Society’s Misconception About Sex Workers
समाज अक्सर "वेश्या" शब्द सुनते ही गलत सोचने लगता है — मानो वो औरत बुरी हो, गंदी हो, या अपनी मर्ज़ी से ये काम करती हो। लेकिन सच ये है कि ज़्यादातर वेश्याएँ इस काम में अपनी खुशी से नहीं, मजबूरी से आती हैं। उनका मकसद केवल पैसा कमाना नहीं होता, बल्कि कई बार दूसरों की परेशानियाँ हल करना भी होता है। पैसों के बदले वो लोगों का अकेलापन, तनाव और मानसिक बोझ कम करती हैं।
यह उनके लिए कोई आनंद का काम नहीं, बल्कि रोज़ का संघर्ष है। बिना किसी पदक या सम्मान के, वो एक तरह से public service कर रही होती हैं — ऐसे लोगों की सेवा जो समाज की नज़रों से छिपे दर्द झेल रहे होते हैं।
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Rekha’s Story
रात के 11 बजे थे। शहर की गलियों में हल्के-हल्के पीले बल्ब जल रहे थे। ठंडी हवा के बीच, एक कोने में पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर बैठी थी रेखा। आंखों के नीचे गहरे हल्के थे, लेकिन चेहरे पर एक अजीब-सा सुकून। उसने अपने दुपट्टे से पसीने की बूंदें पोंछीं, और धीमी मुस्कान के साथ बोली,
"भैया, ये काम मैं अपनी खुशी से नहीं करती… पर अगर मैं ये ना करूं, तो मेरे दो छोटे बच्चे स्कूल कैसे जाएंगे?"
रेखा कभी सिलाई का काम करती थी। पति का अचानक एक्सीडेंट हुआ, घर का इकलौता कमाने वाला चला गया। महीने भर का किराया, बच्चों की फीस, माँ की दवा — सब कुछ एक साथ टूटकर गिरा। किसी ने मदद का हाथ नहीं बढ़ाया, पर ज़िंदगी ने सवाल ज़रूर पूछा: "अब कैसे चलेगा?"
उसने कहा, "मैं गलत काम नहीं करती… मैं सिर्फ मजबूरी का काम करती हूँ।"
ये सच है — रेखा जैसी हज़ारों औरतें अपना मन मारकर, अपनी इज़्ज़त पर समाज के ताने सहकर, सिर्फ इसलिए ये रास्ता चुनती हैं ताकि किसी का घर न टूट जाए, किसी की भूख न बढ़े।
उनके पास आने वाले लोग कभी अपनी कहानी बताते हैं, कभी अपने आँसू छुपाते हैं। रेखा बस उनका बोझ हल्का कर देती है, एक पल के लिए उनकी तन्हाई तोड़ देती है। वो उनकी बातें सुनती है, कभी चुपचाप, कभी हल्की मुस्कान के साथ — मानो वो खुद अपने दुख को भूल गई हो, बस सामने वाले का दर्द सुन रही हो।
उस रात, जब एक आदमी चला गया, रेखा ने अपना पैसों का पैकेट उठाया। उसने कुछ नोट अलग किए — माँ की दवा, बच्चों की फीस, बिजली का बिल। और एक छोटा-सा पैसा बचाया — अपने बेटे के लिए एक क्रिकेट बॉल लेने के लिए।
वो पल, उसकी रूह का सुकून था।
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A Message for Society
समाज के नज़रिए में, वो शायद “गंदी” है। पर ज़िंदगी के सच में, वो एक public servant है — बिना पदक, बिना सम्मान, बस ज़िम्मेदारी से काम कर रही है।
शायद समय आ गया है कि हम अपनी सोच बदलें। क्योंकि कभी-कभी, जिसे हम गंदा काम कहते हैं, वो किसी का सबसे बड़ा भलाई का काम होता है।
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About the Author
Sachin Yadav एक स्वतंत्र लेखक और सामाजिक मुद्दों पर संवेदनशील दृष्टिकोण रखने वाले कहानीकार हैं। वो अपनी कहानियों के ज़रिए समाज के अनदेखे पहलुओं को उजागर करते हैं और पाठकों को सोचने पर मजबूर करते हैं।