Ek Baar Fir - 1 in Hindi Love Stories by Anurag Kumar books and stories PDF | एक बार फिर - 1

Featured Books
Categories
Share

एक बार फिर - 1

जंगल में लगी आग की तरह बात पूरे गांव में फैल गई थी। यहां तक कि धीरे-धीरे पूरे क्षेत्र में भी विस्तार पकड़ती जा रही थी। बच्चे, युवा ,बूढ़े, आदमी, औरत सभी की जुबान पर बस यही घटना तैर रही थी। चारों तरफ विस्फोटक चर्चा का विषय बन गई थी यह घटना। और यह घटना जो भी सुनता था उसके मुंह से बस यही निकलता था, हाय राम।

चंदन किशोर। उम्र 58 साल, सरकारी प्राइमरी स्कूल में प्रधानाध्यापक। शादी हुई। बेबी दो लड़कों को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई। बीवी के मरने के 20 साल बाद अब वे दोबारा शादी करने जा रहे थे। यही बात गांव व क्षेत्र में चर्चा व कौतूहल का विषय बनी हुई थी। क्योंकि ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ। गांव वालों के लिए यह एक नई और विचित्र घटना थी।

कोई बच्चा हो अथवा बूढ़ा सभी खूब चटकारे लेकर इस बात पर बहस करते थे। गांव के बच्चे तो कहते थे,"बु ढऊ सठिया गए हैं।"
तो बुजुर्ग व जवान लोग कहते,"जवानी जोश मार रही है भैया! क्या किया जाए दिल है कि मानता नहीं!"और खूब ठहाके लगाते थे।

गांव के पंडित दीनदयाल जी जो बहुत ही मजाकिया थे हंस कर कहते थे,"भाई, शरीर बूढ़ा होता है दिल नहीं! दिल तो सदा जवान रहता है।"

गलियों में बच्चे गाते हुए,"अभी तो मैं जवान हूं,"खूब शोर मचाते हुए निकलते थे। चंदन किशोर के घर के सामने कुछ ज्यादा ही तेज स्वर में हुए गीत गाने लगते थे।

इस बात की चर्चा महिलाओं में भी खूब थी। वह भी खूब चटकारे लेकर बति याती थी।

रज्जो भाभी खूब चटकारे लेकर कहती,"तुम्हें पता है बहन चंदन मास्टर साहब फिर से दुबला बनने जा रहे हैं?"

"हां, एक पाव घोड़ी पर रहेगा और एक कब्र में!"टूटे दांत वाली बन्नो काकी जवाब देती और फिर सभी खूब ठहाके लगाकर हंसती।

बिडोली काकी अपने पीले पीले दांत चमका ती हुई बोली,"पता नहीं क्या हो गया चंदन किशोर को जो इस उम्र में शादी.. दो दो जवान बेटे हैं.. जब डाली मरी थी तब कर लेता तो बच्चों को अकेले नहीं पालना पड़ता तब तो मां खूब कहती रही कि शादी कर ले शादी कर ले पर तब मां की एक भी नहीं सुनी! और अब जब पैर कब्र में लटकने लगे तब शादी का बुखार चढ़ा है!"

"अरे काकी! तुम ठहरी पुरानी औरत! तुम्हें दिल के बारे में कुछ पता नहीं। दिल है पता नहीं कब किस पर रिज है जाए।"शांति भाभी घूंघट जरा ऊपर सरका कर बोली और उनकी बात सुनकर काकी समेत सभी जोर जोर से खिलखिला पड़ी।

यह बात महिलाओं की दैनिक चर्चा में शामिल हो चुकी थी। जब सब इकट्ठा होती तो ऐसे ही चटकारे लेकर खूब हंसी ठिठोली करती।

इन दोनों पक्षों के अतिरिक्त गांव के लोगों का एक दूसरा भी पक्ष था जिसके मुखिया थे ठाकुर जमुना प्रसाद। वह कहते,"चंदन किशोर को यह सब नहीं करना चाहिए।इससे हमारे गांव के बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा। बच्चे बिगड़ जाएंगे।"

