आरव की खामोश मोहब्बत का सफ़र एक और साल तक चला। कॉलेज का आखिरी दिन था। सब दोस्त हँस-बोलकर बिछड़ रहे थे। आरव ने मीरा को दूर से देखा। वह आज भी उतनी ही खूबसूरत लग रही थी, पर आरव के दिल में एक अजीब सा खालीपन था। वह जानता था कि अब शायद वह मीरा को कभी न देख पाए।
हिम्मत करके वह उसके पास गया। उसके हाथ में एक छोटा सा डायरी का टुकड़ा था।
"मीरा, क्या मैं तुमसे कुछ कह सकता हूँ?" आरव ने बेहद धीमी आवाज़ में पूछा।
मीरा ने मुस्कुराकर कहा, "हाँ, ज़रूर।"
उसकी आँखों में आरव को पहली बार इतनी नज़दीकी से देखने पर एक सवाल था। आरव ने उस डायरी के टुकड़े को मीरा की ओर बढ़ाया। "यह... यह तुम्हारे लिए है।"
मीरा ने वह टुकड़ा ले लिया। उस पर आरव ने एक शेर लिखा था, जो उसकी पूरी मोहब्बत को बयाँ करता था:
"तुम्हें ख़बर हो तो जान निकल जाए,
कि तुम्हें देख कर मैंने जीना शुरू किया था।"
मीरा ने उस शेर को पढ़ा। उसकी मुस्कान गायब हो गई। उसकी आँखों में एक अजीब सा भाव था – हैरानी, और शायद थोड़ी उदासी। वह कुछ कहती, इससे पहले ही उसका एक दोस्त उसे बुलाने आया।
"मीरा, चलें?"
मीरा ने एक बार आरव की तरफ़ देखा। उसकी नज़र में अब कोई मुस्कान नहीं थी। उसने धीरे से वह कागज़ अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया और बिना कुछ कहे चली गई।
आरव वहीं खड़ा रहा। उसकी आँखों से आँसू नहीं गिरे, पर उसके दिल के अंदर कुछ टूट गया था। मीरा का वो चुपचाप चले जाना, उसके लिए किसी जवाब से ज़्यादा दर्दनाक था।
मीरा के जाने के बाद, आरव वहीं पर खड़ा रहा। बारिश की बूँदें अब उसके चेहरे पर गिर रही थीं, और हर बूँद उसके दिल में एक नया ज़ख्म कर रही थी। वह वहाँ से चला गया, पर उसका दिल और उसकी मोहब्बत वहीं रह गई। उसने अपनी डायरी में मीरा के बारे में लिखना बंद कर दिया, क्योंकि अब उसके पास लिखने के लिए कोई नया एहसास नहीं बचा था, सिवाय दर्द के। उसकी दुनिया में जो एक उम्मीद की किरण थी, वो भी बुझ चुकी थी।
अगले कुछ महीने आरव के लिए बहुत मुश्किल थे। उसने लोगों से मिलना-जुलना कम कर दिया। उसके दोस्त उसकी उदासी की वजह पूछते, तो वह बस मुस्कुराकर टाल देता। उसने अपनी कविताओं को भी अलविदा कह दिया था, क्योंकि अब उसके पास "लफ्ज़-ए-इश्क" नहीं, बल्कि "लफ्ज़-ए-दर्द" थे।
इधर, मीरा भी बेचैन थी। उसने आरव का दिया हुआ कागज़ का टुकड़ा अपनी डायरी में छिपाकर रख लिया था। वह उसे बार-बार पढ़ती थी। उसे एहसास हुआ कि उसने जाने-अनजाने में किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाई है। वह आरव को अब और जानना चाहती थी, पर उसे पता नहीं था कि वह कहाँ है।
किस्मत की दूसरी मुलाकात
एक दिन, मीरा एक बुक फेयर में गई। वह अपनी पसंद की एक किताब ढूँढ रही थी, जब उसकी नज़र एक स्टॉल पर पड़ी, जहाँ हाथ से लिखी डायरी और कविताएँ बेची जा रही थीं। स्टॉल पर भीड़ कम थी, और वहाँ कोई नहीं था। अचानक, उसकी नज़र एक खुली हुई डायरी पर पड़ी। वह उस डायरी को पढ़ने लगी, और हर पंक्ति उसे अपनी जानी-पहचानी लगी। उन शब्दों में वही दर्द और वही गहराई थी, जो आरव के दिए गए शेर में थी।
जब वह डायरी पढ़ रही थी, तभी किसी ने पास से आवाज़ दी, "यह मेरी डायरी है।"
मीरा ने मुड़कर देखा। यह आरव था, बिल्कुल उदास और शांत। उसकी आँखों में अब पहले वाली मासूमियत नहीं थी। मीरा उसे देखकर चौंक गई।
"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" मीरा ने पूछा, उसकी आवाज़ में घबराहट थी।
आरव ने धीरे से कहा, "जब मोहब्बत अधूरी रह जाए, तो यही उसका अंजाम होता है... कागज़ों पर उतर आना।"
मीरा की आँखों में आँसू आ गए। वह समझ गई कि उसकी खामोशी ने आरव की दुनिया को बदल दिया है। वह अपनी जेब से वह सिकुड़ा हुआ कागज़ का टुकड़ा निकालती है और आरव को दिखाते हुए कहती है, "मैंने इसे आज भी संभाल कर रखा है।"
आरव ने उस कागज़ को देखा। यह वही था जो उसने दिया था। उसकी आँखों में एक पल के लिए चमक आई, पर वह तुरंत बुझ गई।
कहानी का भावनात्मक अंत
मीरा ने आरव से कहा, "मुझे माफ़ कर दो, मुझे यह नहीं पता था कि तुम..."
आरव ने उसे रोक दिया। "माफ़ी की ज़रूरत नहीं है। मोहब्बत का एकतरफा होना भी तो एक खूबसूरत एहसास होता है। तुमने मुझे जीने की वजह दी, और उस वजह ने मुझे लिखना सिखाया। भले ही तुम मेरे साथ नहीं हो, पर तुम्हारा एहसास हमेशा रहेगा।"
आरव ने मीरा को एक छोटी-सी डायरी दी। "यह मेरी तरफ़ से तुम्हें... मेरे अधूरे इश्क़ की कहानी।"
मीरा ने वह डायरी ले ली। आरव मुस्कुराया, पर इस बार उसकी मुस्कान में दर्द नहीं, बल्कि सुकून था। उसने मीरा को अलविदा कहा और चला गया।
मीरा ने उस डायरी को अपने दिल से लगा लिया। उसे एहसास हुआ कि आरव का प्यार ख़त्म नहीं हुआ था, बल्कि एक नए रूप में बदल गया था। वह उसकी डायरी में हमेशा के लिए ज़िंदा था। "लफ्ज़-ए-इश्क" एकतरफ़ा था, पर वह इतना गहरा था कि उसने दो जिंदगियों को हमेशा के लिए जोड़ दिया था।
आप क्या सोचते हैं, क्या इस तरह का अंत कहानी को और ज़्यादा यादगार बना देगा?