मेरा विलेन - मेरा प्यार - 1 in Hindi Love Stories by Sri#999 books and stories PDF | मेरा विलेन - मेरा प्यार - 1

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मेरा विलेन - मेरा प्यार - 1

सूरज धीरे-धीरे डूब रहा था, और समंदर के किनारे पर सुनहरा रंग बिखर रहा था। लहरें आराम से किनारे से टकरा रही थीं, जैसे कह रही हों कि दुनिया तो चलती ही रहेगी, चाहे दिल कितना भी टूट जाए।

 

खुशी अकेली एक बेंच पर बैठी थी, घुटनों को सीने से चिपकाए, स्कूल यूनिफॉर्म गंदी और आंसुओं से गीली। बाल हवा से उलझे हुए, आँखें सूजी हुईं, और होंठ हर सांस के साथ कांप रहे थे।

 

इस पल में वो किसी की क्लासमेट नहीं थी, ना ही वो चुप-चाप सी लड़की जो क्लास के पीछे बैठती है।

 

बस एक टूटा हुआ दिल था, जो मुश्किल से संभल रहा था।

 

पास ही एक कार आके रुक गई, जोर से ब्रेक की आवाज़ हुई।

 

अर्जुन कार से कूदा, उसका चेहरा घबराहट से भरा हुआ। खुशी की दोस्त को कॉल किया, गली-गली भागा, सब कुछ भूल के—और आखिर में उसे यहाँ ढूंढ लिया।

 

वो थी।

 

बैठी हुई। चुप। और दिल से टूटी हुई।

 

जब उसने अर्जुन को देखा, उसका चेहरा गुस्सा नहीं दिखा रहा था।

 

बल्कि कुछ और था—निराशा।

 

“खुशी,” अर्जुन ने धीरे से आवाज़ दी, एक कदम आगे बढ़ते हुए।

 

खुशी एकदम खड़ी हो गई, अपने आंसू कुर्ते की आस्तीन से पोंछते हुए। “मुझे बात नहीं करनी,” उसने दर्द से भरी आवाज़ में कहा।


“बस सुन तो ले, प्लीज,” अर्जुन ने जल्दी से कहा, बेचैनी से।

 

लेकिन इस बार—खुशी ने उसे बोलने का मौका नहीं दिया।

 

इस बार, उसने पहले बात शुरू की।

 

“मैंने तुझपे भरोसा किया था, अर्जुन,” उसकी आवाज़ टूटी, पर लफ़्ज़ों में ताकत थी। “सच्ची, दिल से भरोसा किया था।”

 

अर्जुन कुछ बोलने गया, पर खुशी ने हाथ उठा दिया। “नहीं। मुझे बोलने दे।”

 


उसकी आँखें, लाल और जलन से भरी, अर्जुन से टकरा गईं।

 

“मैंने सोचा तू अलग है। मैंने सोचा… शायद तू सच में मुझसे प्यार करता है। ना कोई स्कूल की लड़की समझ के, ना कोई चुप-चाप लड़की के रूप में। बस… मुझे लगा मैं तेरे लिए खास हूँ।”

 


“तू खास है,” अर्जुन ने तुरंत कहा।

 


“तो फिर क्यों?” खुशी ने धीरे से कहा, आंसू छलकते हुए। “क्यों किया तूने ऐसा? क्यों, अर्जुन? क्यों? मैंने सोचा तू सही इंसान है, पर तू तो… बस एक प्लेबॉय निकला! क्यों तूने मुझे मज़ाक बना दिया?”

 


अर्जुन का गला सूख गया। “रीना… उसने मुझे फंसाया, खुशी। मैंने कुछ नहीं किया, सच्ची! बस उसने—”

 


“पर तूने उसे रोका क्यों नहीं?” खुशी ने तेज़ी से कहा। “तूने उसे जो चाहा करने दिया ना! मैंने वो फोटो देखी, अर्जुन। मैंने देखा!”

 

अर्जुन चुप हो गया। फिर खुशी ने धीरे से पूछा, “बता… तूने किया था ना?”

