अध्याय 1 खामोशी
रात की ख़ामोशी में बस एक नाम गूंजता था…
"तुम"
तू कहीं नहीं थी… पर हर जगह थी।
मेरे कमरे की दीवारों पर, मेरी डायरी के हर पन्ने पर, मेरी चुप्पियों में, मेरी धड़कनों में, मेरी मुस्कानों के पीछे…
हर जगह बस तू थी।
कितनी अजीब बात है ना?
जिसे पाने की लाख कोशिश की, वो कभी पास नहीं आई।
जिसे भूलना चाहा, वो हर साँस में बसती
मैंने तुझसे मोहब्बत नहीं की थी…
मैंने तुझे खुदा माना था।
लेकिन तू…
तूने मुझे क्या समझा, ये आज भी सवाल है।
कहते हैं ना, अधूरी मोहब्बतें मुकम्मल कहानियाँ बनती हैं।
पर यकीन मान, अधूरी मोहब्बतें नासूर बनती हैं।
जो हर दिन रुलाती हैं…
हर रात नींद से पहले तेरी याद की चादर ओढ़ा जाती हैं।
मैं अब भी वहीं खड़ा हूँ,
जहाँ तू मुझे छोड़ गई थी।
वक़्त बीत गया, लोग बदल गए, मौसम बदल गए…
पर मेरा दिल अब भी तेरे नाम की धड़कनें गिनता है।
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तू जानती थी ना कि मैं तुझसे कितना प्यार करता था?
फिर भी तू चली गई।
शायद इसीलिए…
अब जब कोई मेरा नाम पूछता है,
मैं जवाब नहीं देता।
क्योंकि मेरे नाम के साथ सिर्फ एक कहानी जुड़ी है —
"तुमसे तुम तक"
और उस कहानी में मैं कहीं नहीं हूँ…
सिर्फ "तुम"
काव्या की आँखों के नीचे काले घेरे अब उसके चेहरे का हिस्सा बन चुके थे। उसकी मुस्कान अब तस्वीरों में भी नकली लगती थी। वो लड़की जो कभी हर किसी की जान थी, अब खुद से ही अनजान हो गई थी। वजह? आरव।
आरव... उसकी दुनिया का वो कोना जहाँ वो सबसे ज़्यादा सुकून पाती थी। अब वही कोना वीरान हो चुका था।
शहर वही था, गलियाँ वही थीं, रास्ते भी वही थे — बस आरव नहीं था।
और अब इन सबके बीच, काव्या का अकेलापन और गहरा होता जा रहा था।
“तुम्हें कभी खोना नहीं चाहा था…”
वो रोज़ अपने आप से ये बात कहती, जैसे खुद को यकीन दिला रही हो कि उसने कुछ गलत नहीं किया। पर हर सुबह जब वो उस खाली पार्क में बैठती जहाँ कभी वो दोनों साथ हँसा करते थे, तो उसे यकीन हो जाता कि वो हार गई है।
आरव ने कुछ नहीं कहा था। बस एक दिन खामोशी से चला गया।
ना कोई झगड़ा, ना कोई अलविदा।
बस एक दिन सब कुछ ख़त्म।
"कुछ रिश्ते आवाज़ नहीं करते, टूट भी जाते हैं खामोशी में…"
काव्या की डायरी अब उसकी सबसे बड़ी साथी बन चुकी थी। हर दिन का दर्द, हर उम्मीद की टुकड़ी वो उसी में बाँध देती।
एक पन्ने पर उसने लिखा था —
"आरव, क्या तुम जान पाते कि जिस दिन तुम गए, उस दिन मेरी धड़कनों ने भी रफ्तार छोड़ दी थी?"
उसका परिवार उसे समझता नहीं था। दोस्त बस चुपचाप उसे ‘समझदार’ कहकर किनारे हो गए। और वो?
वो उस भीड़ में अकेली थी जहाँ हर चेहरा जाना-पहचाना था, पर हर दिल अजनबी।
एक दिन उसने आरव की प्रोफाइल खोली —
नई तस्वीर, नया शहर, नई लड़की… और एक मुस्कान जो कभी उसकी होती थी।
उसने मोबाइल बंद कर दिया, पर आँसू नहीं रुके।
"क्या वक़्त इतना बदल जाता है कि लोग चेहरे के साथ इरादे भी बदल देते हैं?"
वो खुद से सवाल करती रही।
और जवाब?
खामोशी…
उस रात उसने फिर वही डायरी उठाई और लिखा —
"मैं अब भी तुम्हारे नाम की कहानी लिखती हूँ आरव… पर अब तुम्हारा किरदार सिर्फ़ यादों में जिंदा है।"
पर दिल की जिद भी अजीब होती है ना?
वो बार-बार उसी मोड़ पर जाकर खड़ा हो जाता है जहाँ उसे सबसे ज़्यादा चोट लगी हो।
और काव्या का दिल अब भी उसी मोड़ पर था —
जहाँ आरव ने उसे छोड़ा था।
जहाँ उसकी मोहब्बत अधूरी रह गई थी।
जहाँ उसकी
कहानी ने एक नाम पाया था —
"तुमसे… तुम तक"