Chhal - Intro in Hindi Fiction Stories by Geetika Pant books and stories PDF | छल - इंट्रो

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छल - इंट्रो

छल

कुछ किरदारों को सिर्फ शब्दों के द्वारा आंखो के सामने जीवंत करने की शुरुवात

“ये कहानी छल है, कई किरदारों का, कुछ अपनो का कुछ अपने रिश्तों का, जहां छल से चक्रव्यूह बनाया गया है कुछ अपने ही किरदारों ने और यही छल तोड़ेगा कुछ अपनो को,,किसी की जिंदगी में तूफान लायेगा तो कोई इस छल में फस अपना सब कुछ खो बैठेगा क्योंकि इस कहानी में ये छल आंसुओ का सैलाब लायेगा, कब कहा कैसे कौनसा किरदार अपने चेहरे पर कई चेहरे पहने बैठा है ये कोई समझ ही नहीं पायेगा क्योंकि यहां छल कोई पहचान ही नही पाएगा,, सब अपने है,, फिर भी छल है पर छल का अंत कही तो होता है, बस उस अंत की शुरुवात कई छल बनाकर होगा भी या नहीं, यही ये कहानी है क्योंकि यहां कौनसा चेहरा सच्चा और कौनसा छल है ये खुद बात अपने में ही छल है,, कई नकाब है हर चेहरे पर और यही नकाब पनपा रहे हैं छल क्योंकि ये कहानी में खुदमे बहुत कुछ समेटे है”,,


ये कहानी और इसके सभी किरदार पूर्ण रूप से काल्पनिक है तो एक झलक इन किरदारों की :- 


“उदयपुर के सूर्यवंशी राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाला वही से ही सांसद और नामी एक पॉलिटिशन जिसने छोटी उम्र में ही वो सफलता और अपने क्षेत्र और लोगो का प्यार पाया है, जो कई बड़े बड़े नेता ना पा सके,, जमीन से जुड़ा और महादेव का अनन्य भक्त अधिराज सूर्यवंशी और अपने लोगो का बेटा साहेब जिस नाम को उसे उसके उदयपुर के हर उस शख्स ने दिया था,, जो अधिराज को अपने ही परिवार का हिस्सा मानता था,,,शांत सौम्य और बिल्कुल बहते पानी के स्वभाव सा अधिराज जो अपने आराध्य की तरह जितना शांत था, वैसे ही अपनो की जिंदगी में छोटी सी भी परेशानी को वो अपने दूसरे, रौद्र रूप से दूर करना भी जानता था”,,


“अगला किरदार, अधिराज के बचपन की दोस्त और पूरे देश में मशहूर राजपूताना इंजीनियरिंग एंड मेडिकल कॉलेज की डीन डॉक्टर तृषा राजपूत, जो अपने डैड के बाद अपने दादाजी के इस कॉलेज को इतनी बखूबी निभा चला रही थी,, कि सिर्फ तीन सालों में वो इस कॉलेज को इंडिया के टॉप कॉलेजेस में शामिल कर चुकी थी,, एक मेहनती और अपने काम के लिए पेसिनेट लड़की,,,जो खुद बेस्ट है और सिर्फ बेस्ट को खोजते हुए हर खराब चीज को भी बेस्ट बनाने का हुनर रखती है”,,


“अगला किरदार मृत्युंजय सूर्यवंशी जिनका नाम आज भी लोगो के लिए मिशाल है और अपने पोते यानी अधिराज के पहले गुरु, उसके दादा सा जिनसे उसने राजनीति के हर दाव पेंच सीखे,, क्योंकि वो उन राजनेताओं में से है, जो रिटायर तो हो चुके लेकिन सिर्फ अपनी ही बनाई पार्टी से,, पर लोगो के दिलों में आज भी वो उनके बाबू साहेब है और उनके पदचिन्ह पर चलने पर ही अधिराज को भी बेटा साहेब नाम से जाना जाता है,,पर आज भी मृत्युंजय सूर्यवंशी अपने लोगो के लिए जीते हैं और लड़ते भी है”,,

