📖 Part 3:
[📍स्थान: शहर की एक व्यस्त सड़क | समय: दोपहर]
एक अचानक आई कार का हॉर्न बजता है। सड़क के बीचोंबीच एक डॉगी फँस गया है — काँपता, डरा हुआ।
सब लोग चिल्ला रहे हैं –
"हटाओ इसे!"
"किसका है ये कुत्ता!"
"कहीं कुचला न जाए!"
उसी भीड़ में से एक परछाई सी तेज़ी से निकलती है — आरव।
(असल में एलियन)
वो झटपट उस डॉगी को अपनी बाँहों में उठा लेता है।
कार रुक जाती है।
लोग तालियाँ बजाते हैं।
👥 भीड़ (हैरानी से):
"अरे वाह! क्या रिफ्लेक्स हैं!"
"तू तो किसी मूवी का हीरो लगता है!"
"कहाँ से आया रे तू?"
एक आदमी मुस्कुरा कर पूछता है —
"रनर हो क्या? नज़र ही नहीं आए!"
आरव (जिजकते हुए) कुछ नहीं बोलता।
उसके चेहरे पर वही पुराना एलियन भाव — “ये सब क्या बोल रहे हैं मुझसे?”
डॉगी उसकी गोद में लेटा है, लेकिन उसकी आँखों में शरारत है।
🐶 डॉगी (अपनी भाषा में):
"बचाया तो ठीक है... पर ये इंसान नहीं है भाई! ये तो एलियन है एलियन!"
कोई इंसान उसकी बात नहीं समझता। सब उसे प्यार से सहलाते हैं —
"कित्ता प्यारा कुत्ता है!"
"क्या नाम है इसका?"
"अरे कितना शांत है!"
एलियन सोचता है (मन में):
"इन लोगों को इसकी भाषा समझ नहीं आती... शायद इन्हें मेरी असलियत का भी कभी पता नहीं चलेगा।"
"फिलहाल, कोई खतरा नहीं..."
वो चुपचाप भीड़ से निकलने की कोशिश करता है।
[📍कट टू: एक सुनसान गली]
आरव तेज़ी से भागता है, डॉगी को अब भी पकड़े हुए।
आरव (थककर हाँफते हुए):
"क्यों पकड़ा मैंने इसे?"
डॉगी उसकी गोद में इधर-उधर फड़फड़ाता है —
🐶 "चल छोड़ दे अब! बहुत ही tight पकड़ रहा है तू!"
फिर अचानक…
काट!
"आह!" — आरव उसे ज़मीन पर छोड़ देता है।
डॉगी ज़ोरों से दौड़ पड़ता है।
आरव भागकर उसके पीछे जाने ही वाला होता है… पर रुक जाता है।
डॉगी (दौड़ते हुए पीछे मुड़कर):
"अरे भाई, पकड़ेगा क्या? तू तो सिर्फ स्टाइल मारता है!"
"मैं तो धरती का टॉप डॉग हूँ — तुझे हरा दिया मैंने!"
वो ज़ोर से भौंकता है और खुशी-खुशी कूदता हुआ चला जाता है।
एलियन (हल्की हँसी के साथ):
"कुत्ते भी बात करते हैं… और ये इंसान हैं कि कुछ सुनते ही नहीं। बहुत अजीब जगह है ये धरती।"
📖 सीन: "शोर के बीच एक आवाज़"
⏳ समय: सुबह 11:00 बजे
📍 स्थान: AVA Fashion Group – बोर्डरूम
🌆 माहौल: शीशे की दीवारों से घिरा, बड़े स्क्रीनों पर ग्राफिक्स, लंबे टेबल पर बैठी फैशन इंडस्ट्री की बड़ी हस्तियाँ, ग्लैमर और गंभीरता का मिला-जुला माहौल।
कांच की दीवारों के पीछे"
(एक फैशन मैगज़ीन कंपनी
AVA Fashion Group का हेड ऑफिस ऊँची बिल्डिंग की सबसे ऊपर वाली मंज़िल पर था। शीशे की दीवारों से घिरे उस मीटिंग रूम में सुबह 11 बजे से एक अहम मीटिंग चल रही थी। चारों तरफ़ फैशन इंडस्ट्री की चमकती हस्तियाँ बैठी थीं—किसी ने सिल्क की शर्ट पहनी थी, किसी के हाथ में आईपैड, किसी के पास अगले सीज़न का ट्रेंडशिट था। और बीचों-बीच बैठे थे विक्रम वर्मा — कंपनी के मालिक।
विक्रम ने गंभीर आवाज़ में कहा,
"अगले महीने पेरिस फैशन वीक में हमारी नई लाइन ‘AURORA’ का अनावरण होगा। ये सिर्फ एक कलेक्शन नहीं, हमारी पहचान है..."
