आजादी और श्री कृष्ण --
ऐसा विषय जिस पर लिखने के लिए युग अक्षर शब्द कम पड़ जायेंगे बहुत स्पष्ट है कि कर्म को जीवन के यथार्थ को सत्यार्थ धर्म के रूप मे श्री कृष्ण ने स्थापित करते हुए युग सन्देश दिया है
स्वयं के पग पथ से निरुपित किया है!
परिणाम अज्ञात शक्ति का निर्णय है जिसे आप ब्राह्मड कि परम् शक्ति सत्ता मान सकते है यह निर्भर करता है आपकी संस्कृति संस्कार आस्था एवं विश्वाश पर जिसका निर्णय निष्काम कर्म समर्पण निष्ठा के सापेक्ष निष्कर्ष पर पर निर्भर करता है!
श्री कृष्ण अवधारणा के अस्तित्व का आधार ही था आजादी स्वतंत्रता है सनातन धर्म ग्रंथो के अनुसार पृथ्वी गौ नारायण के पास अन्याय अत्याचार पापाचार कि प्रतंत्रता से मुक्ति कि प्रार्थना लेकर गए थे जिसे नारायण ने स्वीकार करते हुए श्री कृष्ण अस्तित्व कि स्वीकार किया यह प्रथम कारण सम्बन्ध है स्वतंत्रता और श्री कृष्ण का और वरदान वचन अनुसार मनव शरीर धारण कर पृथ्वी को अन्याय अत्याचार से मुक्त कराया और स्वयं गोपालक बने!!
दूसरा महत्वपूर्ण कारण कारक सम्बन्ध स्वतंत्रता और श्री कृष्ण का बहुत ही प्रसंगिक एवं महत्वपूर्ण है माता देवकी और पिता वसुदेव कि कारागार एवं अन्याय अत्याचार कि दमनकारी शासन सत्ता से मुक्ति स्वतंत्रता जिसके लिए वह स्वंय लड़े!
तीसरा अति महत्वपूर्ण परिवर्तन युगानंतर स्वतंत्रता का सम्बन्ध श्री कृष्ण से था जिसका साक्षी आज भी कुरुक्षेत्र का महाभारत है ऐसा कहा जाता है कि स्वतंत्रता क़े महासमर में इतना रक्त बहा जिसकी कल्पना मात्र करने से व्यक्ति कांप जाता है!
भाई ने कपट से भाई को ही गुलाम परतंत्र बना कर भाई कि पत्नी का भरे दरबार में अपमान किया एवं भाइयो को बारह वर्ष वन वन भटकने के भेज दिया प्रतंत्रता कि सभी मर्यादाए नैतिकता कि सीमाये दीवारे तोड़ गुलामी प्रतंत्रता का नव आयाम अध्याय रचा गया और पांच गाँव तक न देना क्रूरता बर्बरता कि पराकाष्ठा का दूसरा उदाहरण शायद कहीं मिले!
पांडवो के स्वतंत्रता संग्राम का मार्गदर्शन किया भगवान श्री कृष्ण ने बिल्कुल स्पष्ट है कर्षति इति कृष्णन्ह स्वतंत्रता आजादी प्राणी के प्राण धड़कन कि अनिवार्यता का अवतार है ब्रह्माड का नीति नियता ब्रह्म परमात्मा अंश आत्मा निष्काम कर्म निष्कर्ष का परीक्षक समाज राष्ट्र समय कि स्वतंत्रता कि निरंतता का निर्मल निर्विवाद निर्विरोध निर्विकार निरझर अविरल अविराम कल कल कलरव धारा युग प्रेरणा प्रभाह है!!
कृष्ण जीवन उद्देश्य मौलिक मूल्यों का ध्येय ध्यान साध्य साधना वंदन वंदना आराधना है सत्य का साकार है कृष्ण कल्पना निराकार नही है कृष्ण विचार चिंतन का कर्म व्यवहार है कृष्ण चित्त कि चंचलता का समन चित्त शांत एवं संयमित संतुलित संगठित पल प्रहर नित्य निरंतर जीवन आचरण अवरण है कृष्ण कृष्ण प्राणी कि स्वतंत्रता का परम् ब्रह्म परमेश्वर है आदर्श है तो उदंड अनियमित अनियात्रित अमर्यादित चेतना के दानवी प्रवृति का काल है कृष्ण कृष्ण घनघोर अंधकार का युग सृष्टि दृष्टि का उजियार है जो प्राणी कि स्वतंत्रता सार्थकता सकारात्मकता का अपरिहार्य अनिवार्य अस्तित्व बोध का कर्म ज्ञान योग कर्तव्य दायित्व बोध जीवन सत्य शोध अवतार अवतरण मात्र नही बल्कि आत्मीय सत्ता कि वास्तविकता प्रकृति प्राणी सम्बन्ध समन्वय का सत्कार साक्ष्य साकार शाहकर है जन्म जीवन पथ पग में पल प्रहर प्रश्नफुटित कौमुदी मृगांक निर्दोष निरंजन शिशिर हेमंत का सक्रिय जाग्रत जीवंत जन्मेजय कृष्ण स्वतंत्रता आजादी का प्राणी प्राण सदाचार परमार्थ सत्यार्थ प्रमाण परिणाम पराक्रम पुरुषार्थ अनुभव अनुभूति साथ अभिप्राय कवच शस्त्र शास्त्र है!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!