर... उसने कंपकंपाते हाथों से बैल बजाई तो दरवाजा उसकी मां ने खोला 

" नमस्ते आंटी "
उसने कहा 

उसकी मां ने उसे कुछ पर ध्यान से देखा और कहा 

" समर्पिता "
उसने हां में सिर हिला दिया 

" अंदर आओ बेटा "
उन्होंने कहा 

वो अंदर आई तो देखा .... उसके पापा कुर्सी पर बेजिध से बैठे है... समर्पित का दिल चीर  गया कितने सपने थे रचित के अपने परिवार को लेकर

वो गई और घुटनो के बल उनके पास बैठ गई और कहा 

"आय एम सॉरी अंकल "
उसने कहा और सिसक उठी... उसके पापा की आंखें भर आई पर उन्होंने चुपचाप उसके सर पर हाथ रख दिया...ना जाने कितनी ही देर वो रोती रही।।।

" खुद को संभालो बेटा...
उसकी मां ने कहा... जिनकी आंखों में गर्व दिखाई पड़ रहा था अपने बेटे के लिए... समर्पिता ने खुद को संभाला और कहा


" रचित की जगह कभी कोई नहीं भर पाएगा अंकल.... लेकिन फिर भी मैं आपके लिए कुछ करना चाहती हूं... प्लीज़ मना मत करिएगा "
समर्पिता ने कहा और एक कागज निकाल कर... उनके हाथ में रख दिया 

उन्होंने कागज खोल कर देखा तो वो बारह लाख रुपए का चैक था...वो चौंक उठे...

बेटा ये....
उन्होंने कुछ कहना चाहा पर समर्पिता ने उनके दोनों हाथ पकड़ लिए 

" आप जानते हैं अंकल ... मैंने हमेशा आपको अपने पिता की तरह माना है... अपनी बेटी समझ के रख लिजिए "
समर्पिता ने कहा 

बेटा रचित हमारे लिए सब सोच कर ही गया है....और तुमसे मैं इतने सारे पैसे....
कहते कहते रूक गए वो

" चिंता मत करिए अंकल...ये मेरी मेहनत के है...आपकी बेटी के मेहनत के....
समर्पिता ने कहा 

" नहीं बेटा मेरा दिल नहीं मानता... अपनी बेटी की मेहनत की कमाई मैं नहीं ले सकता और मुझे इसकी जरूरत भी नहीं है "

उसके बाबा  ने कहा और चैक उसे लौटा दिया 

" आप जानते हैं ना... ग्रेजुएशन के पूरा टाइम रचित ने ही मुझे पढ़ाया है....
समर्पिता ने कहा तो उन्होंने हां में सर हिला दिया 

" तो इस हिसाब से वो मेरा गुरु हुआ...उस वक्त मैं उसे कुछ दे नहीं पाई थी...तो अब इसे मेरी गुरु दक्षिणा समझ कर रख लिजिए प्लीज़ अंकल "
समर्पिता ने कातर भाव से कहा और चैक उनके हाथों में फिर से रखकर बच्चों की तरह सुबक पड़ी...

उसके बाबा ने एक नजर अपनी पत्नी की और डाली....जो बड़ी गहरी नजरों से समर्पिता को देख रही थी.... उन्हें समर्पिता की रचित के लिए भावनाएं समझते वक्त नहीं लगा... इसलिए वो हैरान होने से कहीं ज्यादा नतमस्तक थी... उसके समर्पण के आगे...एक औरत तभी इतनी शिद्दत से किसी से जुड़ती है....जब वो उसे अपने अंदर हर पल जीती हों...और आज उन्हें रचित की किस्मत पर नाज़ हो उठा....पर अफसोस भी... क्योंकि उसे महसूस करने के लिए आज रचित वहां नहीं था ...

उनकी पत्नी ने उनकी और देखा और हां में सर हिला दिया...वो जानती थी... इससे सबसे ज्यादा सुकुन समर्पिता को ही मिलेगा ...और कहीं ना कहीं रचित को भी...

" ठीक है बेटा "
उन्होंने समर्पिता के सर पर हाथ फेरा और उस चेक को अपनी जेब में डाल लिया

" तुम जानती हो... रचित तुम्हें पसन्द करता था..."
रचित की मां ने कहा तो वो चौंक उठी 

" ऐसा कुछ नहीं है आंटी "
समर्पित ने कहा

" एक मिनट रुको " 
रचित ने कहा और वह अंदर चली गई ...थोड़ी देर बाद वह कुछ फोटोग्राफ हाथ में लेकर आई और उसके आगे रख दिए समर्पित ने देखा तो  वो उसकी और रचित की कॉलेज की दिनों की फोटोस थी