 


अर्जुन की आवाज़ मुश्किल से निकली। “…हाँ।”

 


खुशी हंसी—एक ऐसी हंसी जो आंसुओं से भी ज़्यादा दर्दनाक थी। “वाह। बस यही सुनना था।”

 


“मैंने सब डिलीट कर दिया,” अर्जुन ने आगे बढ़ते हुए कहा। “मैंने अपने सारे कॉन्टैक्ट्स यूज़ किए। मैंने बस यही सोचा कि तू वो फोटो ना देख सके। मैंने कोशिश की—”

 


“पर जो तूने मेरे दिल के साथ किया, उसे नहीं मिटा सकता,” खुशी ने धीरे से कहा। “वो पल नहीं मिटा सकता जब मैंने वो फोटो देखा। वो दर्द नहीं मिटा सकता।”

 

“मैं बस तेरा ही सोच रहा था,” अर्जुन ने बेचैनी से कहा। “तब भी।”

 

“पर तूने मुझे चुना नहीं,” खुशी ने जवाब दिया। “और यही सबसे ज़्यादा दर्द दे रहा है।”

 

वो एक कदम पीछे हटी। उसकी आवाज़ कांप रही थी।

 

“तू मेरी ज़िंदगी में एक ही चीज़ थी जो सच्ची लगी। एक ही इंसान जो मेरी खामोशी के पीछे मुझे देख सका, मेरी अजीबपन के पीछे मुझे समझा। और अब… तूने वो भी छीन लिया।”

 


उसका दिल टूट चुका था, जैसे सूरज के साथ ही उसकी रोशनी भी डूब गई।

 

“तो शुक्रिया, अर्जुन, ये याद दिलाने के लिए… कि मेरे जैसी लड़कियों के लिए कोई फेयरी टेल नहीं होता। बस दिल टूटने के लिए होते हैं।”

 

वो मुड़ गई।

अर्जुन ने जल्दी से उसका हाथ पकड़ा। “प्लीज, खुशी…”

पर खुशी ने अपना हाथ छुड़ा लिया।

 

“बस। अब कोई ‘प्लीज’ नहीं। कोई दूसरा मौका नहीं। और कोई झूठा यकीन नहीं।”

 

वो चल पड़ी।

रेत के ऊपर। हवा के साथ। उन दोनों के रिश्ते के टुकड़ों के बीच से।

अर्जुन वही खड़ा रह गया, समंदर की हवा उसके आस-पास सजा की तरह चिल्ला रही थी।

 

लहरें फिर आईं—अब ठंडी-ठंडी। और सूरज भी डूब गया… बिल्कुल खुशी के भरोसे की तरह।

 

 

 


******* कुछ महीने पहले.... *********

 

सुबह की धूप एक नरम सी फुसफुसाहट थी, जो खिड़कियों पर हल्के से छू रही थी, मानो चिल्ला रही हो, "उठो और अपने सपनों का पीछा करो!" लेकिन खुशी के लिए वो सपने मतलब और नींद, और कम चिल्लाहट।

 

बीप! बीप! बीप!

 

"उफ्फ... चुप करो..." खुशी ने कराहते हुए कहा, अंधे में अलार्म को ऐसे मारने की कोशिश की जैसे वो मच्छर हो।


उसने कंबल को और कसकर लपेटा, एक सपने में खोई थी जिसमें उसका आइडियल लड़का—लंबा, हैंडसम, और बिल्कुल काल्पनिक—चेरी ब्लॉसम पेड़ के नीचे उसकी तरफ मुस्कुरा रहा था।


"खुशी! कॉलेज के लिए देर हो रही है!"

 

उसकी मम्मी की आवाज़ हवा में ऐसे गूंजी जैसे घर का भूकंप आ गया हो।

 

"आ रही हूँ!" खुशी चिल्लाई, बिस्तर से ऐसे कूदी जैसे किसी ने उसे टेज़र मार दिया हो। फिर शुरू हुआ स्पीड रन: गंदा सा पोनीटेल, चेहरे पर टूथपेस्ट, मुँह में टोस्ट जैसे कोई ऐनिमे कैरेक्टर—और वो बैग लटकाए बस पकड़ने के लिए दौड़ पड़ी।


बस स्टॉप पर पहुंची और फोन चेक किया। बेस्टी का कोई मैसेज नहीं।
जल्दी से कॉल किया।

 

"अरे, तू कहाँ है?!" खुशी ने गुस्से में फुसफुसाया।
"मैंने तुझसे कहा था ना, मैं कल आ रही हूँ, आज नहीं।"
"क्या?! मतलब मुझे कॉलेज का पहला दिन अकेले झेलना पड़ेगा?!"