अचानक, कमरे के बाहर से ऊँची एड़ी की तेज़ आवाज़ें गूंजने लगीं। कुछ ही पल में, मीटिंग रूम का काँच का दरवाज़ा धड़ाम से खुला।
सफेद ट्रेंच कोट में लिपटी अवनी वर्मा अंदर आई। उसके लंबे खुले बाल उसके गुस्से की रफ्तार के साथ उड़ रहे थे। वो तेज़ क़दमों से सीधे बोर्ड रूम के बीच पहुँच गई। सिक्योरिटी गार्ड ने रोकने की कोशिश की, लेकिन उसने बिना देखे ही उसे धक्का देकर आगे बढ़ गई।
कमरे में सन्नाटा छा गया। हर चेहरा हैरान था। और फिर विक्रम की तेज़ आवाज़ गूंज उठी—
"अवनी! ये क्या बेहूदी हरकत है? तुम ऐसे चलती हुई मीटिंग में नहीं आ सकतीं!"
अवनी की आँखों में गुस्सा और दिल में ठेस थी।
"और मुझे इस मीटिंग के बारे में बताया क्यों नहीं गया? ये मेरे डैड की कंपनी है! मुझे हर फैसले की खबर होनी चाहिए। आपको नहीं लगता, अंकल?"
विक्रम ने गहरी साँस ली। चेहरा कठोर था।
"अवनी, तमाशा मत बनाओ। हम बाद में बात करेंगे।"
अवनी मुड़ी और अपने असिस्टेंट अमन की ओर देखा। उसकी आवाज़ में अब कड़वाहट थी।
"अमन, तुम्हें तो पता था! फिर भी तुमने मुझे नहीं बताया? ये तुम्हारा काम था ना? अगर तुम इतना भी नहीं संभाल सकते तो छोड़ दो ये नौकरी!"
अमन घबराया, कुछ कह नहीं पाया।
"मुझे माफ़ कीजिए... पर सर ने कहा था—"
"हाँ," विक्रम बीच में बोले, "मैंने ही कहा था। अवनी को इससे दूर रखो।"
कुछ सेकेंड के लिए कमरे में चुप्पी छा गई।
अवनी की आँखों में नमी तैरने लगी। लेकिन उसने आँसू गिरने नहीं दिए। बस सीधे अपने अंकल की आँखों में देखा और धीमे से कहा—
"आपने मुझे कभी बेटी नहीं समझा, अंकल। सिर्फ़ एक मुसीबत। लेकिन पापा होते... तो शायद आज सब कुछ अलग होता।"
ये कहकर वो मुड़ी और कमरे से बाहर निकल गई।
कमरे की हवा जैसे भारी हो गई थी। बोर्ड मेंबर्स अब वापस स्क्रीन की तरफ़ देख रहे थे, लेकिन कोई भी अब मन से वहाँ नहीं था।
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कॉरिडोर में
अवनी तेज़ी से चलते हुए अपने आँसू छुपाने की कोशिश कर रही थी। लेकिन हर कदम के साथ उसके भीतर की आवाज़ और तेज़ हो रही थी—
"मैं ही इस कंपनी की असली वारिस हूँ... फिर भी मुझे हाशिए पर रखा गया।
मेरे डिज़ाइन्स, मेरे ख्वाब... सब कोई और चुरा ले गया।
अब बहुत हो गया..."
Countinue.......