“अगला किरदार जयंती मृत्युंजय सूर्यवंशी यानी अधिराज की दादी सा,,ये भी कोई आम नही बल्कि अपने पति की हर मुसीबत में उनकी ढाल बनने वाली सावित्री है, आज जो नाम उनका है वो जितना उनका खुद का बनाया है, उसमे आधी भागीदार वो भी है अपने वक्त की डॉक्टरेट की पढ़ाई करने वाली कुछ महिलाओं में शामिल नाम है, जयंती मृत्युंजय सूर्यवंशी,,जिनके साथ से ही आज उनका परिवार राजस्थान ही क्या पूरे देश में एक जाना पहचाना नाम है”,,


“अगला किरदार डॉक्टर अखिलेश मृत्युंजय सूर्यवंशी यानी अधिराज के बापूसा जो अपने पिताजी की तरह पॉलिटिक्स में तो नही है, लेकिन एक सफल और जाने माने हार्ट सर्जन है,, कई बड़े बड़े हॉस्पिटल के ऑफर लेटर्स ठुकराकर अपने दादाजी के नाम से चलते एक छोटे से हॉस्पिटल का नाम आज विदेशों तक पहुंचाने का काम करने वाला एक काबिल बेटा और हर फैसलों में अपने बच्चो के साथ रहने वाला एक बेमिसाल बाप”,,

“अगला किरदार भूमि अखिलेश सूर्यवंशी यानी अधिराज की मासा जो एक ग्रहणी है लेकिन अपने परिवार को बखूबी जोड़े रखने और अपने बच्चों को बेहतरीन परवरिश देकर जमीन से जोड़े रखने वाली वो मां, जिसके बिना उनके बच्चे ना नाम बना पाते, ना अपनी जिंदगी इतने ऊंचे मकाम तक पहुंचा पाते जहां वो आज है, भूमि सूर्यवंशी ने अपने तीनों बच्चों को एक मुकाम दिया है, जहां वो आज है वाहा सिर्फ अपनी मां की सीख और परवरिश के कारण,,,,नकुल, अधिराज और मौली,, भूमि जी की जान है ये तीनों”,,


“अगला किरदार डॉक्टर नकुल अखिलेश सूर्यवंशी अधिराज के बड़े भाई अपने ही पापा की तरह डॉक्टर और घर का बड़ा बेटा होने के कारण सबसे जिम्मेदार वक्त पाबंद और अपने पेशे के प्रति ईमानदार,, वही अपने परिवार के लिए खुद्से ज्यादा फिक्रमंद, जिसकी जान अपने परिवार में बसती और सबसे ज्यादा अपनी पत्नी और बच्ची में”,,

“अगला किरदार अनुष्का नकुल सूर्यवंशी नकुल की पत्नी और दादी सा के महिलाओं के स्वरोजगार के लिए बनाए एनजीओ को उनके बाद संभालती, उनकी खुश रहने वाली और खुश रखने वाली, उनकी पोता बहु और अपने पति की जान,, दोनो की शादी अरेंज थी पर उन्हे देख कोई कह नही सकता था कि उनकी शादी अरेंज है और उनकी प्यारी सी शैतान और इस पूरे घर की जान एक प्यारी सी गुड़िया यानी प्रिंसेज कियारा उर्फ किट्टू जो ना बोलते बोलते थकती थी और सवाल तो हर वक्त उनकी जुबान पर रहते,, लेकिन अपने पूरे परिवार की जान थी वो”,,

“इस परिवार की जान तो अगला किरदार भी था क्योंकि यही वो किरदार था,, जो इस प्यारे से परिवार में एक नया चेहरा लेकर आने वाला था,, इस घर की बेटी डॉक्टर मौली अखिलेश सूर्यवंशी,,अधिराज और मौली जुड़वा थे और कई सालो बाद मौली पहली बेटी थी जिसका सूर्यवंशी परिवार में जन्म हुआ था,, बहुत नाजों से पली थी वो और खुद भी अपने बड़े भाई की तरह पेशे से डॉक्टर थी,, पर अब मौली से जुड़ने वाले कुछ नए किरदारों से मिलते हैं, जिसकी वजह से एक नया चेहरा भी सामने आएगा जो इस कहानी में बहुत से मोड़ो को लेकर आने वाला था”,,


