Flaunting the empathy in Hindi Short Stories by vishwa singh books and stories PDF | सच्ची संवेदनाएँ बनाम सोशल मीडिया

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सच्ची संवेदनाएँ बनाम सोशल मीडिया

"एक संवेदनात्मक कथा जो झूठे दिखावे और असलियत के बीच की दूरी को उजागर करती है।"


दौर है ये सोशल मीडिया का जब ऐसे हर मौके पे गजब के सतरंगी मेसेज की बाढ़ सी दिखती है।
बेशक रियल लाइफ में कोई इमोशन्स नहीं हो, लेकिन दिखावे के बाजार में बेहतरीन पोस्ट्स बेचे जाते हैं।
आज फादर्स डे के मौके पे हर जगह अच्छे विचार, पोस्ट्स और मेमोरीज़ शेयर किए हुए देखे तो मुझे लगा कि जो रियल लाइफ में मैंने देखा और महसूस किया उन संवेदनाओं को उतारा जाए।

मेरे एक क्लोज़ फैमिली फ्रेंड हैं जिनके साथ अच्छे वक्त तक रहने का मुझे मौका मिला।
अभी एक साल पहले उनकी होने वाली बीवी उनके पास आई थी और उस मौके पे उनको मुझे काफ़ी क़रीब से जानने-समझने का मौका मिला।
पहले वो मुझे अक्सर बताते थे या दिखाते थे कि वो अपनी माता-पिता को कितना प्यार और आदर करते हैं।
जब उनकी पत्नी वापस जा रही थी, हर तरीके से सारी ज़िम्मेदारियों को अच्छे से निभाते हुए वे उनको स्टेशन तक ड्रॉप भी करने गए थे।
और ये सब मुझे अच्छा भी लग रहा था कि बहुत ही मेच्योर और केयरिंग इंसान है।
मुझे लगता था कि लाइफ में बहुत अच्छा बैलेंस बना कर रखते हैं।

उनकी वाइफ के जाने के बाद अगले हफ्ते उनके मम्मी-पापा गाँव से आ रहे थे और इत्तेफ़ाक से मैं उस वक्त तक उनके साथ ही था।
दोनों के पास लगेज भी अच्छा-खासा था लेकिन मुझे सुनकर बहुत दुख, ग़ुस्सा और खीझ हुई जब उन्होंने अपने माता-पिता को स्टेशन तक रिसीव करने जाने से मना कर दिया।
उन्होंने स्पष्ट रूप से अपने मां-बाप को मना करते हुए कहा,
"मेरे पास और कोई काम नहीं है क्या? मैं बहुत ज़्यादा बिज़ी हूँ अपने काम में।"


ऐसा ही एक और वाकया हुआ एक और दोस्त के साथ कुछ समय पहले।
वो अपनी गर्लफ्रेंड को स्टेशन छोड़ने गया और इत्तेफ़ाक से जिस दिन उसकी गर्लफ्रेंड दिल्ली से अपने होमटाउन जा रही थी,
ठीक उसी दिन उसी समय उसके फादर गाँव से वापस दिल्ली आ रहे थे।
स्टेशन से अपनी गर्लफ्रेंड को ड्रॉप करके आते वक्त वो मेरे साथ ही था और एक घंटे में सात बार ट्रेन स्टेटस चेक कर चुका था और मुझे पक्का कर चुका था कि ट्रेन अब यहाँ तक पहुँची, यहाँ तक पहुँची।

वह बार-बार अपनी गर्लफ्रेंड से बात भी करता जा रहा था और इसमें कुछ बुराई भी नहीं है।
मैं भी उसकी हाँ में हाँ मिला रहा था।
लेकिन एक बार भी उसने अपने फादर के ट्रेन का स्टेटस देखने का कष्ट नहीं किया
या फोन करके पूछने का कष्ट नहीं किया कि वो ठीक से ट्रेन बोर्ड कर गए या नहीं
या फिर ट्रेन कहाँ तक पहुँची।

जब वो घर लौटा तो उसकी मां परेशान थी कि उसके फादर का कॉल कनेक्ट नहीं हो रहा है।
मुझे देख कर बहुत ही ज़्यादा ग़ुस्सा और दुख हुआ कि ये सुनकर भी उसको कोई फ़र्क नहीं पड़ा।

ये सुनने के बाद भी ना तो उसने कॉल करने की कोशिश की,
ना ही ट्रेन का कोई स्टेटस चेक किया,
यथावत अपनी गर्लफ्रेंड से बात करता रहा।
एक आधा घंटे के बाद उसके फादर का फ़ोन आया और वो ठीक-ठाक थे,
लेकिन मैंने सोचा कि क्या ये बेटे ठीक हैं?

ऐसे जो केवल मीठी और चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं, कर्म से कुछ और लेकिन वचन से कुछ और 🤔🤔🤔


मेरा मन अंदर तक अजीब से दुख और क्रोध से भर गया और मैं सोचने लगा कि ये हम किस दिशा में जा रहे हैं।
दिखावे करने के नाम पे सोशल मीडिया पे क्या-क्या नहीं करते,
अपनी तारीफ़ बटोरने के लिए बातों के पुल बाँधते नहीं थकते
और असल ज़िंदगी में कितने ठग हैं हम लोग।

शायद हर कोई ऐसा नहीं है,
लेकिन अगर देखा जाए तो हम सभी वैसे भी नहीं हैं जैसे सोशल मीडिया पे दिखने के होड़ में लगे हुए हैं।


ऐसे कितने सारे वाकये हमारे आस-पास रोज़ होते रहते हैं जहाँ मन कचोट जाता है।
कोई परफेक्ट नहीं है, मेरी ज़िंदगी अपने आप में imperfections का पुलिंदा है
लेकिन मैं समझता हूँ कि हम जैसे हैं, वैसे ही दिखें भी तो बेहतर है।
ढोंग करके अच्छा बनने का प्रयास करेंगे तो आप अपने आप को ही खो देंगे।


सिर्फ़ लाइक्स और पोस्ट्स के लिए बड़ी-बड़ी बातें लिखने से बेहतर है कि हम अपनी कमियों को पहचानें और उन पर काम करें।

याद रखो, अगर आप वाकई अच्छे हैं तो आपको तारीफ़ माँगनी नहीं पड़ेगी, आप जिसके लायक हो वो आपको अपने आप मिलेगी।

झूठी तारीफ़ पाने के लिए ढोंग मत करो, तारीफ़ के पात्र बनो।
Father's Day लिखने से नहीं होगा, ऐसा बर्ताव करो कि पिता को गर्व महसूस हो। 🤗🤗🤗