samadhi from sexual intercourse in Hindi Philosophy by Agyat Agyani books and stories PDF | संभोग से समाधि

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संभोग से समाधि

प्रस्तावना: हर क्षण एक मोड़ है
हमारा जीवन लगातार चुनावों का सिलसिला है —
क्या खाना, किससे प्रेम करना, किससे दूरी बनाना, कौन सा जीवन मार्ग चुनना —
हर क्षण हम क्रॉसरोड्स पर खड़े होते हैं।

पर क्या ये चुनाव सच में हमारे अपने हैं? या सिर्फ समाज, धर्म, संस्कृति, भय और अपेक्षाओं से बने ढांचे हैं?

"जो निर्णय स्वयं से नहीं आता, वह निर्देश है, आज़ादी नहीं।"

🔹 चुनाव कैसे बन जाते हैं राजनीति?
राजनीति का अर्थ है — बाहरी सत्ता।
जहाँ निर्णय किसी लक्ष्य, प्रभाव, छवि या लाभ के लिए लिए जाते हैं।

हम अपने भीतर भी राजनीति पैदा कर लेते हैं:

अच्छा बनने का प्रयास — क्योंकि समाज ने यह मान लिया है

बुरा न लगने की चिन्ता — क्योंकि दूसरे क्या कहेंगे

जीवन के मार्ग का चयन — क्योंकि हमारे गुरु, माता-पिता या ग्रंथों ने यही कहा

💡 यह सब हमारी आंतरिक स्वतंत्रता का राजनीतिकरण है।

🔹 धर्म क्या है?
धर्म वह नहीं जो धार्मिकता की पोशाक पहनता है।
धर्म वो है जो भीतर से उगता है — जैसे बीज से वृक्ष।

"धर्म कोई मत नहीं, अनुभव की आँच में पककर निकला सत्य है।"

धर्म तब होता है — जब कोई निर्णय न भय से लिया जाए,
न लालच से,
न कर्तव्य के दबाव में —
बल्कि आत्म-समझ से।

🔹 चुनाव का संकट: मन का द्वंद्व
मन हर समय द्वंद्व में रहता है:

यह करो या वो?

सही क्या है?

अगर मैं चूक गया तो?

पर जो मन प्रश्नों में फँसा है,
वह कभी उस शांति तक नहीं पहुँच सकता जहाँ उत्तर भी न बनता हो।

"मन चुनाव करता है, आत्मा अनुभव करती है।
चुनाव चिंता है, अनुभव ध्यान है।"

🔹 फिर क्या करें? चुनाव बंद?
नहीं —
समस्या चुनाव में नहीं है,
👉 समस्या चुनाव करने वाले की चेतना में है।

जब चुनाव अस्वस्थ मन से होता है, वह हमें उलझा देता है।
जब निर्णय जागरूक और मौन आत्मा से आता है — वह विकल्प नहीं, सहजता बन जाता है।

🔹 संभोग और ध्यान के संदर्भ में चुनाव
भोग या त्याग —
इनमें से कोई भी विकल्प यदि सिर्फ चुनने के लिए चुन लिया गया हो,
तो वह भीतर द्वंद्व पैदा करता है।

"जो व्यक्ति कहता है — ‘मुझे भोग चाहिए’,
और जो कहता है — ‘मुझे त्याग चाहिए’,
दोनों ही अभी पूरी समझ में नहीं हैं।"

जब भीतर मौन, साक्षी बन कर देखा जाए —
तब न कोई चॉइस बचती है, न कोई जिद।
बस प्रवाह होता है — ऊर्जा का, प्रेम का, ध्यान का।

🔚 निष्कर्ष: धर्म का चुनाव नहीं होता — वह प्रकट होता है
चुनाव से आप दुनिया बदल सकते हैं — राजनीति वहीं ठीक है

लेकिन आत्मा में चुनाव करना, मानो मौन को शब्दों में बाँधना है

धर्म वह फूल है जो सिर्फ विचारहीन जागरूकता पर खिलता है।
जब आप भीतर से चुप होकर निर्णय में उतरते हैं,
तब कोई चुनाव “चयन” नहीं लगता — वह तो बस जैसे होना ही था।
अध्याय 4: तीसरा मार्ग — न पकड़ो, न छोड़ो, बस देखो
"जीवन के द्वंद्वों में फंसना छोड़ो,
न तो आकर्षित हो, न ही द्वेष करो —
बस एक साक्षी के रूप में देखो।"

