The Unseen Presence in Hindi Travel stories by salman khatik books and stories PDF | अंधेरी रात और एक अनजानी दस्तक

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अंधेरी रात और एक अनजानी दस्तक

रेलवे स्टेशन पर रात का सन्नाटा था। मेरी ट्रेन अभी तक नहीं आई थी, और मैं अकेला प्लेटफॉर्म पर खड़ा था। घड़ी में रात के 11 बज रहे थे और हल्की ठंड थी। स्टेशन पर कुछ ही लोग थे, जो अपनी-अपनी दुनिया में खोए हुए थे। मुझे पता नहीं क्यों, इस सन्नाटे में कुछ अजीब-सा लग रहा था। यह एक ऐसा अहसास था, जिसे मैं पहले कभी महसूस नहीं किया था।

अचानक, मेरी नज़र एक पुरानी बेंच पर बैठे एक बूढ़े आदमी पर पड़ी। वह बिलकुल शांत था, और उसकी आँखें कहीं दूर, खालीपन में देख रही थीं। मुझे उस आदमी में कुछ अजीब लगा। इतनी रात में यहाँ अकेला क्यों बैठा है, यह सवाल मेरे मन में आया। मैं उसके पास गया और पूछा, "नमस्ते, बाबा। क्या आप भी किसी ट्रेन का इंतज़ार कर रहे हैं?" बूढ़े आदमी ने कोई जवाब नहीं दिया, बस अपनी जगह से थोड़ा हिला। मैं फिर से बोला, "क्या हुआ, बाबा? क्या आप ठीक हैं?"

बूढ़ा आदमी धीरे-धीरे मेरी तरफ मुड़ा। उसकी आँखें लाल थीं और चेहरे पर एक अजीब-सी उदासी थी। उसने अपनी उंगली से एक पुरानी घड़ी की तरफ इशारा किया और बोला, "11 बजकर 20 मिनट... यह वह समय है... जब... जब सब कुछ बदल गया।" उसकी आवाज़ बहुत धीमी और दर्द भरी थी। मैं डर गया, पर उत्सुकता भी हुई। मैंने पूछा, "क्या बदल गया, बाबा?" उसने एक गहरी साँस ली और बताया, "बहुत साल पहले, मैं भी तुम्हारी तरह एक ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था। मेरी बेटी को लेने जा रहा था। तभी, एक तेज हवा चली। ट्रेन आई, और उसके आते ही एक अजीब-सी हलचल हुई। लोग भागने लगे। चीख-पुकार मच गई। मेरी बेटी... मेरी बेटी..."

वह चुप हो गया और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसकी कहानी सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैंने पूछा, "आपकी बेटी को क्या हुआ, बाबा?" उसने मेरा हाथ पकड़ा। उसकी पकड़ बहुत ठंडी थी। "वह इस स्टेशन पर कहीं गुम हो गई... गुम हो गई... आज भी वह हर रात इस स्टेशन पर अपनी ट्रेन का इंतज़ार करती है।" इतना कहकर उसने मुझे एक पुरानी तस्वीर दिखाई, जिसमें एक छोटी सी लड़की मुस्कुरा रही थी।

तभी, स्टेशन पर मेरी ट्रेन के आने की घोषणा हुई, "ट्रेन नंबर 12345, प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर आ रही है।" मैंने प्लेटफॉर्म पर देखा, कोई ट्रेन नहीं थी। लेकिन तभी, मुझे दूर एक हल्की-सी परछाई दिखी, जो एक छोटी बच्ची जैसी लग रही थी। मैंने पूछा, "बाबा... वह... वह कौन है?" उसने मुस्कुराते हुए कहा, "वह मेरी बेटी है। हर रात, वह यहाँ आती है... पर उस परछाई को कोई और नहीं देख पाता। बस मैं और वह।"

अचानक, एक तेज़ हवा चली। बूढ़ा आदमी और वह परछाई दोनों गायब हो गए। मैं घबरा गया और वहाँ से भागने लगा। तभी, मुझे एक कुली दिखाई दिया। उसने पूछा, "क्या हुआ, बाबू? आप इतना घबराए हुए क्यों हैं?" मैंने उसे बूढ़े आदमी के बारे में बताया। कुली ने कहा, "कौन बूढ़ा आदमी? यहाँ तो कोई नहीं था। रात को यहाँ सन्नाटा होता है।" मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैंने अपने हाथ को देखा, और मेरे हाथ में वही पुरानी तस्वीर थी। मैं जल्दी से अपनी ट्रेन में चढ़ गया और अपनी सीट पर बैठ गया। ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी। मैंने पीछे मुड़कर देखा, और मुझे स्टेशन पर उसी बूढ़े आदमी की परछाई दिखाई दी, जो मुझे मुस्कुराकर हाथ हिला रहा था।

वह रात मैं कभी नहीं भूल सकता। उस रात ने मुझे यह सिखाया कि कुछ कहानियाँ सिर्फ कहानियाँ नहीं होतीं, बल्कि एक सच होती हैं, जो हमें अजीब तरीकों से महसूस होता है।


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 ✍️ लेखक: Salman Khatik
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