"अरे कम से कम अपनी संस्कृति सभ्यता के बारे में भी तो सोचना चाहिए उसे कि विश्व में भारत की क्या छवि है! उस अखंड छवि को धूमिल करने पर उतारू है चंदन किशोर!"ठाकुर जमुना प्रसाद की बातों में हां मिलाते हुए पंडित दया नाथ कहते थे,"पढ़ा लिखा है। प्राइमरी में अध्यापक है फिर भी.. उम्र का भी ख्याल नहीं बेवकूफ को!"
यह दोनों लोग चंदन किशोर से सबसे ज्यादा नाराज थे।

दोपहर का समय था। दरवाजे पर किसी ने कुंडी खटखट आई। घर में उस समय केवल एक बूढ़ी औरत थी और उसी ने आकर दरवाज़ा खोला।
बाहर चंदन किशोर था जो अभी अभी स्कूल से लौटा था। माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थी। वह गोरा था इसीलिए उसका चेहरा कुछ ज्यादा ही लाल दिख रहा था क्योंकि वह धूप में चलकर आया था।
वह औरत उसकी मां थी पर इस समय वह भी नाराज चल रही थी इसलिए उससे कम ही बात करती थी।

चंदन किशोर साइकिल समेत अंदर दाखिल हो गया। अंदर बैठक का कमरा पार करके गैलरी में पहुंचा फिर सामने वाले कमरे में साइकिल खड़ी करके वापस बैठक वाले कमरे में आ गया। कमरे में कुर्सियां पड़ी थी वह तब छोटा तक भी पड़ा था। कमरे की बाकी के साथ सजा भी ठीक-ठाक थी। उस कमरे को ही अक्सर बैठक के रूप में प्रयोग किया जाता था।
उसने बैठने के लिए कुर्सी जगह तखत चुना। उसकी बूढ़ी मां दत्ता के गिलास पानी ला कर तखत पर लग गई और स्वयं वही कुर्सी पर बैठ गई। चंदन किशोर गर्मी से निजात पाने के लिए कुछ देर पंखा करता रहा और फिर गिलास उठा कर एक ही सांस में सारा पानी पी गया।
कुर्सी पर बैठी उसकी बूढ़ी मां के होठ हिल रहे थे। लगता था जैसे कुछ कहना चाहती है। यह सही भी था पर इससे पहले कि वह अपने होंठ खोलती उन्हें फिर से चलने पड़े क्योंकि तभी चंदन किशोर वहां से उठकर बाथरूम चला गया। बाथरूम घर के अंदर आंगन में बना था। घर पूरा पक्का था।
हाथ पैर मुंह धो कर लौटा। मां द्वारा दी गई तौलिए से पानी साफ किया। फिर कपड़े बदले। और आईने के सामने खड़े होकर बाल संवारने लगा।

"खाना लगा दूं? कहीं जा रहा है बेटा?"उसकी मां जानती थी कि चंदन किशोर कहीं जाने की तैयारी कर रहा है क्योंकि यह सब वह लगभग 15 दिन से लगातार देखती आ रही थी। चंदन किशोर स्कूल से आने के बाद रोज इसी तरह तैयार होकर कहीं चला जाता था।कहां जाता था यह भी दूसरों द्वारा उसे पता चल गया था पर पूछने की कभी हिम्मत नहीं कि।
जब वह तैयार होकर बाहर जाने लगा तो उसकी मां ने दोबारा कुछ कड़े स्वर में कहा,"तुम्हारे इस रवैया से दोनों बेटे भी आवारा होते जा रहे हैं। धूप कितनी चढ़ाई है पर अभी तक घर नहीं आए। पता नहीं बाहर क्या करते हैं, कहां जाते है?"
"शाम को देखता हूं।"कहकर चंदन किशोर तेज तेज कदमों से चलता हुआ मां की नजरों से ओझल हो गया।

चंदन किशोर के कदमों की दिशा नदी की ओर जा रही थी। नदी गांव से लगभग आधे मील की दूरी पर थी। गांव पार किया।उसके बाद नदी तक उबड़ खाबड़ जंगली पहाड़ी रास्ता था उसे पार करके वह नदी के किनारे पहुंचा। नदी में पानी पहले की अपेक्षा कुछ कम था।  गर्मियों में वैसे भी नदियों का पानी अक्सर कम हो जाता है।

