"इश्क अधूरा – एक और गुनाह का देवता"
शादी के बाद की पहली रात, जब सबने दरवाज़ा बंद किया,
निधि का दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
वो कोई परियों की कहानी वाली दुल्हन नहीं थी,
वो बस चाहती थी कि उसका पति उसे देखे —
सिर्फ़ ज़िम्मेदारी की तरह नहीं,
बल्कि उस स्त्री की तरह जिसे उसने चुना है।
लेकिन उस रात भी शब्दों का अभाव था।
उसके पति ने बस हल्की-सी मुस्कान दी,
और धीरे से कहा — "सो जाओ, थक गई होगी।"
निधि ने आँखें मूँद लीं,
पर भीतर कुछ टूट गया था —
वो इंतज़ार जो उसने वर्षों से किया था,
वो छुअन, वो अपनापन… सब खामोशी में गुम हो गया।
> उसने सुधा को नहीं चुना, इसलिए सुधा अमर हो गई।
उसने मुझे चुना — इसलिए मैं रोज़ मारी गई।
यह मेरी कहानी है — निधि की। एक पत्नी की, जिसका इश्क अधूरा रह गया…
🎬 श्रृंखला शीर्षक: एक और गुनाह का देवता
🧨 *एपिसोड 1: "मैं निधि हूँ, कोई सुधा नहीं"
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> उसने सुधा को नहीं चुना, इसलिए सुधा अमर हो गई।
उसने मुझे चुना — पत्नी बना लिया — इसलिए मैं रोज़ मारी गई।
वो प्रेमिका थी, तो दुनिया ने उसकी मासूमियत को पूजा।
मैं पत्नी थी, तो मेरे त्याग को बस 'फर्ज़' कहकर टाल दिया गया।
मैं सुधा नहीं थी — इसलिए मेरी चुप्पी कभी कविता नहीं बनी।
उसने सुधा को मना किया — सुधा चली गई।
उसने मुझे बुलाया — मैं चली आई।
सुधा ने प्रेम को त्याग दिया — उसे महान बना दिया गया।
मैंने प्रेम को निभाया — मुझे तो बस भुला दिया गया।
आज मैं कहती हूँ — मैं निधि हूँ। कोई सुधा नहीं।
लेकिन मेरी कहानी भी अधूरी नहीं रहेगी…।
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🕯️ भूमिका
यह कहानी किसी प्रेमिका के ख़िलाफ़ नहीं है।
यह कहानी उस स्त्री की है — जो पत्नी बन गई, और फिर प्रेमिका भी बनी — सिर्फ़ अपने पति के लिए।
जिसने चाहा, निभाया, स्वीकारा, अकेलेपन सब कुछ सहा, ताकि पति एक दिन समझे –
कि सच्चा प्रेम सिर्फ़ वो नहीं जो छोड़ दे...
बल्कि वो भी है – जो सब कुछ सहकर भी साथ बना रहे।
यह कोई तुलना नहीं है, बल्कि उस स्त्री के हिस्से का प्रेम दिखाने का प्रयास है,
जिसे किसी ने कविता नहीं बनाया, सिर्फ़ पत्नी कहा।
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📚 एपिसोड की शुरुआत:
🧕 निधि - एक सुबह की शुरुआत
निधि धार्मिक प्रवृत्ति की एक साधारण लेकिन गहराई से भरी लड़की थी।
उसका जीवन बहुत सीमित और अनुशासित था — लेकिन उसमें एक अलग शांति और चमक थी।
गली के छोटे-छोटे बच्चे उससे बहुत प्यार करते थे,
क्योंकि वह उन्हें हर शाम छत पर बैठकर कहानियाँ सुनाया करती थी —
कभी राम की, कभी सीता की, तो कभी किसी सत्य बोलने वाले बालक की।
निधि को सबसे ज़्यादा प्रिय थी उसकी पढ़ाई, पूजा,
माता-पिता, सहेेली रूबी, और उसका छोटा भाई।
उसके जीवन में इन कुछ लोगों के अलावा और कोई नहीं था।
हर दिन सुबह चार बजे उठना, स्नान करके पूजा करना, तुलसी को जल देना और फिर ध्यान लगाना — यही उसका नियम था।
इसके बाद वह घर के छोटे-मोटे काम में माँ की मदद करती और फिर कॉलेज के लिए तैयार हो जाती।
कॉलेज उसका संसार नहीं था, वह बस एक लक्ष्य था —
अच्छे अंकों से पढ़ाई पूरी करना, माँ-बाबा का नाम रोशन करना।
निधि भीड़ का हिस्सा नहीं थी — वह भीड़ से अलग चलने वाली थी।
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