" दोस्त की फोटो रखना कोई बड़ी बात नहीं है समर्पिता लेकिन एक दिन में उसे हजारों बार बार देखना बड़ी बात है...कई बार तो तुम्हरी तस्वीर उसके तकिये के नीचे भी मिली है मुझे "
रचित की मां ने कहा तो उन तस्वीरों को देखती हुई समर्पिता सन्न रह गई "


तो उसका प्यार कभी एक तरफा था ही नहीं 

" मैं नहीं जानती कि रचित ने जान बूझ कर तुमसे दूरी क्यों बनाई बेटा .... लेकिन आज जब सोच रही हूं तो लगता है अच्छा ही हुआ...वरना तुम्हे भी इस असमय इस दुख से गुजरना पड़ता .... अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो बेटा...गुजरा कल तकलीफ के अलावा कुछ नहीं देता "
रचित की मां ने कहा तो समर्पिता की मुट्ठियां भींच गई...

वो बिना कुछ कहे वहां से बाहर निकली....और गाड़ी में जाकर बैठ गई... मुश्किल से जो आंसू रोके हुए थे...वो अब तेजी से बह गए....बुरा लगा उसे ये बात सुन कर...

रचित के साथ उसका रिश्ता क्या नहीं था??? इतने साल उसकी यादों में गुजार दिए .... कोई भी आज तक उसकी जगह नहीं ले पाया उसके मन में...क्या उन भावनाओं का कोई मोल नहीं ... समाज के नियमों की इज्जत करती है वो... लेकिन कोई रिश्ता अगर इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाया ...तो वो बेमाना तो नहीं हो जाता ....अगर ऐसा होता तो प्यार शब्द का मोल ही क्या रह गया ....प्रेम की याद में वो अनिगनत गुलाब यू ही नहीं किताबों में संभाले गए होते...यू ही नहीं जर्जर हो चुके खत को कोई सीने से लगाए घूमता...प्यार का ताल्लुक रहा ही भावनाओं से है...मन से है... रस्में तो औपचारिकता भी नहीं है....प्यार में...और यही ही तो रिश्ता रहा है...उसका रचित से ... हां शायद किसी के लिए उसे समझना मुश्किल हो... लेकिन उसके लिए रचित नाम का जो अहसास है...वो हमेशा उसके अंदर रहेगा ही... हमेशा की तरह खूबसूरत यादों के रुप में...

और उस दिन भी खूब रोई...... लेकिन वो आखिरी बार था...उसके बाद जो समर्पिता लौटी....वो और भी ज्यादा मजबूत और मैच्योर थी....और एक बार फिर उसके फैसले ने सबको चौका दिया जब उसने कहा...वो एक सियाचिन पायनियर बनना चाहती है.... लेकिन वेदिका इसका कारण जानती थी....

" वो नहीं चाहती थी कोई और रचित श्रीवास्तव उन वादियों में गुम हो जाए "
उसने ट्रेनिंग ली और लेह में 114 हैलीकॉप्टर यूनिट मे उसकी रिक्रूटमेंट हो गई 


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ये थी मेरी कहानी जो दिल्ली की सर्दी में शुरू होकर दिल्ली की बारिश में खत्म हो गई 

नचिकेत बिल्कुल सन्न रह गया....तो ये था जो समर्पिता के अंदर हर रोज टीस मारता था...जब भी सियाचिन में पोस्टिड कोई जवान शहीद होता तो वो खुद को माफ क्यो नही कर पाती थी...ये आज उसे समझ आया था...क्यो ये चीजें उसके लिए इतनी पर्सनल हो जाती थी कि खुद को ही भुला दिया करती थी वो... कुछ पल तो वौ कुछ कह ही नहीं पाया....उसे समझ नहीं आया कि कौन से शब्द उसके दर्द की बराबरी कर पाएंगे 


" आई एम सॉरी नचिकेत... हमारी सगाई हो चुकी है और मैं तुमसे यह सब कहते कहते रुक गई  वो... क्योंकि नचिकेत ने उसे खींचकर गले से लगा लिया था 

" हम पार्टनरस है सैमी और पार्टनरशिप हर चीज में होती है ...वो तुमसे बहुत प्यार करता था और यकीन मानो बहुत हिम्मत लगती है... अपने प्यार को जाने देने में...उस दिन बारिश में सिर्फ तुम ही नहीं टूटी थी .... उसने भी खुद को खो दिया था.... बस वह टूट नहीं सकता था क्योंकि उसकी जिम्मेदारियां उसे ऐसा करने की इजाजत नहीं देती थी... इसीलिए उसने खुद को तुमसे दूर कर लिया...आय एम रियली प्राउड ऑफ हिम "
नचिकेत ने कहा तो वो रो दी..... बरसों बाद उस पुराने जख्म ने  सर उठाया था....उतना ही तेज...और उतनी ही बेबसी....


