Black Bearing horror story in Hindi Horror Stories by SYAAY books and stories PDF | काला असर

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काला असर

रीमा नाम की एक लड़की थी। उसका घर गाँव की पुरानी गलियों में था, जहाँ संकरी सड़कों पर शाम ढलते ही सन्नाटा छा जाता था। रीमा अपनी पढ़ाई और सलीके के लिए जानी जाती थी। मोहल्ले की औरतें अक्सर कहतीं—“इतनी तेज़ दिमाग वाली लड़की है, कल को बड़ा नाम करेगी।” लेकिन यही बातें कुछ लोगों को बुरी लगतीं।

जहाँ प्रशंसा होती है, वहाँ ईर्ष्या भी जन्म लेती है।

शुरुआत बहुत छोटी-छोटी घटनाओं से हुई। कभी उसकी किताबें बिना वजह गिर पड़तीं, कभी कमरे का दिया अपने आप बुझ जाता। पहले उसने इसे इत्तेफ़ाक़ समझा। मगर एक रात नींद में उसे महसूस हुआ कि कोई उसके कान में फुसफुसा रहा है। उसने चौंककर देखा—कमरा खाली था। मगर खिड़की से आती हवा में एक अजीब सी गंध थी, जैसे किसी जले हुए मांस की।

कुछ दिनों बाद उसे अपने तकिए के नीचे बालों का गुच्छा मिला। काले धागों में बंधे हुए। उसका दिल काँप गया। उसने माँ को दिखाया, तो माँ ने कहा—“किसी की शरारत होगी।” लेकिन रीमा जानती थी कि यह मज़ाक नहीं था।

धीरे-धीरे घटनाएँ बढ़ने लगीं। कभी रात को उसके कमरे में किसी के चलने की आवाज़ आती। कभी आईने में उसे अपनी परछाई के पीछे किसी और की परछाई दिखाई देती। उसकी सेहत बिगड़ने लगी। चेहरा पीला पड़ गया, आँखों के नीचे गहरे धब्बे उभर आए।

परिवार डर गया। उसे ओझा के पास ले जाया गया। ओझा ने अग्नि जलाई, मंत्र पढ़े और राख उसके माथे पर लगाई। जैसे ही राख उसके माथे को छुई, रीमा ज़ोर से चीख पड़ी। उसकी चीख इतनी भयानक थी कि आँगन में खड़े लोग काँप उठे। और उसी पल अग्नि अपने आप बुझ गई।

उसके बाद से रीमा का व्यवहार बदलने लगा। वह खामोश रहने लगी। कई बार अकेले कमरे में बैठकर हँसती, जैसे किसी से बातें कर रही हो। रात को अचानक उठकर दरवाज़ा पीटने लगती और चिल्लाती—“मुझे छोड़ दो! मुझे मत पकड़ो!” लेकिन जब सब दौड़कर कमरे में पहुँचते, तो वहाँ सिर्फ रीमा होती, पसीने से तरबतर।

धीरे-धीरे गाँव में बातें फैल गईं। कोई कहता, “किसी ने उस पर काला काम किया है।” कोई बोला, “ये जलन की वजह से हुआ है।” लोग उससे डरने लगे। रिश्तेदार आना बंद हो गए। शादी की बातें भी खत्म हो गईं।

रीमा की दुनिया सिमटती चली गई। वह खिड़की पर बैठकर घंटों बाहर घूरती रहती। उसकी आँखें खाली हो चुकी थीं, जैसे उसकी आत्मा किसी ने छीन ली हो।

पर असली डर तब आया, जब दिवाली की रात थी। बाहर पटाखों की आवाज़ गूँज रही थी, आसमान रौशनी से भर चुका था। मगर रीमा अपने कमरे में अकेली बैठी थी। अचानक उसने खिड़की से बाहर देखा और ज़ोर से चीख पड़ी—“वो खड़ा है! वो मुझे बुला रहा है!”

परिवार भागकर आया। खिड़की पर बस अँधेरा था। लेकिन उसी पल, कमरे की दीवार पर एक काली परछाई दौड़ गई। सबका खून जम गया।

उस रात घर में अजीब घटनाएँ हुईं। बर्तन अपने आप गिरने लगे। दरवाज़े धड़ाम से बंद हो जाते। छत से किसी के दौड़ने की आवाज़ आती। और रीमा ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी। उसकी हँसी इंसानी नहीं लग रही थी, बल्कि किसी और दुनिया की।

अगले दिन सुबह, जब सबने उसका कमरा खोला, तो रीमा खिड़की पर बैठी थी। उसकी आँखें लाल थीं, चेहरे पर अजीब सी मुस्कान। उसने धीरे से कहा—“अब मैं कभी अकेली नहीं रहूँगी।”

उसके बाद रीमा पहले जैसी कभी नहीं हुई। वह धीरे-धीरे अपने भीतर खो गई। उसकी हँसी, उसके सपने सब ख़त्म हो गए।

गाँव वाले कहते हैं कि किसी ने ईर्ष्या में आकर उस पर तंत्र कराया था। कोई मानता है कि प्रॉपर्टी के झगड़े में उसका नाम मिटाना चाहते थे। सच जो भी हो, असर इतना गहरा था कि रीमा की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई।

समय बीत गया। लेकिन रीमा का घर गाँव में “भूतिया घर” कहलाने लगा। लोग कहते हैं कि दिवाली की रात, जब पटाखों का धुआँ फैलता है, तो रीमा की परछाई टूटी खिड़की पर दिखाई देती है। कभी वह खामोश खड़ी रहती है, कभी अचानक हँसने लगती है।

बच्चे उस गली में खेलते नहीं। बड़े लोग कहते हैं—“कभी किसी से इतना मत जलो कि उसकी ज़िंदगी बर्बाद कर दो। काला असर लौटकर आता है।”

रीमा की कहानी फिल्मों जैसी नहीं थी जहाँ सब ठीक हो जाता है। उसके लिए कोई सुखांत नहीं लिखा गया था। और शायद यही सबसे डरावनी बात है—कि काला असर हमेशा दिखता नहीं, लेकिन जब पकड़ ले, तो इंसान की पूरी ज़िंदगी निगल लेता है।