Ek Nabalig ki Aakhiri Chikh in Hindi Moral Stories by Luqman Gangohi books and stories PDF | एक नाबालिग की आख़िरी चीख

Featured Books
Categories
Share

एक नाबालिग की आख़िरी चीख

ये कहानी सिर्फ एक लड़की की नहीं...
ये उन तमाम मौन की चीख है, जिसे हमने “मामला संवेदनशील है” कहकर दबा दिया।
ये उस माँ की आंख है जो रोते-रोते सूख गई, और उस मिट्टी की शर्म है जिसने एक नाबालिग का खून चुपचाप पी लिया।

जी हां मैं बात कर रहा हूं उसी घटना की जो 2024 में उत्तर प्रदेश में घटित हुई थी जहां एक नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म करके उसे मौत की नींद सुला दिया गया और प्रशासन चुप रहा, समाज तमाशाई बनकर तमाशा देखता रहा।

एक दिन शाम के पाँच बज रहे थे। सूरज डूबने को था, पर उस 14 साल की लड़की की आंखों में उजाला ठहरा था। वह अपने घर के आंगन में चहक–महक रही थी।
वह अपनी माता से बोली "अम्मा! देखो मेरी चोटी कितनी सुंदर बनी है!"
तो मां ने भी मुस्कराकर कहा "तू आज बहुत खिल रही है बेटी।

वो लड़की जिसका नाम गाँव की मिट्टी में ही कहीं खो गया – एक नामहीन, मगर सपनों से भरी बच्ची थी। आठवीं कक्षा में पढ़ती थी। उसका परिवार गरीब तो था, लेकिन उनके स्वाभिमान में कोई कमी नहीं थी।
उसी शाम, पड़ोस के रिश्ते में चाचा लगने वाले व्यक्ति ने उसे "मंदिर से दीया लाने" भेजा...
और फिर... क्या हुआ किसी को कुछ नहीं पता चला।

घर वापस ना लौटने पर माता पिता की परेशानी का कोई ठिकाना नहीं था, वो रात भर अपनी लाडली को तलाश करते रहे फिर भी कुछ पता ना चल सका।
फिर अगली सुबह वो मासूम झाड़ियों में मिली 
गाँव के किनारे, जहाँ बच्चे खेलने जाते थे, अब वहां पुलिस की पीली पट्टी लगी थी।
एक अर्धनग्न, बेहोश, खून से सनी बच्ची मिली।
डॉक्टरों ने उस मासूम बच्ची को देखकर बताया कि–
“उसके शरीर पर नाखूनों के निशान थे, अंदरूनी हिस्से फटे हुए थे, और मानसिक सदमे में वो बोल नहीं पा रही थी।”
माँ का रोना चीख बन चुका था। और मां सदाएँ लगा रही थी कि 
“मेरी बच्ची थी साहब, बस दीया लेने ही तो गई थी…”

"सुना है बेटी भगवान का रूप होती है,
तो फिर मेरी आरती क्यों जला दी गई?"
"जिसे लोरी में पाला था, वो चुपचाप चली गई,
मेरी आंखे अब भी उसके खिलौनों को ढूंढते हैं..."

भीगी पलकों के साथ हिम्मत हारा हुआ एक पिता इस उम्मीद से कि हमें इंसाफ मिलेगा थाने पहुंचा।
थानेदार बोला:
“नाम बताइए किस पर शक है?”
पिता ने धीरे से नाम लिया – वही चाचा…
तो थानेदार बोला “अरे! आपस की बात है, समझा लीजिए। पंचायत करवा लें। लड़की की शादी करनी है ना बाद में?”
एक जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति के मुंह से इतना सुनना था कि उस मजबूर पिता के हाथ काँप गए।
बेटी ICU में थी, और प्रशासन 'इज्जत' की चादर बुन रहा था।

"कुछ सवाल गूंगे हैं, कुछ जवाब अंधे,
ये कैसा न्याय है जहाँ कानून ही मूक हो जाए?"

"इज्जत की बात करते हो साहब,
क्यों नहीं पूछते उस दरिंदे से — उसने क्या देखा?"
"पंचायत में बैठकर फैसला सुना दोगे,
मगर मेरी बेटी की चीखों का क्या करोगे?"


उधर वो मासूम बच्ची भी सात दिन बाद अपने लाचार माता पिता को छोड़कर बिना इंसाफ पाए मौत की नींद सो गई।
मां रोते बिलबिलाते हुए बोली कि डॉक्टरों ने तो बस ये कहा था कि अब यह बोल नहीं पायेगी लेकिन मेरी बच्ची तो चुपचाप ही चली गई। बिना कुछ कहे। बिना किसी विरोध के। बिना किसी इंसाफ के।

"शरीर जल गया, पर वो सवाल अब भी ज़िंदा हैं,
कफन ने सजा ढँक दी, मगर जख्म नहीं..."

उन मजबूर और लाचार मां बाप की ज़िंदगी में आंखें होते हुए भी अंधकार छा गया।
मीडिया में खबर चली "14 वर्षीय बालिका के साथ हुआ दुष्कर्म, बना मौत का ज़िम्मेदार"
एक अखबार ने लिखा –
"पुलिस जांच में सहयोग न मिलने से आरोपियों की पहचान में देर हो रही है..."
"गांव में तनाव का माहौल, पिता की चुप्पी रहस्यमय..."

लेकिन मीडिया वालों, अख़बार वालों और तमाशाईन समाज को कौन समझाए कि उस बेबस पिता की ये चुप्पी रहस्यमयी नहीं, बल्कि प्रशासनिक डर और समाज के तंज का परिणाम थी।
उस मासूम बच्ची की आत्मा से बस यही सदाऐं आ रही थी कि 
मैं चाहती थी डॉक्टर बनना। अम्मा की थकान दूर करना।
मुझे नहीं पता था कि चाचा का स्पर्श ज़हर होगा।
मैंने बहुत बार ना कहा था।
पर वो सुनना नहीं चाहता था।
अब मैं नहीं हूँ, लेकिन मेरी चीख इस गाँव की मिट्टी में है।
अगली बार जब कोई लड़की मंदिर को जाए,
देख लेना, दीया जलाने से पहले –
उसके आस-पास कोई दरिंदा ना हो...
आप सुन रहे हैं ना कितनी बेटियाँ अपनी ‘इज्जत’ की चादर में लपेट दी जाती हैं?
• कितनी FIR पंचायतों में दम तोड़ देती हैं?
• कितनी आत्माएँ अपने अपराधियों को खुले घूमते देखती हैं?
ये कहानी ख़त्म नहीं हुई...
क्योंकि उसका कातिल आज भी वहीं है।
और वो माँ अब भी रात में दरवाज़ा बंद करते हुए काँपती है।

अंत में मैं आपसे बस इतना ही चाहूंगा कि अगर आपने इस कहानी को पढ़ते-पढ़ते आँखें पोंछी हैं, तो प्लीज़ एक काम करें —

अगली बार जब किसी नाबालिग के साथ अन्याय की खबर आए,
तो सिर्फ Share या Forward ना करें —
उसकी आवाज़ बनिए,
क्योंकि आपकी चुप्पी किसी और ‘बेटी’ की मौत बन सकती है।

"अगर तुमने सिर्फ पढ़कर भूल जाना है,
तो मत पढ़ो इस कहानी को...
क्योंकि ये सिर्फ कहानी नहीं,
ये एक आत्मा की अंतिम पुकार है..."

धन्यवाद!