🔹 दो प्रकार की सृष्टि की बात की गई है:
ईश्वर / प्रकृति द्वारा रचित:

यह पूर्णतः दिव्य, पवित्र, और अलौकिक है।

इसमें कोई भेद, कोई मूल्यांकन, कोई "अच्छा-बुरा" नहीं है।

यह सच्चा "सृजन" है — जैसे प्रकृति, निर्जन पहाड़, आकाश, स्त्री, प्रेम, जीवन, मृत्यु आदि।

इसे किसी निर्णय, धार्मिक तर्क या वैज्ञानिक प्रयोग की आवश्यकता नहीं।

इसमें "ईश्वर" की झलक है — बिना किसी विशेषण, बिना किसी रूपरेखा।

मनुष्य द्वारा निर्मित:

इसमें मंदिर, धर्म, विज्ञान, नियम, संस्था, परंपराएँ शामिल हैं।

यह सब हमारा निर्णय, चयन, मूल्यांकन और भोजन पर दृष्टि से जुड़ा है।

यह अप्राकृतिक नहीं लेकिन उस सच्चे अनिर्णायक सृजन की छाया मात्र है।

यही दुख-सुख, पाप-पुण्य, अच्छा-बुरा, तर्क-वितर्क का क्षेत्र है।

अक्सर यही क्षेत्र भ्रम, नास्तिकता और मुल्य विरोध का कारण बनता है।

🔹 मनुष्य की सबसे बड़ी भूल:
उसने ईश्वर के बनाए अलौकिक सृजन को वस्तु, प्रयोग, विषय बना दिया।

जैसे:

स्त्री, जो आधे ब्रह्मांड की शक्ति है — उसे भोग और वस्तु के रूप में देखना।

प्रेम, जो ईश्वरीय स्पंदन है — उसे केवल भावनात्मक द्वंद्व समझना।

सेक्स, जो जीवन सृजन है — उसे शुभ-अशुभ, धर्माधर्म में बँटना।

🔹 धर्म और ईश्वर के नाम पर भ्रम:
बहुत से लोग शास्त्र, मंदिर, मस्जिद, प्रवचन में व्यस्त हैं – लेकिन उसमें ईश्वर नहीं है।

क्योंकि ईश्वर निर्मित नहीं, पाया जाता है – हर जगह, हर कण में।

मूर्तियाँ, भवन, पुस्तकें — सब मनुष्य द्वारा बनाए गए हैं: ये "निर्जीव" हैं, जब तक उनमें ईश्वर का सच्चा बोध न हो।

🔹 सत्य क्या है?
ईश्वर का सच्चा दर्शन:

प्रकृति में है,

प्रेम में है,

मौन में है,

अस्तित्व में है।

जब मनुष्य साचे हृदय से इस अनिर्णायक, अप्रतिम सुंदर संगीत को सुने — वह "दर्शन" कहलाता है।

🔹 निष्कर्ष:
आपका यह चिंतन असाधारण है। यह एक आत्म-प्रेरणा है कि हम निर्मित चीजों से ऊपर उठकर सृजित अस्तित्व को पहचानें। उस ईश्वर को मंदिर, किताब, मूर्ति में नहीं बल्कि जीवन में, सामर्थ्य में, सौंदर्य में और मौन प्रेम में देखा जाए। यही सच्ची ईश्वर भक्ति है।

 

 

> "जिसने सेक्स को समझा — उसने जीवन को समझा।
और जिसने सेक्स से उठना सीखा — उसने समाधि को छू लिया।"

 


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1. संसार एक नशा है —

 

धन, नाम, यश, समाज, शक्ति — सब मिलकर भी अधूरे हैं
यदि सेक्स नहीं है।


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2. सेक्स अकेला ऐसा नशा है

 

जो सबकुछ होते हुए भी सबकुछ व्यर्थ बना देता है
यदि वह न हो।


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3. सेक्स — जीवन का कारण है।

 

सेक्स — जीवन का आनंद है।
सेक्स — सुख का सर्वोच्च शिखर है।
पर यही सेक्स — बंधन और दुःख का बीज भी है।


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4. सेक्स का आनंद अमृत जैसा है —

 

लेकिन इसका परिणाम धीमा ज़हर है।
यह धीरे-धीरे दुःख बन जाता है
पर इतनी धीरे कि हम उसे 'स्वाभाविक' मान लेते हैं।


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5. सेक्स का सुख — तीव्र, पर क्षणिक।

 

सेक्स का दुःख — गहरा, पर दीर्घकालिक।


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6. संसार वह है —

 

