गाँव के पुराने डाकघर में रखी एक लकड़ी की अलमारी में बहुत-सी पुरानी चिट्ठियाँ धूल खा रही थीं।
डाकिया रामलाल हर रोज़ डाक बाँटता, पर उस अलमारी को कभी खोलने की ज़रूरत नहीं पड़ी।
एक दिन सफ़ाई करते हुए उसने एक लिफ़ाफ़ा उठाया। उस पर लिखा था –
“सीमा के नाम – परंतु कभी पहुँची ही नहीं।”
रामलाल ने सोचा, “यह चिट्ठी किसकी होगी? क्यों नहीं पहुँची?”
उसने धीरे-धीरे कागज़ खोला।
चिट्ठी में लिखा था –
> “सीमा,
मैं शहर नौकरी की तलाश में जा रहा हूँ।
अगर लौटकर न आ सका तो जान लेना कि मैंने तुम्हें दिल से चाहा है।
इंतज़ार करना…
– तुम्हारा मोहन”
रामलाल ने गहरी साँस ली। शायद यह चिट्ठी समय पर पहुँच जाती, तो दो ज़िंदगियाँ बदल जातीं।
जिज्ञासा से उसने गाँव में पूछताछ की। उसे पता चला कि सीमा अब बूढ़ी हो चुकी थी, और अकेली रहती थी।
रामलाल ने ठान लिया कि वह चिट्ठी सीमा तक पहुँचाकर ही रहेगा।
अगले ही दिन वह सीमा के घर पहुँचा।
दरवाज़े पर दस्तक दी।
धीरे-धीरे एक झुकी हुई काया बाहर आई।
रामलाल ने काँपते हाथों से चिट्ठी आगे बढ़ा दी।
सीमा ने पढ़ा, और उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
वह बोली –
“पचास साल हो गए… मोहन गया था, पर कभी लौटा नहीं।
मैंने सोचा, उसने मुझे भुला दिया।
आज समझ आया कि उसने आख़िरी साँस तक मुझे याद किया।”
रामलाल चुप खड़ा रहा।
सीमा ने आसमान की ओर देखा और कहा –
“मोहन, अब इंतज़ार ख़त्म हुआ। तुम्हारा प्यार अधूरा नहीं था, बस देर से पहुँचा।”
उस दिन गाँव में हर कोई यह जान गया कि प्यार कभी अधूरा नहीं रहता, चाहे वह कितनी भी देर से क्यों न मिले।सीमा चिट्ठी पढ़कर देर तक चुप रही। उसके काँपते होंठ सिर्फ़ एक ही शब्द कह पाए –
“क्यों मोहन… तुमने मुझे बताया क्यों नहीं?”
रामलाल ने धीरे से कहा –
“शायद उसे पता ही नहीं था कि ये चिट्ठी तुम्हारे पास पहुँचेगी या नहीं। पर आख़िरी पल तक उसने आपको याद किया।”
सीमा की आँखें नम थीं, पर उस नम आँखों में एक अजीब-सी चमक भी थी।
उसने कहा –
“पचास साल से मैं सोचती थी कि मेरा प्यार अधूरा रह गया। आज समझ आया कि मोहन का दिल आख़िरी साँस तक मेरे साथ था। मैं हार गई थी, लेकिन मोहन ने मुझे जीता दिया।”
वह धीरे से उस पुरानी चिट्ठी को अपने सीने से लगा लेती है।
गाँव वाले यह दृश्य देखकर भावुक हो गए।
उस रात सीमा की नींद बहुत गहरी थी।
सुबह जब दरवाज़ा खटखटाया गया तो उसने जवाब नहीं दिया।
लोग अंदर पहुँचे तो देखा – सीमा मुस्कुराती हुई शांति से सो रही थी, मानो मोहन से मिलने चली गई हो।
गाँव में उस दिन हर किसी की आँखें नम थीं।
लोग कहते रहे –
“सच्चा प्यार कभी अधूरा नहीं रहता, बस मिलने में देर हो सकती है।”सीमा की विदाई के बाद, रामलाल ने उस चिट्ठी को गाँव के मंदिर की दीवार पर टाँग दिया।
हर आने-जाने वाला उसे पढ़ता और सोचता कि सच्चा प्यार समय से बड़ा होता है।
लोगों ने उस जगह का नाम ही रख दिया – “प्रेम चौपाल”।
अब वहाँ बैठकर हर कोई अपनी अधूरी कहानियाँ सुनाता और दिल हल्का करता।
मोहन और सीमा की अधूरी चिट्ठी, पूरे गाँव के लिए प्यार की मिसाल बन गई।“क्योंकि सच्चा प्यार कभी मरता नहीं, वह यादों में हमेशा जिंदा रहता है।”