गाँव के एक छोटे से स्कूल में कक्षा 5 का छात्र आरव हर साल 15 अगस्त का बेसब्री से इंतज़ार करता था।
उसके लिए 15 अगस्त का मतलब था – झंडा फहराना, देशभक्ति के गाने सुनना, और अंत में मिठाई खाना।
लेकिन इस साल, उसकी अध्यापिका ने बच्चों से कहा –
"इस बार 15 अगस्त पर, सिर्फ झंडा सलामी नहीं, बल्कि आप सबको यह भी बताना होगा कि आज़ादी का असली मतलब क्या है।"
आरव चौंक गया –
"अरे, ये तो आसान है! अंग्रेज़ों से मिली आज़ादी का नाम ही तो स्वतंत्रता है…"
लेकिन अगले ही पल, वह सोच में पड़ गया – "अगर आज़ादी बस अंग्रेज़ों से छुटकारा पाना है, तो फिर हम हर साल इसे क्यों मनाते हैं?"
शाम को घर लौटते समय, उसने देखा कि उसके मोहल्ले का छोटा दोस्त इमरान स्कूल नहीं जा रहा था, क्योंकि उसके घर की हालत ठीक नहीं थी।
दूसरे गली में, वह एक छोटी सी लड़की सुहानी को देखता है, जो घर का काम करते-करते थक चुकी थी, जबकि उसकी उम्र पढ़ने-खेलने की थी।
आरव के मन में सवाल उठे –
"अगर हम आज़ाद हैं, तो ये बच्चे स्कूल क्यों नहीं जाते? ये लोग अपने सपने क्यों नहीं देख पाते?"
घर पहुंचकर उसने अपने दादाजी से पूछा –
"दादाजी, हमें तो पहले ही आज़ादी मिल गई, तो अब हम 15 अगस्त क्यों मनाते हैं?"
दादाजी, जो स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा ले चुके थे, धीरे-धीरे बोले –
"बेटा, 1947 में हमें अंग्रेज़ों से आज़ादी मिली, लेकिन असली आज़ादी तब होगी, जब हर इंसान बिना डर के जी सके, हर बच्चा पढ़ सके, हर महिला सुरक्षित महसूस करे, और हर नागरिक अपने हक और फ़र्ज़ दोनों निभाए।"
उन्होंने अपनी पुरानी कहानी सुनाई –
"जब हम लड़ रहे थे, तब हमें पता था कि आज़ादी सिर्फ अधिकार पाने का नाम नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी उठाने का नाम है।
देश की मिट्टी से प्यार करना, एक-दूसरे की मदद करना, और इसे बेहतर बनाना – यही असली स्वतंत्रता है।"
अगले दिन 15 अगस्त आया।
स्कूल में झंडा फहराया गया, राष्ट्रगान गाया गया, और मिठाइयाँ बाँटी जाने लगीं।
लेकिन इस बार, मिठाई लेने से पहले आरव आगे बढ़ा और माइक उठाकर बोला –
"दोस्तों, हम खुशकिस्मत हैं कि हमें यह आज़ादी विरासत में मिली, लेकिन इसे संभालना हमारी ज़िम्मेदारी है।
आओ, हम सब कसम खाएँ कि हम पढ़ाई में मेहनत करेंगे, अपने देश को साफ रखेंगे, और ज़रूरतमंदों की मदद करेंगे।
क्योंकि असली आज़ादी वही है, जिसमें सिर्फ हम नहीं, बल्कि पूरा देश खुश और सुरक्षित हो।"
भीड़ में बैठे लोग मुस्कुराए, कई लोगों की आँखें नम हो गईं।
झंडे की हवा में लहराते केसरिया, सफेद और हरे रंग ने जैसे उस पल में आरव के दिल में एक नया सपना जगा दिया –
"मेरा देश, मेरी ज़िम्मेदारी।"
🇮🇳 "वो दिन"
लहू से सींची मिट्टी है,
कुर्बानों की कहानी है।
तिरंगे की हर लहर में,
शहीदों की निशानी है।
किसी ने हँसकर फाँसी पाई,
किसी ने सीने पे गोली खाई,
किसी ने जेल की सलाखों में,
अपनी जवानी बलिदान करवाई।
ये हवा, ये धरती, ये नदियाँ,
सब में उनका प्यार बसा है,
हर कोने में इस मातृभूमि का,
बलिदानों का इतिहास लिखा है।
ना भूलें हम वो क़सम कभी,
जो वीरों ने खाई थी,
"देश पहले, बाकी सब बाद में"
बस यही रीत बनाई थी।
आओ मिलकर वादा करें,
ना झुकेगा तिरंगा हमारा,
ज्ञान, कर्म और एकता से,
बढ़ाएँगे देश का सितारा।
भारत माँ की छाया में,
हर दिल को साथ मिलाएँगे,
अपने कर्म और त्याग से,
आज़ादी का मान बढ़ाएँगे।