Do Dil Kaise Milenge - 37 in Hindi Love Stories by Pooja Singh books and stories PDF | दो दिल कैसे मिलेंगे - 37

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दो दिल कैसे मिलेंगे - 37

...अब आगे.........
" आप , युवराज माणिक "
माणिक हंसते हुए कहता है.." हां , हम ..."
माणिक को हंसते देख वैदेही मुंह फुलाए कहती हैं..." यूं एक भोली भाली कन्या को डराते हुए लाज नहीं आती , हम कितना भयभीत हो गई थी..." 
माणिक हल्के से हंसते हुए कहता है..." हमें क्षमा करना, किंतु हम आपको भयभीत नहीं करना चाहते था , केवल हंसी कर रहे थे..."
वैदेही अपनी भाव भंगिमा को तिरछी करके कहती हैं..." ओह ! तो आपके पंचमणि में आतिथ्य इसी प्रकार किया जाता है...."
माणिक को वैदेही की बातों से लग रहा था की उसका मजाक भारी पड़ रहा है , वो वैदेही को नाराज़ नहीं करना चाहता था इसलिए बातों को घूमाते हुए कहता है...." आप हमें हमारी भूल के लिए क्षमा करना, हम तो केवल अपनी रूपांतरण मणि को जांच रहे थे , वैसे आप यहां...?...."
वैदेही कुछ देर पहले हुई घटना को भूलकर अपनी औषधि की डलिया उठाकर, माणिक को दिखाकर कहती हैं...." हम यहां कुछ आवश्यक औषधि के लिए आई है , आपने कहा था, कि पंचमणि औषधियों के लिए भी विख्यात है..."
माणिक अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहता है..." हां, ज़रूर उपचारिका जी..."
वैदेही उसे हल्के गुस्से में कहती हैं...." हमारा नाम वैदेही है , उपचारिका नहीं..."
माणिक हंसते हुए हां में सिर हिला कर उसे अपने साथ चलने के लिए कहता है...." चलिए हम आपको अपने महल ले चलते हैं...."
माणिक वैदेही को लेकर अपने राजमहल में पहुंचता है, वैदेही महल की सुंदरता को देखकर मंत्रमुग्ध हो गई , उसे तो मानो उस महल की सुंदरता अपनी और आकर्षित कर रही हो , चारों सुंदर सुंदर दृश्य उसे लुभा रहे थे, कहीं छोटे छोटे खरगोश का जोड़ा उसे अपनी प्यारी प्यारी आंखों से देख रहा था , ....
वैदेही इन सबको देखकर खुश हो रही थी और माणिक वैदेही को हंसते हुए देखकर मुस्कुराते हुए अपने आप से बातें कर रहा था....." वैदेही , तुम बस एक बार हमारे प्रेम को स्वीकार कर लो फिर हम तुम्हें कभी दुखी नहीं होने देंगे , बस सदैव तुम्हारे इस सुंदर मुख पर हंसी की लालिमा सदैव यूंही रहेगी , ये हमारा वचन है तुमसे...."
माणिक अभी वैदेही को देखते हुए खुद से बातें कर ही रहा था कि वैदेही उसके ध्यान को हटाते हुए कहती हैं...." माणिक जी ! आप हमें औषधि कब दिखाएंगे..."
माणिक उसकी बात सुनकर कहता है...." हां , अवश्य किंतु पहले आप जलपान कर लिजिए , इतनी दूर से आई है , थक गई होंगी..."
वैदेही मना कर देती है लेकिन माणिक के बार बार जिद्द करने पर जलपान करके , उससे फिर से औषधि के लिए कहती हैं , जिससे माणिक उसे औषधि की वाटिका में ले जाता है....
वाटिका में पहुंचकर माणिक किसी को आवाज लगाता है...." भृंगराज जी..!...."
इतनी आवाज सुनकर एक सैनिक उनके पास आकर कहता है..." युवराज की जय हो ..!... युवराज वैघराज जी कुछ के समय लिए विश्राम कर रहे हैं , थोड़ी देर में आ जाएंगे...."
सैनिक की बात सुनकर माणिक उसे जाने के लिए कहता और खुद वैदेही को लेकर वाटिका में चला जाता है.....
