Resham aur Talvaar in Hindi Love Stories by Anvie books and stories PDF | रेशम और तलवार

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रेशम और तलवार

चैप्टर 1 – सुनहरे महल की कैद

साल 1745, राजस्थान के मरुस्थल के बीच बसा अमरगढ़ रियासत।

सूरज की सुनहरी किरणें महल की ऊँची-ऊँची बुर्जियों पर ऐसे गिरतीं जैसे सोना पिघलकर दीवारों पर बह रहा हो। बाहर से देखने पर ये महल किसी सपनों के किले जैसा लगता था, लेकिन इसके भीतर रहने वालों के लिए ये एक ऐसी कैद थी, जिसमें सांस तो ली जा सकती थी, पर उड़ान नहीं भरी जा सकती थी।

महल की सबसे ऊँची खिड़की में खड़ी थी — राजकुमारी आन्या।

सिर्फ उन्नीस साल की, लेकिन उसकी आँखों में उम्र से कहीं ज़्यादा कहानियाँ छुपी थीं। बचपन से ही वह महल की परंपराओं और नियमों में पली थी — बाहर की दुनिया को बस खिड़की से देख सकती थी, छू नहीं सकती थी।

आन्या का दिन सुबह सूरज उगने से पहले शुरू होता — पूजा, नृत्य, संगीत की कक्षाएँ, और फिर रानी माँ के साथ दरबार में हाज़िरी।

उसे हर वक्त याद दिलाया जाता कि वह सिर्फ एक बेटी नहीं, बल्कि रियासत की शान है, और उसकी ज़िंदगी का हर कदम राजनीति और रिश्तों के लिए तय होगा।

उसी दिन दोपहर को महल के प्रांगण में हलचल मची।

दरबार में नए योद्धाओं की नियुक्ति होनी थी। राजमहल के बड़े दरवाज़े खुले, और रेत के धूल भरे तूफ़ान के बीच एक सवार घोड़े पर आया — चौड़े कंधे, पक्की मूंछें, और आँखों में वो चमक जो किसी सैनिक में कम ही दिखती है।

वह था अरमान, अमरगढ़ की सीमा से दूर एक छोटे गाँव का बेटा, जिसे अपनी वीरता और तलवारबाज़ी के लिए बुलाया गया था।

आन्या ने खिड़की से उसकी ओर देखा।

वो नज़रें बस एक पल के लिए मिलीं, लेकिन जैसे वक्त वहीं ठहर गया।

अरमान ने हल्का सा सिर झुकाया — क्या ये सिर्फ राजकुमारी के प्रति सम्मान था, या उस पल में कुछ और भी था?

आन्या के दिल में हल्की-सी धड़कन तेज़ हो गई।

दरबार की कार्यवाही के बाद, शाम को महल के बगीचे में आन्या टहल रही थी। हवा में केवड़े की खुशबू तैर रही थी और मोर अपने पंख फैला रहे थे। तभी उसने महल की दीवार के पास किसी की परछाईं देखी।

वो अरमान था, जो सुरक्षा की जाँच के बहाने वहां आया था।

उनके बीच कोई शब्द नहीं बोले गए — बस आँखें, और वो चुप्पी जिसमें हजारों बातें थीं।

जाने क्यों, उस पल आन्या को लगा कि ये महल की कैद में उसकी पहली खुली खिड़की है।

लेकिन उसे ये भी पता था — जो रास्ता खुला है, वो आसान नहीं होगा…

चैप्टर 2 – रेशमी दुपट्टे का राज़

अगले कुछ हफ़्तों तक, आन्या और अरमान की नज़रें कई बार टकराईं — कभी दरबार में, कभी महल के गलियारों में, और कभी महल के बगीचे की लंबी छाँवों के बीच।

कभी-कभी बस एक हल्की मुस्कान, कभी सिर झुकाकर नमस्ते, लेकिन हर बार दोनों के दिल में एक अनजाना कंपन दौड़ जाता।

आन्या जानती थी कि महल में राजकुमारी का किसी योद्धा से इस तरह का संबंध सोचना भी गुनाह माना जाता है।

पर मोहब्बत का बीज चुपके से उसी मिट्टी में उगता है, जहां उसे सबसे ज़्यादा रोका जाता है।

एक शाम, रानी माँ ने आन्या को अपने साथ दरबार के पिछवाड़े बने मंदिर में जाने को कहा। मंदिर के रास्ते में, आन्या का रेशमी गुलाबी दुपट्टा हवा में उड़कर नीचे गिर गया।

वह नीचे झुकने लगी, लेकिन तभी पीछे से एक मज़बूत हाथ ने दुपट्टा थाम लिया।

अरमान।

उसने दुपट्टा आन्या की ओर बढ़ाया, लेकिन जैसे ही वह लेने लगी, उसकी उँगलियाँ अरमान की उँगलियों से छू गईं।

दोनों के बीच एक ऐसी चुप्पी फैल गई, जिसमें न कोई डर था, न कोई जल्दबाज़ी — बस एक लंबा, ठहरा हुआ पल।

“ये रंग… आप पर अच्छा लगता है,” अरमान ने धीरे से कहा।

आन्या ने बिना कुछ कहे दुपट्टा थाम लिया, लेकिन उसकी आँखों में एक हल्की मुस्कान तैर गई।

उस दिन के बाद, आन्या ने महसूस किया कि उसका दुपट्टा एक बहाना बन गया था।

जब भी उसे कोई संदेश भेजना होता, वह अपना दुपट्टा महल के पीछे लगे नीम के पेड़ पर छोड़ देती — और जब वापस आता, तो उसमें एक छोटा सा कागज़ का टुकड़ा छुपा होता, जिस पर अरमान की कविताएँ लिखी होतीं।

