Tum Befikar Raho in Hindi Moral Stories by Shiva Sharma books and stories PDF | तुम बेफिक्र रहो...

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तुम बेफिक्र रहो...

नमस्ते साहब, मेरा नाम चमन है। मुझे राजेश साहब ने भेजा है। क्या यह संजीव साहब का मकान है?
ओह चमन, आओ आओ। तुम बिल्कुल ठीक जगह पर पहुंचे हो, यह संजीव का ही मकान है और वो संजीव मैं ही हूँ। राजेश ने बताया था मुझे तुम्हारे बारे में।
वैसे घर ढूंढने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई?
नहीं साहब जी, आपका नाम पूछते-पूछते यहां आ पहुंचा।
अच्छा पहले पानी लोगे या सीधे चाय मंगवाऊं?
नहीं साहब, आप बस मुझे काम बता दीजिए, करना क्या है। चाय-पानी तो साथ-साथ होता रहेगा।
अरे वाह चमन, काम के प्रति काफी समर्पित दिखते हो? चलो तुम्हें बगीचे में लिए चलता हूं।
चमन को सारा काम समझाने के बाद, संजीव अपने कामों में व्यस्त हो गया और दिन कब व्यतीत हो गया, किसी को पता ही नहीं चला।

शाम को हाथ-मुंह धोने के बाद चमन ने अपने घर जाने से पहले संजीव से हिचकिचाते हुए दबे स्वर में कहा, साहब, एक बात कहनी थी आपसे।
पहले एक हाथ से अपने आज के पैसे और दूसरे हाथ से चाय का प्याला पकड़ो, फिर कहो जो कहना है। संजीव ने चमन से कहा।

साहब, वो यदि आपके दफ्तर में मेरे बेटे के लिए कोई नौकरी हो तो?
इस पर संजीव ने चमन से उसके बेटे की पढ़ाई के विषय में पूछा।
तब चमन ने बताया कि उसके बेटे ने स्नातक तक पढ़ाई की है और अभी हाल ही में कंप्यूटर कोर्स पूरा करके नौकरी की तलाश में भटक रहा है।

यह सुन संजीव ने कहा, देखो चमन, नौकरी तो है परंतु उसके लिए कुछ समय लग सकता है।
साहब कितना समय? चमन ने संजीव से पूछा।
इस पर संजीव ने कहा, एक दो महीनों के अंदर काम बन सकता है। तुम अपने बेटे से कहना, आते-जाते मुझे अपने सारे दस्तावेज पकड़ा जाए। बाकी मैं देख लूंगा। तुम बेफिक्र रहो।

इतना सुनते ही, चमन के अंदर आशा की एक नई किरण का उदय हुआ और संजीव का धन्यवाद करते हुए बेहद खुशी के साथ वह अपने घर की ओर चल दिया।

उसी शाम चमन ने अपने बेटे विजय को संजीव के घर उसके दस्तावेज पहुंचाने के लिए कहा। विजय भी बहुत प्रसन्नता के साथ संजीव के घर जाकर अपने सारे दस्तावेज पहुंचा आया।

कुछ महीनों बाद, चमन झिझकते हुए संजीव के घर गया। जैसे ही संजीव ने दरवाजा खोला, वैसे ही चमन को देख कर उसे तुरंत विजय की याद आ गई।
चमन के आने का कारण तो संजीव समझ चुका था, फिर भी बात से अंजान बनते हुए संजीव ने चमन से पूछा, कहो चमन कैसे आना हुआ?

वो साहब, मैं यहां से गुजर रहा था तो सोचा आपसे विजय की नौकरी के बारे में पूछता चलूं।
अच्छा अच्छा, तो तुम विजय के लिए आए हो?
अभी फाइल अप्रूवल को भेजी है। जैसे ही अप्रूवल मिलेगी, मैं खुद तुमसे संपर्क कर लूंगा। तुम बेफिक्र रहो और हां, बगीचे में घास ज्यादा उग आया है, अगले हफ्ते आकर इसे काट देना।
जी साहब, मैं अगले हफ्ते आ जाऊंगा।
इससे ज्यादा कुछ कहने के लिए ना तो चमन के पास कोई शब्द थे और ना ही चमन कुछ कह पाया।
चमन जैसे ही अपने घर पहुंचा, विजय ने खुशी से अपने पिता से कहा, पिता जी, मुझे एक दुकान पर नौकरी मिल गई है। पूरे पांच हजार महीने तनख्वाह के साथ।

इतना सुनते ही चमन ने विजय को फटकार लगाते हुए कहा, क्या दुकान में बैठेने के लिए मैंने तुझे इतना पढ़ाया-लिखाया? जब संजीव साहब ने कहा है कि वह तुझे सरकारी नौकरी में लगवा देंगे तो फिर क्यों दुकान में बैठेने के लिए उत्सुक हो रहा है?

