कुछ मोहब्बतें किस्मत से नहीं मिलतीं…
वो रूहों में गहराई से बस जाती हैं,
और फिर एक दिन,
वक्त से परे… मौत के पार…
वो दोबारा लौटती हैं।”
पहली मुलाकात
विवेक वर्मा, एक 26 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर, बेंगलुरु में काम करता है।
भीड़ में खोया हुआ, लेकिन अंदर से अकेला…
उसकी ज़िंदगी में न रंग था, न वजह…
चार साल पहले उसकी मुलाकात हुई थी एक लड़की से – अमृता सान्याल।
वो एक दोस्त की शादी में मिली थी।
पहली बार जब अमृता ने उसे देखा, वो पीले रंग की साड़ी में थी, उसके गीले बालों से पानी टपक रहा था, और वो बारिश में भीगते हुए थिरक रही थी।
विवेक की आँखें उसी पल थम गईं।
> “तुम बारिश से डरती नहीं?”
“डरती हूँ… पर उससे प्यार भी है।”
“मैं भी प्यार से डरता हूँ…”
“तो फिर एक काम करो… मुझसे कर लो।”
उनके बीच की मासूम शुरुआत ने एक गहरा रिश्ता जन्म दिया।
🌷 जब सब कुछ अच्छा था
विवेक और अमृता का प्यार एक परी कथा जैसा था।
हर रविवार सुबह वो साथ sunrise देखने जाते।
अमृता को पेंटिंग का शौक था, विवेक उसके लिए ब्रश खरीद कर लाता।
विवेक को चाय पसंद थी, अमृता रोज़ उसके लिए अलग-अलग फ्लेवर की चाय बनाती।
एक दिन अमृता ने कहा:
> “अगर मैं मर भी जाऊँ न…
तो मेरी रूह यहीं होगी…
तेरे आस-पास… हर साँस में।”
विवेक हँस पड़ा। उसे क्या पता था कि ये लाइन एक भविष्यवाणी थी।
🕯️एक अधूरी विदा
एक शाम, अमृता ने कहा –
> “मैं कल घर जा रही हूँ कुछ दिन के लिए, वापस आऊँगी… दो हफ्ते में।”
विवेक ने उसका बैग उठाया, स्टेशन तक छोड़ा, एक आखिरी मुस्कान दी।
लेकिन वो मुस्कान आखिरी बन गई।
अमृता कभी वापस नहीं आई।
न कोई कॉल, न मैसेज, न जवाब।
विवेक पागल हो गया।
उसने पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई, उसके शहर गया, अस्पताल खंगाले… लेकिन अमृता गायब थी।
और फिर, एक महीने बाद…
उसे खबर मिली –
> अमृता अब इस दुनिया में नहीं रही।
उसने आत्महत्या कर ली थी…!
🕯️ ज़िंदगी थम गई
विवेक बिखर गया।
वो हर दिन अमृता की कब्र के पास जाकर बैठा करता।
उसे यकीन नहीं था कि वो लड़की जो ज़िंदगी से लड़ना सिखाती थी, वो ऐसे हार गई।
उसने खुद को दुनिया से काट लिया।
हर रात उसके कानों में वो आवाज़ गूंजती थी –
> "अगर मैं मर भी जाऊँ न… तो मेरी रूह यहीं होगी…"
🌑 निया की परछाईं
तीन साल बाद…
विवेक एक शादी में गया – एक दोस्त की हिमाचल में शादी थी।
सिर्फ़ इसलिए गया कि मन कहीं और लग जाए।
वहीं उसे मिली निया सिंह।
चुलबुली, बातूनी, लेकिन उसकी आँखों में एक पहाड़ जैसा दर्द।
पहली बार निया को देख कर विवेक को एक अजीब सी अनुभूति हुई।
वो चलती तो जैसे अमृता…
हँसती तो वही खनकती हँसी…
एक दिन, बारिश में खड़ी होकर निया ने कहा:
> “अगर मैं मर भी जाऊँ न…
तो मेरी रूह यहीं होगी…”
विवेक का दिल कांप गया।
वो वही शब्द थे… जो अमृता ने कहे थे।
🕯️आत्मा की मोहब्बत
धीरे-धीरे निया कुछ और बनती गई।
कभी वो अमृता के फेवरेट गाने गुनगुनाती,
कभी वो उन्हीं जगहों की बात करती, जहाँ विवेक और अमृता जाया करते थे।
फिर एक दिन, निया खुद कहती है:
> “मैं अमृता हूँ…
निया का शरीर बस एक रास्ता है…
मैं तुम्हारे पास लौट आई हूँ, एक आख़िरी बार।”
अमृता की आत्मा वापस आई थी।
चार साल की तड़प, आँसुओं का सैलाब, और अधूरी मोहब्बत…
अब उस रूह ने उसे चैन नहीं लेने दिया।
🌌 आख़िरी मुलाक़ात
अमृता ने विवेक से कुछ दिन माँगे –
बस कुछ दिन उसके साथ जीने के लिए।
वे दोनों फिर से मिलते हैं –
वो मंदिर, वो चाय की दुकान, वो समंदर किनारा…
लेकिन हर शाम के साथ विवेक डरता है –
कि ये वक़्त अब बस उधार का है।
फिर एक दिन अमृता ने कहा:
> “अब मुझे जाना होगा…
लेकिन मेरी रूह अब कभी तुम्हें अकेला नहीं छोड़ेगी।”
वो मुस्कराई,
उसने निया के शरीर से एक चूमा,
और अचानक, निया बेहोश होकर ज़मीन पर गिर गई।
🌠 विदा
निया को जब होश आया,
उसे कुछ याद नहीं था।
वो सामान्य थी – लेकिन उसकी आँखों में अब अमृता नहीं थी।
विवेक ने बस देखा…
और आँखें बंद कर लीं।
अमृता चली गई थी… इस बार सचमुच।
🌺प्यार कभी मरता नहीं
कुछ महीने बाद…
विवेक अपने कमरे में बैठा, चाय पीते हुए
एक किताब पढ़ रहा था।
दरवाज़ा खुला –
एक हवा चली… चाय की ख़ुशबू उड़ी… और कमरे में अमृता की आवाज़ गूंजी…
> “मैं यहीं हूँ…
जब तक तू साँस लेता है, मैं ज़िंदा हूँ…
क्योंकि मेरा प्यार, तुझसे नहीं… तेरी रूह से है।”
🌙 अंतिम पंक्तियाँ:
> "कुछ मोहब्बतें जिस्म की मोहताज़ नहीं होतीं।
वो रूहों में बसती हैं।
और जब तक रूहें हैं…
तब तक वो मोहब्बतें कभी मरती नहीं।"