बारिश की वो शाम कुछ अलग थी। सड़कें गीली थीं, हवाएं भीग रही थीं, और शहर की भीड़ में एक लड़की अपनी ही दुनिया में खोई चली जा रही थी। वो लड़की थी — आयरा।
कॉलेज की नौकरी से थकी-हारी, उसके चेहरे पर न मुस्कान थी, न शिकन। बस एक अजीब सा सूनापन था। घर लौटते वक़्त वो रोज़ एक पुराने कैफे के सामने से गुज़रती थी, लेकिन उस दिन उसके क़दम अपने आप रुक गए।
कैफ़े की खिड़की से किसी ने उसे देखा — अयान, एक फोटोग्राफर, जिसकी आंखें किसी खोई हुई तस्वीर की तलाश में थीं।
> “तुम रोज़ यहां से गुज़रती हो, पर अंदर कभी नहीं आतीं,”
अयान की आवाज़ सुनकर आयरा चौंकी।
“क्या मैं तुम्हें जानता हूं?” उसने संकोच में पूछा।
“शायद नहीं... लेकिन तुम्हारी आंखों में वही अकेलापन है, जो कभी मेरी तस्वीरों में होता था।”
उस एक मुलाकात ने आयरा के अंदर कुछ तोड़ा... और कुछ जोड़ा। एक अनजाने अजनबी ने उसकी ख़ामोशी को पहली
बार सुना था।एक तस्वीर... हज़ार सवाल"
आयरा उस रात ठीक से सो नहीं पाई। अयान की वो आंखें, उसकी आवाज़, और सबसे ज़्यादा... उसका वो जुमला —
> “तुम्हारी आंखों में वही अकेलापन है, जो मेरी तस्वीरों में होता था।”
सुबह हुई तो हर चीज़ वैसी ही थी... लेकिन आयरा के अंदर कुछ बदल चुका था।
वो फिर उसी कैफे के सामने पहुंची। इस बार उसके कदम बिना सोचे समझे अंदर चले गए।
अयान वही था — कैमरे के पीछे छिपा एक कलाकार।
> “तुम आ गईं…”
“हां… शायद खुद को देखने,” आयरा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
कमरे की क्लिक की आवाज़ गूंजी।
अयान ने बिना इजाजत के उसकी एक तस्वीर खींच ली।
> “तुम्हें तस्वीरें खींचने से पहले पूछना चाहिए।”
“कभी-कभी जो लम्हा सच्चा होता है, वो पूछने का इंतज़ार नहीं करता।”
आयरा ने धीरे से कैमरा देखा… और ठिठक गई।
उस तस्वीर में वो सिर्फ आयरा नहीं थी — वो उसके भीतर छुपी तन्हाई थी, उसकी थकावट, और वो मासूम चाहत… जिसे वो खुद भी पहचान नहीं पाई थी।
> “क्या तुम हमेशा लोगों की सच्चाई ऐसे ही पकड़ लेते हो?”
“नहीं… लेकिन तुम पहली हो जो छुपाना नहीं जानती।”
एक खामोशी दोनों के बीच बैठ गई। न अजीब थी, न असहज… बस बहुत गहरी थी।
अयान ने कैफ़े की मेज़ पर एक पुराना एलबम रखा और बोला:
> “इनमें से एक लड़की थी… जो कभी मेरी दुनिया थी। अब नहीं है… लेकिन जब से तुम्हें देखा है, लगता है कहानी फिर से शुरू हो सकती है।”
आयरा ने चौंक कर उसकी आंखों में देखा।
अयान ने नज़रे झुका लीं।
"वो लड़की कौन थी?"
आयरा की आंखें उस एलबम पर टिकी थीं, जैसे कोई बंद दरवाज़ा खुलने वाला हो।
> "ये कौन है?"
