Wo pahli Baarish ka Wada - 5 in Hindi Love Stories by Rekha Rani books and stories PDF | वो पहली बारिश का वादा - 5

Featured Books
  • بےنی اور شکرو

    بےنی اور شکرو  بےنی، ایک ننھی سی بکری، اپنی ماں سے بچھڑ چکی...

  • خواہش

    محبت کی چادر جوان کلیاں محبت کی چادر میں لپٹی ہوئی نکلی ہیں۔...

  • Akhir Kun

                  Hello dear readers please follow me on Instagr...

  • وقت

    وقت برف کا گھنا بادل جلد ہی منتشر ہو جائے گا۔ سورج یہاں نہیں...

  • افسوس باب 1

    افسوسپیش لفظ:زندگی کے سفر میں بعض لمحے ایسے آتے ہیں جو ایک پ...

Categories
Share

वो पहली बारिश का वादा - 5


(पिछले एपिसोड में…)
आयुष और प्रिया की मुलाकातों का सिलसिला बारिश की बूंदों जितना ही गहरा और अनकहा हो चुका था। उनकी हँसी, उनकी चुप्पियाँ, सब में एक अनकहा इकरार था। लेकिन इस इकरार के बीच आयुष के पुराने दर्द और प्रिया के भविष्य के डर ने कई सवाल छोड़ दिए थे…


---

सुबह की हल्की-हल्की धूप खिड़की से झाँक रही थी। प्रिया ने चाय का प्याला उठाकर खिड़की के पास रखा और बाहर देखा। पिछली रात हुई बारिश की वजह से बगीचे की मिट्टी में एक भीनी-भीनी खुशबू फैली हुई थी। उसने गहरी साँस ली और खुद से कहा —
"काश, ज़िंदगी की सारी उलझनें भी ऐसे ही बारिश से धुल जाया करतीं…"

उसी वक्त फोन की घंटी बजी।
स्क्रीन पर "आयुष कॉलिंग" लिखा था।
प्रिया के होंठों पर एक अनजानी मुस्कान आई, लेकिन दिल में एक अजीब सा डर भी। उसने रिसीव किया —
“गुड मॉर्निंग, प्रिया।”
“गुड मॉर्निंग… इतनी सुबह?”
“सोचा, आज का दिन तुम्हारी हँसी से शुरू हो।”

प्रिया चुप रही।
आयुष समझ गया कि उसकी चुप्पी में कुछ है।
“सब ठीक है न?”
“हाँ… बस… सोचा कुछ बातें करनी हैं, लेकिन आमने-सामने।”
“तो तैयार हो जाओ, मैं आ रहा हूँ।”


---

कहानी का मोड़ – मुलाक़ात
करीब आधे घंटे बाद, आयुष उसकी गली के मोड़ पर खड़ा था। प्रिया ने सलवार-कमीज़ पहन रखी थी, बाल खुले, और हाथ में वही पुरानी डायरी थी जिसे वह हमेशा अपने पास रखती थी।
“तो… ये है तुम्हारा राज़?” आयुष ने मुस्कुराते हुए डायरी की तरफ इशारा किया।
“राज़ नहीं… ये मेरी दुनिया है।”
“और इसमें मेरे लिए जगह है?”
प्रिया ने नज़रें झुका लीं —
“पता नहीं… अभी तो बस पन्ने खाली हैं… शायद भर जाएं…”

दोनों पास के पार्क की ओर चल दिए। हवा में हल्की ठंडक थी। पेड़ों से पानी की बूंदें टपक रही थीं, जैसे पिछली रात का सबूत।

आयुष ने चलते-चलते कहा —
“प्रिया, तुमसे कुछ कहना है… लेकिन डर लग रहा है।”
“डर क्यों?”
“क्योंकि जो मैं कहूँगा, उसके बाद शायद तुम मुझसे दूर चली जाओ।”

प्रिया ठिठक गई।
“ऐसी कौन सी बात?”
आयुष ने गहरी साँस ली —
“दो साल पहले… मेरी मंगेतर… हमारी शादी से एक हफ्ता पहले… एक एक्सीडेंट में…”
उसकी आवाज़ भर्रा गई।
“वो चली गई।”

प्रिया ने उसका हाथ थाम लिया।
“मुझे पता है… मैंने सुना था मोहल्ले में… लेकिन आयुष, हम सबके अतीत में कुछ न कुछ दर्द होता है। सवाल ये है कि क्या हम उसे पकड़ कर रखेंगे, या… उसके साथ जीना सीखेंगे।”

आयुष ने उसकी आँखों में देखा —
“और तुम? क्या तुम मेरा आज बन सकती हो?”


---

भावनाओं का तूफान
प्रिया चुप रही। उसकी आँखों में नमी थी।
“आयुष, मैं झूठ नहीं बोलूँगी। मुझे तुमसे लगाव है… लेकिन मैं अभी उस मोड़ पर हूँ जहाँ अपने दिल को खुला छोड़ना आसान नहीं है। मेरे पापा का ट्रांसफर हो सकता है, मेरी नौकरी की तलाश जारी है… और मुझे डर है कि कहीं ये रिश्ता अधूरा न रह जाए।”

आयुष ने उसका हाथ कसकर थामा —
“तो हम वादा करते हैं… चाहे जो हो, हम बारिश के मौसम में फिर मिलेंगे। चाहे कितने भी साल लग जाएं।”

प्रिया ने हल्की मुस्कान दी —
“वो पहली बारिश का वादा?”
“हाँ… बिल्कुल।”


---

कुछ हफ़्ते बाद…
समय ने जैसे पंख लगा लिए। प्रिया का पापा का ट्रांसफर हो गया, और वो दूसरे शहर चली गई।
दोनों ने संपर्क बनाए रखा, लेकिन दूरी अपनी कहानियाँ लिखने लगी।
आयुष ने खुद को काम में झोंक दिया, लेकिन हर बारिश में उसकी नज़रें आकाश को खोजतीं, जैसे बूंदों के साथ प्रिया भी लौट आएगी।

प्रिया भी अपने नए शहर में आयुष की यादों के साथ जी रही थी। उसकी डायरी अब आयुष के नाम के पन्नों से भरने लगी थी। लेकिन एक दिन… उसे एक पत्र मिला, जिसमें सिर्फ इतना लिखा था —
"बरसात आ गई है… क्या तुम आओगी?"


---

एपिसोड का क्लाइमेक्स
प्रिया स्टेशन पहुँची। बादलों की गरज थी, और आसमान खुलकर बरस रहा था। उसने भीगते हुए भीड़ में तलाशा… और फिर देखा —
आयुष, भीगते हुए, हाथ में एक गुलाब लिए खड़ा था।
दोनों ने एक-दूसरे को देखा… कोई शब्द नहीं… सिर्फ बारिश, और वो वादा…


---
Writer: rekha Rani