लेकिन पिता जी कब तक? आज पूरे पांच महीने हो गए उनको आज-कल आज-कल करते हुए। आखिर कब तक मैं घर पर बैठा रहूं? विजय ने अपने पिता से ऊंचे स्वर में कहा।

यह सुनते चमन बिना कोई जवाब दिए वहां से चला गया और अगली ही सुबह चमन संजीव के दोस्त, राजेश के पास गया।
अरे चमन, तुम इतनी सुबह-सुबह? सब ठीक तो है ना?

राजेश के इतना पूछने पर चमन ने रुंधे स्वर में कहा, कुछ भी ठीक नहीं है साहब। आज पढ़ लिखकर मेरा बेटा विजय घर बैठा है। आपके दोस्त संजीव साहब ने विजय को नौकरी में लगाने की बात कही थी, परंतु आज पांच महीने हो गए और अभी तक उनकी फाइल बापिस नहीं आई? यदि आप उनसे आखिरी बार पूछें तो ठीक रहेगा। कम से कम उम्मीद तो खत्म होगी।

रुको मैं अभी संजीव को फोन करके पूछता हूं, तुम परेशान मत होओ।

संजीव से कुछ देर बात करने के बाद राजेश ने चमन से कहा, फाइल अप्रूवल को गई है, जैसे ही आएगी वैसे ही काम हो जाएगा।

इस पर चमन ने तुरंत कहा, हां हां यही शब्द उन्होंने मुझसे भी कहे थे।
लेकिन अभी तक फाइल बापिस नहीं लौटी?

राजेश ने ढांढस बांधते हुए कहा, अरे चमन, इस प्रक्रिया में थोड़ा समय लगता है और संजीव कह रहा है कि अभी शायद और दो हफ्ते लग सकते हैं। तब तक इंतजार के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। और वैसे भी यदि संजीव ने तुम्हें जुबान दी है तो वह अपनी बात पूरी करके रहेगा। बस तुम बेफिक्र रहो।

दो हफ्ते सुन कर चमन को दोबारा से आस जगी। जहां इतने दिन रुके वहां दो हफ्ते और सही और दो हफ्ते तो यूंही निकल जाएंगे।

दूसरी ओर विजय, जहां संभव हो पाता वहां इंटरव्यू देने पहुंच जाता। कुछ एक जगह उसको नौकरी का अवसर तो मिला परंतु बेहद कम तनख्वाह के चलते उसने वे अवसर भी खो दिए।

विजय के पिता को आज भी आस थी तो केवल संजीव की बताई हुई सरकारी नौकरी की। इसी चलते एक महीने बाद वह फिर संजीव के घर जाकर पहुंच गया।

संजीव ने दरवाजा खोलते ही चमन को देख कर पूछा, चमन तुम कहां चले गए थे? याद है ना तुम्हें घास काटने को कहा था? आज तो मैं राजेश को फोन करने ही वाला था और देखो तुम खुद ब खुद चले आए।
हालांकि संजीव को पता था कि चमन उसके घर क्यों आया है। फिर भी संजीव ने घास काटने वाली बात कह कर चमन को बगीचे में काम पर लगा दिया।

चमन भी सीधे तौर पर संजीव से कुछ पूछ नहीं पा रहा था। जैसे-तैसे शाम हुई और बड़ी हिम्मत करके चमन ने संजीव से पूछा, साहब वो फाइल?

हां, हां मैं समझ गया चमन, तुम क्या पूछना चाह रहे हो और हर बार की तरह मेरा जवाब फिर वही है, फाइल अप्रूवल को गई है, जैसे ही लौटेगी वैसे ही तुम्हारा काम हो जाएगा। तुम बेफिक्र रहो।

चमन को बेफिक्र शब्द सुनते-सुनते अब और भी फिक्र होने लगी थी। और इसी चिंता के साथ वह संजीव के घर से अपने घर की ओर निकल पड़ा।
घर पहुंच कर विजय ने फिर उत्सुकता से पूछा, पिता जी क्या कहा संजीव जी ने?

