चैप्टर 3 –
भाई की परछाई
कॉलेज का माहौल अब अरुण और रिया के लिए बदल चुका था।
हर दिन मिलने का बहाना, हर छोटी बात में मुस्कुराना, और हर शाम एक-दूसरे की यादों में खो जाना… ये सब उनकी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका था।
लेकिन प्यार जितना मीठा था, उतना ही डरावना साया उसके पीछे खड़ा था—रिया का भाई, विक्रम।
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पहली टकराहट
एक शाम, जब अरुण और रिया कैंपस के बाहर सड़क किनारे चाय पी रहे थे, तभी एक काली SUV वहाँ आकर रुकी।
दरवाज़ा खुला और विक्रम उतरा। चौड़ी छाती, भारी आवाज़, और आँखों में खौफ़नाक चमक।
उसने बिना कुछ कहे रिया को घूरा, फिर अरुण की तरफ़ देखा।
“रिया… गाड़ी में बैठो।”
रिया का चेहरा सफेद पड़ गया। उसने अरुण की तरफ़ देखा, जैसे कहना चाहती हो “चुप रहना।”
फिर मजबूरी में गाड़ी में बैठ गई।
अरुण वहीं खड़ा रह गया, दिल में हज़ार सवाल और डर लिए।
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रिया पर रोक
उस रात घर पहुँचते ही विक्रम ने दरवाज़ा बंद कर दिया।
“रिया… ये लड़का कौन है? उसी से मिल रही थी न?”
रिया ने हिम्मत करके कहा—
“भैया… वो बस मेरा दोस्त है।”
विक्रम ने गुस्से से टेबल पर हाथ मारा।
“दोस्ती? मुझे सब पता है! देख रिया… मैं चाहता हूँ कि तू इस लड़के से अभी से दूर रहे।
वरना अच्छा नहीं होगा… न तेरे लिए, न उसके लिए।”
रिया की आँखों में आँसू भर आए, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
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अरुण की बेचैनी
दूसरे दिन रिया कॉलेज आई, लेकिन उसकी आँखें सूजी हुई थीं।
अरुण ने धीरे से पूछा—
“क्या हुआ? सब ठीक है?”
रिया ने बस इतना कहा—
“अरुण… अब हमें कम मिलना चाहिए।”
ये सुनकर अरुण का दिल जैसे टूट गया।
“क्यों? मैंने कुछ ग़लत किया है?”
रिया ने उसकी आँखों में आँखे डालकर कहा—
“नहीं… तुमने तो सिर्फ़ प्यार किया है। लेकिन दुनिया… वो इसे गुनाह बना देगी।”
अरुण समझ चुका था कि ये डर रिया के दिल का नहीं, बल्कि उसके भाई का है।
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उस रात अरुण ने अपनी डायरी में लिखा—
"प्यार की राह आसान नहीं… शायद हर सच्चे रिश्ते को कोई न कोई परछाई निगलना चाहती है।"
चैप्टर 4 – मोहब्बत के क़समे–वादे
रिया और अरुण की ज़िंदगी अब दो हिस्सों में बँट चुकी थी।
एक हिस्सा कॉलेज की हँसी, दोस्ती और चोरी-छुपे मुलाक़ातों का…
और दूसरा हिस्सा घर की दीवारों में कैद डर का, जहाँ विक्रम की धमकियाँ गूंजती रहती थीं।
लेकिन सच ये था कि प्यार डर से बड़ा हो चुका था।
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गुपचुप मुलाक़ातें
रिया अब कॉलेज से सीधा घर नहीं जाती थी।
कभी लाइब्रेरी के बहाने, कभी प्रोजेक्ट के नाम पर… वो और अरुण कैंपस के कोने में या पार्क की बेंच पर बैठते।
अरुण हर बार कहता—
“रिया… अगर तुम्हें लगता है कि ये ग़लत है तो हम…”
रिया उसके होंठों पर उँगली रख देती।
“प्यार कभी ग़लत नहीं होता, अरुण। बस दुनिया उसे समझ नहीं पाती।”
उन लम्हों में दोनों को दुनिया की परवाह नहीं होती।
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बारिश की शाम
एक दिन मूसलाधार बारिश हो रही थी।
कैंपस लगभग खाली था।
रिया और अरुण पुराने ऑडिटोरियम की सीढ़ियों पर बैठे बारिश देख रहे थे।
अरुण ने धीमी आवाज़ में कहा—
“रिया… अगर तुम्हारे भाई ने हमें देख लिया तो?”
रिया मुस्कुरा दी।
“तो मैं कह दूँगी… कि ये मेरी ज़िंदगी है। भैया उसे बाँध नहीं सकते।”
अरुण ने उसकी आँखों में देखा और पहली बार उसका हाथ थाम लिया।
रिया चौंकी, फिर धीरे-धीरे उसकी हथेली को कसकर पकड़ लिया।
उस पल दोनों के बीच कोई शब्द नहीं थे… सिर्फ़ दिल की धड़कनों की गूंज थी।
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क़सम-वादे
रिया ने अचानक कहा—
“अरुण… मुझसे एक वादा करो।”
“क्या?”
“कि चाहे कुछ भी हो… तुम मुझे कभी छोड़ोगे नहीं।”
अरुण की आँखें भर आईं। उसने रिया का हाथ अपने सीने पर रख दिया।
“रिया… ये दिल तुम्हारा है। धड़कना बंद हो सकता है, पर तुझसे मोहब्बत करना नहीं।”
रिया की आँखों से आँसू बह निकले, और उसी बारिश में दोनों एक-दूसरे से लिपट गए।
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उस रात अरुण ने अपनी डायरी में लिखा—
"प्यार डर से बड़ा है। हमने क़सम खाई है… अब हमें कोई जुदा नहीं कर सकता।"
लेकिन उसे नहीं पता था… किस्मत ने उनके लिए एक ऐसा इम्तिहान लिखा था, जिसे कोई क़सम, कोई वादा रोक नहीं पाएगा।