“एक नया परिवार एक नया किरदार,, डॉक्टर शेखर सीता माहेश्वरी यानी मौली का मंगेतर जो उसी के साथ उसके ही दादाजी के हॉस्पिटल में उसका कलीग है और न्यूरो सर्जन है,, जहां मौली और शेखर को प्यार हुआ और जल्द ही अब शादी होने को है,,तो अब यहां आगे बढ़ते हैं,, जहां मौली की फैमिली राजपरिवार और शेखर राजपरिवार से न सही,, पर एक सिंपल लेकिन एक अच्छी फैमिली से ताल्लुक रखता था”,,


“तो अगले किरदार से मिलते हैं,, जो है भूषण माहेश्वरी पेशे से एक नामी जज,,जिनकी जजमेंट के किस्से आज भी उनके व्यक्तित्व की पहचान के लिए काफी थे,, थोड़ा सख्त स्वभाव जरूर था लेकिन सिर्फ अपने कोर्ट रूम तक बाकी परिवार उनकी भी जान था और अपने बच्चो में जान बसती थी उनकी,, हार्ट के मरीज होने के कारण अब उनका ज्यादातर वक्त अपने परिवार और गांव में अपने चचेरे भाई बहनों के साथ ज्यादा बीतता था”,,

“अब अगला किरदार उनकी धर्मपत्नी सुधा भूषण माहेश्वरी,,समझ रही हूं शेखर के नाम के साथ सीता पर भूषण जी की पत्नी सुधा जी कुछ समझ नहीं पाए होंगे,, तो इसका समाधान ये है, कि सुधा जी भूषण जी की दूसरी पत्नी है,, शेखर की मां की मौत तब ही हो गई थी जब वो और उसकी बहन बहुत छोटे थे,,शेखर की बहन के जन्म के कुछ साल बाद ही सीता जी इस दुनिया को छोड़ गई थी,, उसकी बहन छोटी थी और मां के बिना बच्ची तड़प रही थी,, तब अपने चचेरे भाइयों और अपनी बहन के बहुत समझाने पर भूषण जी दूसरी शादी के लिए मान जाते हैं और भूषण जी की बेटी को एक मां का प्यार मिल जाता है”,,

“ये सिर्फ बताने के लिए था कि सुधा जी भूषण जी की दूसरी पत्नी है,, लेकिन कभी उन्होंने शेखर और उसकी बहन को ये महसूस भी होने नही दिया था,, कि वो उनकी मां नही है बल्कि उनकी जान बसती थी अपने बच्चो में,, लेकिन शेखर नही एक्सेप्ट कर पाया था उन्हे, सुधा जी का प्यार पाया था उसने,,बिल्कुल मां की तरह इज्जत करता था वो उनकी,, लेकिन फिर भी आज तक मां नही कह पाया था वो उन्हे,, उसकी मां उसकी सीता मां ही थी सुधा जी को वो आज भी आंटी ही कहता था,, लेकिन सुधा जी को इसमें कोई गुरेज नहीं था,, वो बस हमेशा शेखर को बिलकुल बेटे की तरह ही प्यार देती थी,,वही उनका और भूषण जी का भी एक बेटा था,, कुणाल,, जो मुंबई में अपनी बहन के साथ रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था,,, पर भूषण जी अपने तीनों बच्चों को बराबर प्यार करते थे,, लेकिन हा ये भी था उनकी जान सबसे ज्यादा सिर्फ अपनी बेटी में बसती थी”,,