 

हाँ। उसकी बेस्टी ने उसे भेड़ियों के हवाले छोड़ दिया था। भारी मन और भारी दिल के साथ खुशी ने भरी हुई बस में चढ़ाई की, सीट ढूंढने की कोशिश की।

 

फिर उसे कोने की सीट मिली और वो बैठ गई।
बस भरी हुई थी। सस्ते डियोड्रेंट, कल का बचा खाना, और अनकही सीक्रेट्स की बू थी।

 

वो निंजा की तरह चुपके से घुसी, गपशप करती आंटियों, सोते हुए अंकल्स, और एक अंकल को अखबार उल्टा पढ़ते देखा। (??)

 

और तभी उसने उसे देखा।
लंबा। काला शर्ट। चौड़े कंधे। तीखा जबड़ा। के-ड्रामा लेवल का हैंडसम।

 

वो ऐसे बैठा था जैसे कोई मेन कैरेक्टर गलत रियलिटी शो में खो गया हो—कूल वाइब्स, बिल्कुल अनकूल सरकारी बस में।
और फिर—
"यहाँ बैठ सकता हूँ?" उसने पूछा, उसकी आवाज़ गर्म टोस्ट पर न्यूटेला जैसी स्मूथ।


खुशी ने पलकें झपकाईं। उसका दिमाग खाली। शब्द गायब।
"ह-ह-हाँ!" वो चिल्लाई, फिर मन ही मन खुद को थप्पड़ मारा। "मेरा मतलब, नहीं! मतलब, हाँ, बैठ सकते हो!"

अरे लड़की, तू कर क्या रही है?!


उसने मुस्कुराया। वो खतरनाक, नरम सी स्मirk जो मासूम लड़कियों की ज़िंदगी बर्बाद कर दे।

वो बैठ गया। इतना करीब। बहुत करीब। खुशी म्यूज़ि
यम की मूर्ति की तरह जड़ हो गई।
उसका दिमाग: "साँस लो। बस साँस लो। उसकी तरफ मत देखो। प्यार में मत पड़ो। मरो मत।"

 

फिर, बिना किसी चेतावनी के—
"तो... तुम स्टूडेंट हो?" उसने बेतकल्लुफी से पूछा।
ये क्या है? सर्वे? स्कैम? सेटअप?

"ह-हाँ..." खुशी ने शक भरी नज़रों से जवाब दिया। "तुम्हें क्यों जानना है?"


वो पूरी तरह उसकी तरफ मुड़ा, उसका चेहरा शांत लेकिन बहुत उत्सुक। जैसे वो किसी ज़ू में दुर्लभ प्रजाति को देख रहा हो

"तुम्हारा नाम क्या है?" उसने पूछा।

"??"


अब खुशी ने उसे ठीक से देखा। गलती नंबर 2। क्योंकि इतने करीब से वो और भी अवास्तविक लग रहा था। जैसे फोटोशॉप बोर हो गया हो और उसने असली इंसान बना दिया हो।

 

"तुम मेरा नाम अचानक क्यों जानना चाहते हो?" उसने शक से पूछा। "क्या, विनम्रता से लूटने की कोशिश कर रहे हो?"
वो हँसा। "बस यूँ ही जानना चाहता था।"

 

खुशी ने आँखें सिकोड़ीं। "बस यूँ ही? ...कहीं तुम्हें मुझसे पहली नज़र में प्यार तो नहीं हो गया?!"

फिर उसने भौंहें उठाईं और बम फोड़ा।
"लेकिन सॉरी, मैं बूढ़ों को डेट नहीं करती।"
मौन।


उसके जबड़े सचमुच लटक गए। जैसे किसी ने उसे बताया हो कि सांता क्लॉज़ असली नहीं है।


उसके जवाब देने से पहले ही बस झटके से रुकी।


"मेरा स्टॉप," खुशी ने ड्रामाटिक अंदाज़ में कहा। उसने बैग ठीक किया जैसे कोई रानी अपनी ताज सँभाल रही हो, और बस से ऐसे उतरी जैसे उसने सास-बहू ड्रामे में डायलॉग मारा हो।


पीछे, अर्जुन अभी भी बैठा था, हैरानी में पलकें झपकाते हुए।


बस के बाहर, खुशी ने खुद से फुसफुसाया,
"वाह... ये तो बड़ा ड्रामाटिक हो गया।"
लेकिन अंदर से? उसका दिल चिल्ला रहा था,
"वो इतना हॉट क्यों है?!?!?!"