साल 2095 चल रहा था। दुनिया अब वो नहीं रही थी जो कभी हुआ करती थी। नदियाँ सूख चुकी थीं, जंगल केवल इतिहास की किताबों में बचे थे, और लोग अब 'ऑक्सीजन टावर' से सांस लेते थे — पैसे देकर। हर देश ने अपनी सीमाओं को और सख्त बना दिया था, और लोग अपने-अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे।
इसी दुनिया के बीच में एक 13 साल का बच्चा था – "अनय"। वह भारत के उजड़े हुए क्षेत्र में रहता था, जहाँ अब धूल ही धूल थी और नीला आकाश केवल कहानियों में सुना जाता था। अनय की माँ उसे हर रात सोते समय एक कहानी सुनाती थी — “पेड़ों की दुनिया”, जहाँ हवा मीठी होती थी, परिंदे गाते थे और लोग बिना मास्क के खुलकर हँसते थे।
अनय को वो कहानियाँ झूठ लगती थीं। लेकिन एक दिन, उसकी ज़िंदगी बदल गई।
एक पुराने टूटे मंदिर की सफाई करते हुए अनय को ज़मीन में दबा हुआ एक चमकदार डिब्बा मिला। वह एक लोहे का छोटा कंटेनर था जिस पर लिखा था —
“Hope Seed – आख़िरी बीज, अगर तुमने इसे लगाया, तो धरती फिर से साँस ले सकती है।”
अनय पहले तो हँसा — “बीज? अब कौन-सा पेड़ उगेगा यहाँ धूल में?”
लेकिन डिब्बे के साथ एक चिट्ठी भी थी —
अनय उलझन में पड़ गया। उसने अपने गाँव वालों को बताया, लेकिन सबने मज़ाक उड़ाया। “दुनिया अब एक नहीं रही बच्चा… अब तो सब अपने लिए जीते हैं।”
लेकिन अनय ने हार नहीं मानी। उसने एक पुराना सोलर पावर वाला रेडियो चालू किया और दिन-रात दुनिया को पुकारता रहा:
> “अगर कोई सुन रहा है, तो बस एक बार सोचिए — क्या हम वाकई यही दुनिया अपने बच्चों को देना चाहते हैं? मैं एक बीज लगाने जा रहा हूँ — क्या आप सब एक बार दुआ करेंगे, एक साथ, एक दिन, एक समय?”
धीरे-धीरे उसकी आवाज़ इंटरनेट पर फैल गई। एक जापानी वैज्ञानिक ने उसका वीडियो शेयर किया, एक अफ्रीकी किसान ने उसे उम्मीद कहा, और फिर यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया — सब जगह अनय की पुकार पहुँच गई। कहानी का नाम: दुनिया का बँटवारा
शब्दों की संख्या: लगभग 600
शैली: काल्पनिक - भावनात्मक - सीख देने वाली
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बहुत समय पहले की बात है, जब इंसान ने विज्ञान और तकनीक में इतनी तरक्की कर ली थी कि वह सितारों तक पहुँच गया था। लेकिन उसके दिल में अब भी नफ़रत, लालच और सत्ता की भूख बाकी थी।
साल 2099 चल रहा था। धरती अब कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटी जा चुकी थी — देश नहीं, भावनाओं के आधार पर।
एक हिस्सा उन लोगों के लिए था जो सिर्फ प्यार में जीना चाहते थे — "प्यार प्रदेश"
दूसरा हिस्सा उन लोगों के लिए था जो हमेशा लड़ते रहते थे — "युद्ध लोक"
तीसरा हिस्सा केवल विज्ञान के नाम पर था — "तकनीकी राष्ट्र"
चौथा हिस्सा धर्म के नाम पर था — "आस्था भूमि"
और बाकी छोटे-छोटे टुकड़े लालच, राजनीति, जाति, रंग, भाषा, और पैसों के नाम पर बँट गए थे।
हर कोई अपने-अपने हिस्से में खुश था... या यूँ कहो कि खुश रहने का दिखावा कर रहा था।
कोई किसी और हिस्से से बात नहीं करता था। सबको लगा कि उनका