Me and my feelings - 131 in Hindi Poems by Dr Darshita Babubhai Shah books and stories PDF | में और मेरे अहसास - 131

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में और मेरे अहसास - 131

गम को बहा 

गम को बहा के दिल हल्का कर दो l

दिल को सुकून भरे लम्हों से भर दो ll

 

ग़म में डूबे रहने से कुछ न पाओगे l

खूबसूरती से जिंदगी को सँवर दो ll

 

क़ायनात में छुपी हुई है हर जगह l

जहां भी खुशियाँ दिखे उसे हर दो ll

 

कठियाईया तो पड़ेगी आगे बढ़ो l

हौसलों से संसार समंदर तर दो ll

 

चाहें खुद परेशान हो पर औरों को l

कभी ग़म न मिले एसा वर दो ll

१६-६-२०२५ 

मन पंछी सा

मन पंछी सा ऊँचे आसमान में उड़ना चाहता हैं l

शांति पाने के लिए शोरशराबा से दूर छुपना हैं ll

 

अपनेआप को भीड़ का हिस्सा ना बने इस लिए l

भीतर को झंझोड़कर खुद स्वतन्त्र उगना हैं ll

 

जहाँ में आए हैं तो कुछ करके जाना है तो आज l

जहां है वहीं से एक दो क़दम ऊपर उठना हैं ll

 

ज़ीवन में कभी विष कभी अमृत मिलता है तो l

संसार सागर में मिठास घोलके निभना हैं ll

 

उड़ान हौसलों से भरी होनी चाहिये होगी सखी l

खुद सीमा से बाहिर दूजी सीमा में घुसना हैं ll

१७-७-२०२५ 

 

अंदर फ़ैली खामोशी शोरशराबा कर रहीं हैं l

दिलों दिमाग में चारो और शोर भर रहीं हैं ll

 

नज़रों के सामने जिन्दगी बसर होती गई ओ l

सुकून के लिए चुपचाप नींद में सर रहीं हैं ll

 

कई बार जुबान को रोक दिया कसमे देकर l

खामोश आवाज होशों हवास में तर रहीं हैं ll

 

मन के अंदर एसा उफान उठा है कि सखी l

बातें करने की चाह आंखों से झर रहीं हैं ll

 

बारहा टूटी होगे शब्द खामोश होने से पहले l

अब धीरे धीरे जीने की तमन्ना मर रहीं हैं ll

१८-७-२५ 

 

मुखौटे से निकल कर

मुखौटे से निकल कर असली चेहरा दिखा l

भीतर कुछ और चहरे पे और है लिखा ll

 

असलियत छुपाकर कब तक जी सकोगे l

कैसे खामोश रहे पाते हो जरा वो सिखा ll

 

खुद को ख़ुद से पहचान न रखोगे तो l

पहचान छुपाके कैसे चड़ पाओगे शिखा ll

 

चाहे मुखौटा पहने रहो दुनिया के सामने l

अपने आप से पहचान का रिश्ता निभा ll

 

किसीको नहीं परवा दर्द मुखौटे के पीछे का l

खुद ही भीतर सुकून की जाजम को बिछा ll

१९-७-२०२५ 

 

याद में दिन रात गुजारता है कोई l

दिल से बोझ बड़ा उतारता है कोई ll

 

अपनों से ही चोट खाया हुआ आज l

अपनेआप को ख़ुद संभालता है कोई ll

 

मिरे लापता होने की खबरे छपी हुई है l

लगता है शहर में जानता है कोई ll

 

अंदेशा है मुलाकात होने वाली है कि l

सुबह से खुद को सवांरता है कोई ll

 

बारहा हिचकियाँ आती है सखी तो l

एहसास होता है पुकारता है कोई ll

२०-७-२०२५  

मेघा बरस

आँखों से अश्क़ों का मेघा बरस रहा हैं l

यादों के उफान से दिल छलक रहा हैं ll

 

गुलमोहर के दिन आये बादल गरजे कि l

झिलमिल बारिस से मन बहक रहा हैं ll

 

मेघराज की सावन की धुन बज रही l

यहां मोर जोर शोर से गरज रहा हैं ll

 

बीते है अभी असह्य गरमी के दिन l

कब से अषाढ़ी मेघ तरस रहा हैं ll

 