विजय से बिना कुछ बात किए चमन चुपचाप सोने चला गया।
विजय समझ चुका था कि आज फिर पिता जी आश्वासन के अलावा और कोई खबर साथ नहीं लाए हैं।

विजय फिर से नौकरी की तलाश में जगह-जगह जाने लगा परंतु कहीं भी उसे ढंग की नौकरी नहीं मिलती।

फिर अचानक दो महीने बाद राजेश, चमन को ढूंढता हुआ उसके घर आया।

साहब जी आप और यहां? चमन ने हैरत भरे लहजे से पूछा।

राजेश ने कहा, अरे चमन। तुमसे फोन पर संपर्क नहीं हो पा रहा था इसलिए तुम्हें ढूंढता हुआ तुम्हारे घर तक चला आया। खैर, मुझे संजीव का फोन आया था, उसने तुम्हें और विजय को अपने घर बुलाया है। शायद नौकरी के सिलसिले में तुमसे कोई बात करनी है।

इतना सुनते ही चमन के चेहरे पर हल्की मुस्कान झलक आई और विजय से तुंरत संजीव के घर चलने को कहा।

यद्यपि चमन असल बात से अंजान था फिर भी नौकरी शब्द सुनकर वह अपने बेटे विजय के साथ हल्की मुस्कान लिए संजीव के घर की ओर बढ़ रहा था।

कुछ देर बाद चमन संजीव के घर पहुंच गया। संजीव बाहर बरामदे में बैठा उनका इंतजार कर रहा था।
आओ-आओ चमन, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था। फाइल की अप्रूवल आ गई है और यही बात बताने के लिए मैंने तुम्हें यहां बुलाया है।
साहब जी, मतलब विजय की नौकरी लग गई?

अरे नहीं नहीं चमन। अभी तो अप्रूवल आई है। इसके बाद कुछ औपचारिकताएं करनी रहती हैं। फिर जल्द ही साक्षात्कार के लिए विजय को बुला लेंगे।
साहब जी, हो तो जाएगा ना विजय का काम?
तुमसे कहा तो है चमन तुम बेफिक्र रहो।

कुछ देर वार्तालाप करने के बाद चमन और विजय बापिस अपने घर लौट आए। दोनों बहुत खुश थे। विजय हालांकि चयन प्रक्रियाओं के बारे में थोड़ा-बहुत जानता था तो उसने अपने पिता को सब समझाया।

अब दोनों बाप-बेटे के दिन इंतजार में कब बीते जा रहे थे, उन्हें पता ही नहीं लग रहा था। विजय ने अब नौकरी तलाशना भी बंद कर दिया था। धीरे-धीरे समय बीता और तीन महीने बाद विजय के फोन पर एक ईमेल आया, जिसमें उसे पंद्रह दिन बाद साक्षात्कार के लिए संजीव के दफ्तर बुलाया गया था। ईमेल पाकर विजय की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। और पंद्रह दिन बाद नए कपड़े पहन कर विजय पहुंच गया इंटरव्यू देने संजीव के दफ्तर।

इंटरव्यू पैनल का सदस्य संजीव स्वयं था। पैनल ने विजय से जितने भी सवाल पूछे, उनका जवाब विजय ने बेहद समझदारी और बखूबी से दिया। विजय के जवाबों से सारा पैनल बहुत प्रभावित हुआ।

शाम को चमन अपने बेटे विजय को लेकर संजीव के घर आया।
संजीव ने चमन को समझाया, अरे चमन यूं बार-बार मेरे घर आकर तुम बेबजह तकलीफ ले रहे हो। विजय होनहार लड़का है। हम सभी इससे बहुत प्रभावित हुए हैं। और कंप्यूटर की पढ़ाई की जानकारी ने इसे सबसे ऊपर पहुंचा दिया है। बस अगले कुछ दिनों में परिणाम घोषित हो जाएगा और विजय की ईमेल पर नियुक्ति पत्र भेज दिया जाएगा। बाकी जो होगा अच्छा होगा बस तुम बेफिक्र रहो।

अब चमन पूरी तरह से संतुष्ट हो चुका था कि उसके बेटे की नौकरी समझो लग गई। विजय भी बहुत प्रसन्न था।
कुछ समय और बीता और अब दोनों बाप-बेटा हर रोज ईमेल के इंतजार में दिन बिताने लगे। बीतते-बीतते लगभग तीन महीने और बीत गए। परंतु जब कोई भी ईमेल विजय के फोन पर नहीं आया तो चमन को फिर घबराहट होने लगी। चूंकि संजीव उस समय दफ्तर हो सकता था इसलिए वह संजीव के घर ना जाकर सीधा राजेश के पास गया और कहने लगा, साहब आप संजीव साहब से पता कर दो, अभी तक मेरे बेटे विजय के नाम कोई भी नियुक्ति पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। कहीं कार्यालय द्वारा किसी भी तरह की कोई त्रुटि तो नहीं हुई होगी?

रुको चमन, यह काम तो मैं अभी उसको फोन लगाकर किए देता हूं।

कुछ देर घंटी बजने के बाद...
अरे, संजीव फोन क्यों नहीं उठा रहा? पहले तो उसने कभी ऐसा नहीं किया, तो आज अचानक?

