कोमोलिका – दिल्ली की सुबह कोहरे में लिपटी हुई थी। आंटी टीन के कैफ़े में एक कोने में कोमोलिका गर्म कॉफी की ट्रे लेकर जा रही थी। उसकी आँखों में नींद थी, लेकिन इरादों में चमक थी।
कॉलेज की क्लास सुबह 9 बजे से शुरू होती थी, लेकिन उससे पहले वो कैफ़े में दो घंटे काम करती थी और कॉलेज खत्म होने के बाद भी उसी कैसे में काम करते हैं— थोड़ा मेहनत, थोड़ा ईमान, और बहुत सारा सपना।
कैफ़े की एप्रन में भी वह वैसी ही लगती थी जैसे लाइब्रेरी में — शांत, समझदार और बेहद केंद्रित।
उसका सपना बहुत सीधा-सादा था:
"एक दिन मैं इतनी बड़ी बनूँगी कि पापा का नाम सब जगह रोशन हो।"
पापा, जो एक छोटी-सी किराने की दुकान चलाते थे, अपनी बेटी की फीस जमा करते समय बस एक ही ख्वाहिश रखते थे — "मेरी बेटी कभी किसी के आगे हाथ न फैलाए।"
कोमोलिका ने कभी शिकायत नहीं की। न ज़िंदगी से, न वक़्त से।
उसके लिए हर मौसम एक नई क़सम की तरह था —
सर्दी मेहनत की, गर्मी इरादों की, और बरसात... यादों की।
वहीं दूसरी ओर... रुद्र सिंह राठौड़
दिल्ली के पॉश एरिया में एक बड़ी सी हवेली में रहता था।
बचपन से दौलत, रुतबा और शाही ठाठ में पला था।
लेकिन उसके अंदर एक अजीब सी खामोशी थी — जैसे कोई अधूरी कहानी दबी हो दिल में।
वो कामयाब था, लेकिन खाली।
उसे रिश्तों पर भरोसा नहीं था, और प्यार के लिए उसकी ज़िंदगी में कोई जगह नहीं थी। हवेली के ऊँचे, शांत गलियारों में रुद्र की कहानी बसती थी।
शोर था दौलत का, पर दिल के किसी कोने में सन्नाटा बसता था।
रुद्र सिंह राठौड़ प्यार पर कभी विश्वास करता था —
लेकिन फिर ज़िंदगी ने उसके उस विश्वास को दो बार बुरी तरह कुचला।
पहला घाव – माँ का जाना
जब वह केवल 8 साल का था,
उसने एक सुबह अपनी माँ को दरवाज़े से जाते हुए देखा।
वो चली गईं... बिना कुछ कहे, बिना मुड़कर देखे।
कहा गया — "वो किसी और के साथ भाग गईं।"
रुद्र की आँखों ने उस दिन भरोसे की परिभाषा खो दी।
उसे लगा कि प्यार मतलब छोड़ जाना होता है।
उस दिन से उसने सीखा,
जो सबसे ज़्यादा अपना लगता है, वही सबसे पहले छोड़ जाता है।"
💔 दूसरा घाव – पल्लवी का धोखा
सालों बाद, जब रुद्र कॉलेज में था,
उसकी ज़िंदगी में पल्लवी नाम की एक लड़की आई।
वो उसकी पहली मोहब्बत थी — और शायद आखिरी भी।
रुद्र ने फिर से अपने दिल को किसी के हाथ में सौंपा था।
पर किस्मत को शायद यही मंज़ूर नहीं था।
पल्लवी ने भी एक दिन अचानक कह दिया:
रुद्र, तुम्हारे पास सब कुछ है... लेकिन मैं आज़ाद उड़ना चाहती हूँ।
तुम मुझे रोक सकते हो, पर मैं रुकना नहीं चाहती।”
और वो भी चली गई...
रुद्र फिर से अकेला रह गया — इस बार पूरी तरह टूटा हुआ।
अंजलि दी — रुद्र का सहारा, उसकी ताकत
अंजलि राठौड़, रुद्र से 5 साल बड़ी
माँ के जाने के बाद, अंजलि ही माँ भी बनी, दोस्त भी और दीवार भी
रुद्र के हर टूटे पल में अंजलि ने उसे बाँधा, संभाला, सिखाया।
हर सुबह ऑफिस जाने से पहले
जब अंजलि दीदी उसके माथे पर तिलक लगाती थीं,
तो रुद्र के चेहरे पर एक अनकही शांति आ जाती थी।
भले ही वो पूजा-पाठ में यकीन नहीं करता था,
लेकिन दीदी की उँगलियों में जो ममता, आशीर्वाद और सुरक्षा थी,
उसे वो बिना कहे स्वीकार करता था।
“मुझे भगवान में नहीं,
पर दीदी के हाथ के तिलक में भरोसा है।”
– रुद्र (मन ही मन)
दिल्ली की बिज़नेस वर्ल्ड में
जब लोग रुद्र सिंह राठौड़ का नाम लेते थे,
तो अक्सर श्याम का नाम भी साथ आता था।
कोई कहता:
“रुद्र जितना तेज़ सोचता है,
श्याम उतना ही सलीके से उसे अंजाम देता है।”
रुद्र: तेज़, दूरदर्शी, तगड़े फैसले लेने वाला
श्याम: शांत, समझदार, बैलेंस बनाए रखने वाला
श्याम, जो अब तक रुद्र का सबसे वफादार और करीबी इंसान था,
उसके मन में छुपा हुआ लालच है — राठौड़ खानदान की जायदाद का लालच। श्याम हर दिन रुद्र के साथ बैठकों में होता,
उसके बिज़नेस फैसलों में उसका सलाहकार भी था,
पर अंदर ही अंदर उसकी निगाह राठौड़ हवेली की दौलत और अधिकार पर थी।
उसने हमेशा से खुद को "दूसरे नंबर का राजा" माना,
लेकिन अब वो पहला बनना चाहता था।वो जानता था रुद्र प्यार में टूटा हुआ, और रिश्तों से नफरत करता है
वो यही सोचता था कि रुद्र शादी नहीं करेगा,
और अगर कोई वारिस नहीं होगा,तो सारा कारोबार और जायदाद अंजली के जरिए उसतक आ जाएगी।
लेकिन शाम को क्या पता था कि रूद्र सिंह राठौड़ भी एक दिन शादी करेगा। वो भी एक प्रेम भक्ति भावना और भगवान पर विश्वास रखने वाली कोमोलिका से जो उसकी जिंदगी की काया ही पलट कर रख देगी।