जहाँ पहले सुख आता है,
फिर धीरे-धीरे दुःख में बदल जाता है।


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7. सन्यास वह है —

 

जहाँ पहले दुःख आता है,
फिर धीरे-धीरे अमृत बन जाता है।


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8. सेक्स एक खुला द्वार है —

 

संसार की ओर।
और सन्यास एक अग्निपथ है —
मुक्ति की ओर।


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9. समाधि —

 

सेक्स का कोई ऊँचा रूप नहीं है।
समाधि — उसका विलोम है।


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10. सेक्स तुम्हें बाहर की तरफ ले जाता है —

 

समाधि भीतर की ओर।


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11. सेक्स का विज्ञान यह है —

 

कि सुख सहन नहीं होता,
इसलिए उसे जल्दी खत्म करना चाहते हो।
और दुःख धीरे-धीरे आता है,
इसलिए उसे झेलते रहते हो।


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12. जो सेक्स से ऊपर उठ गया —

 

वही संसार से ऊपर उठा।


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13. धर्मग्रंथ कहते हैं —

 

काम, क्रोध, लोभ को त्यागो।
लेकिन वे सब सेक्स के बच्चों हैं।


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14. समाधि की राह सीधी नहीं —

 

वह पहले दुःख माँगती है।
पर वह दुःख — अमृत का द्वार बन जाता है।


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15. सेक्स से संसार फैलता है।

 

सन्यास से स्वयं फैलता है।


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16. संसार में लोग इतना दुःखी होते हैं

 

कि आत्महत्या कर लेते हैं।
सन्यास में लोग इतने सुखी हो जाते हैं


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✦ 51 सूत्र ✦

1.

सेक्स — जीवन का बीज है।
समाधि — जीवन का फूल।

2.

सेक्स में जन्म होता है।
समाधि में मुक्ति।

3.

जिसने सेक्स का स्वाद नहीं चखा,
वह शरीर को नहीं जानता।
जिसने समाधि का स्वाद नहीं चखा,
वह आत्मा को नहीं जानता।

4.

सेक्स आनंद है —
पर उसका उत्तराधिकारी दुःख है।

5.

समाधि दुःख है —
पर उसका उत्तराधिकारी आनंद है।

6.

संसार की शुरुआत — सुख से होती है,
और समाप्ति — विषाद में।
सन्यास की शुरुआत — विष से होती है,
पर अंत — अमृत में।

7.

सेक्स तेज है, गाढ़ा है, तीव्र है —
पर टिकता नहीं।
समाधि मौन है, हल्की है, शांत है —
पर लुप्त नहीं होती।

8.

सेक्स में इच्छा की आग जलती है।
समाधि में वही आग बुझ जाती है।

9.

सेक्स में तुम खो जाते हो।
समाधि में तुम मिट जाते हो।

10.

एक बंधन की पराकाष्ठा — विवाह है।
एक मुक्ति की पराकाष्ठा — संन्यास है।

11.

सेक्स से संसार फैलता है।
समाधि से आत्मा सिमटती है।

12.

सेक्स शरीर को छूता है।
समाधि शून्य को।

13.

सेक्स में हँसी है — पर भीतर अश्रु हैं।
समाधि में मौन है — पर भीतर अनंत मुस्कान।

14.

जो सेक्स के गुलाम हैं —
वे सुख के भिखारी हैं।

15.

जो सेक्स से पार हो गए —
वे प्रेम के सम्राट हैं।

16.

सेक्स का सुख आता है —
और साथ में एक सौ दुःख छोड़ जाता है।

17.

समाधि का दुःख आता है —
और साथ में अनंत आनंद छोड़ जाता है।

18.

सेक्स जीवन का आदिम पथ है।
समाधि जीवन की परम मंज़िल।

19.

सेक्स तब तक आनंद देता है,
जब तक तुम उससे अनभिज्ञ हो।

20.

समाधि तब आती है,
जब तुम सेक्स को पार कर चुके हो।

21.

सेक्स का मूल कारण — भूख नहीं,
असुरक्षा है।

22.

समाधि का मूल कारण — डर नहीं,
प्रेम है।

23.

सेक्स वासना है —
जो जल्दी ख़त्म होती है।
समाधि श्रद्धा है —
जो धीरे-धीरे खिलती है।

24.

सेक्स में तुम लेते हो।
समाधि में तुम देते हो।

25.

सेक्स में दो मिलते हैं —
और भ्रमित हो जाते हैं।
26.
सेक्स — शरीर का आग्रह है।
समाधि — आत्मा की अभिव्यक्ति।

27.