शाखों पर बारहा बौछार ज़रूरी की l

शज़र भीगे स्पर्श को तड़प रहा हैं ll

२१-७-२०२५ 

प्रीत तुमसे हुईं

जब से प्रीत तुमसे हुईं तब से तमन्ना जीने की हुईं l

बरसो बाद प्रफुल्लित रहने की आदत सीने की हुईं ll

 

आज महफिल भरी हुई है शराब और शबाब से तो l

आरज़ू ए निगाहों को हुस्न का शबाब पीने की हुईं ll

 

कई दिनों से तलाश थी खूबसूरत हमसफ़र की l

मोहब्बत से मुलाक़ात बीच राह में छीने की हुईं ll

 

दिल फेंक खुले आम घूम रहे थे बाजर में और l

आज हुस्न बे पर्दा हुआ गिला दिल भीगे की हुईं ll

 

लम्हा भर चार निगाहें क्या हुई दिल तेरा हो गया l

हुस्न की खूबसूरती देख वही बात शीशे की हुईं ll

२२-७-२०२५ 

 

सावन आया झूम के l

सावन आया झूम के l

बारिस लाया ढूँढ के l

आओ झूमे नाचे गाये आज l

भीगकर भीगो दे तन मन को l

मल्हार गाया झूम के ll

 

खुशी से खूब नाचो गाओ l

बौछार से आनंद पाओ l

चहरे पर खुशियाँ लाओ l

मिलकर राग रागिनी गाओ l

सुकून पाया झूम के ll

 

सावन में बहाओ कश्ती l

थोड़ी बहुत कर लो मस्ती l

मुकम्मल हो जाए हस्ती l

पानी से भीगी भीगी बस्ती l

बादल छाया झूम के ll

२३-७-२०२५ 

आराधना

लंबी आराधना के बाद पाया है सुकून l

बड़ी मुद्दतों के बाद आया है सुकून ll

 

बेइंतिहा इंतजार के बाद संदेशा भेजा l

खत के साथ डाकिया लाया है सुकून ll

 

दिन रात बड़ा बेसब्र रहता था ये दिल l

आज दिलों दिमाग को भाया है सुकून ll

 

घबरा गये थे के खो दिया जानेजा को l

दिल रखने के लिए बोल माया है सुकून ll

 

छोटी सी मुलाकात ने मरहम लगाया l

दिल ए करारे चैन का साया है सुकून ll

२४-५-२०२५ 

 

जिया लागे ना

जिया लागे ना राब्ता बनाए रखिये l

जिन्दगी के हर पल सजाए रखिये ll

 

जानेवाले लौटकर वापिस नहीं आते l

तस्वीरों से दिल को बहलाए रखिये ll

 

खुशी से जीवन को गुजारना हो तो l

यादों को सीने से लगाए रखिये ll 

 

परिन्दों को मंजिल जल्दी ही मिलेगी l

सच्ची बात सब को बताए रखिये ll

 

सुबह का सूरज नया सवेरा लाएगा l

ये आशा को दिलों में जगाए रखियेll 

२५-७-२०२५ 

 

अंतरंग संबंध 

प्राकृति और हमारे बीच अंतरंग संबंध बहुत गहरा हैं l

क़ायनात में हर जगह इन्द्रधनुष का रंग लहरा हैं ll

 

आँखों में उनका चेहरा और साँसों में उनकी सुगंध l

जिंदगी में वो हसीन लम्हा वहीं का वहीं ही ठहरा हैं ll

 

रिश्ते कल भी गाढ़ थे, आज भी गाढ़ है कल भी रहेंगे l

अंतरंग रिश्तों में प्यार का जबरदस्त होता पहरा हैं ll

 

संबंध में खूबसूरत नजाकत भरी तभी रहती है जब के l

आत्मीयता और भावनाएँ के कान सदा ही बहरा हैं ll

 

दिलों में प्यार और ममता की लौ हमेशा रहे जलती तो l

अंतरंग संबंध के सिवा हर रिश्ता ओ संबंध सहरा हैं ll

२६-७-२०२५ 

मुलाकात

जल्द ही मुलाकात के आसार नजर आते हैं l

इस लिए खुशमिजाज सरकार नजर आते हैं ll

 

साहिल पर बेसब्री से इंतिज़ार करता है कोई l

कश्तियां पर बैठे हुए बेकरार नजर आते हैं ll

 