नचिकेत ने उसे रोने दिया....बस वो उसका सर सहलाता रहा

" आज समर्पित ने उसके सामने खुद को उधेड़ ही नहीं था बल्कि उसके रिश्ते की भी जीत हुई थी... वह उस पर विश्वास करती थी... उसके साथ सहज थी तभी तो खुद को इस तरह खोल कर रख पाई थी.. ये...उसकी जीत ही तो थी.... कुछ रिश्ते होते हैं जो आकर्षण से शुरू होकर लंबा सफर करते हुए विश्वास तक जाते हैं और यहां तो दोनों का रिश्ता ही विश्वास से शुरू हुआ था तो बाकी चीजें  एक दिन तो अपने आप हो ही जाएगी ... इसका नचिकेत को पूरा विश्वास था...

और इस तरह अपने रिश्ते को और मजबूत करते हुए वो दोनों वापस अपनी ड्यूटी पर लौट आए

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बर्फ़बारी तेज़ हो चुकी थी... आसमान में मोटे सफ़ेद बादल गहराते जा रहे थे... लद्दाख की तंग घाटियों के बीच एक सैटेलाइट कॉल से सूचना मिलती है –
"एक गर्भवती महिला...जिसकी डिलिवरी किसी भी पल हो सकती है...ज़मीन पर फँसी हुई थी ... वहां एम्बुलेंस पहुंचना असंभव है था... हेलिकॉप्टर ही एकमात्र उम्मीद थी

लेह एयरबेस – ऑपरेशन रूम में

"स्क्वाड्रन लीडर समर्पिता सिह...मौसम बहुत ख़राब है... विज़िबिलिटी कम है और वाइंड स्पीड 40 नॉट्स के पार... क्या आप ये ऑपरेशन कर पाएंगी?"
उसके कमांडर ने पूछा 

" येस सर....आई विल डू इट "
समर्पिता ने मजबूत आवाज में कहा 

" ओके...गो अहेड दैन "
कमांडर ने कहा तो उसने सैल्यूट किया और बाहर आ गई...

हैलीकॉप्टर रैडी था
उसने खुद हर स्क्रू, हर वायरिंग ठीक से चैक किया...क्रू में दो पैरामेडिक्स और एक को-पायलट उसके साथ था...उनके चेहरे पर चिंता साफ दिखाई पड़ रही थी... लेकिन उसकी आंखों में आत्मविश्वास चमक रहा है।

" फ्लाइट चैक...एविओनिक्स...रोटर सिस्टम...फ्यूल लेवल...टेरेन मैप......ऑल ग्रीन...लेट्स लिफ्ट "
समर्पिता ने इंटरकॉम में कहा 

हेलिकॉप्टर ज़मीन से ऊपर उठा... हवा ज़ोरों से उसे पुश दे रही थी....पहाड़ों के बीच उड़ना आसान नहीं ... मौसम खराब था तो...हर मोड़ पर टर्बुलेंस हो रही थी... समर्पिता एक हाथ से कंट्रोल स्टिक थामे, दूसरे से ऑल्टिमेटर चेक कर रही थी

"मैम, राइट फ्लैंक पर क्लाउड बिल्ड-अप भारी है... विज़िबिलिटी 800 मीटर से कम हो रही है।"
को पायलट ने कहा 

एल्टीट्यूड स्टीडी एट  10,000 ft. ...हम GPS और terrain avoidance radar से ट्रैक करेंगे...घबराओ मत, हम पहुँचेंगे।"

30 मिनट बाद

नीचे सिर्फ बर्फ़ ही बर्फ़ थी.... जहां छोटा सा घर दिखाई दे रहख था..उसके पास तीन लोग लाल कपड़े लहरा रहे थे... समर्पिता हेलिकॉप्टर नीचे उतारने लगती है..., पर वहां लैंडिंग स्पॉट बेहद छोटा था

"Hover landing करेंगे – wheels जमीन को छूएँगे नहीं... स्टेबल रखो, मैं descent angle सेट कर रही हूँ।"
समर्पिता ने कहा क्योंकि सॉफ्ट लैंडिंग पॉसिबल नहीं थी

हेलिकॉप्टर हवा में स्थिर होता था और पैरामेडिक्स नीचे रस्सी से उतरते हैं।

वहां एक औरत...ज़मीन पर लेटी थी..., दर्द से कराहती हुई
"मैं मर जाऊंगी... मेरा बच्चा..."
उसने कहा 

"नहीं, तुम बिल्कुल ठीक रहोगी.... तुम्हें सैफ अली पहुंचना मेरी जिम्मेदारी है... मैं स्क्वाड्रन लीडर समर्पिता सिंह हूँ... तुम और तुम्हारा बच्चा दोनों ठीक रहेंगे आई प्रॉमिस "
उसने कहा