सेक्स के बाद शून्यता है।
समाधि से शून्यता में विस्तार।

28.

सेक्स आकर्षण है।
समाधि विसर्जन।

29.

सेक्स का क्षण बिनाशक्ति है,
पर गहरा भ्रम देता है।

30.

समाधि का क्षण मौन है,
पर शाश्वत स्पष्टता देता है।

31.

सेक्स एक झूठ है —
जो शरीर को सत्य लगता है।

32.

समाधि वह सत्य है —
जो मन को झूठ लगता है।

33.

सेक्स में समय खोता है।
समाधि में समय मिटता है।

34.

सेक्स में मैं जागता है।
समाधि में 'मैं' ही नहीं रहता।

35.

सेक्स ऊर्जा को नीचे लाता है।
समाधि ऊर्जा को ऊपर ले जाती है।

36.

सेक्स की सीमा शरीर है।
समाधि की कोई सीमा नहीं।

37.

सेक्स से बच्चा पैदा होता है।
समाधि से ब्रह्म जन्म लेता है।

38.

सेक्स क्रिया है —
समाधि अक्रियता।

39.

सेक्स तुम्हें समाज का अंग बनाता है।
समाधि तुम्हें ब्रह्म का अंश बनाता है।

40.

सेक्स में भीगना आसान है।
समाधि में जलना पड़ता है।

41.

सेक्स में मोह है।
समाधि में मौन।

42.

सेक्स शरीर को सजाता है।
समाधि आत्मा को निखारता है।

43.

सेक्स तुम्हें "मर्द" बनाता है।
समाधि तुम्हें "शून्य" बनाती है।

44.

सेक्स से बंधन बनता है।
समाधि से अस्तित्व मिटता है।

45.

सेक्स एक साधन है —
समझ आने तक।

46.

समाधि एक अंत है —
जहाँ कोई साधन नहीं रहता।

47.

सेक्स का विज्ञान शरीर तक सीमित है।
समाधि का विज्ञान असीम चेतना है।

48.

सेक्स प्रारंभ है।
समाधि पूर्णता।

49.

सेक्स में संसार है।
समाधि में सत्य।

50.

सेक्स एक बीज है —
यदि तुम उस पर अटक गए,
तो वृक्ष कभी नहीं बन पाओगे।

51.

जो सेक्स को नकारे नहीं,
पर उसके पार चला जाए —


वही समाधि का पात्र है।
संभोग: नर्क का द्वार या समाधि का द्वार?
संभोग एक शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा है।
कोई इसे भोग की चरम सीमा मानता है, कोई उसे ईश्वर तक पहुँचने के माध्यम के रूप में देखता है।

✦ अंतिम संदेश ✦
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

"यह ग्रंथ तुम्हारे लिए है —
यदि तुम भीतर से जलते हो।
यदि तुमने सुख में भी दुःख पाया है,
और दुःख में भी कोई मौन खोजा है।"
मैं कोई प्रवचनकर्ता नहीं हूँ,
न धर्म का व्यापारी —
मैं केवल एक ऐसा व्यक्ति हूँ
जिसने संभोग को भोगा है,
और मौन को चखा है।

मैंने पाया कि सेक्स झूठ नहीं है,
पर वह अंतिम सत्य भी नहीं है।
वह एक बीज है —
जिसे यदि तुम सजगता से बो दो,
तो वही समाधि का वृक्ष बन सकता है।

मैं तुमसे कुछ मांगता नहीं —
न भरोसा, न अनुयायिता।
मैं तो बस तुम्हें देखने को कहता हूँ —
पूर्णता से, निस्पृह होकर,
जैसे कोई दर्पण स्वयं को देखे।

यह ग्रंथ किसी मत का हिस्सा नहीं,
यह कोई मार्गदर्शन नहीं —
यह तो एक मौन की झलक है,
जो शब्दों में बहने की भूल कर बैठी।

"यदि तुम भीतर से तैयार हो —
तो यह ग्रंथ एक द्वार बन सकता है।
नहीं तो यह केवल पन्नों का भार है।"
जो इसे समझे —
उसे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं।
और जो न समझे —
उसे कुछ भी कहने से फ़ायदा नहीं।

संभोग से समाधि तक की यात्रा
केवल उन्हीं के लिए है
जो भोग को भी पूरी तरह देख सकें —
और फिर उससे पार जा सकें।

🔹
🙏
मौन ही अंतिम उत्तर है।
वही समाधि है।
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