शापित हवेली – अध्याय 1: परछाइयों का बुलावा
बरसात की रात थी। आसमान में घने बादल छाए हुए थे, और बिजली की चमक बीच-बीच में धरती को सफेद चादर-सा कर रही थी। पहाड़ी रास्ते से नीचे, गाँव के लोग अपने-अपने घरों में दुबके हुए थे। हर कोई जानता था कि इस मौसम में पुरानी हवेली की ओर कोई न जाए।
वह हवेली, जो गाँव से ज़्यादा दूर नहीं, लेकिन डरावनी चुप्पी में डूबी रहती थी। उसके ऊँचे खंडहरनुमा दरवाज़े, टूटी खिड़कियाँ और बेलों से ढकी दीवारें उस राज़ की गवाह थीं जिसे कोई ज़बान पर लाना नहीं चाहता था।
---
किरदारों की एंट्री
चार दोस्त – आदित्य, रिया, कबीर और नेहा – शहर से गाँव घूमने आए थे। सब कॉलेज में पढ़ते थे और एडवेंचर के शौकीन थे। गाँव में आते ही उन्हें उस हवेली की कहानियाँ सुनने को मिलीं।
“वहाँ मत जाना, बेटा,” एक बूढ़ी औरत ने कहा। “उस हवेली में आत्माएँ बसती हैं। जो अंदर जाता है, लौटकर नहीं आता।”
लेकिन, जितना ज़्यादा डरावना किस्सा सुना, उतनी ही दोस्तों की जिज्ञासा बढ़ती गई।
---
हवेली की ओर कदम
“सोचो, अगर हमने वहां जाकर वीडियो बनाया तो कितना मज़ा आएगा। हमारी सोशल मीडिया पर धूम मच जाएगी।” – कबीर बोला।
“हां, लेकिन… अगर सच में कुछ हुआ तो?” – नेहा ने कांपती आवाज़ में कहा।
रिया ने हंसते हुए जवाब दिया, “अरे यार, भूत-वूत कुछ नहीं होता। सब अंधविश्वास है।”
आदित्य, जो सबसे शांत था, बस मुस्कुराया और बोला, “चलो, आज रात चलते हैं। डर को वहीं हराना चाहिए जहां वह पैदा होता है।”
और उसी रात, जब गाँव सो रहा था, चारों दोस्त टॉर्च और कैमरा लेकर हवेली की ओर बढ़ चले।
---
हवेली का पहला सामना
जैसे ही वे हवेली के पास पहुँचे, वहाँ की हवा अचानक ठंडी हो गई। पत्ते खड़खड़ाने लगे और जंग लगे गेट अपने आप कर्र… की आवाज़ के साथ खुल गए।
“ये… ये अपने आप खुला?” – नेहा ने डरकर आदित्य का हाथ पकड़ लिया।
“शायद हवा से…” – रिया बोली, मगर उसकी आवाज़ में भी आत्मविश्वास नहीं था।
अंदर कदम रखते ही सीलन और सड़न की गंध ने सबको घेर लिया। दीवारों पर उखड़ी हुई पेंट, टूटे फर्नीचर और जाले उस जगह को कब्रिस्तान जैसा बना रहे थे।
---
अजीब आवाज़ें
वे बड़े हॉल में पहुंचे। अचानक, ऊपर की मंज़िल से लकड़ी के चिरचिराने की आवाज़ आई, जैसे कोई वहाँ चल रहा हो।
“किसने कहा था भूत नहीं होते?” – कबीर फुसफुसाया।
आदित्य ने हिम्मत दिखाते हुए कहा, “चलो देखते हैं।”
वे सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर पहुँचे। वहाँ एक लंबा गलियारा था, जिसकी दीवारों पर धूल से ढकी पुरानी तस्वीरें टंगी थीं। एक तस्वीर में, हवेली के पुराने मालिक और उसके परिवार को देखा जा सकता था। सभी मुस्कुरा रहे थे, लेकिन सबसे अजीब बात यह थी कि तस्वीर के कोने में एक काली परछाई खड़ी थी, जिसका चेहरा धुंधला था।
“ये… ये कौन हो सकता है?” – रिया ने काँपती आवाज़ में कहा।
---
पहला डरावना पल
जैसे ही वे तस्वीर देख रहे थे, अचानक एक खिड़की अपने आप बंद हो गई। धमाक्क्क्क! की आवाज़ से पूरा गलियारा गूंज उठा। नेहा चीख पड़ी।
कबीर ने टॉर्च उस ओर घुमाई तो खिड़की पर खून जैसे लाल धब्बे दिखाई दिए।
“ये… पेंट है ना?” – कबीर ने खुद को समझाने की कोशिश की।
लेकिन आदित्य ने महसूस किया कि धब्बे धीरे-धीरे टपक रहे थे।
---
हवेली का गुप्त कमरा
आगे बढ़ते हुए वे एक कमरे में पहुँचे, जो बाकी से अलग था। कमरे का दरवाज़ा आधा टूटा हुआ था, लेकिन जैसे ही आदित्य ने उसे खोला, अचानक सन्नाटा छा गया।
अंदर एक पुराना झूला पड़ा था, जो अपने आप हिल रहा था। उसके बगल में एक गुड़िया बैठी थी – टूटी हुई आँख, फटी हुई ड्रेस और होंठों पर अजीब-सी लाली।
रिया धीरे-धीरे उस गुड़िया की तरफ बढ़ी। तभी…
“मम्म्म्म्मा…”
गुड़िया के मुँह से आवाज़ आई।
सभी दोस्तों के रोंगटे खड़े हो गए। नेहा चीखती हुई पीछे हट गई।
---
परछाई का दिखना
अचानक दीवार पर एक लंबी काली परछाई दिखाई दी। वह धीरे-धीरे हिल रही थी, जबकि कमरे में कोई और मौजूद नहीं था।
आदित्य ने साहस जुटाकर पूछा, “तुम कौन हो?”
उस परछाई से एक धीमी, फटी हुई आवाज़ निकली –
“ये… हवेली… मेरी है…”
और अगले ही पल वह परछाई सीधी उन पर झपटी।
चारों चीखते हुए कमरे से बाहर भागे। उनकी टॉर्चें गिर पड़ीं, कैमरा बंद हो गया, और हवेली में गूँज रही थी सिर्फ़ उनकी चीखें और बिजली की गर्जना।