एक हास्य-व्यंग्य कविता, जो राजनीति की चटपटी चालों और वोट की मिर्ची से सत्तू पार्टी की हालत पर तंज कसती है:
🗳️ वोट की मिर्ची और सत्तू पार्टी की खट्टी डकार
चुनाव आया, ढोल बजे,
नेता जी फिर से बोल उठे।
"हम लाएंगे विकास की गाड़ी,
बस वोट दो, बाकी झाड़ी!"
पोस्टर लगे हर दीवार पर,
सपनों की दुकान सजी बाजार पर।
वोटर बोला, "अबकी बार,
सच में चाहिए कुछ सुधार!"
पर नेता जी थे चालाक बड़े,
वोट की मिर्ची चुरा ले गए झोले में पड़े।
गली-गली में वादा बाँटा,
पर सच्चाई को फिर से काटा।
सत्तू पार्टी ने खूब रगड़ा,
झूठ का पाउडर, सच पे चढ़ा।
"हम ही हैं देश के रखवाले,"
कहकर खा गए सत्तू के थाले।
पर मिर्ची थी वोट की तीखी,
सत्तू में घुली तो हालत हुई चीखी।
नेता जी बोले, "ये क्या हुआ?"
जनता बोली, "अबकी बार तू गया!"
पेट में मिर्ची, माथे पे पसीना,
सत्तू पार्टी का गया सपना हसीना।
वोट की चोरी, अब भारी पड़ी,
जनता ने फिर से लात मारी।
टीवी पर बहस, ट्विटर पर ट्रेंड,
"सत्तू पार्टी का अब कौन फ्रेंड?"
नेता जी बोले, "हम निर्दोष हैं!"
जनता बोली, "तुम तो बस जोक हो!"
अब हर नुक्कड़, हर चाय की दुकान,
हँसी उड़ाते हैं सब इंसान।
"वोट की मिर्ची चुराई थी जो,
अब सत्तू में जलन है वो!"
😄 निष्कर्ष में व्यंग्य का तड़का
राजनीति की रसोई में
सच की मिर्ची जब घुलती है,
तो सत्तू पार्टी की चालाकी
झूठ के तवे पर जलती है।
वोटर अब जागा है प्यारे,
वो न खाएगा झूठ के फरे।
नेता जी, अब सीख लो बात,
जनता की आँखें हैं अब सात!
वाह! ये तो एकदम ज़माने की सच्चाई है—एक पते पर सौ वोटर, और नेता जी की बल्ले-बल्ले! चलिए, इस पर एक चटपटी हास्य-व्यंग्य कविता पेश है:
🏠 एक पते पर सौ वोटर – लोकतंत्र की जादूगरी
एक मोहल्ला, एक ही गली,
एक ही घर, पर भीड़ चली।
दरवाज़ा टूटा, छत भी नहीं,
पर वोटर वहाँ सौ से कहीं!
नेता जी बोले, "ये तो कमाल है!"
"जनता का प्यार, ये तो बेमिसाल है!"
चुनाव आयोग ने आँखें मूँदी,
सत्तू पार्टी ने फिर चाल घुंडी।
नाम थे – रामलाल, श्यामलाल,
बबलू, पप्पू, और कमललाल।
सबका आधार एक ही ठिकाना,
पर वोटर लिस्ट में बना बहाना।
चुनाव वाले बोले, "सब ठीक है!"
नेता बोले, "बस जीत की सीख है!"
जनता हँसी, बोली – "ये क्या तमाशा?"
"एक घर में सौ वोट? ये कैसा प्रकाशा?"
दीवारें बोलीं – "हम तो थक गईं!"
छत बोली – "अब मैं भी झुक गई!"
दरवाज़ा बोला – "इतना नाम कहाँ समाऊँ?"
"हर वोटर की चप्पल से मैं घबराऊँ!"
सत्तू पार्टी ने फिर से जश्न मनाया,
"हमने फिर लोकतंत्र को हँसाया!"
पर मिर्ची लगी जब जनता जागी,
बोली – "अबकी बार नहीं चलेगी भागी!"
😂 निष्कर्ष में व्यंग्य का पंच
एक पते पर सौ वोटर,
नेता जी के लिए बोनस कोटर।
पर जब जनता ने सवाल उठाया,
तो सत्तू पार्टी ने मुँह छुपाया।
अब हर गली में चर्चा है भारी,
"वोट की चोरी, ये कैसी सवारी?"
लोकतंत्र की ये जो जादूगरी,
हँसी में बदल गई पूरी कहानी
🗳️ एक पते पर सौ वोटर – लोकतंत्र का चमत्कार
एक गली, एक घर पुराना,
छत भी टपके, दीवारें ढहाना।
पर देखो तो वोटर की कतार,
नाम दर्ज हैं सौ बार!
बबलू, पप्पू, रामलाल,
सबका ठिकाना एक ही हाल।
दरवाज़ा बोले – “इतनी भीड़?”
“मैं तो टूटा, अब किससे पीड़?”
नेता जी बोले – “जनता का प्यार!”
“हम जीतेंगे इस बार भी यार!”
चुनाव आयोग ने चश्मा पहना,
सत्तू पार्टी ने झंडा ताना।
घर में ना पानी, ना बिजली की लड़ी,
पर वोटर वहाँ सौ की झड़ी।
आधार एक, पते की माया,
लोकतंत्र ने फिर तमाशा रचाया।
दीवारें बोलीं – “हम तो थक गईं,”
छत बोली – “अब मैं भी झुक गई।”
जनता बोली – “अबकी बार नहीं,”
“इस बार तो सच्चाई ही सही।”
---
😂 व्यंग्य का तड़का
एक पते पर सौ वोटर की टोली,
नेता जी की फिर निकली गोली।
पर जब जनता ने आँखें खोली,
सत्तू पार्टी की हालत होली!
अब हर नुक्कड़, हर चाय की दुकान,
हँसी उड़ाते हैं सब इंसान।
“वोट की चोरी, ये कैसी चाल?”
“लोकतंत्र बना अब मज़ाक का हाल!”