उसने एक तस्वीर की तरफ इशारा किया — लड़की की मुस्कुराती हुई तस्वीर, जिसमें आंखों में वही चमक थी... जो कभी आयरा की आंखों में भी हुआ करती थी।
अयान ने गहरी सांस ली, जैसे कोई भूला हुआ जख्म फिर से हरा हो गया हो।
> “उसका नाम था— सिया।”
“हम दोनों साथ में फोटोग्राफी पढ़ते थे... और एक-दूसरे की दुनिया थे। लेकिन किस्मत को कुछ और मंज़ूर था।”
> “क्या हुआ था उसके साथ?”
आयरा की आवाज़ धीमी थी, लेकिन दिल से निकली थी।
अयान खामोश रहा कुछ पलों तक। फिर बोला:
> “एक एक्सीडेंट... और सब कुछ खत्म। वो चली गई... और मैं वहीं अटक गया।”
आयरा ने धीरे से एलबम बंद किया। उसकी आंखें भर आई थीं।
> “मैं तुम्हारी हमशक्ल नहीं हूं, अयान। मैं सिया नहीं हूं।”
अयान ने उसकी तरफ देखा।
> “मैं जानता हूं। लेकिन शायद तुम्हारे ज़रिए खुद को फिर से जी पाऊं... वो नहीं जो चला गया, बल्कि वो जो बचा है।”
आयरा की आंखें अब भी नम थीं, लेकिन अब उनमें एक हल्की रोशनी थी।
> “मैं अतीत नहीं हूं, अयान। लेकिन अगर तुम चाहो... तो तुम्हारे साथ एक नई कहानी ज़रूर शुरू कर सकती हूं।”
अयान की आंखों में पहली बार उम्मीद की चमक थी।
> “क्या तुम सच में...?”
> “शायद... हम दो
नों ही अधूरे हैं। तो क्यों न मिलकर पूरा हो जाएं?”
“कहानी की नई शुरुआत”
उस शाम के बाद, आयरा की दुनिया धीरे-धीरे बदलने लगी।
अब वो कैफ़े सिर्फ एक जगह नहीं रहा था — वो एक ऐसा कोना बन चुका था जहां दिल सुकून पाता था, और जहां उसकी ख़ामोशी को कोई सुनने लगा था।
अगले दिन, जैसे ही वो कैफ़े पहुंची, अयान पहले से इंतज़ार कर रहा था।
> “मैंने सोचा तुम नहीं आओगी,”
“मैं भी यही सोचती थी... लेकिन दिल ने मना कर दिया।”
अयान ने पहली बार उसे मुस्कुराकर देखा। बिना बोली बात हुई — और बहुत कुछ कहा गया।
वो दोनों कैफ़े के एक कोने में बैठे, जहां धूप हल्की-हल्की खिड़की से झांक रही थी। अयान ने उसे कॉफी ऑफर की।
> “कॉफी कैसी लोगी?”
“थोड़ी मीठी... पर बहुत कड़वी नहीं। ज़िंदगी की तरह।”
दोनों हँस पड़े। पहली बार उस हँसी में कोई बोझ नहीं था।
अयान ने फिर से कैमरा उठाया और पूछा —
> “अब पूछकर तस्वीर खींचूं?”
“नहीं,” आयरा मुस्कुराई, “अब जब तुम खींचते हो... तो मुझे भी खुद से प्यार आने लगता है।”
तभी कैफे के एक कोने से एक लड़की की हँसी सुनाई दी —
सिया की तरह की हँसी...
अयान ठिठका।
आयरा ने देखा, उसके चेहरे पर वही पुराना साया लौट आया।
> “क्या अब भी तुम्हारा दिल अतीत में उलझा है?”
“नहीं... लेकिन कुछ यादें मिटती नहीं, बस धीरे-धीरे धुंधली होती हैं।”
> “तो आओ, चलो उन्हें धुंध में ही छोड़ दें... और एक नई तस्वीर बनाएं।”
अयान ने उसकी तरफ देखा — और पहली बार उसमें
सिर्फ “आयरा” नजर आई... न कि सिया की परछाई।