औषधियों को देखकर वैदेही काफी खुश थी , हरेक औषधि के पास जाकर उसे छूकर उसके गुण को महसूस करने की कोशिश कर रही थी , तो वहीं बस अपने दिल की बात वैदेही से कहने के लिए उतावला हो रहा था , सही मौका देखकर माणिक वैदेही से कहता है..." वैदेही..! हमें आपसे कुछ कहना है से..."
वैदेही उसकी बात को प्यार से सुनते हुए कहती हैं...." जी..!.. युवराज...."
माणिक थोड़ा हिचकिचाई सी आवाज में कहता है..." हम आपसे प्रेम करते है.... क्या आपको हमारा प्रेम स्वीकार है..?......"
वैदेही हैरानी से माणिक को देखते हुई , सकुचाते हुए कहती हैं....." हमें क्षमा करना माणिक जी ! किंतु हम तो किसी और से प्रेम करते है...."
वैदेही की बात उसे धक्का सा लगता है, आंखों में हल्की सी नमी छा गई  , उदासी भरे शब्दों में कहता है....." आप किससे प्रेम करती है...." 
वैदेही कुछ कहती उससे पहले ही वैद्य भृंगराज वहां पहुंचते हैं ....." युवराज ! आज आप औषधि वाटिका में.....?..." 
भृंगराज की आवाज सुनकर दोनों एकसाथ पीछे मुड़ते हैं , वैदेही को देखकर भृंगराज चौंकाई सी नज़रों से देखते हुए कहते हैं....." आप यहां...."
भृंगराज की बात से ऐसा लग रहा था कि वो वैदेही को जानते है इसलिए माणिक और वैदेही दोनों ही प्रश्नचिन्ह से एक दूसरे को देखते है.... माणिक उत्साहपूर्वक पूछता है...." भृंगराज जी ! आप इन्हें जानते हैं..." 
भृंगराज वैदेही को देखते हुए कहते हैं...." जी युवराज..! इन्हें अधिराज अचेत अवस्था में यहां लाए थे , इन्हें सर्प ने डंसा था , विष के प्रभाव को कम करने के लिए ही अधिराज ने हमसे सहायता मांगी , आप उस समय किसी कार्य से सतरपूर गए थे...."
वैदेही को बीती घटना याद आती है, जिसे सोचकर वो कहती हैं...." हां ! हमें स्मरण है... तो आपने हमारे प्राणों की रक्षा की थी , आपका बहुत बहुत धन्यवाद वैद्यराज जी...."
माणिक दोनों की बातें ध्यान से सुनते हुए वैदेही से कहता है..." अधिराज ने आपकी सहायता कैसे की...?..."
अधिराज का नाम सुनते ही वैदेही मुस्कुराते हुए कहती हैं...." हमने आपसे अभी थोड़ी देर पहले कहा था न कि हम किसी और से प्रेम करते है , वो अधिराज ही है , जिनसे हम प्रेम करते है...."
" नहीं नहीं , अधिराज मैं तुम्हें छोड़ूंगा नहीं ..." अधिराज का नाम सुनते ही विक्रम चिल्लाते हुए उठता है ...
उधर अधिराज आज पूरी तरह इंसानी दुनिया में आ चुका था...तो वहीं एकांक्षी को भी आज हास्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया , राघव अपनी बहन को लेकर घर पहुंचता है... सावित्री जी ने आज एकांक्षी के पसंद का खाना बनाया हैं, घर में खुशी फैली हुई है.....
एकांक्षी अपने कमरे में पहुंचकर खिड़कियों से परदों को हटाती है , धीरे धीरे बालकनी में पहुंचती हैं तभी उसका फोन रिंग होता है , कॉल रिसीव करते हुए कहती हैं...." हाय ! तानिया..."
दूसरी तरफ से तानिया की बात सुनकर एकांक्षी सावित्री जी से कहती हैं...." मां ! तानिया आ रही है...."
इधर विक्रम अपने ही उलझन में रमा हुआ था कि तभी अचानक उसे कुछ ध्यान आता है और उसके चेहरे पर एक शातिराना मुस्कान आ जाती है..... विक्रम बिना देर किए एकांक्षी को कॉल करता है, एक दो कॉल करने के बाद भी एकांक्षी का कोई रेस्पॉन्स नहीं मिलता , विक्रम गुस्से में फोन को फैंककर कहता है...." एकांक्षी तुमने मुझे मजबूर कर दिया , अब मैं वहीं करुंगा जो मैं करना चाहता हूं..." विक्रम के चेहरे पर शैतानी मुस्कान फ़ैल गई....
 
...........to be continued.............