सुबह की हल्की-सी धूप शर्मा ख़ानदान के छोटे-से घर की खिड़कियों से अन्दर आ रही थी।
कमरे में एक लड़की अपनी डायरी खोले बैठी थी। उस लड़की का नाम था मीरा शर्मा।
सफ़ेद सलवार-क़मीज़ पहने, खुले लंबे बाल, दूध-सा गोरा रंग और बड़ी-बड़ी आँखें… जिनमें सपने भी थे और डर भी।
उसने मन ही मन सोचा—
> “क्या एक अनजान इंसान के साथ पूरी ज़िन्दगी गुज़ार पाना मुमकिन है? शायद क़िस्मत ने मेरे लिए कुछ और ही सोचा है…”
उसके लिखे शब्दों में उलझन थी।
तभी अचानक ढोल की आवाज़ सुनाई दी। मीरा ने जल्दी से डायरी बंद की और खिड़की से बाहर झाँका।
गली में एक बारात जा रही थी—ढोल, ताशे, हँसी और शोर के बीच दुल्हन अपने दूल्हे के साथ कार में बैठी थी।
यह नज़ारा देखकर मीरा के दिल में कसक-सी उठी।
---
🌿 शर्मा परिवार
मीरा का परिवार एक बिल्कुल टिपिकल मिडिल क्लास घर था। छोटा सही, लेकिन बेहद ख़ूबसूरत।
रमेश शर्मा – मीरा के पिता। रिटायर्ड स्कूल टीचर। इमानदारी और इज़्ज़त से जीना ही उनका सिद्धांत था।
सावित्री शर्मा – मीरा की माँ। पूरे संस्कारों से भरी, परिवार के लिए जीने वाली।
मीरा शर्मा – 22 साल की मासूम, संस्कारी लड़की, जिसके दिल में अपने सपने थे। उसने कभी नहीं सोचा था कि बिना जाने-समझे, एक अनजान से उसकी शादी तय हो जाएगी।
ऋतिका शर्मा – मीरा की छोटी बहन। कॉलेज में पढ़ती थी, थोड़ी शरारती और थोड़ी मासूम। हमेशा मीरा की टांग खींचती रहती थी।
उनके घर में सादगी थी। लेकिन राठौर ख़ानदान के सामने सब कुछ छोटा लगता था।
---
🏰 राठौर हवेली
दूसरी ओर था राठौर हवेली – पूरे शहर की शान।
बड़े गेट, सिक्योरिटी गार्ड्स, चमचमाती गाड़ियाँ, झरनों जैसे फव्वारे और भीतर ऐसी शानो-शौकत कि देखकर लोग हैरान रह जाएँ।
रघुनाथ सिंह राठौर – आरव के पिता। परिवार के मुखिया। उनका हर शब्द फ़ैसला होता था। उनके लिए “इज़्ज़त” और “शान” ही सब कुछ थी।
कावेरी राठौर – आरव की माँ। जिन्होंने पूरी ज़िन्दगी समझौते में गुज़ारी। आरव से बेइंतहा मोहब्बत करती थीं, लेकिन पति के सामने उनकी आवाज़ कभी उठी नहीं।
आरव राठौर – 28 साल का सक्सेसफ़ुल बिज़नेसमैन। लोगों के लिए एक ब्रांड, लेकिन असल में अंडरवर्ल्ड का बादशाह। गुस्सैल, ज़िद्दी, प्रैक्टिकल और शादी में बिलकुल यक़ीन नहीं रखने वाला।
कबीर राठौर – आरव का कज़िन, उसका दोस्त, उसका साया। आरव की सख़्त दुनिया में सिर्फ़ कबीर ही उसे समझता था।
---
🕶 आरव
शाम का वक़्त था। राठौर हवेली के एक प्राइवेट स्टडी रूम में 28 साल का एक नौजवान ब्लैक टी-शर्ट और ब्लैक लोअर पहने बैठा था।
चेहरे पर सख़्ती, आँखों में अंधेरा। टेबल पर बिखरी फाइलें—कुछ बिज़नेस कॉन्ट्रैक्ट्स, तो कुछ अंडरवर्ल्ड डील्स।
