अधूरी मोहब्बत
सर्दियों की एक सर्द शाम थी, जब रोहित और प्रिया की पहली मुलाकात हुई. दिल्ली की मशहूर चांदनी चौक की भीड़-भाड़ में, जहां हर तरफ चहल-पहल थी, वहां एक चाय की दुकान पर दोनों की नजरें मिलीं. प्रिया अपनी सहेलियों के साथ थी और रोहित अपने दोस्तों के साथ. एक छोटी-सी टक्कर और बिखरी हुई चाय के बाद, एक मुस्कुराहट से शुरू हुई उनकी दास्तान.
रोहित, एक संवेदनशील और शांत स्वभाव का लड़का था, जो एक कॉलेज में इतिहास का प्रोफेसर था. उसे पुरानी इमारतों, किताबों और गजलों से बहुत प्यार था. वहीं प्रिया, एक जीवंत और ऊर्जावान लड़की थी, जो एक आर्किटेक्ट थी. उसे नई-नई जगहों की खोज करना, चित्रकारी करना और जिंदगी को खुलकर जीना पसंद था. दोनों की पसंद एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थीं, पर शायद यही वजह थी कि वे एक-दूसरे की तरफ खिंचे चले गए.
धीरे-धीरे उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं. चांदनी चौक की वो गलियां अब उनकी मोहब्बत की गवाह बन गई थीं. वे घंटों एक-दूसरे से बातें करते, कभी पुरानी फिल्मों की कहानियां सुनाते तो कभी अपने सपनों को एक-दूसरे के साथ साझा करते. रोहित, प्रिया की हंसमुख और जिंदादिल शख्सियत से प्रभावित था, और प्रिया, रोहित की गहराई और शांत स्वभाव को पसंद करती थी.
उनके रिश्ते में हर दिन एक नई खुशी थी. प्रिया अपने काम से थककर आती तो रोहित उसे अपनी गजलों से सुकून देता. रोहित किसी बात से परेशान होता तो प्रिया अपनी रंगीन पेंटिंग्स से उसके चेहरे पर मुस्कान ला देती. वे दोनों एक-दूसरे की दुनिया का हिस्सा बन गए थे. उन्हें लगता था कि उनका प्यार आसमान की तरह असीम है और कभी खत्म नहीं होगा.
लेकिन जिंदगी हमेशा वैसी नहीं होती जैसी हम सोचते हैं. रोहित के घर से उसकी शादी का प्रस्ताव आया. उसकी मां ने उसके लिए एक लड़की पसंद की थी, जो उनके ही शहर की थी और एक सभ्य परिवार से ताल्लुक रखती थी. रोहित ने अपनी मां को प्रिया के बारे में बताया, लेकिन उनकी मां इस रिश्ते को स्वीकार करने को तैयार नहीं थीं. उन्हें लगा कि एक आर्किटेक्ट और एक प्रोफेसर का जीवन-शैली बहुत अलग है और प्रिया उनके परिवार के रीति-रिवाजों में नहीं ढल पाएगी.
रोहित ने बहुत कोशिश की, अपनी मां को समझाया, पर वे नहीं मानीं. वे अपने बेटे के लिए एक ऐसी बहू चाहती थीं जो उनके परिवार को पूरा समय दे सके. दूसरी ओर, प्रिया अपने करियर को लेकर बहुत महत्वाकांक्षी थी. वह अपने काम को कभी छोड़ नहीं सकती थी.
एक शाम, दोनों चांदनी चौक में उसी चाय की दुकान पर बैठे थे. वही जगह जहां उनकी कहानी शुरू हुई थी, आज उसी जगह पर उनकी कहानी का अंत होने वाला था. रोहित ने उदास मन से प्रिया से कहा, "प्रिया, मेरी मां इस रिश्ते के लिए राजी नहीं हैं. वह चाहती हैं कि मैं उनसे शादी करूँ, जिसे उन्होंने मेरे लिए चुना है."
प्रिया के चेहरे से रंग उड़ गया. उसकी आंखों में आंसू भर आए. उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उनका प्यार इस मुकाम पर आकर ठहर जाएगा. उसने रोहित से पूछा, "तो क्या हम हार मान लेंगे? क्या हमारा प्यार इतना कमजोर था कि परिवार के सामने टिक नहीं सका?"
रोहित ने जवाब दिया, "नहीं, हमारा प्यार कमजोर नहीं था. शायद हमारा वक्त गलत था. मैं अपनी मां को दुख नहीं दे सकता, और मैं तुम्हें तुम्हारे सपनों से दूर नहीं कर सकता. मुझे लगता है, हमारे लिए यही सही है कि हम अपनी-अपनी राहें चुन लें."
यह बात सुनते ही प्रिया का दिल टूट गया. उसने रोहित की आंखों में देखा, जहां दर्द और लाचारी साफ झलक रही थी. उसने बस इतना कहा, "मुझे माफ कर देना, रोहित, कि मैं तुम्हारे परिवार की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई."
दोनों ने एक-दूसरे को आखिरी बार देखा. न जाने कितनी बातें थीं जो उनके होंठों तक आकर रुक गईं. चांदनी चौक की वो रात, जो कभी उनकी मोहब्बत की चांदनी थी, आज उनकी जुदाई की काली रात बन गई थी. बिना कुछ कहे, बिना पीछे मुड़े, दोनों अपनी-अपनी राहों पर चल दिए.
वक्त बीतता गया. रोहित ने अपनी मां की पसंद की लड़की से शादी कर ली. वह अपनी पत्नी के साथ एक अच्छा जीवन बिता रहा था, पर कहीं न कहीं उसके दिल में प्रिया की यादें जिंदा थीं. हर बार जब वह चांदनी चौक से गुजरता, तो उसे वह चाय की दुकान और प्रिया की हंसी याद आती.
वहीं प्रिया अपने काम में व्यस्त हो गई. उसने अपने करियर में बहुत सफलता हासिल की, पर वह भी अंदर से अकेली थी. उसने शादी नहीं की. वह सोचती थी कि शायद कोई और रोहित जैसा नहीं हो सकता. वह कभी-कभी अपनी बनाई हुई पेंटिंग्स देखती, जिनमें रोहित की परछाई नजर आती थी.
सालों बाद, एक साहित्य समारोह में दोनों की फिर से मुलाकात हुई. रोहित, अपनी पत्नी के साथ आया था, और प्रिया एक सम्मानित अतिथि के रूप में. दोनों ने एक-दूसरे को देखा. उनके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी, लेकिन आंखों में वही पुराना दर्द था. वे दूर से एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए और फिर अपने-अपने रास्ते चले गए.
यह उनके प्यार का एक ऐसा अंत था, जहां कोई विलेन नहीं था, कोई गलती नहीं थी, बस वक्त और किस्मत की मार थी. उनकी मोहब्बत अधूरी रह गई, लेकिन उनकी यादें हमेशा उनके साथ रहीं. शायद कुछ कहानियां अधूरी ही अच्छी लगती हैं, क्योंकि उनका अंत हमें हमेशा के लिए एक मीठी चुभन दे जाता है. रोहित और प्रिया की अधूरी मोहब्बत भी ऐसी ही थी.
🙏धन्यवाद 🙏