पर... मुझे बहुत डर‌ लग रहा है..."
उस औरत ने कहा 

"डर तो मुझे भी लगा था पहली बार उड़ते समय... लेकिन मैंने अपने आप से कहा, 'डरने का वक्त नहीं, उड़ने का वक्त है।' तुम्हें भी वही करना है – बस एक सांस लो... मेरे साथ‌ चलो "
समर्पिता ने मुस्कुराते हुए कहा 

महिला को स्ट्रेचर पर लिटाया गया... समर्पिता ने खुद उसे बेल्ट से बांधा...और ये  सुनिश्चित किया कि वह स्थिर रहे।

और हेलीकॉप्टर ने फिर एक बार उड़ान भरी
वापसी की उड़ान और भी मुश्किल थी..ऑक्सीजन लेवल लगातार गिर रहा था...और मौसम भी  और खराब हो गया था ... फिर  भी उसका हाथ नहीं कांपा

" Fuel level critical है मैम...लेह तक बस एक प्रयास का मौका है "
को-पायलट ने कहा 

Altitude 12,000 ft. ....Heading 260.... Radar assist on.... हम लैंड करेंगे....हारना कोई ऑप्शन नहीं।"

कुछ देर बाद...लेह एयरफोर्स बेस

हेलिकॉप्टर ज़मीन पर सक्सैसफुली लैंड कर गया 

डॉक्टर....वहां पहले से ही मौजूद थी...उसमहिला की हालत को देखते हुए उसे तुरंत तुरंत लेबर रूम में ले जाया गया ... अभी बहुत देर नहीं हुई थी... सब कुछ ठीक से हो सकता था

समर्पिता ने राहत की मुस्कान के साथ आसमान की ओर देखा 
और फिर उसने एक गहरी सांस ली...

तभी उसकी नज़र रनवे के किनारे खड़े एक नचिकेत पर पड़ी 

उसके कंधों पर वूलन जैकेट... चेहरे पर चिंता और गर्व का मिला-जुला भाव था
उसकी आंखें बस समर्पिता को ही देख रही थी

समर्पिता एक पल के लिए ठिठकी 

और फिर वो दौड़ पड़ी उसकी तरफ...उड़ते बाल ...भारी बूट्स के बावजूद उसके कदम तेज थे...नचिकेत भी उसकी ओर बढ़ा और उसे गले से लगा लिया 

समर्पिता ने सिर उसके सीने में छुपा लिया जैसे सारी थकान वहीं बह गई हो... उसकी 

" आय एम स़ प्राउड ऑफ यू सैमी...."
नचिकेत ने कहा और उसके माथे को चूम लिया 

"एक पल को उस औरत को देख कर मै डर गई थी...पर सब कुछ ठीक हो गया नचिकेत... वो और बच्चा दोनों सुरक्षित हैं..."
समर्पिता ने कहा 

" यू डिड इट सैमी 
नचिकेत ने कहा और उसे गले से लगा लिया 

समर्पिता की नजर दूर पहाड़ों पर टिक गई 

"रचित... काश तुम होते... देख पाते... लेकिन जब तक मैं ज़िंदा हूँ, मै... जब तक मैं हूँ, मैं उड़ती रहूँगी... तुम्हारे लिए "
उसने मन ही मन कहा 

नचिकेत ने उसके चेहरे की तरफ़ देखा... वो जानता था..., समर्पिता के लिए सिर्फ...ये सिर्फ़ एक मिशन नहीं था... ये उसके दिल की ज़मीन थी...जहाँ कहीं रचित अब भी साँस लेता था

"चले? हीरोइन को रेस्ट भी चाहिए..."
नचिकेत ने उसकि हाथ पकड़ते हुए कहा 

"हीरोइन नहीं… सोल्जर "
समर्पिता ने मुस्कुराते हुए कहा 

दोनों धीरे-धीरे बेस की ओर बढ़ गए ...बर्फ के बीच...आसमान नीला हो रहा था..


प्यार सिर्फ़ साथ चलने का नाम नहीं...होता
कभी-कभी ये उन उड़ानों में भी होता है जो अकेले भरनी पड़ती हैं...प्यार वो ताक़त है ...जो हमें गिरने नहीं देती...
वो याद जो रास्तों में हो... वो वादा जो साँसों में जिया जाए
जब दिल में प्यार हो...तो बर्फ़ भी पिघलती है...
और सबसे ऊँचा आसमान भी झुक जाता है।
रचित... तुम्हारा प्यार मेरी ताक़त है और जब तक मैं हूँ... 
मैं उड़ती रहूँगी।"

(समाप्त)