भारत के एक छोटे से गाँव रामपुर में मध्यम आयु का एक व्यक्ति रहता था — नाम था हरिराम। उम्र लगभग पैंतालीस साल, साधारण कद-काठी, चेहरे पर मेहनत की रेखाएँ और आँखों में विश्वास की चमक। पेशे से किसान था, पर खेती उसकी आजीविका से ज्यादा उसकी आत्मा का हिस्सा थी। जमीन उसके पूर्वजों की थी और वह मानता था कि खेत केवल अनाज देने वाली जगह नहीं, बल्कि भगवान की दी हुई जिम्मेदारी है।
गाँव में इस साल मौसम कुछ अलग ही रंग दिखा रहा था। पहले पहर की फसल बुवाई के समय बारिश न के बराबर हुई। आसमान जैसे रूठ गया हो। मिट्टी सूखकर फटने लगी थी, पौधे मुरझाने लगे थे और किसानों के चेहरे पर चिंता की गहरी लकीरें खिंच गई थीं। गाँव में पानी के स्रोत भी सूखने लगे।
हरिराम के पास भी बस इतना ही अनाज बचा था कि किसी तरह साल भर के लिए परिवार का पेट भर सके। फिर भी, उसने अपने खेत में भगवान गणेश की मिट्टी की एक छोटी सी मूर्ति रखी और रोज़ सुबह-शाम पूजा करने लगा। उसके मन में एक ही विश्वास था —
"गणपति बप्पा कभी अपने भक्त को निराश नहीं करते।"
गाँव के लोग हंसते, कहते —
“अरे हरिराम, पूजा-पाठ से बारिश थोड़े आएगी, खेत में पानी डालने का इंतज़ाम करो।”
लेकिन हरिराम मुस्कुराकर कहता —
“मेहनत मैं करता रहूंगा, कृपा बप्पा की होगी, तो फल जरूर मिलेगा।”
दिन बीतते गए, बारिश का नाम नहीं। गाँव में सूखे के हालात गंभीर होने लगे। कई किसान कर्ज में डूब गए, कुछ ने खेत छोड़कर शहर की ओर रुख किया। पर हरिराम अपनी जिद और भक्ति पर अडिग रहा। दिन में खेत में काम करता, रात में दीपक जलाकर गणेशजी के भजन गाता।
एक दिन गाँव में गणेश चतुर्थी आई। बाकी लोग बड़े आयोजन के लिए पैसे और साधन न जुटा सके, लेकिन हरिराम ने अपनी जमा पूंजी में से थोड़ा हिस्सा निकालकर मिट्टी से बनी एक सुंदर गणेश प्रतिमा मंगाई। उसने गाँव के बच्चों को बुलाया, घर के आँगन में पंडाल सजाया और कहा —
“गाँव चाहे जैसे हाल में हो, बप्पा का स्वागत पूरे मन से होना चाहिए।”
गाँव वालों को उसका यह उत्साह देखकर आश्चर्य हुआ। कुछ ने सोचा, शायद यह मूर्खता है कि ऐसे संकट में भी पूजा-पाठ पर खर्च किया जा रहा है। लेकिन बच्चों और कुछ बुजुर्गों ने उसका साथ दिया। गणेशजी की आरती और प्रसाद में सभी शामिल हुए।
उस रात एक अद्भुत बात हुई। आधी रात को आसमान में बादल घिरने लगे, बिजली चमकी और हल्की-हल्की बूंदें गिरने लगीं। सुबह तक तेज बारिश हो चुकी थी। खेतों में सूखी पड़ी मिट्टी की खुशबू हवा में फैल गई। गाँव वाले चौंक गए — हफ्तों से आसमान साफ था और गणेश चतुर्थी की रात ही बादल बरस पड़े!
गाँव के बुजुर्ग बोले —
“यह गणेश बप्पा की कृपा है, और हरिराम की अटूट भक्ति का फल।”
बरसात अब समय पर होती रही, और फसल ने इस बार खूब अच्छा उत्पादन दिया। हरिराम का खेत सोने जैसा लहलहाया। इतना अनाज हुआ कि न केवल उसके घर का भंडार भर गया, बल्कि उसने ज़रूरतमंद किसानों को भी मुफ्त में अनाज दिया।
जब उससे पूछा गया —
“हरिराम, तुम्हें डर नहीं लगा था कि पूजा में खर्च करने से घर का खर्च कैसे चलेगा?”
वह मुस्कुराकर बोला —
“भक्ति सच्ची हो तो डर का कोई स्थान नहीं। मैंने खेत में मेहनत की, लेकिन विश्वास बप्पा पर था। मेहनत बिना कृपा अधूरी है, और कृपा बिना मेहनत।”
गाँव के लोग अब उसकी मिसाल देने लगे। हरिराम ने यह भी किया कि फसल का पहला हिस्सा मंदिर में चढ़ाता और बाकी जरूरतमंदों में बांट देता। उसका कहना था —
“यह अनाज मेरा नहीं, बप्पा का दिया हुआ है। मैं तो बस उसका रखवाला हूँ।”
समय बीतता गया, पर हरिराम की भक्ति में कमी नहीं आई। वह अब गाँव में गणेश चतुर्थी का मुख्य आयोजक बन गया। बच्चों को वह सिखाता —
“भक्ति सिर्फ पूजा में नहीं, बल्कि दूसरों की मदद में है। बप्पा का आशीर्वाद तब ही पूरा होता है जब हम उसे औरों तक पहुंचाएं।”
सूखे से जूझते उस गाँव में, हरिराम की आस्था और मेहनत ने एक मिसाल कायम कर दी। किसान अब केवल बारिश का इंतजार नहीं करते, बल्कि पानी बचाने, तालाब बनाने और फसल चक्र अपनाने लगे। और हर साल गणेश चतुर्थी पर लोग कहते —
“यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि जब भक्ति सच्ची हो और मेहनत ईमानदार, तो फल जरूर मिलता है।”