हालात कुछ साथ नहीं है तो शायद न मिलेगे l

बेईमान मौसम भी तरफ़दार नजर आते हैं ll

 

लगता है हुस्न आज बेपर्दा निकला है कि l

बाजार में काफ़ी सारे ख़रीदार नजर आते हैं ll

 

महफिल अकेलेपन में मिलना सम्भव नहीं l

बातचीत के मौके भी दुश्वार नजर आते हैं l

२७ -७-२०२५ 

रूप तुम्हारा

मनमोहक रूप तुम्हारा मन को बहका रहा l

निगाहों से बहकता पैमाना छलका रहा ll

 

बेखुदी में सनम इतने नज़दीक आ गये की l

साँसों के टकराने से साँसों को महका रहा ll

 

बड़े फ़ुरसत में तराजा है मोहब्बत को आज l

बहकते हुस्न को देख ईमान फिसला रहा ll

 

साक़ी ने एक नज़र देखकर मुँह फ़ेर लिया l

महफ़िल में दूर जाकर बैठना तड़पा रहा ll

 

अंजुमन से उठकर चल देना बेफिक्री से l

पलभर मिलने को बेकरार दिल तरसा रहा ll

२८-७-२०२५ 

 

ये उड़ती जुल्फ़ें

ये लहराता दुपट्टा ये उड़ती जुल्फ़ें होश उड़ाती हैं l

खुली फिझाओ में प्यार के हिचकोले में झुलाती हैं ll

 

ख्वाबों से बाहिर निकालने के लिए ढँढोलकर l

गहरी नींद में सोई हुई जवानी को वो उठाती हैं ll

 

फिझाओ में मोहब्बत की खुशबु को घोल गुलों में l

तमन्ना, आरज़ू, अरमान ओ आशा को उगाती हैं ll

 

आशिकी मिजाज बयार में रवानगी और चांदनी में l

रातभर माथे पर प्यारे हाथो से शहलाके सुलाती हैं ll

 

ज़ीस्त की हवेली के तय 'खाने से बाहिर निकाल के l

दिल में उमता हुआ सारा प्यार और दुलार लुटाती हैं ll

२९-७-२०२५ 

झील सी आँखें

मनमोहक झील सी आँखें में डूबकर मदहोश हो गये हैं l

मोहब्बत का नशीला पैमाना पीने से बेहोश हो गये हैं ll

 

जहां नजर गई हुस्न की मल्लिका ए जाम छलक रहा l

भरी महफ़िल में ख़ुद की हस्ती से फरामोश हो गये हैं ll

 

मोहब्बत की आगोश पाकर ज़ज्बात की लौ में बहकर l

भीगी भीगी पूनम की चाँदनी रात में पुरजोश हो गये हैं ll

 

बेइंतिहा ओ बेपनाह प्यार की बरसात में भिगोकर l

मिजाज आशिकी के शायरी में लब्ज खामोश हो गये हैं ll

 

शेर महफ़िल में सुनाते है ख़ुदा की कारीगरी पर ओर l

इशारों में बातें होते ही अब खुशी से जोश हो गये हैं ll

३०-७-२०२५ 

 

चले आओ l

ये दिल चाहे चले आओ l

जहां भी हो चले आओ ll

सुना लागे बिना तेरे l

ये घर आँगन चले आओ ll  

जहां भी हो चले आओ ll

 

सभी गलि में सजन तुम्हें l

निगाहें ढूँढती मेरी l

किधर ढूँढे किधर जाये l

नज़र ना आए कोई राह l

कभी तो घर चले आओ ll

 

मुसीबत हो गई जाना l

धड़कनों में बसाके सुन l

जहाँवाले मुस्काते सब l

मुझे यू देखकर काना l

सुनो जानम चले आओ ll

 

कहां आवाज़ दे तुमको l

कहां जाकर ढुढे तुम्हें l

थकाया आरज़ूओ ने l 

परेशा हुए जुस्तजू से l

लौटकर अब चले आओ ll

 

अभी तो राब्ता हुआ है l

अभी धड़का है दिल मेरा l

कहां जाकर छुपे हो काना l

सुनी राधा तुम्हारे बिन l

अब तो साजन चले आओ ll

३१-७-२०२५ 

सखी 

दर्शिता बाबूभाई शाह