“अगला किरदार शेखर की बुआ उपासना खंडेलवाल का है,, जो अपनी बेटी तृप्ति खंडेलवाल के साथ उनके ही घर पर रहती थी,,क्योंकि उपासना बुआ की शादी के दो साल बाद ही उनके पति की एक रोड ऐक्सिडेंट में डेथ हो गई थी,,तब तृप्ति उपासना जी की कोख में थी और उसी हालत में उन्हे उनके ससुराल वालो ने घर से निकाल दिया था,,भूषण जी ने उस वक्त अपनी बहन का पूरा साथ दिया था, बहुत कानूनी लड़ाई लड़ी गई,,तो उन्हे उनका हक कोर्ट से मिल गया था लेकिन जब रिश्ते दिल में मर जाते हैं तो फिर कही का कोई फैसला मायने नहीं रखता,, बहुत टूट गई थी उपासना बुआ उस वक्त और तब सीता जी ने उनका साथ दिया और वो उन्हे पूरे सम्मान के साथ वापिस उनके अपने घर ले आई थी और जो सम्मान उन्हे सीता जी से मिला,, वही उन्हे आज सुधा जी से भी मिल रहा था,,घर में हर फैसले में उपासना बुआ की राय उतनी जरूरी होती है,, जितनी बाकी सबकी और ना कभी तृप्ति को इस घर में कभी ये महसूस हुआ कि वो इस परिवार का हिस्सा नहीं है,, शेखर अपनी दोनो बहनों से बराबर प्यार करता था और तृप्ति भी अपने भाई की तरह डॉक्टर बनना चाहती थी और वो उसी की पढ़ाई कर रही थी”,,,


“वही अब मिलवाते है उससे जिसका अब तक सिर्फ जिक्र हुआ,, भूषण जी और अपनी सुधा मां की लाडली शेखर के लिए अपनी मां की आखरी निशानी और अपनी मां की परछाई,, बिल्कुल बेपरवाह बेधड़क खुशमिजाज मस्तमौला और बिलकुल बिंदास जिंदगी जीने वाली वो लड़की,, जिससे कई कहानियों की शुरुवात होनी तय थी,,,अब तक मुंबई में अपनी पढ़ाई पूरी कर कुछ महीनों का अपने प्रोफेशन का एक्सपीरियंस लेकर वापिस अपने शहर लौटी एक प्रोफेसर और एक बेहतरीन नृत्यांगना,, मैथिली सीता माहेश्वरी,, क्योंकि इसकी ये कला उसे अपनी मां से विरासत में मिली थी,, सीता जी एक बेहतरीन नृत्यांगना थी और आज उनका नाम उनकी बेटी रौशन कर रही थी,,डांस मैथली के खून में बहता था,,,चाहे वो प्रोफेसर थी लेकिन उसकी जान उसका डांस था,, यहां ना रहते हुए भी अपने कुछ खास दोस्तों के साथ मिल अपनी मां के नाम से सीता नृत्य अकादमी चलाती हैं और अपने पापा में जिस लड़की की जान बसती है,, वो है मैथिली जो उनके मुंह से निकले शब्द को पत्थर की लकीर मान अपनी जान तक दे सकती हैं,, वो है हमारी मैथिली और उनके ही लिए किसी की जान ले ले वो है,,
 मैथिली सीता माहेश्वरी,,


“अगले कुछ किरदार मैथिली के बचपन के छः दोस्तों की टोली है,, ये जो अपने सपनो और अपनी दोस्ती के लिए जीते हैं,, पहली मैथिली से तो मिला जा चुका है दूसरी उसकी सबसे खास दोस्त या ये कहे वो दोस्त जो उसे उससे ज्यादा अच्छे से जानती है यानी वन्दना राजपूत,, फिर सोनल शिप्रा अंगद और मिलन,, ये थी मैथिली की गैंग और सीता नृत्य अकादमी की बुनियाद,,


“अगला किरदार है तो मैथिली और शेखर का सबसे अच्छा दोस्त लेकिन बचपन का नही बल्कि सुधा जी के इस घर में आने के बाद मिला उन्हे बिल्कुल अपने परिवार जैसा दोस्त यानी अद्वैत रावल,,जो सुधा जी के मायके से उनकी अपनी नही बल्कि उनकी चचेरी बहन का बेटा लेकिन सुधा जी के लिए वो भी उनके बेटे की तरह ही था और शेखर सुधा जी को चाहे बहुत पसंद ना करता हो,, लेकिन अद्वेत उसका जिगरी यार था और मैथिली का भी, अद्वैत जयपुर में अपने पापा का बिजनेस संभालता था और भूषण जी के घर में उसको बिल्कुल बेटे की तरह ही माना जाता था”,,