किनारे खड़े होकर चंदन किशोर ने चारों तरफ एक भरपूर नजर डाली। उसे कहीं कोई नजर नहीं आया। उस घड़ी चेहरे पर धूप पड़ रही थी सो छाया के लिए कुछ दूरी पर खड़े गुलमोहर के वृक्ष की तरफ बढ़ गया परंतु दो कदम चल कर ही रुक गया।वह उस नाव को देख कर रुक गया था जो दूसरे छोर से उसकी तरफ ही चली आ रही थी।
वह वहीं खड़ा नाव को नजदीक आते देखता रहा। नाउ धीरे धीरे पास आती जा रही थी।जैसे-जैसे नाव पास आ रही थी वैसे वैसे ही चंदन किशोर के ह्रदय में खुशी की उमंग की लहर बढ़ती ही जा रही थी।

ना व  बिल्कुल नजदीक आ गई। उसी नाव में कमला बैठी थी। उसकी प्रेमिका। वह उसी से मिलने आया था। लगभग 15 दिनों से वहां आ रहा था।
नाव एक 13_ 14 वर्षीय किशोर चला रहा था।
जब नाव तट पर आकर लगी तो चंदन किशोर ने आगे बढ़कर अपना हाथ बढ़ाकर कमला के हाथ को थामा और उसे  आराम से उतारा।
"अब जाऊं दीदी?"छोटे मल्लाह ने नाव घुमाने के बाद कहा।
"हां.. रुको.. लेकिन आज मेरे पास पैसे तो..?"
"मैंने तो जाने के लिए पूछा था! पैसे के लिए किसने कहा?"
तभी चंदन किशोर ने अपनी पैंट की जेब से 20 का नोट निकाला और उस छोटे मल्लाह की तरफ बढ़ा दिया।
छोटे मल्लाह ने कमला की तरफ देखा। कमला विचलित सी हो गई। बोली,"नहीं तुम रहने दो! छोटू मैं तुम्हें घर चल कर दे दूंगी।"
"क्यों?"चंदन किशोर किसी बच्चे की भांति बीच में जिद करते हुए बोल पड़ा,"मैं क्यों नहीं दे सकता!"फिर उसने जबरदस्ती बच्चे को ₹20 थमा दिए। लड़का पहले हिचकिचाया। पर जब कमला ने कहा,"ले लो।"तो उसने रुपए रख लिए।

"अच्छा जाता हूं दीदी शाम को आऊंगा।"लड़का नाव में चप्पू चलाते हुए बोला।
"अच्छा.. सुनो.. आना जरूर!"
"ऐसा कभी हुआ है जब मैं ना आया हूं?"लड़के ने हंसकर कहा और फिर नाव आगे बढ़ा दी।
उस शांत वातावरण में चप्पू की आवाज काफी देर तक गूंजती रही।

नाउ जाने के बाद वे दोनों गुलमोहर की तरफ बढ़ गए। आते समय कमला के हाथ में चंदन किशोर ने एक छोटा सा झूला देखा था पर तब बच्चे की वजह से पूछ नहीं सका। लेकिन जब गुलमोहर के वृक्ष के नीचे आकर इत्मीनान से बैठे तो पूछा,"इसमें क्या है?"
कमला पहले तो मुस्कुराई। फिर बोली,"इसमें खीर हैं.. साबूदाने की!"
"साबूदाने की!"
" जो तुम्हें बहुत पसंद है!"
"तुम्हें आज भी मेरी पसंद याद है?"चंदन किशोर एक टक तक तक उसे देखता हुआ बोला।
"मुझे तो तुम्हारी हर बात, तुम्हारी हर आदत, यहां तक कि हर शरारत तक याद है!"
"जबकि हम पहली दफा 40 साल पहले मिले थे!
क्रमश..........

ये स्टोरी आपको कैसी लग रही है।अगर अच्छी लग रही है तो मुझे बताए प्लीज़।और मै स्टोरी आगे लिखूं।