वो और कोई नहीं, आरव राठौर था।
तभी दरवाज़ा खुला। 26 साल का एक लड़का भीतर आया।
“भाई, अभी भी बिज़ी हो? पापा ने मीटिंग बुलाई है। लगता है, रिश्ता फिक्स कर दिया है।”
उसके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी। वह था कबीर राठौर।
आरव ने ठंडी साँस भरी।
“शादी? मुझे उस नाटक में कोई दिलचस्पी नहीं। मेरा रिश्ता मेरी मरज़ी से होगा… या फिर कभी होगा ही नहीं।”
कबीर ने हंसकर कहा—
“मैं जानता हूँ तू शादी पर यक़ीन नहीं करता… लेकिन भाई, हर आदमी को एक ऐसा इंसान चाहिए, जो उसके ज़ख्म समझे। शायद क़िस्मत तुझे वही इंसान देने वाली है।”
आरव की आँखों में एक अनकहा दर्द था, जो सिर्फ़ कबीर समझ पाता था।
---
उस वक़्त हवेली के बड़े हॉल में रघुनाथ सिंह राठौर अपनी सख़्त आवाज़ में पूछ रहे थे—
“आरव कहाँ है?”
बगल में बैठी उनकी पत्नी कावेरी बोलीं—
“आते ही होंगे।”
लाल बनारसी साड़ी और गहनों से लदी, बेहद ख़ूबसूरत और दिल से भी उतनी ही अच्छी।
तभी आरव और कबीर वहाँ आ गए। आरव पूरे रौब से आकर बैठा।
रघुनाथ सिंह ने कड़क आवाज़ में ऐलान किया—
“शादी होगी। शर्मा जी से मेरा वादा है। उनकी बेटी मीरा, तुम्हारी दुल्हन बनेगी। आरव, तुमसे राय नहीं माँगी जा रही।”
आरव की आँखें सुर्ख हो गईं।
“पापा! मैं किसी अनजान लड़की से शादी नहीं करूँगा। मैं शादी पर विश्वास नहीं करता।”
रघुनाथ सिंह की आँखों में बिजली-सी चमकी।
“तुम्हारी सोच की परवाह मुझे नहीं। ये राठौर ख़ानदान की इज़्ज़त का सवाल है। शादी होगी, चाहे तुम चाहो या न चाहो।
शादी के फ़ंक्शन्स कल से शुरू हो जाएँगे।”
उन्होंने कावेरी को देखा। कावेरी ने तुरंत सिर झुका दिया।
आरव वहीं खड़ा अपने पिता को देखता रह गया।
ये पहली बार था, जब उसके पिता ने उस पर ज़बरदस्ती अपनी मरज़ी थोप दी थी।
गुस्से में आरव उठकर सीधे अपने कमरे में चला गया।
---
कमरे का दरवाज़ा उसने ज़ोर से बंद किया।
आँखों में आग, दिल में तूफ़ान।
आईने के सामने खड़ा होकर अपने ही चेहरे को घूरते हुए उसने कहा—
“शादी? ये ज़िन्दगी एक खेल है… और मैं अपने खेल में किसी को भी शामिल नहीं करूँगा।”
उसने ठंडी आवाज़ में बुदबुदाया—
“मीरा शर्मा… तुम मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बनकर भी कभी मेरी ज़िन्दगी नहीं बन पाओगी।”
---
🌸 उधर शर्मा परिवार के छोटे से घर में, मीरा कमरे के कोने में बैठी रो रही थी।
उसने आँसू पोंछे और अपनी डायरी खोली।
> “कल से मेरी ज़िन्दगी बदलने वाली है। एक अनजान रिश्ता… एक अनजान मर्द… और एक अनजान सफ़र…”
---
✨ और यहीं से शुरू होगी वो कहानी… जहाँ न चाहकर भी दो ज़िन्दगियाँ एक-दूसरे से बंध जाएँगी।