“वही कुणाल जो भूषण जी और सुधा जी का बेटा था जिस नाम से एक बार रूबरू करवाया जा चुका है वो भी मुंबई में मैथिली के साथ रहकर ही पढ़ाई करता था लेकिन अब मैथिली उदयपुर लौट आई थी तो कुणाल अब अपने ही कॉलेज के हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी करने वाला था,,शेखर ये नही था कि कुणाल से नफरत करता हो या उसे अच्छा ना मानता हो, पर शेखर से ज्यादा कुणाल मैथिली के करीब था”,,,


“अब कुछ ओर किरदार जिनसे पुरी तरह तो कहानी की शुरुवात के बाद मिला जा सकता है,, पर एक छोटा सा परिचय,, अवध राजपूत तृषा के पिता जो एक नामी पॉलिटीशन थे और तृषा का भाई जय राजपूत जो अपने पापा की ही तरह पॉलिटिक्स में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहा था”,,

“एसएसपी अर्जुन सिंघानिया अधिराज का एक पुराना दोस्त और आज भी दोनो की पुरानी दोस्ती हर मुलाकात के साथ मजबूत हो रही थी”,,

“मुकुल सिंह,, अधिराज का राइट हैंड जो अधिराज का सबसे खास और सबसे भरोसेमंद इंसान, जिस पर वो आंख मूंद भरोसा करता था”,,

“रंजन मौली का कलीग और उसका फैमिली फ्रेंड जो शायद मौली को पसंद भी करता था”,,


“अगला किरदार बृजमोहन शेखावत जो उदयपुर क्या राजस्थान का वो नाम था, जिसे लोग शैतान कहते थे क्योंकि इंसान की शक्ल में छुपा भेड़िया शायद इसी को कहते होंगे,, आज तक जितने गुनाह राजस्थान में हुए हो उसमे किसी ना किसी तरह इस शैतान का नाम ना हो ये मुमकिन ही नहीं था और इसके खिलाफ खड़े हुए सबूत को मसलकर आगे बढ़ जाना ही इसे शैतान बनाता था,, ये भी एक पॉलिटिशन था लेकिन अपनी ताकत की बदौलत अपने सफेद कपड़ों पर कभी कोई खून का कतरा तक इसने पड़ने नही दिया था और अब अपने ही जैसे अपने बेटे कपिल बृजमोहन शेखावत जो बिलकुल अपने बाप का ही रूप था को अब वो सीएम की गद्दी तक पहुंचाने की कोशिश में, खुदकी संत की छवि बनाना शुरू किया था इन बाप बेटो ने, लेकिन यहां भी सिर्फ छल था”,,


“कहानी में अभी कई ओर किरदार है जो कहानी के आगे बढ़ने के साथ सामने आयेंगे,,, यहां इस कहानी में छल, नकाब, बिछड़ना, आंसू, त्याग समझौता और सबसे बड़ा छल है,, एक बिसात है जो छल और कई चेहरों के नकाब के साथ बिछाई गई है यहां सब शतरंज का खेल है,, अपने अपनो के ही कंधे पर बैठ जीतने के लिए छल रच रहे हैं,, खुशियों की भी यहां कीमत है,,, कई अपनी सत्ता को अपना कपट छुपा सजा रहे हैं,,प्यार भी बेशुमार है लेकिन समझौते प्यार से ज्यादा गहरे है,,एक खेल शुरू हुआ है,, वो भी छल से और खतम कई अनदेखे चेहरों के नकाब को हटाकर होगा,,ये शतराज का खेल है और इस बिसात पर चलती कई कहानियां,, और अब इस खेल को कौन दिल से जीतना है और कौन दिमाग से, यही कहानी का सार है क्योंकि यहां सब सिर्फ छल है”,,

कहानी की शुरुवात:- कल से…….

Gp 

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