चैप्टर 3 – तलवार की पुकार

सर्दियों की शुरुआत हो चुकी थी।

अमरगढ़ की रातें अब ठंडी हवाओं और चाँदी जैसी चाँदनी में डूबने लगी थीं।

महल की ऊँची दीवारें भी जैसे ठंड में सिकुड़ गई हों, लेकिन आन्या के दिल में एक अजीब-सी गर्माहट थी — अरमान के साथ बिताए गुप्त लम्हों की वजह से।

लेकिन प्यार की सबसे बड़ी दुश्मन होती है—किस्मत।

एक सुबह, दरबार में अचानक आपातकालीन सभा बुलाई गई।

राजा का चेहरा गंभीर था, रानी माँ के माथे पर चिंता की लकीरें।

मुख्य सेनापति ने खबर सुनाई — पड़ोसी रियासत मेहावर ने सीमा पर हमला बोल दिया है।

युद्ध अवश्यंभावी था।

अरमान दरबार में मौजूद था।

उसकी तलवार की मूठ पर उँगलियाँ कस गईं, जैसे वो पहले से तैयार हो।

राजा ने आदेश दिया — “अरमान, तुम उत्तरी सीमा की रक्षा की ज़िम्मेदारी सँभालोगे। कल सुबह तुम अपने दस्ते के साथ निकलोगे।”

आन्या का दिल जैसे किसी ने दबोच लिया हो।

उसने खिड़की से अरमान को देखा — उसकी आँखों में दृढ़ता थी, लेकिन कहीं गहराई में एक हल्की उदासी भी थी, जो शायद सिर्फ आन्या पढ़ सकती थी।

शाम को, जब महल का आँगन सुनसान था, आन्या महल के पीछे वाले बगीचे में पहुँची।

वहीं अरमान पहले से खड़ा था, जैसे उसे पता था कि वो आएगी।

दोनों कुछ देर बिना बोले खड़े रहे।

फिर अरमान ने अपनी कमर से एक सुनहरी किनारी वाली रेशम की पट्टी निकाली।

“ये… तुम्हारे पास रहेगी,” उसने कहा, “जब तक मैं लौटूँ, ये हमारे वादे की निशानी होगी।”

आन्या की आँखें भर आईं।

“और अगर… तुम नहीं लौटे?” उसने धीमी आवाज़ में पूछा।

अरमान मुस्कुराया, लेकिन उस मुस्कान में दर्द था।

“तो इसे अपने सीने से लगा लेना… जैसे मैं हमेशा यहीं हूँ।”

उस रात, आन्या सो नहीं पाई।

दूर कहीं युद्ध की तैयारी की आवाज़ें आ रही थीं — घोड़ों की टापें, हथियारों की खनक, और सैनिकों के नारे।

उसे लग रहा था कि हर आवाज़ अरमान को उससे और दूर ले जा रही है।

सुबह होते ही, अरमान अपने घोड़े पर सवार हुआ।

महल के दरवाज़े खुलते ही उसने आखिरी बार पीछे देखा —

खिड़की में खड़ी आन्या को, जिसके हाथ में वही रेशम की पट्टी थी।

और फिर, वह युद्ध की ओर चला गया…

चैप्टर 4 – रेशम में लहू

युद्ध का पहला महीना गुज़र गया।

महल में रोज़ संदेशवाहक आते, लेकिन अरमान का कोई ख़ास संदेश नहीं था—सिर्फ़ ये खबर कि वह अब भी उत्तरी सीमा पर लड़ रहा है।

आन्या हर शाम मंदिर में जाकर भगवान से वही प्रार्थना करती—“बस उसे सुरक्षित लौटा दो।”

लेकिन किस्मत अपनी किताब में किस पन्ने पर क्या लिखे, ये कोई नहीं जानता।

तीसरे महीने की सुबह, महल में एक घोड़ा आया—तेज़ साँसें लेता, थका हुआ, और उसकी पीठ पर सवार कोई नहीं था।

महल के सैनिक दौड़े, और देखा—घोड़े की काठी में एक तलवार बंधी थी।

तलवार के हत्थे पर वही रेशम की पट्टी थी… अब उस पर गहरे लाल रंग के दाग थे।

रानी माँ ने संदेश सुना—“सीमा पर भारी युद्ध हुआ, अरमान अपने दस्ते के साथ अंतिम पल तक लड़ा… लेकिन उसके बाद…”

आगे का वाक्य किसी ने ज़ोर से नहीं कहा, लेकिन सब समझ गए।

आन्या ने बिना कुछ बोले रेशम की पट्टी अपने हाथों में ली।

उसकी उँगलियों ने उस कपड़े को ऐसे छुआ, जैसे अभी भी उसमें अरमान की गर्माहट बाकी हो।

वो महल की सबसे ऊँची मीनार पर चढ़ गई, जहाँ से पूरा अमरगढ़ और दूर तक फैला रेगिस्तान दिखता था।

हवा में रेशम फड़फड़ा रहा था, जैसे आसमान से बात कर रहा हो।

उसने आँखें बंद कीं, और याद किया—

पहली मुलाक़ात, दुपट्टा, कविताएँ, और वो आखिरी नज़र।

कहते हैं, उस दिन के बाद आन्या ने कभी महल की खिड़की से बाहर नहीं देखा।

लेकिन जब भी अमरगढ़ में पहली बारिश होती है, और हवा में रेशम की खुशबू घुलती है, लोग कहते हैं—

“राजकुमारी आन्या आज भी मीनार पर खड़ी है, और हवा से बातें कर रही है…”

इस तरह “रेशम और तलवार” की 4 चैप्टर की पूरी कहानी पूरी हुई—एक ऐतिहासिक, भावुक और रहस्यमयी प्रेम कथा।

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