अब तो चमन की घबराहट और भी बढ़ने लगी।
राजेश ने स्थिति को भांपते हुए चमन से कहा, शायद वह कहीं व्यस्त होगा। अभी तुम अपने घर जाओ। मैं शाम को खुद उसके पास जाकर विजय के परिणाम का पता कर लूंगा। तुम बेफिक्र रहो।

अब तो चमन बेहद मायूस हो चुका था। फिक्र के चलते उसका चेहरा फीका पड़ चुका था। घर पहुंच कर उसने विजय से भी कोई बात नहीं की। विजय भी पहले इतना मायूस कभी नहीं हुआ था, जितना इस घटना ने उसे मायूस कर दिया था। किसी को कुछ पता नहीं था कि आखिर माजरा है क्या?

शाम होते ही राजेश, संजीव के घर जा पहुंचा।
अरे संजीव, तुम मेरा फोन क्यों नहीं उठा रहे थे?
यार राजेश, मुझे शक था कहीं चमन तुम्हारे साथ होगा। बस इसलिए फोन नहीं उठा पाया।

चमन साथ होगा इसका क्या मतलब हुआ संजीव? भला चमन का मेरे साथ होना और तुम्हारा फोन ना उठाने का आपस में क्या संबंध?

संबंध है राजेश, बहुत गहरा संबंध है। संजीव ने दबी आवाज में कहा।

यार संजीव यूं पहेलियां ना बुझाओ साफ-साफ कहो क्या बात है?

दरअसल, विजय की जगह किसी और को नौकरी पर रखना पड़ गया है। और परिणाम आए तो सात दिन हो चुके हैं।

क्या? राजेश ने गंभीर स्वर में कहा।
हां राजेश।

पर विजय ने तो सारे पैनल को बहुत प्रभावित किया था। यही कहना था ना तुम्हारा? फिर अचानक से तुम्हारा कथन कैसे बदल गया? और एक गरीब ही रहा था तुम्हें मजाक का पात्र बनाने को? कभी सोचा है उस गरीब पर क्या बीतेगी?

हां हां मैंने सब सोचा है संजीव सब सोचा है। भगवान के लिए मुझे जलील मत करो। मैं लाचार था राजेश, क्या करता?

ऐसी भी क्या लाचारी थी संजीव? जरा मुझे भी तो पता चले? राजेश ने अपने तेवर दिखाते हुए संजीव से पूछा।

अगर तुम सुनना ही चाहता है तो सुनो, हम परिणाम घोषित ही करने वाले थे कि अचानक से बॉस को मंत्री साहब का फोन आ गया और उन्होंने अपने भांजे को जिसकी हाल ही में स्नातक पूरी हुई है, नौकरी देने का दबाब बनाया। हमें सब कुछ बदलना पड़ा। यहां तक की हमें अंकों तक से छेड़छाड़ करनी पड़ी, ताकि मंत्री का भांजा इस नौकरी के परिणाम में प्रथम आ सके। अब तुम ही बताओ दोस्त मैं किस मुंह से उस गरीब का सामना करूं?

वाह रे मेरे दोस्त मान गए तुम्हारे तंत्र को।
जो गरीब का बेटा होनहार है, कंप्यूटर का अच्छे से ज्ञान रखता है और विशेषकर कि वह जरूरतमंद है, उसको बाहर कर दिया और जो अभी मात्र स्नातक करके आया ही है, न ज्यादा ज्ञान है, न ही होनहार है, उसे उत्तीर्ण करते हुए नौकरी पर रख लिया। भला मंत्री के भांजे का क्या था, एक नहीं तो कोई दूसरी नौकरी लग जाती। पर विजय जैसे होनहार बेरोजगारों का क्या? तुम्हारा तंत्र ही बेकार है। एक तो छोटी सी अप्रूवल लेने के लिए महीनों निकाल दिए और जब नौकरी देने की बारी आई तो।

यह सारी बातें बाहर खड़ा चमन चुपचाप सुन रहा था। आंखों से आंसू छलकाते हुए चमन अपने घर की ओर निकल पड़ा। घर पहुंच कर पिता की आंखों में आंसू देखकर विजय सब समझ गया और दोनों बाप-बेटे एक दूसरे से लिपट कर खूब रोए। कुछ देर बाद, विजय ने अपने पिता को संभालते हुए कहा, पिता जी मैं कोई ना कोई नौकरी जरूर ढूंढ निकालूंगा। भगवान ने चाहा तो जल्द मेरे पास नौकरी होगी। आप बेफिक्र रहो।
उस दिन के बाद ना तो चमन का सामना संजीव से हुआ और ना कभी संजीव उसे अपने घर काम पर बुला पाया।

शिवालिक अवस्थी,
शीला चौक, धर्मशाला,
जिला कांगड़ा, हि.प्र,
176057,